हिटलर की कहानी सब जानते हैं, मुसोलिनी की भी जानिए

Written by sabrang india | Published on: September 14, 2020
"युद्ध से भागता दिखाई दूं तो मुझे गोली से उड़ा देना"
कुछ बरस पहले जब मुसोलिनी के यह शब्द, इटालियन अखबारों की सुर्खियां बने तो दरअसल यह कोरी लफ़्फ़ाजी थी। ऐसी लफ्फाजियाँ वह 23 साल से करता आ रहा था। मगर आज लेक कोमो के किनारे सर्द हवा के थपेड़ों के बीच, वह अपनी गर्लफ्रेंड कार्ला पेट्टाची के साथ एक फ़ायरिंग स्कवाड के सामने खड़ा था।



लफ़्फ़ाजी सच होने वाली थी। पिछले चार साल मे स्थितियां मुसोलिनी के नियंत्रण से बाहर निकल गई थीं। युद्ध की शुरुआत में जो जीत पक्की लग रही थी, जाने कैसे रेत की तरह फिसलती चली गई। उसके तमाम जीनियस प्लान और रणनीति उल्टी पड़ती, उसकी फौज तमाम दावों के बावजूद टिक नहीं पाई। उसने सारी कोशिशें की थी, मगर अकेला मुसोलिनी क्या-क्या करता?

एक-एक कर सारे मोर्चे और इलाके, ब्रिटिश और अमेरिकी फौजें जीतने लगीं। जनता में उसका विरोध बढ़ता जा रहा था। हर मौके पर सिर्फ अपनी प्रशस्ति और गुणगान करवाने वाले मुसोलिनी पर अब हर डिजास्टर की भी जिम्मेदारी मढ़ी जा रही थी। जब रोम भी घिर गया, तो वो हो गया जो असंभव था। सितंबर 1943 में मुसोलिनी की अपनी फासिस्ट पार्टी ने उस पर नो कान्फीडेंस मोशन पास कर दिया। राजा विक्टर इमानुएल, जिसकी पिछले 23 साल से घिग्घी बन्धी रहती थी, ने तत्काल मुसोलिनी को बर्खास्त कर घर में कैद कर दिया। मित्र राष्ट्रों से संधि की गई और दूर एक अज्ञात पहाड़ी पर, एक रिजार्ट मे मुसोलिनी को कैद किया गया।
इस कैद से हिटलर ने मुसोलिनी का कैसे आजाद करवाकर जर्मनी उड़वा लिया, यह विश्व इतिहास का प्रसिद्ध सैनिक कारनामा है। "ग्रैन सासो रेड" के नाम से मशहूर इस पराक्रमी घटना ने मुसोलिनी को नया जीवन दिया। मगर मुसोलिनी के तहत जर्मनी का मित्र रहा इटली, अब जर्मनी का दुश्मन हुआ। हिटलर ने इटली पर भी हमला कर दिया। जो इलाके जीते, वहां जर्मन फौज के संरक्षण में मुसोलिनी को प्रशासक बनाकर भेज दिया।

