आज आक्रोश दिवस मनाएंगे किसान, 14 मार्च को दिल्ली रामलीला मैदान में महापंचायत: एसकेएम

Written by Navnish Kumar | Published on: February 23, 2024
चंडीगढ़ में गुरुवार को संयुक्त मोर्चा की बैठक में आज शुक्रवार को देशभर में किसान आक्रोश दिवस मनाने का ऐलान किया है। 26 फरवरी को ट्रैक्टर मार्च और फिर 14 मार्च को दिल्ली रामलीला मैदान में किसान महापंचायत की जाएगी। मोदी सरकार द्वारा 2020 के आंदोलन में किए वादों को पूरा न करने और किसानों संग बर्बरता करने को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने आज 23 फरवरी को ब्लैक डे या आक्रोश दिवस मनाने का ऐलान किया है। SKM ने कहा है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज के पुतले जलाएं जाएंगे। इसके साथ ही किसान विश्व व्यापार संगठन WTO का भी पुतला फूंकेंगे।



चंडीगढ़ में गुरुवार को संयुक्त किसान मोर्चा की अहम बैठक हुई। इसमें देशभर के कई राज्यों से पहुंचे किसान नेताओं ने हिस्सा लिया। किसान नेताओं ने कहा कि किसान संगठन पूरे देश में आज रोष और काला दिन के रूप में प्रदर्शन करेंगे। इसके साथ ही एसकेएम की बैठक में 14 मार्च को किसान दिल्ली के रामलीला मैदान में महापंचायत करेंगे। वहीं 26 फरवरी को देशभर में किसानों ने ट्रैक्टर मार्च करने का फैसला लिया है। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि 26 फरवरी को सभी राजमार्गों पर ट्रैक्टर रैली होगी। इस दौरान किसान अपने ट्रैक्टर-ट्रालियों सहित हाईवे पर एक तरफ खड़े होकर प्रदर्शन करेंगे। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि 26 फरवरी को देशभर में किसान हाइवे पर ट्रैक्टर मार्च करेंगे। एक तरफ की सड़क खुली रहेगी। इसी दिन शाम को विश्व व्यापार संगठन का पुतला भी फूंका जाएगा। किसान नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां ने बताया कि 23 फरवरी को किसान पूरे देश में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, हरियाणा के सीएम मनोहर लाल और गृह मंत्री अनिल विज के पुतले फूकेंगे। बैठक में खनौरी बॉर्डर पर जान गंवाने वाले युवा किसान शुभकरण सिंह की मौत पर किसान नेताओं ने दुख जताया और श्रद्धाजंलि अर्पित की। उधर, संयुक्त मोर्चा गैर राजनीतिक द्वारा युवा किसान की मौत पर 'दिल्ली कूच' दो दिनों के लिए स्थगित किया गया है और आगे की रणनीति के लिए आज शाम की बैठक में निर्णय लिया जाएगा।

युवा किसान की मौत, 'दिल्ली कूच' दो दिनों के लिए स्थगित

पंजाब और हरियाणा के बीच खनौरी बॉर्डर पर हरियाणा पुलिस द्वारा आंसू गैस छोड़ने के बाद 22 साल के युवा किसान शुभकरण सिंह की सिर पर चोट लगने से मौत हो गई। हालांकि अभी यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि सिंह के सिर पर चोट लगी कैसे। किसानों ने दावा किया है कि चोट आंसू गैस के गोले या रबड़ की गोली से लगी जो हरियाणा पुलिस के एक अधिकारी ने चलाई थी। लेकिन मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि डॉक्टरों का कहना है कि चोट लगने के सही कारण का पता पोस्टमॉर्टम जांच के बाद ही पता चल पाएगा।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, शुभकरण सिंह को चोट लगने के बाद पटियाला के राजेंद्र अस्पताल ले जाया गया था, जहां उन्हें "ब्रॉट डेड" यानी मृत घोषित कर दिया गया। पंजाब पुलिस के डीआईजी (पटियाला रेंज) हरचरण सिंह भुल्लर ने अखबार को बताया, "सही जानकारी डॉक्टर ही दे पाएंगे, लेकिन हमें यह जानकारी मिली है कि उन्हें रबड़ की गोली लगी थी।" सिंह की मौत के बाद जहां किसान नेताओं ने "दिल्ली कूच" अभियान को शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दिया। उधर, हरियाणा पुलिस ने एक बयान में कहा कि खनौरी बॉर्डर पर "प्रदर्शनकारियों ने पराली में मिर्च पाउडर डालकर पुलिस का चारों तरफ से घेराव किया, पथराव के साथ लाठी, गंडासे इस्तेमाल करते हुए पुलिसकर्मियों पर हमला किया।"

