कोरोना वायरस से लड़ने के लिए क्या लॉकडाउन ही एक मात्र इलाज है या कोई दूसरे उपाय भी हैं?

Written by Girish Malviya | Published on: April 22, 2020
कैलाश सरन एक पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट है। राजस्थान उनका कार्यक्षेत्र है और कोरोना को लेकर समय समय पर वह पोस्ट लिख रहे है। साथ ही वीडियो भी बना रहे है मेरे विशेष अनुरोध पर। उन्होंने कोरोना वायरस पर आइसलैंड में की गयी एक विशिष्ट स्टडी का सार संक्षेप लिखा है इस स्टडी से हम अर्ली टेस्टिंग का महत्व जान सकते है।



कोरोना वायरस के संक्रमण से दुनिया के सारे देश प्रभावित है लेकिनअभी तक इस वायरस के फैलाव के तरीकों और वायरस में होने वाले जनेटिक बदलावो के बारे में बहुत कम जानकारी है। अभी तक ठीक से पता नहीं चल पाया कि संक्रमण लोगों मे कैसे फैलता है। क्यूंकी ऐसे सैंकड़ों मामले सामने आ चुके हैं जिसमे पता चला है कि वायरस से एक्सपोज होने के 20 से 22 दिन बाद लोग संक्रमित हो रहे है और दुसरी और ठीक हुए लोगो में आश्चर्यजनक रूप से पुनः संक्रमण के मामले भी सामने आ रहे है। 

विशेषज्ञों द्वारा इससे लड़ने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं उसमें लॉकडाउन सबसे पुराना और टेस्टिड तरीका है जिसे काफी सारे देश अपना रहे हैं। लेकिन क्या लॉकडाउन ही एक मात्र इलाज है ? या कोई दूसरे उपाय भी है ? दुनिया के सारे देशों वैज्ञानिक यह संमझने का प्रयास कर रहे हैं।

ऐसा ही एक देश है आइसलैंड जो एक छोटा सा देश है। इसकी आबादी लगभग 363000 है। प्रति वर्ग किमी यहाँ मात्र तीन व्यक्ति रहते है। फरवरी के महीने मे कोरोना का यहाँ पहला मामला सामना आया था। लेकिन कहते हैं कि आइसलैंड ने इसकी तैयारी जनवरी के मध्य से ही शुरू कर दी थी। वहां के प्रमुख वैज्ञानिकों ने मिलकर एक व्यापक स्टडी की परिकल्पना की जिसे हम तकनीकी भाषा मे प्रस्पेक्टिव longitudinal कोहॉर्ट स्टडी कहते हैं।  इस स्टडी में उन्होंने दो तरीके से लोगों को शामिल किया।

एक था ओपन इन्विटैशन और दूसरा जिनको टेस्ट किया था। इस स्टडी मे उन्होंने कुल 13000 से ज्यादा लोगों को रीक्रूट किया था | जिसमे से चार अप्रैल 2020 तक 9199 लोगों को वो टेस्ट कर चुके थे | इनके रिजल्ट की कुछ प्रमुख बाते इस प्रकार थी -

