'नदी घाटी विचार मंच' के स्थाई गठन की घोषणा

Written by Sabrangindia Staff | Published on: March 2, 2020
एक गंभीर और क्रियात्मक प्रस्ताव के साथ गांधी भवन भोपाल में चला गांधी विचार मंच संपन्न हुआ। विभिन्न नदी घाटी में काम करने वाले संगठन, विशेषज्ञ, पर्यावरणविद और तमाम कार्यकर्ता ने माना कि नदी घाटी नियोजन की जो योजनाएं रही है उसके गंभीर परिणाम हमारे सामने हैं।



सोमवार शाम को छह मुद्दों पर उपस्थित नदी घाटी के सहभागियो ने विभिन्न समूहो में बैठकर नदी घाटियों से संबंधित सभी विषयों की खन्दोल की जिसमें...
जल नीति में बड़े बांध और विकल्प : जल और ऊर्जा के। 
नदी घाटी नियोजन में भू अधिग्रहण, विस्थापन और पुनर्वास। 
नदी घाटी का पर्यावरण योजनाओं के असर और कानूनी दायरा। 
बांधों की आर्थिकी, सामाजिक, पर्यावरणीय पहलू, प्रक्रिया और जन हस्तक्षेप। 
नदी और कछार के संसाधन, अधिकार, सुरक्षा, दोहन और विकास की दिशा
जल की उपयोगिता में प्राथमिकता पर सत्रवार चर्चा हुई हुई।   

सम्मेलन के दूसरे दिन इन सभी विषयों पर सत्रवार चर्चा हुई हुई जिसके बाद प्रस्ताव में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा घोषित की गई जल नीति पर दी गई टिप्पणी और प्रस्ताव में दी गई कार्य योजना नीचे दे रहे हैं।

नदी घाटी विचार मंच में विभिन्न नदी घाटी समूह:-नर्मदा नदी घाटी, गंगा यमुना घाटी, गोदावरी नदी घाटी, यमुना नदी घाटी, कृष्णा नदी घाटी, पोलावरम नदी घाटी, सिंगरी व बारु रेवा नदी घाटी, कावेरी नदी घाटी, कोसी नदी घाटी, मैदानी गंगा घाटी, विश्वामित्री व साबरमती नदी घाटी, गोसीखुर्द नदी घाटी, हलोन नदी घाटी, व अन्य नदियां।

विभिन्न नदी घाटियों से आये कार्यकर्ता, स्वतंत्र विशेषज्ञ, पर्यावरणविद व राजनेता :- शरद चंद्र बेहर, भूतपूर्व मुख्य सचिव, सौम्या दत्ता, जन वैज्ञानिक,डॉ भरत झुनझुनवाला, नदी विशेषज्ञ व अर्थशास्त्री, सुभाष पांडे,  पर्यावरणविद, मनोज मिश्रा, यमुना जीये अभियान, प्रफुल्ल सामंत्रा, पर्यावरणविद, विवेकानंद माथने, जल विशेषज्ञ, देबादित्या सिन्हा, पर्यावरण शास्त्री, सुनीति सु0 र0 वरिष्ठ समाजकर्मी, मीनाक्षी नटराजन, पूर्व सांसद, प्रदीप चटर्जी व सोमेन,  पर्यावरण विशेषज्ञ राष्ट्रीय नदी मत्स्य, राजकुमार सिन्हा, मेधा पाटकर य विमल भाई इसमें शामिल रहे।  

यहां उपस्थित सभी लोगों ने कहा कि मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने जल अधिकार कानून लाने की अगुवाई की जिसका हम सभी स्वागत करते हैं। इस कानून के मसौदे का अध्ययन करने पर हमारी टिप्पणी नीचे प्रस्तुत है:-

1.     इस कानून में विकेंद्रीत नियोजन की विकल्प का जिक्र जरुर है। लेकिन उसके अमल के लिए छोटी सी छोटी प्रशासकीय व पर्यावरणीय इकाई से ही नियोजन की शुरुआत की दिशा स्पष्ट लेना जरूरी है।

