नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार पिछले एक साल के दौरान अर्थव्यवस्था को संभाले नहीं संभाल पा रही है। अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट का दौर है और सरकार और बीजेपी के बड़े नेता झूठ पर झूठ बोले जा रही है। लेकिन ज्यादातर आर्थिक एजेंसियों की रिपोर्ट सरकार की इस झूठ का पर्दाफाश कर रही हैं।
भारतीय स्टेट बैंक यानी एसबीआई की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में हाल के दिनों में आई गिरावट तकनीकी नहीं वास्तविक है। गौरतलब है कि पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने फिक्की के एक कार्यक्रम में कहा था कि अटलजी के समय में जीडीपी ग्रोथ रेट 8 फीसदी थी वह 2013-14 में घट कर 4.7 फीसदी पर आ गई। और अब पिछली तिमाही (वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही) को छोड़ दीजिये तो जीडीपी ग्रोथ को 7.2 फीसदी पहुंचने में सफलता मिली है। पिछली तिमाही में जो गिरावट आई है वह टेक्निकल कारणों से है।
अर्थव्यवस्था 7.2 फीसदी की दर को प्राप्त करेगी। लेकिन एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रोथ में गिरावट सरकार की राजकोषीय घाटे को कम करने की कोशिश में हो रही है। दरअसल मोदी सरकार जनता को दिखाना चाहती है कि हमने राजकोषीय घाटे को काबू में रखा। लेकिन इससे अर्थव्यवस्था में रुकावट पैदा हो रही है। सरकार न कर्ज ले रही है और न खर्च कर रही है। इससे आर्थिक गतिविधियां कम हो गई हैं। यह नोटबंदी और जीएसटी से ठप पड़ी आर्थिक गतिविधियों पर अतिरिक्त मार की तरह है।
आर्थिक गतिविधियों में इस गिरावट की वजह से ही सरकार को अब नौकरियों की चिंता सताने लगी है। यही वजह है कि पीएमओ ने वित्त मंत्रालय रोजगार पैदा करने का रोड मैप तैयार करने को कहा है। यह चिंता इसलिए भी ज्यादा दिख रही है कि 2019 के चुनाव अब नजदीक हैं और सरकार की उपलब्धियों के खाते में सिफर दिख रहा है। अगर रोजगार नहीं बढ़ाए गए तो जिस युवा वर्ग को इसका सपना दिखा कर सत्ता हासिल की गई थी वो हाथ चली जाएगी।
साफ है कि सरकार माने या न माने या उसके मंत्री कितना भी झूठ बोलें और वास्तविक हालातों को स्वीकार करने से इनकार करें, अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर जारी है और हालात संभल नहीं रहे हैं। इकोनॉमी ग्रोथ को लेकर सरकार का झूठ बार-बार सामने आ रहा है। यह देश के साथ विश्वासघात नहीं तो और क्या है।