श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में ईस्टर के मौके पर रविवार को हुए कई धमाकों में 215 लोगों की मौत हो गई। 500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इनमें भारत के तीन और भारतीय मूल की दुबई की एक महिला समेत कुल चार भारतीयों की मौत हुई है। आज के अखबारों में विस्फोट की खबरों के साथ यह सूचना प्रमुखता से है कि श्रीलंका में मरने वाले चार भारतीय हैं। निश्चित रूप से यह विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के निजी प्रयासों का हिस्सा है पर मैं अखबारों में खबरों की प्रस्तुति और उन्हें मिली प्राथमिकता की बात कर रहा हूं। इस विस्फोट की खबर के साथ टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर दो कॉलम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फोटो के साथ एक खबर है जिसका शीर्षक हिन्दी में कुछ इस प्रकार होगा, "मोदी ने कहा, हमारे इलाके में इस तरह की बर्बरता की कोई जगह नहीं है"।
इस खबर के मुताबिक भारत ने श्रीलंका में हुए सीरियल विस्फोट की निन्दा की और कहा कि आतंक की किसी कार्रवाई का कोई औचित्य नहीं हो सकता है। इस तथ्य और एलान के आलोक में द टेलीग्राफ की खबर उल्लेखनीय है। अखबार ने पहले पन्ने पर ही 200 से ज्यादा लोगों के मरने की मूल खबर के साथ सिंगल कॉलम में छापा है, "तीन भारतीय मरे; मोदी को चुनावी मसाला मिला"। इसमें अखबार ने लिखा है, ".... प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका उल्लेख मतदाताओं के समक्ष खुद को आतंकवाद खत्म करने में सक्षम अकेले नेता के रूप में प्रस्तुत करने के लिए किया"। मुमकिन है यह अखबार के तेवर का मामला हो और सभी अखबारों या उनके संपादकों को यह सही नहीं लगे। पर पाठकों को हरेक पहलू की जानकारी होनी चाहिए। खासकर पहली बार वोट देने वालों को जिनसे इस बार अपेक्षा की गई है कि उनका वोट पुलवामा हमले और इसके जवाब में बालाकोट हवाई हमले के लिए नहीं पड़ सकता है क्या?
आप जानते हैं कि बालाकोट में 300 आतंकियों को मार गिराने के भारी शोर, हंगामे और प्रचार के बाद सुषमा स्वराज ने अंततः मान लिया है कि बालाकोट हवाई हमले में कोई नहीं मरा। पर यह खबर अखबारों में नजर नहीं आई। आज टेलीग्राफ ने श्रीलंका में भारत के चार लोग मरे उसकी खबर जैसे दी है उसे दूसरे अखबारों ने कैसे पेश किया है उसपर भी आता हूं लेकिन पहले टेलीग्राफ की खबर। मोदी ने राजस्थान में मतदाताओं से पूछा, आतंकवाद को खत्म किया जाना चाहिए कि नहीं? ऐसा कौन कर सकता है? क्या आप मोदी के अलावा किसी और का नाम सोच सकते हैं? कहने की जरूरत नहीं है कि इसी आधार पर मोदी जी दोबारा प्रधानमंत्री बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। और चुनावी सभाओं में वीररस से भरे भाषण कर रहे हैं।
आइए आपको कुछ और शीर्षक व खबर बताऊं। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर श्रीलंका की खबर के साथ तीन कॉलम में दो लाइन का शीर्षक है, "मोदी ने रैली में कहा : हमारे परमाणु हथियार दीवाली के लिए नहीं हैं"। इस शीर्षक और खबर के साथ यह जरूर हाईलाइट किया हुआ है कि, "पाकिस्तान हर दिन यह कहा करता था कि हमारे पास परमाणु बटन है, हमारे पास परमाणु बटन है .... तो हमारे पास क्या है? क्या हमने इसे दीवाली के लिए रखा हुआ है।" प्रधानमंत्री चुनावी रैली में यह दावा कर रहे हैं जबकि पद संभालने के बाद कहा था कि 50 साल में कुछ हुआ ही नहीं। क्या ये हथियार उनने बनाए हैं जो इसका श्रेय ले रहे हैं और ले रहे हैं तो क्या जिसने यह क्षमता विकसित की वह इसका उपयोग करना नहीं जानता रहा होगा?
