कैमूर के संगठन 18 अगस्त को मनाएंगे क्रांतिकारी विचारक डा. विनियन की पुण्य तिथि

Written by sabrang india | Published on: August 16, 2019
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन (AIUFWP) ने हर वर्ष की भांति इस बार भी 18 अगस्त को प्रखर क्रांतिकारी विचारक व ताउम्र दलित आदिवासी महिलाओं व अन्य वंचित तबकों के संघर्ष करते रहे डा. विनियन की पुण्य तिथि मनाने व उन्हें श्रद्धांजलि देने का फैसला किया है। डा. विनियन के बारे में बहुत सी कहानियां प्रचारित रहीं, जैसे कि वे एक प्रतिबद्ध नक्सलवादी थे। लेकिन सच ये था कि वे शुरुआती दौर से जनआंदोलन और जयप्रकाश नारायण जी के आंदोलन से जुड़े हुए थे, इसलिये उन्होंने जनवादी सिद्धांतों के तहत ही अपने आंदोलन को ज़ारी रखा। जनआंदोलन में उनकी अटूट आस्था थी और राजनैतिक मुद्दों पर उनके खुले विचारों ने सभी को प्रभावित किया। 

अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन (AIUFWP) ने कहा कि डा. विनियन हर समय जनआंदोलन को समाजवादी विचारों के साथ जोड़कर देखते थे। एक तरह से वामपंथी जनांदोलनों में नए प्रवाह का स्वरूप उनके विचारों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता था। साम्प्रदायिक मुद्दों पर भी उनका विचार बहुत स्पष्ट था और सेक्यूलर विचारों को भी वे आम जनता के मुद्दों के साथ जोड़कर देखते थे। इसी वजह से 90 के दशक में जब साम्प्रदायिक तनाव अपने चरम पर था, तब उन्होंने बाबरी मस्जिद विवाद के मुद्दे पर आम जनता को साथ लेकर जहानाबाद से अयोध्या तक लगभग 100 दिन की पदयात्रा की। उस दौर में उनका यह साहसिक और प्रेरणा देने वाला प्रयास रहा। आज की परिस्थिति में जब जनआंदोलन एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण दौर से गुज़र रहे हैं, उनकी अनुपस्थिति बहुत खलने वाली महसूस होती है।

राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच जो कि अब अखिल भारतीय वनजन श्रमजीवी यूनियन में तब्दील हो गया है, की स्थापना की जिसके शुरूआती दौर से ही वो इस की प्रक्रिया से जुड़े रहे। एक तरह से उन्होंने मंच की स्थापना को मार्गदर्शन दिया और आख़िर तक इस संगठन को आगे बढ़ाने के लिये अगुआई की। ठीक इससे पहले आप ने पेसा कानून बनाने के आंदोलन में भी एक प्रभावशाली भूमिका निभाई। पेसा कानून केवल पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र व अनुसूचित जनजातियों के लिये बनाया गया एक कानून है, लेकिन जरूरत यह थी कि इसको आगे बढ़ा कर एक सर्वभारतीय कानून बनाया जाए, जोकि सभी वनाश्रित समुदायों के लिए लागू हो और सभी वनक्षेत्रों के लिए बन सके।
 
राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच की विधिवत् स्थापना सितम्बर 1998 को रांची में हुई। लेकिन स्थापना के दो सालों की अवधि में बहुत सारी महत्वपूर्ण बैठकें और चर्चाऐं हुईं, जिनमें वनाश्रित श्रमजीवी समाज को सामाजिक, राजनैतिक दृष्टिकोण से परिभाषित करने की चर्चाऐं भी शामिल थीं। इसी दौर में राष्ट्रीय स्तर पर एक मांगपत्र बनाने की प्रक्रिया भी शुरू हुई। इस मांगपत्र में समग्र वनाधिकारों को लेकर एक नया कानून बनाने की मांग प्रमुखता से शामिल थी। 