स्थिति बदल चुकी थी। मुसोलिनी अपने बनाये जाल में उलझ चुका था। अब इटली में एक तरह से दो देश थे। दक्षिण का एक हिस्सा इटली देश, जो रोम के साथ ब्रिटिश और अमेरिकन से संधि मे आ चुका था। दूसरा उत्तरी हिस्सा जो जर्मनों के नियंत्रण में था और जहां मुसोलिनी जर्मनों के पिटठू के रूप मे राज कर रहा था। उत्तरी हिस्से से जर्मन अटैक दक्षिणी हिस्से पर हो रहा था। यानी मुसोलिनी अब अपने ही देश पर हमला कर रहा था। खुद उसके उत्तरी हिस्से में इटालियन रेजिस्टेंस के क्रांतिकारी उसका विरोध कर रहे थे, जिन्हे पार्टीजन्स कहा जाता था। इस आधे हिस्से में शासक होने के बावजूद मुसोलिनी पूरी तरह से हिटलर के अफसरों का स्टाम्प पैड था। अपनी पुरानी छवि की पीली छाया बस रह गया था। पूरे वक्त वह निगरानी में होता, उसके फोन टैप होते और पत्रों की स्क्रूटनी होती। मगर यह कोई ज्यादा वक्त तक नही चला। जर्मन फौज चारो ओर युध्द हार रही थी, और अमेरिकन ब्रिटिश फौज उन्हे उत्तर की तरफ धकेलती जा रही थी।
25 अप्रैल 1945 को उसके जर्मन संरक्षकों ने फैसला किया अब इटली छोड़ने का वक्त आ गया है। अमेरिकी फौजें पास आ गई थी। मुसोलिनी, उसके कुछ करीबी साथी और सुरक्षा करने वाली जर्मन टुकड़ी, बख्तरबंद वाहनों और ट्रकों पर सवार होकर निकल गए। उनकी मंजिल या तो स्विट्जरलैंड थी, या ऑस्ट्रिया का नाजी कब्जे वाला इलाका, जहां वे सुरक्षित होते। लेक कोमो के पास एक पार्टीजन टुकड़ी ने उनका काफिला रोक लिया।

पार्टीजन टुकड़ी का नेता जर्मनों से भिड़ना नहीं चाहता था। उसने सेफ पैसेज का वादा किया, बशर्तें उनके साथ चल रहे बख्तरबंद वाहन और इटालियन गद्दार उन्हें सौंप दिये जाए। जर्मन मेजर ने स्वीकार कर लिया। उसने इटालियन्स को सौंप दिया और ट्रकों में बैठकर आगे बढ़ने लगा। मगर पार्टीजन लीडर को शक हुआ। उसने खुद सभी ट्रकों की जांच करनी शुरू की। चौथे ट्रक मे एक कोने में लंबा ओवरकोट डाले नशे में धुत एक सैनिक मिला। उसने जर्मन स्टील हेल्मेट उल्टा पहना हुआ था। बाइस सालों से यह चेहरा हर पोस्टर, हर अखबार और टीवी न्यूजरीलों छाया हुआ था। उस चेहरे को पहचानने में कोई इटालियन गलती कैसे कर सकता था।
उसने कंधे पर हाथ मारा- !!!

नशे में धुत जर्मन सैनिक होने का अभिनय कर रहे थे। उसने फिर कंधा थपथपाया - "योर एक्सीलेंसी ....." अभिनय जारी था। अब जोर से कड़कती आवाज गूंजी।
"कैवेलियन वेनिटो मुसोलिनी"

अभिनय खत्म हुआ। वेनिटो मुसोलिनी को ट्रक से उतार लिया गया। जर्मन कोट और हेलमेट हटाये गए। तलाशी ली गई और उसकी प्वाइंट 9 एमएम पिस्टल जप्त कर ली गई। कैदी को पास के एक फार्महाउस मे कैद कर लिया गया। उसकी गर्लफ्रेंड भी वहीं भेज दी गई। रात वहीं गुजरी।

28 अप्रैल सुबह वे दोनों लेक कोमो के किनारे विला बेलमोंट के मुख्य द्वार पर खड़े थे। सर्द हवा के थपेड़ों के बीच मुसोलिनी कांप रहा था। डर से .. या ठंड से? जीवन मे लाखों मौतों का कारण बना, सर्द और क्रूर राजनतिज्ञ वैसी ही नियति के सामने खड़ा था।

सब मशीनगन उठी
मुसोलिनी फुसफुसाया- "मेरे सीने का निशाना लो"
फिर गोलियां चलीं और कहानी ख़त्म।

एक पीले रंग का ट्रक, मिलान शहर के पियाजालों लोरेटो चौक पर रुका। उसमें रखे मुसोलिनी, क्लेरेटा और अन्य 16 शव चौराहे पर फेंक दिये गए। सुबह होते होते सारे शहर में यह खबर फैल गई। हजारों लोगों का हुजूम उस चौराहे की ओर बढ़ चला जहां आठ महीने पहले मुसोलिनी ने अपने 15 विरोधियों की हत्या करवाई थी। आज वहीं मुसोलिनी के कर्मो का हिसाब होने वाला था।

