हिंदी के मशहूर साहित्यकार नामवर सिंह नहीं रहे

Written by sabrang india | Published on: February 20, 2019
नई दिल्ली। मंगलवार को हिंदी साहित्य में सन्नाटा छा गया। देश के बड़े नाम यानि नायाब आलोचक, साहित्यकार तथा कवि डॉ. नामवर सिंह का निधन हो गया है। 19 फरवरी की रात 11:40 पर उन्होंने अंतिम सांस ली। पिछले दो तीन दिनों से उनके सारे अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। बस केवल साँस आ जा रही थी। नामवर सिंह का जाना हिंदी साहित्य के लिए अपूर्णीय क्षति है। हिंदी साहित्य के बड़े आलोचकों में आचार्य रामचंद्र शुक्ल से जो परम्परा शुरू होती है, नामवर सिंह उसी परम्परा के आलोचक थे। 

छायावाद(1955), इतिहास और आलोचना (1957), कहानी: नयी कहानी (1964), कविता के नये प्रतिमान (1968), दूसरी परम्परा की खोज (1982), वाद विवाद और संवाद (1989) जैसी रचमाओं के जनक नामवर हिंदी साहित्य में अमर रहेंगे।

अध्यापन और लेखन के अलावा उन्होंने जनयुग और आलोचना नामक हिंदी की दो पत्रिकाओं का संपादन भी किया है। 1959 में चकिया-चंदौली लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बतौर चुनाव हारने के बाद बीएचयू छोड़ दिया। 

हिंदी के जाने माने लेखक निर्मल वर्मा जिनको कुछ लोग दक्षिणपंथी कहते थे, उनको जब ज्ञानपीठ सम्मान मिला तो उस चयन समिति के अध्यक्ष नामवर सिंह ही थे। ये कहना अतश्योक्ति नहीं होगा कि उर्दू साहित्य में जो हैसियत शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी की है हिंदी साहित्य में वही हैसियत नामवर सिंह की है।

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