आइए देखें और अखबारों में क्या स्थिति है। दैनिक भास्कर में चुनावी और गैर चुनावी खबरें दो अलग फ्रंट पेज पर रहती हैं। श्रीलंका में विस्फोट की खबर से अलग, दूसरे फ्रंट पेज पर लीड का फ्लैग शीर्षक है, “मोदी ने राजस्थान में दो, गुजरात में एक रैली की, प्रियंका ने वायनाड में किया प्रचार”। मुख्य शीर्षक है, “पाक अभिनंदन को नहीं लौटाता तो वह कत्ल की रात होती : मोदी”। इस खबर का इंट्रो है, “कहा, मैंने उसे (पाक) साफ कह दिया था कि पायलट को कुछ हुआ तो छोड़ेंगे नहीं”। वैसे तो यह बहुत पुरानी बात नहीं है और पाठकों को याद होगा कि तब क्या कहा और अखबारों में क्या छपा था। अभी मैं उस विस्तार में नहीं जाउंगा पर बताना चाहता हूं कि बचपन में पढ़ा था कि भूतकाल के छह भेद होते हैं और उनमें एक होता है, हेतु हेतु मद्भूत (काल)। और बचपन में ही बताया गया कि इस भूतकाल में बात नहीं करते हैं। पर अब प्रधानमंत्री कर रहे हैं और शीर्षक बन रहा है।
अखबार ने इस खबर तो पत्रकारिता की भाषा में संतुलित करने का प्रयास किया है और इसके साथ छापा है, कांग्रेस ने सर्जिकल स्ट्राइक कराने वाले लेफ्टिनेंट जनरल से जारी कराई सुरक्षा नीति। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर को "मोदी ने रैली में कहा : हमारे परमाणु हथियार दीवाली के लिए नहीं हैं" के नीचे छापकर संतुलन बनाने का प्रयास किया है लेकिन साफ लग रहा है कि कांग्रेस के शस्त्रागार में वैसे हथियार ही नहीं हैं जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चला रहे हैं। अखबार राहुल गांधी से तो कह नहीं सकते है कि आप भी ऐसे भाषण दो – हम उसे भी छापेंगे। मेरा मतलब है कि पाठक अखबारों की मजबूरी समझें। सिर्फ उनका दोष न दें। लेकिन परमाणु हथियार और दीवाली वाली खबर? दैनिक भास्कर में पहले पन्ने पर नहीं है।
अखबार ने अपने दिल्ली संस्करण में इसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान की खबरों के पन्ने पर छापा है। मुझे लगता है कि इस खबर का यह सही इलाज है। प्रधानमंत्री को बोलने से जब चुनाव आयोग नहीं रोक पा रहा है तो कोई और क्या करे। जब बोल रहे हैं तो अखबार भी कैसे छोड़ दें। ऐसी (बातें) खबरें छोड़ी भी नहीं जा सकती है। ऐसे में इन्हें खास किस्म की खबरों के साथ छापना विवेक सम्मत है। यहां इस खबर का शीर्षक पूरा है, “पांच कॉलम दो लाइन में – कांग्रेस कहती थी पाक के पास न्यूक्लियर बम है और हमारे पास क्या दीवाली पर फोड़ने को थे मोदी”। इस शीर्षक से बात स्पष्ट है। कांग्रेस समझती है कि पाकिस्तान के पास है तो हमारे पास किस लिए है। और यह समझने की ही बात है। हवाई हमला करके अपना विमान खोकर झूठा दावा करने वालों का मकसद भी समझना होगा। खासकर तब जब प्रधानमंत्री यह भी कह रहे हैं कि, “हमारे इलाके में इस तरह की बर्बरता की कोई जगह नहीं है"। मुझे लगता है कि यह कहना कि हमारे परमाणु बम दीवाली के लिए नहीं हैं, बर्बरता दिखाना ही है और उस हवाई हमले से कम नहीं है जिसमें कोई नहीं मरा।