हालांकि, यह काम इतना आसान नहीं था, क्योंकि वनाश्रित समुदायों में भी तमाम तरह की विविधताऐं हैं, जिनके अपने ऐतिहासिक कारण हैं। वनाधिकार आंदोलन हमेशा बहुत सशक्त रहे, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर ही सीमित रहे। पहचान और मांगों में भी विविधता रही। इन सभी आंदोलनों को जोड़ कर एक व्यापक राष्ट्रीय स्तर पर सबको मिला कर एक मंच में शामिल करना व स्थापित करना एक बहुत बड़ा चुनौतीपूर्ण काम था, इसका नेतृत्व उन्होंने किया। खासकर भूमि अधिकार आंदोलन के साथ वनाधिकार आंदोलन को जोड़ना, सांगठनिक प्रक्रिया में सामाजिक न्याय की समझदारी को कारगर करने व महिलाओं के प्रभावी नेतृत्व को स्थापित करने में उन्होंने लगातार दस साल तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मंच के आंदोलन में आज महिला शक्ति का व समुदाय के नेतृत्व का जो प्रभाव दिख रहा है, वह उनके इसकी स्थापना में व इसके बाद भी किये गये योगदान का ही फल है। 

सन् 2004 की जनवरी में मुम्बई में विश्व सामाजिक मंच का आयोजन किया गया था। हमारे देश में इससे पहले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े संघर्षशील आम जनता के समागम का आयोजन नहीं हुआ था, जिसमें देश और विदेश के इतने सारे आंदोलन इकट्ठा हुए थे। डा. विनयन ने विश्व सामाजिक मंच में राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच व न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव ने साथ मिल कर कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम किए। जिसमें वनाश्रित समुदाय के मुद्दों के अलावा तमाम श्रमजीवी समाज के आंदोलनों के मुददों पर भी कार्यक्रम आयोजित किए गए। वन-जन श्रमजीवी मंच के करीब पांच हजार प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया, जिसमें डा. विनियन ने महत्वपूर्ण भूमिका इसमें पर्यावरणीय न्याय और जलवायु परिवर्तन के राजनैतिक सवालों पर, अंतर्राष्ट्रीय श्रम अधिकार और विभिन्न देशों के खासकर दक्षिणी अमरीका के जनांदोलनों की रणनीति के बारे में बहुभाषीय स्तर पर चर्चाऐं हुईं। बाद में इस विषय पर उन्होंने एक पुस्तिका भी लिखी। 

इन सभी बौद्धिक चर्चाओं में समुदाय के लेाग भी शामिल थे, डा. विनियन इनमें एक महत्वपूर्ण कड़ी थे, जिन्होंने समुदाय के साथ उनका संवाद स्थापित करने के लिये साथ-साथ अनुवाद भी किए। । इसके बाद वनाधिकार आंदोलन में जो तेजी आई उससे उत्साहित होकर लोगों ने गांव-गांव में उन विचारों को फैलाया। जीवन के आखिरी दौर में वे बिहार, झारखंड़ व उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित कैमूर क्षेत्र में मजबूती से काम कर रहे थे। इस क्षेत्र में देखा जाए तो उनके आंदोलन ने वनाधिकार कानून को पारित होने से पहले ही लागू कर दिया था। इन तीनों राज्यों में कैमूर क्षेत्र में सैकड़ों की तादाद् में हजारों एकड़ भूमि पर आदिवासियों ने अपने खोये हुये राजनैतिक अधिकारों को पुनः स्थापित किया। 

यह आंदोलन उन आदिवासियों का था, जिनसे ऐतिहासिक काल में उनकी भूमि को छीना गया था। ज्ञात हो कि यह पूरा क्षेत्र माओवादी आंदोलन का भी आधार क्षेत्र था, लेकिन डा. विनियन के जनवादी आंदोलन ने माओवादी आंदोलन पर भी काफी गहरा असर छोड़ा व इन क्षेत्रों में ज्यादातर आदिवासियों ने जनवादी आंदोलन का ही दामन थामा। आज यह आलम है, कि जनवादी आंदोलन की पकड़ इस क्षेत्र में सबसे अधिक है। डा. विनियन ही एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होनें इस अति पिछड़े कैमूर क्षेत्र को पांचवी अनुसूची क्षेत्र व एक स्वायत्त क्षेत्र घोषित करने का संघर्ष निरंतर लड़ा और जारी रखा। अब उनके विचारों पर आधारित आंदेालन को ज़िम्मेदारी के साथ आगे ले जाने के लिए उनकी कर्मभूमि कैमूर क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं व पुरुषों की एक सशक्त टीम तैयार है, जो वनाधिकार कानून को लागू करने व जंगल बचाने की मुहिम में लगी हुई है।