2.     जल नियोजन में बड़ी बांध, बड़ी पर्यटन, नदी जोड़ तथा जल परिवहन जैसी योजनाओं पर सामाजिक, पर्यावरणीय असर सामने रखें जाने पर पुनर्विचार की संभावना होनी चाहिए।

3.     नियोजन तथा अमल में जन भागीदारी सुनिश्चित करने की लिए संविधान के अनुच्छेद 243 व ग्राम सभा का प्राथमिक स्थान और सम्मान सहमति भी जरुरी है।

4.     इस कानून में निजीकरण एवं ठेकेदारी के लिए रास्ता खुला छोड़ा हुआ दिखाई देता है। पीने का पानी तथा छोटी योजनाओ में नदियां, तलाब में मत्स्याखेट में भी प्रभावित तथा परंपरागत मछुआरों को ही अधिकार और प्राथमिकता देने का प्रावधान जैसा की मध्य प्रदेश की नीति में हैं, सम्मिलित किया जाए।

5.     नदी घाटी में आदिवासी जनसंख्या अधिक होते हुए पेसा कानून के हर राज्य में नियम बने और भूअर्जन व पुनर्वास की पूर्ति के पहले ग्राम सभा की सलाह- सलामती के प्रावधान पर पूर्ण अमल होने  का भरोसा दिया जाए।

6.     अवैध रेत खनन पर पूर्ण रोक तथा 27-2- 2012 की सर्वोच्च अदालत के पूर्ण पालन का प्रावधान होकर सख्त सजा स्पष्ट की जाए।

7.     कछार तथा लाभ क्षेत्र का विकास नियोजन किसी भी जल नियोजन की शर्त के रूप में स्वीकार किया जाए।

8.     पेड़-जंगल काटने के बदले हरा आच्छादन बचाने की ओर बढ़ाने की दिशा, हर संरचनात्मक कार्य में तय की जाय।

9.     जल आपूर्ति की मात्रा ग्रामीण व शहरी परिवारों के लिए मवेशियों की जरूरत सोचकर WHO के नियमानुसार भिन्न होना चाहिए।

इस संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में सम्मेलन में पहुंचे सभी लोगों ने निम्नलिखित कार्य और दिशा तय की:-

·  नदी घाटी विचार मंच के नाम से एक कार्यकारी समूह जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय की तहत कार्यरत रहेगा।

·  नदी घाटी विचार मंच सम्मेलन देश के हर विभागीय स्तर पर कम से कम एक नदी घाटी में आने वाले 6 महीनों में आयोजित होगा। जिसमे उस विभाग से अन्य अधिक घाटी से लोग भी पधारेंगे।

·  नदियों पर या कच्छार में बन चुकी परियोजनाओं के विस्थापितों के आजीविका के साथ पुनर्वास एवं में प्राथमिकता के लिए नदियों के जल उपयोगिता में तथा जल्द से जुड़ी व नदी की भूमि पर कानून नीतियों के उल्लंघन के साथ कंपनियां, उद्योगपतियों का कब्जा नामंजूर होकर प्रदूषण पर रोक लगाई जाए। नदी के पानी और कच्छर की भूमि पर आमंत्रित उद्योगों को रोजगार सुरक्षा खत्म करने का एवं उद्योग बंद करने का अधिकार ना दिया जाए। किसी उद्योग को बंद करने के बदले श्रमिकों की संस्था को ही उद्योग चलाने का अधिकार हस्तांतरण की साथ दिया जाए।

·  शहर और गांवों से नदी में बहना गंदा पानी रोककरशुद्धिकरण परियोजना पर प्राथमिकता से अमल में लाया जाये।

·  भूजल के दोहन पर सख्त नियमों का नियोजन व पालन हो इसलिए नदी के कछार के क्षेत्र में आवाज उठाएंगे, जनजागरण करेंगे।

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