इंडियन एक्सप्रेस ने प्रधानमंत्री के भाषणों को पहले पन्ने पर ही रखा है। हिन्दी में शीर्षक कुछ इस प्रकार होगा, "राजस्थान में मोदी ने पाकिस्तान पर हमला बोला : क्या हमारे परमाणु बम दीवाली के लिए हैं?” इसी के नीचे दो कॉलम तीन लाइन के शीर्षक में ही दूसरी खबर है, “गुजरात में उन्होंने बालाकोट की चर्चा की अमेरिका ने कहा भारत 12 मिसाइल के साथ तैयार है”। इसे दैनिक भास्कर की खबर, “पाक अभिनंदन को नहीं लौटाता तो वह कत्ल की रात होती : मोदी” के साथ पढ़िए। इससे पहले कि मैं हिन्दी के बाकी अखबारों की खबरों की चर्चा करूं, इस तथ्य पर ध्यान दिलाना जरूरी है कि श्रीलंका में कल के विस्फोट 10 साल पहले खत्म हुए गृहयुद्ध के बाद पहली बार हुए हैं। इसलिए पांच साल में भारत में आतंकवादी हमले कम हुए के दावे को मान लिया जाए तो भी यह जरूरी नहीं है कि हमले फिर नहीं होंगे और अगर पाकिस्तान को सबक सीखाने से बात बननी होती तो उसे पहले भी सबक सीखाया जा चुका है। भले ही इसके बदले वोट नहीं मांगे गए। कांग्रेस इस मामले में पिछला बहु प्रचारित सर्जिकल स्ट्राइक कराने वाले लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हूडा की इस सलाह से सहमत है कि सर्जिकल स्ट्राइक या एयर स्ट्राइक से पाकिस्तान का व्य़वहार नहीं बदलेगा (हिन्दुस्तान टाइम्स)।
इस खबर के मुताबिक भारत ने श्रीलंका में हुए सीरियल विस्फोट की निन्दा की और कहा कि आतंक की किसी कार्रवाई का कोई औचित्य नहीं हो सकता है। इस तथ्य और एलान के आलोक में द टेलीग्राफ की खबर उल्लेखनीय है। अखबार ने पहले पन्ने पर ही 200 से ज्यादा लोगों के मरने की मूल खबर के साथ सिंगल कॉलम में छापा है, "तीन भारतीय मरे; मोदी को चुनावी मसाला मिला"। इसमें अखबार ने लिखा है, ".... प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका उल्लेख मतदाताओं के समक्ष खुद को आतंकवाद खत्म करने में सक्षम अकेले नेता के रूप में प्रस्तुत करने के लिए किया"। मुमकिन है यह अखबार के तेवर का मामला हो और सभी अखबारों या उनके संपादकों को यह सही नहीं लगे। पर पाठकों को हरेक पहलू की जानकारी होनी चाहिए। खासकर पहली बार वोट देने वालों को जिनसे इस बार अपेक्षा की गई है कि उनका वोट पुलवामा हमले और इसके जवाब में बालाकोट हवाई हमले के लिए नहीं पड़ सकता है क्या?
आप जानते हैं कि बालाकोट में 300 आतंकियों को मार गिराने के भारी शोर, हंगामे और प्रचार के बाद सुषमा स्वराज ने अंततः मान लिया है कि बालाकोट हवाई हमले में कोई नहीं मरा। पर यह खबर अखबारों में नजर नहीं आई। आज टेलीग्राफ ने श्रीलंका में भारत के चार लोग मरे उसकी खबर जैसे दी है उसे दूसरे अखबारों ने कैसे पेश किया है उसपर भी आता हूं लेकिन पहले टेलीग्राफ की खबर। मोदी ने राजस्थान में मतदाताओं से पूछा, आतंकवाद को खत्म किया जाना चाहिए कि नहीं? ऐसा कौन कर सकता है? क्या आप मोदी के अलावा किसी और का नाम सोच सकते हैं? कहने की जरूरत नहीं है कि इसी आधार पर मोदी जी दोबारा प्रधानमंत्री बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। और चुनावी सभाओं में वीररस से भरे भाषण कर रहे हैं।
आइए आपको कुछ और शीर्षक व खबर बताऊं। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर श्रीलंका की खबर के साथ तीन कॉलम में दो लाइन का शीर्षक है, "मोदी ने रैली में कहा : हमारे परमाणु हथियार दीवाली के लिए नहीं हैं"। इस शीर्षक और खबर के साथ यह जरूर हाईलाइट किया हुआ है कि, "पाकिस्तान हर दिन यह कहा करता था कि हमारे पास परमाणु बटन है, हमारे पास परमाणु बटन है .... तो हमारे पास क्या है? क्या हमने इसे दीवाली के लिए रखा हुआ है।" प्रधानमंत्री चुनावी रैली में यह दावा कर रहे हैं जबकि पद संभालने के बाद कहा था कि 50 साल में कुछ हुआ ही नहीं। क्या ये हथियार उनने बनाए हैं जो इसका श्रेय ले रहे हैं और ले रहे हैं तो क्या जिसने यह क्षमता विकसित की वह इसका उपयोग करना नहीं जानता रहा होगा?