इस आंदोलन से वनाधिकार कानून बनाने की प्रक्रिया को मजबूत किया व लोगों में विश्वास था कि यह कानून जरूर बनेगा। लेकिन अफसोस कि इस कानून के पारित होने के महज चार माह पहले ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। यह बदलावकारी कानून 15 दिसम्बर 2006 को लेाकसभा में पारित किया गया। जीवन के आख़री पड़ाव में डा. विनियन जलवायु परिवर्तन पर इस मुददे से जुड़े दस्तावेजों को अनुवाद करने का गंभीर कार्य कर रहे थे। लेकिन अक्समात निधन होने के कारण वे यह काम पूरा नहीं कर पाए। हर एक तबके के उस समाज में जो मौजूदा व्यवस्था से पीड़ित है, उनमें विशेष रूप से समस्त कैमूर क्षेत्र के आदिवासियों व अन्य गरीब तबकों में डा. विनियन व्यक्ति के रूप में ही नहीं बल्कि विचार के रूप में आज भी अपने शाश्वत रूप में ज़िन्दा हैं। हम उनको अपने संघर्ष के जरिये से सलाम करते हैं।

जो सफर डा. विनयन ने शुरू किया था वह कारवां आज काफी आगे बढ़ गया है संगठन के स्वरूप को आगे ले जाते हुए आज वनक्षेत्रों में समुदाय के नेतृत्व किस तरह से आंदोलन को आगे लेजाए उसके लिए अखिल भारतीय वनजन श्रमजीवी यूनियन का स्थापना सम्मेलन उड़ीशा के पुरी में सन् 2013 को किया था। यूनियन को मजबूत करने की जिम्मेदारी भी अब समुदाय पर ही है। वैश्वीकरण के इस दौर में व्यापक लड़ाकू जनांदोलन के चलते आंदोलनकारी समुदाय की चेतना मध्यम वर्गीय चेतना से काफी आगे है। 

वन और वनभूमि पर सरकारी व कम्पनियों के हमले लगाता बढ़ते जा रहे हैं व वनाधिकार कानून के दस वर्ष पूरा होने पर बजाय इसके के कानून का लाभ सभी वनाश्रित समुदाय को मिलता केन्द्र सरकार ने कैमपा कानून पास कर दोबारा से वनों पर वनविभाग का एकाधिकार कायम करने की योजना बनाई है जो कि संसद में पारित वनाधिकार कानून, पेसा कानून के विरोध में हैं। चूंकि वनाधिकार कानून और पेसा कानून एक विशिष्ट कानून है इस कानून से छेड़छाड़ का मतलब है कि वनक्षेत्र में जनता और सत्ता के बीच टकराव और भी तेज़ होगा। 

सरकार द्वारा खुद कानून की अवमानना व वनविभाग जैसे संस्था को दोबारा वनों का एकाधिकार देने को लेकर वनक्षेत्रों में जो टकराव होगा अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन (AIUFWP) ने अपील की कि साथियों उसके लिए अभी से हमें तैयार हो कर इस हमले का सामना करना है। तथा अपने कानून वनाधिकार कानून को सख्ती से जमींन पर लागू करने की खुद योजना बनानी है। 

इस वर्ष डा. विनयन की पुण्यतिथि पर अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन (AIUFWP) के जुझारू कार्यकर्ता उनकी कर्मभूमि रहे बिहार के कैमूर जिला की तहसील अधौरा में 19 अगस्त को श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित करने जा रहे हैं। जिसमें क्षेत्रीय सम्मेलन की रणनीति बनाई जाएगी। कार्यक्रम की शुरुआत सुबह 10 बजे की जायेगी। AIUFWP की अपील है कि बडी़ से बड़ी संख्या में शामिल होकर जनसंघर्षों के प्रेरणा स्त्रोत रहे व आखिरी दमतक वंचितों के अधिकारों के लिये सतत् संघर्षरत दिवंगत साथी डा. विनियन को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करें।

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