मुसलमान नहीं, भूख मार रही है गायों और बैलों को

Written by वी के त्रिपाठी | Published on: April 13, 2017
1 अप्रैल, 2017 । एक काला दिन। हरियाणा में मेवात जिले के जयसिंहपुर के एक गांव के किसान पहलू खां की अलवर जिले के बहरोड़ शहर में पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। दिल्ली-जयपुर हाईवे पर शाम छह बजे उन्मादी भीड़ ने पहलू खां को पीट-पीट कर मार डाला। उनके दो बेटों 23 साल के इरफान और दो अन्य युवा बेटों अजमत (24) और रफीक (22) को भी बेरहमी से पीटा गया। वे बुरी तरह घायल हो गए। उन्होंने जयपुर बाजार से गाय खरीदी थी और उन्हें दो वैन में लादकर अपने गांव ले जा रहे थे। लेकिन रास्ते में ही मोटरबाइकों पर सवार गोरक्षकों ने उनके वैन रोक लिए और उन्हें घसीट कर बाहर निकाल लिया। गोरक्षकों की भीड़ ने लाठी-डंडों से उनकी जबरदस्त पिटाई कर डाली। पुलिस आधे घंटे देर से पहुंची। पिटाई में बुरी तरह घायल पहलू खां और उनके बेटों समेत पांच लोगों को कैलाश अस्पताल में भर्ती कराया गया। 3 अप्रैल को लाठी-डंडों की चोट की वजह से पहलू खां की मौत हो गई। जबकि उन्हें साथ घायल हुए अन्य चार लोगों को घेर भेज दिया गया।


pehlu khan
Image: Indian Express

मैंने 7 अप्रैल को बहरोड़ और फिर 9 अप्रैल को जयसिंहपुर का दौरा किया। बहरोड़ के लिए मैंने सुबह पौने ग्यारह बजे दिल्ली के धौला कुआं से बस ली। कंडक्टर भला था। मैंने उसे अपनी किताब सोच, स्वावलंबन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण  पढ़ने को दी। उसकी बात मान कर मैं 2 बजे दोपहर को किशनगढ़ उतर गया और एक टैंपो लेकर खैरथल पहुंचा। एक युवा स्कूली शिक्षक मुझे बस स्टैंड तक ले गया और कोटपुतली जाने वाली बस में बिठा दिया। मैं वहां उतरा और फिर वहां से बस से बहरोड़ पहुंचा। मेरी बगल की सीट में एक युवक अमित कुमार यादव बैठा था। उसने पहलू खां से जुड़ी घटना के बारे में काफी कुछ निष्पक्ष ब्योरा दिया और अपनी बाइक से बहरोड़ के घटनास्थल ले जाने की पेशकश भी की।
 
शाम साढ़े चार बजे मैं बहरोड़ पहुंचा। अमित मुझे दिल्ली-जयपुर हाईवे पर ले गया। इसके बाद मैंने अमित को घर भेज दिया और फिर घटनास्थल के नजदीकी दुकानदारों, वेंडरों, नाई और मोची से बातचीत शुरू की। ज्यादातर लोगों ने कहा कि वारदात के दिन वे वहां मौजूद नहीं थे। एक दुकानदार में कुछ संवेदना दिखी। उसने कहा कि फ्लाईओवर के दोनों सिरों पर भीड़ जमा हो गई थी। जहां मैं खड़ा था, वह एक सिरा था, जहां वैन रूकी। भीड़ ने इसे घेर लिया। इसके बाद फ्लाईओवर की दूसरे सिरे पर भीड़ पहलू खां और उसके साथ के लोगों को पीटना शुरू कर दिया। एक ड्राइवर ने बताया कि पिटाई करने वाले बजरंग दल और गो  रक्षक दल के कार्यकर्ता थे। उन्होंने ही इस घटना को अंजाम दिया था। कुछ  अन्य लोगों ने भी यही बात कही। फर्टिलाइजर फर्म के मालिक ओम वीर यादव ने कहा कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं का इरादा गाय तस्करों को मारने का नहीं था। वे सिर्फ उन्हें सबक सिखा कर पुलिस को सौंप देना चाहते थे। लेकिन यह दुर्योग था कि भीड़ की पिटाई में एक शख्स की मौत हो गई। यह पुलिस की लापरवाही से हुई। उसने वक्त पर दखल नहीं दिया।

इसके बाद मैं डीएसपी के पास गया। उन्होंने मुझे बिठाया और 20 मिनट तक बात की। डीएसपी ने कहा कि पुलिस ने वैन रोकी थी। उसने पाया कि मवेशी लाने वालों के पास जरूरी कागजात नहीं थे। मैंने कहा कि मीडिया रिपोर्टों में तो कहा गया है कि इन लोगों को गोरक्षकों ने रोका था। जबकि उनके पास गाय खरीदने की रसीद थी। डीएसपी ने कहा कि गोरक्षकों की सूचना पर ही पुलिस ने पहलू खां और उनके साथ के लोगों को रोका था।

डीएसपी ने कहा कि एक राज्य से दूसरे राज्य में गाय ले जाने के लिए कलक्टर के परमिशन की जरूरत होती है। मैं सोच कर हैरान था कि पुलिस कस्टडी में भीड़ किसी को कैसे पीट सकती है। डीएसपी ने कहा कि इस मामले में आईपीसी की धारा 308 के तहत तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है। डीएसपी ने कहा कि गायों की तस्करी इस इलाके में एक बड़ा मुद्दा है। पिछले साल फिरोजपुर जिरका में 36 गायों के सिर मिले थे। मैंने कहा, इस बारे में तो मैंने किसी से नहीं सुना। इसके बजाय 22 अगस्त, 2016 को जरूर एक नृशंस घटना हुई थी। उस दिन जमरूद्दीन के परिवार पर हमला हुआ। उस दिन डिंगरहेड़ी में उसके बेटे इब्राहिम और बहू को पीट-पीट कर मार डाला गया था। बेटी और दामाद बुरी तरह घायल हो गए थे। डीएसपी ने कहा कि यह बेहद दुखद घटना थी। दुख से भरा मैं वहां से उठ आया।