आइए देखें और अखबारों में क्या स्थिति है। दैनिक भास्कर में चुनावी और गैर चुनावी खबरें दो अलग फ्रंट पेज पर रहती हैं। श्रीलंका में विस्फोट की खबर से अलग, दूसरे फ्रंट पेज पर लीड का फ्लैग शीर्षक है, “मोदी ने राजस्थान में दो, गुजरात में एक रैली की, प्रियंका ने वायनाड में किया प्रचार”। मुख्य शीर्षक है, “पाक अभिनंदन को नहीं लौटाता तो वह कत्ल की रात होती : मोदी”। इस खबर का इंट्रो है, “कहा, मैंने उसे (पाक) साफ कह दिया था कि पायलट को कुछ हुआ तो छोड़ेंगे नहीं”। वैसे तो यह बहुत पुरानी बात नहीं है और पाठकों को याद होगा कि तब क्या कहा और अखबारों में क्या छपा था। अभी मैं उस विस्तार में नहीं जाउंगा पर बताना चाहता हूं कि बचपन में पढ़ा था कि भूतकाल के छह भेद होते हैं और उनमें एक होता है, हेतु हेतु मद्भूत (काल)। और बचपन में ही बताया गया कि इस भूतकाल में बात नहीं करते हैं। पर अब प्रधानमंत्री कर रहे हैं और शीर्षक बन रहा है।
अखबार ने इस खबर तो पत्रकारिता की भाषा में संतुलित करने का प्रयास किया है और इसके साथ छापा है, कांग्रेस ने सर्जिकल स्ट्राइक कराने वाले लेफ्टिनेंट जनरल से जारी कराई सुरक्षा नीति। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर को "मोदी ने रैली में कहा : हमारे परमाणु हथियार दीवाली के लिए नहीं हैं" के नीचे छापकर संतुलन बनाने का प्रयास किया है लेकिन साफ लग रहा है कि कांग्रेस के शस्त्रागार में वैसे हथियार ही नहीं हैं जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चला रहे हैं। अखबार राहुल गांधी से तो कह नहीं सकते है कि आप भी ऐसे भाषण दो – हम उसे भी छापेंगे। मेरा मतलब है कि पाठक अखबारों की मजबूरी समझें। सिर्फ उनका दोष न दें। लेकिन परमाणु हथियार और दीवाली वाली खबर? दैनिक भास्कर में पहले पन्ने पर नहीं है।
अखबार ने अपने दिल्ली संस्करण में इसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान की खबरों के पन्ने पर छापा है। मुझे लगता है कि इस खबर का यह सही इलाज है। प्रधानमंत्री को बोलने से जब चुनाव आयोग नहीं रोक पा रहा है तो कोई और क्या करे। जब बोल रहे हैं तो अखबार भी कैसे छोड़ दें। ऐसी (बातें) खबरें छोड़ी भी नहीं जा सकती है। ऐसे में इन्हें खास किस्म की खबरों के साथ छापना विवेक सम्मत है। यहां इस खबर का शीर्षक पूरा है, “पांच कॉलम दो लाइन में – कांग्रेस कहती थी पाक के पास न्यूक्लियर बम है और हमारे पास क्या दीवाली पर फोड़ने को थे मोदी”। इस शीर्षक से बात स्पष्ट है। कांग्रेस समझती है कि पाकिस्तान के पास है तो हमारे पास किस लिए है। और यह समझने की ही बात है। हवाई हमला करके अपना विमान खोकर झूठा दावा करने वालों का मकसद भी समझना होगा। खासकर तब जब प्रधानमंत्री यह भी कह रहे हैं कि, “हमारे इलाके में इस तरह की बर्बरता की कोई जगह नहीं है"। मुझे लगता है कि यह कहना कि हमारे परमाणु बम दीवाली के लिए नहीं हैं, बर्बरता दिखाना ही है और उस हवाई हमले से कम नहीं है जिसमें कोई नहीं मरा।
इंडियन एक्सप्रेस ने प्रधानमंत्री के भाषणों को पहले पन्ने पर ही रखा है। हिन्दी में शीर्षक कुछ इस प्रकार होगा, "राजस्थान में मोदी ने पाकिस्तान पर हमला बोला : क्या हमारे परमाणु बम दीवाली के लिए हैं?” इसी के नीचे दो कॉलम तीन लाइन के शीर्षक में ही दूसरी खबर है, “गुजरात में उन्होंने बालाकोट की चर्चा की अमेरिका ने कहा भारत 12 मिसाइल के साथ तैयार है”। इसे दैनिक भास्कर की खबर, “पाक अभिनंदन को नहीं लौटाता तो वह कत्ल की रात होती : मोदी” के साथ पढ़िए। इससे पहले कि मैं हिन्दी के बाकी अखबारों की खबरों की चर्चा करूं, इस तथ्य पर ध्यान दिलाना जरूरी है कि श्रीलंका में कल के विस्फोट 10 साल पहले खत्म हुए गृहयुद्ध के बाद पहली बार हुए हैं। इसलिए पांच साल में भारत में आतंकवादी हमले कम हुए के दावे को मान लिया जाए तो भी यह जरूरी नहीं है कि हमले फिर नहीं होंगे और अगर पाकिस्तान को सबक सीखाने से बात बननी होती तो उसे पहले भी सबक सीखाया जा चुका है। भले ही इसके बदले वोट नहीं मांगे गए। कांग्रेस इस मामले में पिछला बहु प्रचारित सर्जिकल स्ट्राइक कराने वाले लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हूडा की इस सलाह से सहमत है कि सर्जिकल स्ट्राइक या एयर स्ट्राइक से पाकिस्तान का व्य़वहार नहीं बदलेगा (हिन्दुस्तान टाइम्स)।