साधो, पिछले दिनों दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला ले लिया। उसने महिलाओं के लिए दिल्ली मेट्रो और DTS की बसों में यात्रा निःशुल्क कर दिया। यह ऐतिहासिक ही है। जहां तक मुझे याद है अभी तक भारत में किसी भी राज्य ने इस तरह का निर्णय नहीं लिया।
दिल्ली की मुख्य विपक्ष पार्टी भाजपा के लिए यह असमंजस में डालने वाला फैसला था। उन्हें न तो इसका विरोध करते बन रहा था न ही समर्थन। उन्होंने झट से कह दिया यह चुनावी स्टंट है। साधो, विपक्ष का मतलब सिर्फ विरोध करना नहीं होता। हर वो सरकारी फैसला जो आम जनता के हित में हो विपक्ष को उसका समर्थन करना चाहिए।
अभी छत्तीसगढ़ से खबर आ रही है कि सरकार ने वहां की कुछ खदानों का निजीकरण करते हुए अडानी को सौंप दिया। सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी, वहां के आदिवासी समुदाय से लेकर तमाम तरह के लोग विरोध में सड़कों पर आ गए हैं। पर मुख्य विपक्ष इसका विरोध नहीं करेगा। वह जानता है कि सत्ता में रहकर उसनें भी यही किया है और आगे भी यही करना है। सरकारें कारपोरेट से चलती हैं वह कारपोरेट के खिलाफ कैसे जा सकती हैं?
हां तो बात दिल्ली में महिलाओं की मुफ्त यात्रा की चल रही थी। साधो, मैं कहता हूं, यह दिल्ली सरकार का बहुत सराहनीय कदम है। ऐसे फैसले हर सरकार को करने चाहिए। मैं इसे महिला सशक्तिकरण के रूप में देखता हूं। यह बड़ी बात होगी कि किराया फ्री होने से मेट्रो, बसों में महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी होगी जिसे देखते हुए वे महिलाएं भी शायद घर से निकलें जो अबतक पुरुषों की भीड़ में असहज महसूस करती थीं। साधो, मैंने कई जगह देखा है कि महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा एक ही काम का कम मेहनताना मिलता है। किराया फ्री होने से उनपर आर्थिक दबाव कम होगा। हो सकता है इसी बहाने समाज की कुछ और महिलाएं बाहर काम करने निकलें जो समाज, घर, परिवार के दबाव के कारण बाहर नहीं आ पा रही थी।
साधो, समाज की मूल जरूरत, भोजन, मकान , वस्त्र के साथ साथ परिवहन की सुविधाएं, स्वास्थ्य की सुविधायें हो चली हैं। प्रत्येक देश की सरकार का कर्तव्य है कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन कम से कम दर पर उपलब्ध करवाए या सम्भव हो तो मुफ्त में उपलब्ध करवाए। यदि ऐसा होता है तो यह सरकार की सार्थकता है। परिवहन की बात करें तो समाज के हर तबके को कोशिश करनी चाहिए कि वह ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन से चले। सरकारें ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराए। आज ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति सबको पता है। मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जिनके पास घर में हर ब्रांड की गाड़ी है।परिवार का हर सदस्य निजी गाड़ी से चलता है। पर ग्लोबल वार्मिंग की चिंता उनके सोशल मीडिया पर बराबर दिखाई देती है। अधिक से अधिक धुआं देने वाला वाहन लेकर परीक्षा देने जाने वाला परीक्षार्थी बढ़ती हुई ग्लोबल वार्मिंग और ओज़ोन क्षय पर चार पेज का निबंध लिख आता है।
साधो, मैंने दिल्ली सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कई लोगों को देखा। मेरी एक जानने वाली हैं। हर तरह से संम्पन हैं। दो बेटे देश के बाहर रहकर कमाते हैं। उन्होंने मुझे एक मैसेज किया जिसमें लिखा था कि सरकार का यह फैसला घटिया है। मैंने पूछ लिया किस तरह घटिया है ? जवाब न आया।
साधो, मैंने एक बात ध्यान दिया है। खाये, पिये, अघाये वर्ग का एक तबका जरूरत मंदों को मिलने वाली हर सरकारी सहायता से दुःखी होता है। वह सहायता का विरोध करना अपना नैतिक कर्तव्य समझता है। देश के ज्यादा से ज्यादा संसाधनों पर कब्जा किए हुए वर्ग को लगता है आरक्षण से उनका हक छीना जा रहा है।
साधो, कितनों ने यहां तक कह दिया कि यात्रा फ्री करके केजरीवाल भीख दे रहा है, हमें नहीं चाहिए भीख। यह कितना हास्यास्पद लगता है सुनने में। इस फैसले को भीख बताने वाला वही तबका है जो दहेज तो बड़े गर्व से लेता है पर फ्री की यात्रा को भीख कह देता है। साधो, केजरीवाल कुछ फ्री कर रहा है तो वह अपनी जमीन बेचकर सबको यात्रा नहीं करवाएगा।।जाहिर सी बात है यह जनता का ही पैसा है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जनता से ही लिया गया है।
साधो, मैं इस फैसले को भीख बताने वालों से कहता हूं, जो संपत्ति तुम्हें परिवार से मिली है तुम्हारे लॉजिक से सोचें तो वह भी भीख है! क्योंकि उसे हासिल करने में तो तुमनें पसीना नहीं बहाया ? फिर उसे छोड़ क्यों नहीं देते ? आखिर भीख से तुम्हारे आत्मसम्मान को ठेस जो लग रही होती है।
दिल्ली की मुख्य विपक्ष पार्टी भाजपा के लिए यह असमंजस में डालने वाला फैसला था। उन्हें न तो इसका विरोध करते बन रहा था न ही समर्थन। उन्होंने झट से कह दिया यह चुनावी स्टंट है। साधो, विपक्ष का मतलब सिर्फ विरोध करना नहीं होता। हर वो सरकारी फैसला जो आम जनता के हित में हो विपक्ष को उसका समर्थन करना चाहिए।
अभी छत्तीसगढ़ से खबर आ रही है कि सरकार ने वहां की कुछ खदानों का निजीकरण करते हुए अडानी को सौंप दिया। सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी, वहां के आदिवासी समुदाय से लेकर तमाम तरह के लोग विरोध में सड़कों पर आ गए हैं। पर मुख्य विपक्ष इसका विरोध नहीं करेगा। वह जानता है कि सत्ता में रहकर उसनें भी यही किया है और आगे भी यही करना है। सरकारें कारपोरेट से चलती हैं वह कारपोरेट के खिलाफ कैसे जा सकती हैं?