1. पाज़िटिव आने की दर 13.3% रही थी। कुल 1221 पाज़िटिव आए थे।
2. ऐसे व्यक्ति जिसमे लक्षण हो और उसकी आयु दस साल से ऊपर हो और वो अगर पुरुष है तो उसके पाज़िटिव आने की संभावना ज्यादा होती है।  सिर्फ 6.7% पॉज़िटिव सब्जेक्ट ही दस साल से कम के थे। वहीं महिलाओ के पॉज़िटिव पाए जाने की दर कम पाई गई जबकि आइसलैंड की जनसंख्या के अनुसार वहाँ कुल महिलाओं की टेस्टिंग पुरुषों से ज्यादा हुई थी।
3. ऐसे स्वस्थ व्यक्ति जिनको पहले कोई रोग नहीं था और कोरोना के क्लैसिकल लक्षण थे। इसके बावजूद 29% ऐसे व्यक्ति भी रहे जिनमे टेस्ट नेगटिव आया।
4. सबसे महत्वपूर्ण बात जो इस स्टडी से सामने आई ऐसे व्यक्ति जो रेंडम सैम्पल जनसंख्या मे से किए गए और पॉज़िटिव पाए गए वो 20 दिनों तक पूरी स्क्रीनिंग मे स्टैबल बने रहे यानि उनमे स्थिति बिगड़ी नहीं। यानि इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि अगर हम वायरस के ट्रैन्ज़्मिशन को जल्दी पकड़ लें तो ना केवल उसको रोकने के प्रभावी प्रयास हो सकते हैं बल्कि उस व्यक्ति की स्थिति को संभाला जा सकता है।
5 . पॉज़िटिव पाए गए सैम्पल मे से 643 सैम्पल मे से अनुसंधानकर्ताओं ने जनेटिक मटेरिल को इक्स्ट्रैक्ट किया। इनमे से 583 सैम्पल ऐसे रहे जिसमे से 90% से ज्यादा जनेटिक मटेरिल इक्स्ट्रैक्ट कर लिया था। इस इक्स्ट्रैक्ट किए गए मटेरिल मे से कुल 405 जनेटिक सीक्वन्स के वायरस मिले यानि साधारण शब्दों मे कहे तो कुल 405 ऐसी स्ट्रैन मिली जिनके जीनोम मे कुछ ना कुछ परिवर्तन था। यानि वायरस मे म्यूटैशन हो चुका था। इन सीक्वन्स को वैश्विक रूप से संग्रहित डाटा केंद्र GISAID (Global Initiative on Sharing All Influenza Data) के रिकॉर्ड से मिलाया गया। जिसमे यह पाया गया की 295 चैन ऐसी हैं जिसका रिकॉर्ड GISAID मे भी उपलब्ध नहीं था। जो मैचिंग हुई वो शुरू मे पाए गए अधिकांश पॉज़िटिव मे पाई गई जिनकी एक ट्रैवल हिस्ट्री थी और वो ट्रैवल हिस्ट्री उसी देश मे थी जहां की चैन उनके सैम्पल मे पाई गई थी। जो स्टडी के दूसरे हाफ मे पॉज़िटिव आए और जिनकी कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं थी या किसी ट्रैवल कान्टैक्ट भी नहीं था ऐसे पॉज़िटिव मे 291 म्यूटन्ट चैन पाई गई।

यानि इसका निष्कर्ष यह है कि इस नोवल कोरोना वायरस में म्यूटैशन होने की दर काफी तेज है। यह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योकि वैक्सीन बनाने मे जो सबसे बड़ी अड़चन कोरोना वायरस मे है वो इसके रूप बदलने को लेकर ही है और आइसलैंड की इस स्टडी से इसकी पुष्टि होती है कि वायरस तेजी से रूप बदल रहा है। यह स्टडी न्यू इंग्लैंड मेडिकल जर्नल में छपी है।

मित्र कैलाश सरन का कहना है कि दरअसल वायरस से बचाव के लिए हमें लॉकडाउन का प्रयोग अपनी मेडिकल सुविधाओं के विस्तार और टेस्टिंग की दर बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए। भारत की 137 करोड़ की जनसंख्या को देखते हुए तैयारी क्या पर्याप्त है यह आप खुद अंदाज लगाइये। मेरा अनुरोध यही है कि आप अनावश्यक बाहर न निकलें और घर में ही फिलहाल स्वस्थ रहें सुरक्षित रहें और अगर आप में या किसी अन्य मे कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरंत ही जांच करवाएं, क्यूंकी आइसलैंड की स्टडी से यह साबित होता है कि अर्ली टेस्टिंग कोरोना से बचाव में सबसे महत्वपूर्ण रोल रखती है।

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