कल वित्तमंत्री मैडम का बयान सोशल मीडिया पर छाया रहा जिसमे वह कह रही हैं कि एयर 'इंडिया' और 'भारत' पेट्रोलियम को मार्च तक बेच दिया जाएगा! क्या हमारी आंखों की लाज शरम बिलकुल मर गयी है? हमारे सामने ही हमारे पुरखो की विरासत को बेचा जा रहा है और हम कुछ भी नही बोल पा रहे हैं!.....यानी घर के भांडे बरतन बिकने की नोबत आ रही है ओर लोग देखकर भी अनजान बन रहे है?
लोग यह तक पूछने को तैयार नही है कि भारत पेट्रोलियम यानी BPCL जैसे कम्पनी जो लगातार लाभ कमा कर दे रही हैं आखिरकार उसे क्यो बेचा जा रहा है?
मोदी सरकार पहले ही चुपके से BPCL के राष्ट्रीयकरण संबंधी कानून को 2016 में रद्द कर चुकी हैं ऐसे में BPCL को निजी या विदेशी कंपनियों को बेचने के लिए सरकार को संसद की अनुमति लेने की जरूरत भी नहीं होगी, एक झटके में भारत पेट्रोलियम को बेच दिया जाएगा!
भारत पेट्रोलियम कोई छोटी मोटी कम्पनी नही है वह देश की दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम प्रॉडक्ट रिटेलर कम्पनी हैं। जिसने 2018-19 में 7132 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है 2017-18 में BPCL को 7976 करोड़ रुपये का लाभ हुआ था उससे पहले 2016-17 में 8039 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। BPCL का मुनाफा 2011-12 से लगातार बढ़ रहा हैं 2011- 12 में कंपनी को 1,311 करोड़ रुपये का फायदा हुआ था यानी 2012 से आज यह मुनाफा लगभग छह गुना बढ़ चुका है।
उसके बावजूद मोदी सरकार भारत पेट्रोलियम को बेचने पर अड़ी हुई है यह कुछ ऐसा ही है जैसे पुरानी कथाओं का नायक शेखचिल्ली रोज एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का एक बार में ही पेट फाड़ कर सारे अंडे निकाल लेना चाहता है
इस वक्त भारत पेट्रोलियम का मार्केट केपेटालाइजेशन लगभग 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपये के आसपास है! मोदी सरकार चाहती है वह अपनी साढ़े 53 फीसदी भागीदारी मार्केट में बेच दे इससे उसे करीब 55 से 65 हजार करोड़ रुपये तक मिलने की उम्मीद है।
दरअसल सरकार ने इस साल यह निश्चय किया हैं कि वह इस वित्त वर्ष में विनिवेश के जरिए 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाएगी। पिछले 5 सालों में पहले ही बहुत कुछ बेच दिया गया है. अब ओर तो कुछ बेचने को बचा नहीं है इसलिए देश की नवरत्न कंपनियों पर नजरें टेढ़ी की जा रही हैं। सरकार का काम इस 55 से 65 हजार करोड़ में चलने वाला तो है नही, इसलिए जिन बड़ी बड़ी कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से अधिक है उनमें सरकार अपनी हिस्सेदारी का बड़ा हिस्सा बेच देना चाहती हैं। इस कड़ी में BPCL के बाद अगला नम्बर भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (BEML), कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकोर) और शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का है।
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी से कम होने की सूरत में उनसे पीएसयू का टैग स्वतः ही हट जाएगा ओर ओएनजीसी, आईओसी, गेल और एनटीपीसी समेत कई महारत्न और नवरत्न कंपनियां जल्द ही स्वतंत्र बोर्ड द्वारा संचालित कंपनियां बन जाएंगी, ओर इस वजह से सबसे बड़ा चेंज यह आएगा कि अभी तक इनका ऑडिट कैग ओर सीवीसी जैसी सरकारी एजेंसियां करती थी वह अब नही कर पाएगी। यह कंपनियां अब कैग और सीवीसी की जांच के दायरे से बाहर हो जाएंगी। यानी कि जितने भी घपले घोटाले होंगे वह अब पब्लिक डोमेन में भी नही आ पाएँगे और इस हिस्सेदारी को खरीदने वाले पूंजीपति कंपनियों के सारे एसेट पर कब्जा जमा लेंगे।
भारत का मीडिया इस कदर बिक चुका है कि यह सब तथ्य वह जनता को दिखाना ही नही चाहता है। मंदिर मस्जिद और पाकिस्तान की आड़ में देश की संपत्तियों को बेचने का कुत्सित षणयंत्र अब कामयाब होने वाला है और सब तरफ खामोशी है!