हां तो बात दिल्ली में महिलाओं की मुफ्त यात्रा की चल रही थी। साधो, मैं कहता हूं, यह दिल्ली सरकार का बहुत सराहनीय कदम है। ऐसे फैसले हर सरकार को करने चाहिए। मैं इसे महिला सशक्तिकरण के रूप में देखता हूं। यह बड़ी बात होगी कि किराया फ्री होने से मेट्रो, बसों में महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी होगी जिसे देखते हुए वे महिलाएं भी शायद घर से निकलें जो अबतक पुरुषों की भीड़ में असहज महसूस करती थीं। साधो, मैंने कई जगह देखा है कि महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा एक ही काम का कम मेहनताना मिलता है। किराया फ्री होने से उनपर आर्थिक दबाव कम होगा। हो सकता है इसी बहाने समाज की कुछ और महिलाएं बाहर काम करने निकलें जो समाज, घर, परिवार के दबाव के कारण बाहर नहीं आ पा रही थी।
साधो, समाज की मूल जरूरत, भोजन, मकान , वस्त्र के साथ साथ परिवहन की सुविधाएं, स्वास्थ्य की सुविधायें हो चली हैं। प्रत्येक देश की सरकार का कर्तव्य है कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन कम से कम दर पर उपलब्ध करवाए या सम्भव हो तो मुफ्त में उपलब्ध करवाए। यदि ऐसा होता है तो यह सरकार की सार्थकता है। परिवहन की बात करें तो समाज के हर तबके को कोशिश करनी चाहिए कि वह ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन से चले। सरकारें ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराए। आज ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति सबको पता है। मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जिनके पास घर में हर ब्रांड की गाड़ी है।परिवार का हर सदस्य निजी गाड़ी से चलता है। पर ग्लोबल वार्मिंग की चिंता उनके सोशल मीडिया पर बराबर दिखाई देती है। अधिक से अधिक धुआं देने वाला वाहन लेकर परीक्षा देने जाने वाला परीक्षार्थी बढ़ती हुई ग्लोबल वार्मिंग और ओज़ोन क्षय पर चार पेज का निबंध लिख आता है।
साधो, मैंने दिल्ली सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कई लोगों को देखा। मेरी एक जानने वाली हैं। हर तरह से संम्पन हैं। दो बेटे देश के बाहर रहकर कमाते हैं। उन्होंने मुझे एक मैसेज किया जिसमें लिखा था कि सरकार का यह फैसला घटिया है। मैंने पूछ लिया किस तरह घटिया है ? जवाब न आया।
साधो, मैंने एक बात ध्यान दिया है। खाये, पिये, अघाये वर्ग का एक तबका जरूरत मंदों को मिलने वाली हर सरकारी सहायता से दुःखी होता है। वह सहायता का विरोध करना अपना नैतिक कर्तव्य समझता है। देश के ज्यादा से ज्यादा संसाधनों पर कब्जा किए हुए वर्ग को लगता है आरक्षण से उनका हक छीना जा रहा है।
साधो, कितनों ने यहां तक कह दिया कि यात्रा फ्री करके केजरीवाल भीख दे रहा है, हमें नहीं चाहिए भीख। यह कितना हास्यास्पद लगता है सुनने में। इस फैसले को भीख बताने वाला वही तबका है जो दहेज तो बड़े गर्व से लेता है पर फ्री की यात्रा को भीख कह देता है। साधो, केजरीवाल कुछ फ्री कर रहा है तो वह अपनी जमीन बेचकर सबको यात्रा नहीं करवाएगा।।जाहिर सी बात है यह जनता का ही पैसा है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जनता से ही लिया गया है।
साधो, मैं इस फैसले को भीख बताने वालों से कहता हूं, जो संपत्ति तुम्हें परिवार से मिली है तुम्हारे लॉजिक से सोचें तो वह भी भीख है! क्योंकि उसे हासिल करने में तो तुमनें पसीना नहीं बहाया ? फिर उसे छोड़ क्यों नहीं देते ? आखिर भीख से तुम्हारे आत्मसम्मान को ठेस जो लग रही होती है।