इस बयान में यह भी कहा गया कि इस हमले में 12 पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। बयान में सिंह की मौत के बारे में कुछ नहीं कहा गया। इसके अलावा किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव सरवन सिंह पंढेर ने दावा किया कि तीन और किसान घायल हैं और कई नौजवान लापता हैं। उन्होंने अर्धसैनिक बलों पर पंजाब में घुसकर, एक बुजुर्ग के हाथ पांव तोड़ कर, उन्हें बोरे में डाल कर खेतों में फेंक देने का भी आरोप लगाया।

क्या है पूरा मामला

खास है कि 13 फरवरी से दिल्ली कूच के लिए निकले किसानों को भाजपा सरकार ने जोर-जबरदस्ती से हरियाणा-पंजाब की सीमा पर रोका हुआ है। किसान सरकार को उसके वादों की याद दिलाते हुए ही फिर से आंदोलन कर रहे हैं। उनकी मांगें वहीं हैं, जो तीन साल पहले के किसान आंदोलन में थीं। तब केंद्र सरकार ने साल भर चले उनके आंदोलन को खत्म कराने के लिए उनसे वादे किए थे कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाएगी, लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों के साथ इंसाफ होगा, इसी तरह के कुछ और वादे भी थे, जो तीन साल में पूरे नहीं हुए तो अब किसान आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार फिर से किसानों से वार्ताएं कर रही हैं। बातचीत से समस्या का हल निकालना बिल्कुल सही है, लेकिन इसमें नीयत भी सही होनी चाहिए। अपने ही वादों को पूरा करने के लिए आखिर सरकार कौन सी बैठकें कर रही हैं। जो फैसला लेना है, वो सरकार को लेना है, इसमें किसान तो इंतजार के सिवाए कुछ कर ही नहीं सकते। तीन साल तक किसानों ने इंतजार ही किया है, और सरकार चाहती है कि वो और इंतजार करते रहें।

इसी सब को लेकर शांतिपूर्ण तरीके से विरोध के अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए ही किसान पंजाब-हरियाणा से आगे बढ़ रहे थे, लेकिन उन पर लगातार आंसू गैस के गोले और छर्रे चलाए जा रहे हैं। पिछले किसान आंदोलन में भी सरकार ने ऐसी ही ज्यादतियां की थीं। तब साढ़े सात सौ से अधिक किसानों की मौत हो गई थी और इस बार फिर किसानों के शहीद होने का सिलसिला शुरु हो चुका है। कुछ दिन पहले एक प्रौढ़ किसान की आंदोलन के दौरान मौत हुई थी और बुधवार को 22 बरस के एक युवा किसान की मौत हो गई। किसानों का आरोप है कि हरियाणा पुलिस ने गोलियां चलाईं, जिनमें कुछ लोग घायल हुए, कुछ लापता हैं और एक युवा किसान की मौत हो गई है। शांति के साथ विरोध करने वालों पर ऐसा अत्याचार साफ बता रहा है कि लोकतंत्र का अध्याय देश में बंद कर नया पाठ शुरु करने की तैयारी हो चुकी है।

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