एक महिला ने मुसोलिनी के मृत शरीर पर पांच गोलियां मारी। ये उसके पांच शहीद बच्चों का बदला था। एक महिला ने निर्लज्जता से वस्त्र उठाकर उसके मुख पर मूत्र त्याग किया। एक अन्य महिला एक चाबुक ले आई और मुसोलिनी के शरीर को मारने लगी। एक शख्स ने उसके मुंह मे मरा हुआ चूहा डाला, और चीखा - अब भाषण दे इस मुंह से। नाराज भीड़ नफरत से पागल थी। एक शख्स सभी शवों को कुचलता हुआ आया और मुसोलिनी के गंजे सिरे पर जोर की लात मारी। एक ने बंदूक के बट से वार किया। लोग सभी मृत शरीर के ऊपर चढ़ गए और उन्हे पैरों से कुचलने लगे। लोग उन पर थूक रहे थे, गालियां दे रहे थे।

एक व्यक्ति ने मुसोलिनी के वीभत्स शव को घुटनों पर खड़ा किया, लोग खुश हुए, पीछे वालों ने कहा - हमें नहीं दिख रहा। तो मुसोलिनी सहित कुछ शवों को पैरों में रस्से बांधकर चैक के खंबो मे लटका दिया। सर्वशक्तिमान तानशाह अब गोली मारे जाने के बाद चौराहे पर उल्टा लटक रहा था। क्लेरेटा को उल्टा लटकाए जाने पर उनकी स्कर्ट उल्टी हो गई। अधोवस्त्र नहीं थे, भी़ड ने उपहास किया, गन्दे शब्द कहे। किसी ने आगे बढकर स्कर्ट को टखनो से बांध दिया।

मुसेालिनी का चेहरा खून से लथपथ था। मुंह खुला था। आंख के पास एक गोली लगी थी जो सिर फाड़ कर एक बड़ा सूराख कर निकल गई थी। इसी वक्त अकीले स्टारेची नाम के फासिस्ट ने अपने नेता को फासिस्ट सलाम देने की कोशिश की। उसे वहीं दबोच लिया गया और बुरी तरह से पीटने के बाद गोली मार दी गई। दोपहर एक बजे तक यह तमाशा होता रहा। अमेरीकी फौज आई, सभी लाशें कब्जे में लेकर ताबूतों में बन्द किया और मुर्दाघर भेज दिया। पोस्टमार्टम हुआ, सीने पर चार गोलियां मौत का कारण थी। लाश को मिलान के एक ग्रेवयार्ड मे दफना दिया गया।

31 अक्टूबर 1922 को सत्ता मे आया मुसोलिनी फासिज्म का जनक था। फासी, याने फरसा, याने प्राचीन रोमन्स का पवित्र हथियार। मगर उसके असल हथियार दो थे- कन्सेन्ट और फोर्स। कन्सेन्ट याने सहमति ही पहला और बड़ा हथियार है। सहमति जो आप देते है, भाषणों पर रीझकर। भाषण जो देशभक्ति की बात से शुरू करता है। जो प्राचीन गौरव की वापसी, पड़ोसी देशों से नफरत, समाज के भीतर दूसरों से नफरत, अपने इतिहास के चुने हुए शख्स और खास तबके से नफरत। फिर अमीरों से नफरत जो काला धन रखते है, व्यापारियों से नफरत जो मुनाफाखोर है, मजदूरों से नफरत जो मुफ्तखोर है, कमजोरो से नफरत, जो देश पर बोझ है। हर किसी से नफरत का एक जायज कारण मिल जाता है।

फिर किसी धर्म से नफरत, किसी जाति से नफरत, किसी शख्स से नफरत ... नफरत, नफरत, नफरत। आपमे शनै शनै इतनी नफरत भरी जाती है, कि आप चीखकर अपनी नफरतो के पात्र को सजा देने की मांग करते है। एक के बाद दूसरे की बारी आती है। नफरत खुश होती है, वीभत्सतम होती जाती है। फासिज्म का समर्थन बढ़ता जाता है।