9 अप्रैल को गुड़गांव पहुंचने के लिए मैंने मेट्रो पकड़ी। टैंपो से सुभाष चौक पहुंचा। और फिर वहां से बस पकड़ कर नूंह पहुंचा। नूंह पहुंचने के बाद मुझे जान मोहम्मद और उनके बेटे मिले। सुबह साढ़े दस बजे मैं उनसे मिला और फिर वह मुझे जयसिंहपुर ले गए।

पहलू के घर पर गम का माहौल था। परिवार भारी शोक में था। पहलू के बेटे इरशाद और आरिफ दोनों के चेहरे पर मासूमियत थी। दुबले-पतले नौजवान रफीक के चेहरे पर भी मासूमियत थी। उन्हें गहरी चोटें आई थीं और वे मौत के मुंह से किसी तरह बच निकले थे। इसके बावजूद उनके अंदर धार्मिक विद्वेष कोई भावना नजर नहीं आई।
इरशाद ने बताया कि उके पास सिर्फ दो वैन थी। जिन्हें कथित गोरक्षकों ने रोक लिया था। इसके बाद वे इनकी पिटाई करने लगे। पिटाई से ये सभी बेहोश हो गए थे। उन्हें सिर्फ इतना याद है कि कुछ लोग कह रहे थे कि इन्हें जिंदा जला दो। पुलिस आधे घंटे देर से पहुंची। इसके बाद उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया। फ्लाईओवर के दूसरे सिरे पर क्या हुआ, इन्हें पता नहीं। इनके पास सिर्फ दो वैन थी। जब मैंने पूछा कि गायों का क्या हुआ तो इन्होंने कहा, पता नहीं।

इसके बाद हम अजमत के घर गए। वह खाट पर लेटा था। चलने-फिरने में नाकाम। उसके वालिद मथुरा से आए हुए थे। वह, वहां एक मस्जिद में मौलवी हैं। वह इस घटना पर दुखी थे। लेकिन उनके अंदर कड़वाहट नहीं दिखी। उन्होंने अजमत के साथ हुई घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि वह गाय अपनी बहन के गांव ले जा रहा था। उसकी बहन हरियाणा से सटे राजस्थान के सीमावर्ती गांव में रहती है।

बहरोड़ की घटना कथित गोरक्षकों की आतंकित करने वाली बेहिसाब ताकत का अंदाजा देती है। यह उनके नेटवर्क और पुलिस से उनकी नजदीकी मिलीभगत के बारे में बताती है। गोरक्षा से जुड़े कानून ने अल्पसंख्यकों को अपमानित किया है। इस कानून की वजह से हर वक्त उनके अपमान, पिटाई, हत्या का डर लगा रहता है। वह घर में गाय रखने से डरने लगे हैं। जबकि ज्यादातर लोगों के लिए ये दूध का एक मात्र स्त्रोत हैं।

99.9 फीसदी से ज्यादा मुसलमानों ने कभी भी गाय या बैल को नहीं मारा होगा। वह अपनी गाय और बैलों की उसी तरह देखभाल करते हैं, जैसे कि हिंदू करते हैं। मौजूदा दौर की त्रासदी यही है कि गायें बूचड़खानों में नहीं मारी जा रही हैं। उनकी मौत भूख से हो रही है। ट्रैक्टरों, हार्वेस्टर और ट्र्कों के आने से बैल अब बेकार हो चुके हैं। गरीब किसानों के पास अब इन्हें खिलाने की ताकत नहीं है। उनके बच्चे ही भूखे रहते हैं तो वे बैलों का कहां से खिलाएं। और न ही अब जंगल बचे हैं कि बैलों को चारा मिल जाए। इसलिए ज्यादातर बैल और गायें अब भूख से मर रही हं। मध्य या उच्च वर्ग का कोई परिवार अब बेकार हो चुके बैलों या गायों को नही रखता।

इस बीच इन त्रासदियों के बीच कथित गोरक्षा के नाम पर युवा अब अष्टमी और रामनवमी पर बाहुबल का प्रदर्शन करने लगे हैं। 4 अप्रैल, सुबह पांच बजे मैं दिल्ली रेलवे स्टेशन जाने के लिए ऑटो रिक्शा का इंतजार कर रहा था । मुझे अलीगढ़ जाना था। मैंने देखा की मोटरसाइकिलों का एक कारवां चला आ रहा है। हर बाइक पर तीन युवक सवार थे और उनकी स्पीड 100 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा थी। रात 12 बजे, लौटते वक्त भी मैंने यही नजारा देखा।

मैं ऑटोरिक्शा में बैठ गया। मैंने देखा कि इस तरह के अनगिनत झुंड 8 और 9 अप्रैल को नवरात्रि पर मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं। मैंने महसूस किया ये मोटर बाइक सवार दरअसल बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के नेटवर्क का हिस्सा हैं। वे किसी के लिए भी आतंक का माहौल खड़ा कर देते हैं। इस तरह की गोलबंदी हमारी संस्कृति और राजनीति के लिए बेहद गंभीर चुनौती बन कर खड़ी हो सकती है। इनका मुकाबला करने के लिए जमीनी स्तर पर सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है।

बाकी ख़बरें