'थारू जनजाति के लोगों को झूठे मुकदमों में फंसा रहा है वन विभाग'

Published on: June 8, 2020
नई दिल्ली। भारत नेपाल सीमा पर स्थित दुधवा नेशनल पार्क क्षेत्र में कोरोना महामारी के कारण किये लाकडाउन को यहां के वनविभाग द्वारा शोषण का हथियार बना लिया गया है। यहां बसे थारू जनजाति के गांवों में बसे थारू जनजाति के लोगों को लगातार झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है और वनाधिकार कानून और अपने पारम्परिक अधिकारों के तहत जलौनी लकड़ी व लघुवनोपज के एकत्रीकरण के लिये गयी महिलाओं को अपमानित करना और लोगों पर झूठे मुकदमें लादने सहित बड़ी रकम में अवैध तरीके से जुर्माने वसूल करने की घटनायें लगातार अंजाम दी जा रही हैं। 



इसके अलावा ग्राम कजरिया में लोगों की शिकायत है कि उनके गाॅव के चारों तरफ 6 से 7 मीटर गहरी खाई खोद दी गयी है, जिससे गांव के पानी की निकासी बाधित हो रही है और गाॅव के लोगों का अपने मवेशियों को जंगल में चराने के लिये ले जाना मुहाल हो गया है।

ग्रामीणों से झूठ बोला जा रहा है कि कोरोना महामारी के कारण हुए लाकडाउन में उन्हें जंगल जाने की इजाज़त नहीं है। जबकि केन्द्रीय गृहमंत्रालय द्वारा 17 अप्रैल 2020 को ही आदेश जारी करके अनुसूचित जनजातियों और अन्य परम्परागत वननिवासियों को लघुवनोपज के एकत्रीकरण की छूट प्रदान कर दी गयी थी।

इन्हीं सब मुद्दों को उठाते हुए कल सुरमा से लेकर कजरिया तक तमाम गाॅवों की महिलाओं ने इकट्ठा होकर उपजिलाधिकारी पलियाअध्यक्ष उपखण्ड स्तरीय वनाधिकार समिति को एक ज्ञापन सौंपा। जिस पर उपजिलाधिकारी द्वारा 2 दिन बाद बातचीत करने का आश्वासन दिया है। इस ज्ञापन में थारू महिलाओं द्वारा चेतावनी भी दी गयी है कि अगर समय रहते वन विभाग की इन कारगुजारियों पर रोक नहीं लगी तो उन्हें मजबूर होकर ज़मीन पर उतर कर आंदोलन करना होगा।

अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रजनीश ने कहा कि वन विभाग द्वारा की जा रहीं यह सभी कानून विरोधी कार्रवाईयां साबित करती हैं कि वे महामारी की आपदा से जूझ रहे आदिवासी वनाश्रितों को राहत देने के बजाय समुदायों के उत्पीड़न के अवसर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसे समुदायों द्वारा कतई तौर पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। कल अगर लोग मजबूर होकर आंदोलन की राह पकड़ते हैं तो इसके लिये पूरी तरह से वन विभाग व प्रशासन ज़िम्मेदार होंगे।

बाकी ख़बरें