फासिज्म सिर्फ पीड़ा ऑफर करता है। शुरुआत दूसरों से होती है। तो उनकी पीड़ा, दुख, और कष्ट में आपको बेतरह खुशी मिलने लगती है। इस वक्त आप फासिज्म के पक्के समर्थक हो जाते है। आप देख ही नहीं पाते कि ठीक वही दुख और कष्ट आपको भी प्रभावित कर रहा है। बराबर या ज्यादा खून आपका भी बह रहा है। मगर दर्द महसूस कर आप गौरवान्वित होते हैं। आखिर यह देश के लिए आपका त्याग जो है। आप लिंच करती भीड़ औऱ ट्रोल करते भाड़े के गुंडों के साथ मिल जाते है। आप खुद फासिस्ट हो जाते है।

और जब इस तरह फासिस्ट रक्तबीज जब समाज के हर अंग में पैठ बना लेते है, तो फोर्स शुरू होता है। आक्रामक भाषण, आक्रामक प्रचार, विरोध की हर अवाज का खात्मा, पुलिस और गुण्डों का आतंक राज... समाज साफ दो हिस्सो मे बंट जाता है। आतंकी और आतंकित। और नफरत का जादू देखिये, कि वक्त वक्त पर दोनो आपस मे चोला बदल लेते है।

जब से मैने मुसोलिनी पर लिखना शुरू किया है, हर किसी ने बड़े उत्साह से कहा कि तानाशाह का अंत तो बुरा होता है। मगर सेाचिये, बाईस सालों तक फटेहाली के बावजूद इटली की जनता किसी को सिरमौर बनाये, जयकार करे। तो उसके बाद एक सुबह , अगर उसकी लाश नोचती, कुचलती और थूकती है, असल में वह खुद पर थूक रही होती है। गोली मारने वाली उस महिला के 5 बेटे, कंसेंट रही हो या फोर्स.. मुसोलिनी के लिए ही जान दे गए थे। अब तीस सालों तक कष्ट, त्याग, आत्मनिर्भरता, जाति, धर्म ,रेस और इतिहास के फोकटिया गौरव गान पर पीढी का नाश करने के बाद अगर कोई होश में आए ..तो क्या आये?

1945 में हुए इस घटनाक्रम के बाद, इटली को और तीस साल लगे उस हाल मे आने मे, जिस हाल मे वह 1922 मे था। 1948 मे इटली मे चुनाव हुए। फासिस्ट पार्टी को कुल जमा दो प्रतिशत वोट मिले। पार्टी खत्म हो गयी। समर्थक और पदाधिकारी मुंह छुपाये जिए।

यह किस्सा इटली का है। मगर आज भी, दुनिया के अनेक हिस्सों में, फासिज्म मरा हुआ विचार नहीं है। यह जिंदा है, हमारे दिलों में, नफरत की खाद पर। अगर इस नफरत को आसपास की प्रतिध्वनि से ताकत मिल रही है, अगर यह नफरत संगठित हो रही है, अगर किसी कौम की पीड़ा देश का आनंद बन गयी है जो समझ जाइये कि इसे पालने वाला, इसका फायदा उठाने वाला मुसोलिनी आसपास ही है। आपके बेहद पास, आपके पड़ोस में, आपके अखबारों में, आपकी टीवी पर.. और सत्ता के ऊंचे कंगूरों में ..

मुसोलिनी जिंदा है। अपने अंदर झांकिए। क्या आप भी किसी मुसोलिनी के समर्थक बने बैठे हैं, जो अपनी सत्ता बचाने के लिए यज्ञ में देश की आहुति दे रहा है! इतिहास बनने से पहले जाग जाइए क्योंकि समय संभलने का मौका नहीं देता। किसी को नहीं।

(लेखक-अनाम, सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट)

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