लोग यह तक पूछने को तैयार नही है कि भारत पेट्रोलियम यानी BPCL जैसे कम्पनी जो लगातार लाभ कमा कर दे रही हैं आखिरकार उसे क्यो बेचा जा रहा है?
मोदी सरकार पहले ही चुपके से BPCL के राष्ट्रीयकरण संबंधी कानून को 2016 में रद्द कर चुकी हैं ऐसे में BPCL को निजी या विदेशी कंपनियों को बेचने के लिए सरकार को संसद की अनुमति लेने की जरूरत भी नहीं होगी, एक झटके में भारत पेट्रोलियम को बेच दिया जाएगा!
भारत पेट्रोलियम कोई छोटी मोटी कम्पनी नही है वह देश की दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम प्रॉडक्ट रिटेलर कम्पनी हैं। जिसने 2018-19 में 7132 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है 2017-18 में BPCL को 7976 करोड़ रुपये का लाभ हुआ था उससे पहले 2016-17 में 8039 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। BPCL का मुनाफा 2011-12 से लगातार बढ़ रहा हैं 2011- 12 में कंपनी को 1,311 करोड़ रुपये का फायदा हुआ था यानी 2012 से आज यह मुनाफा लगभग छह गुना बढ़ चुका है।
उसके बावजूद मोदी सरकार भारत पेट्रोलियम को बेचने पर अड़ी हुई है यह कुछ ऐसा ही है जैसे पुरानी कथाओं का नायक शेखचिल्ली रोज एक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का एक बार में ही पेट फाड़ कर सारे अंडे निकाल लेना चाहता है
इस वक्त भारत पेट्रोलियम का मार्केट केपेटालाइजेशन लगभग 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपये के आसपास है! मोदी सरकार चाहती है वह अपनी साढ़े 53 फीसदी भागीदारी मार्केट में बेच दे इससे उसे करीब 55 से 65 हजार करोड़ रुपये तक मिलने की उम्मीद है।
दरअसल सरकार ने इस साल यह निश्चय किया हैं कि वह इस वित्त वर्ष में विनिवेश के जरिए 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाएगी। पिछले 5 सालों में पहले ही बहुत कुछ बेच दिया गया है. अब ओर तो कुछ बेचने को बचा नहीं है इसलिए देश की नवरत्न कंपनियों पर नजरें टेढ़ी की जा रही हैं। सरकार का काम इस 55 से 65 हजार करोड़ में चलने वाला तो है नही, इसलिए जिन बड़ी बड़ी कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से अधिक है उनमें सरकार अपनी हिस्सेदारी का बड़ा हिस्सा बेच देना चाहती हैं। इस कड़ी में BPCL के बाद अगला नम्बर भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (BEML), कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकोर) और शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का है।
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी से कम होने की सूरत में उनसे पीएसयू का टैग स्वतः ही हट जाएगा ओर ओएनजीसी, आईओसी, गेल और एनटीपीसी समेत कई महारत्न और नवरत्न कंपनियां जल्द ही स्वतंत्र बोर्ड द्वारा संचालित कंपनियां बन जाएंगी, ओर इस वजह से सबसे बड़ा चेंज यह आएगा कि अभी तक इनका ऑडिट कैग ओर सीवीसी जैसी सरकारी एजेंसियां करती थी वह अब नही कर पाएगी। यह कंपनियां अब कैग और सीवीसी की जांच के दायरे से बाहर हो जाएंगी। यानी कि जितने भी घपले घोटाले होंगे वह अब पब्लिक डोमेन में भी नही आ पाएँगे और इस हिस्सेदारी को खरीदने वाले पूंजीपति कंपनियों के सारे एसेट पर कब्जा जमा लेंगे।
भारत का मीडिया इस कदर बिक चुका है कि यह सब तथ्य वह जनता को दिखाना ही नही चाहता है। मंदिर मस्जिद और पाकिस्तान की आड़ में देश की संपत्तियों को बेचने का कुत्सित षणयंत्र अब कामयाब होने वाला है और सब तरफ खामोशी है!