रफाल-सौदे के बारे में सर्वोच्च न्यायालय की राय ने भाजपा में नई जान फूंक दी है। तीन हिंदी राज्यों में पटकनी खाई भाजपा अपने घाव सहला रही थी कि अदालत ने उसे एक पुड़िया थमा दी। उसे मलहम समझकर सरकार और भाजपा के नेता फूले नहीं समा रहे हैं लेकिन वे यह नहीं समझ पा रहे कि जजों ने सभी याचिकाओं को इस तरकीब से रद्द किया है कि यह मलहम ज़हर की पुड़िया बन सकता है।
याचिका लगानेवाले डॉ. अरुण शौरी, यशवंत सिंहा और प्रशांत भूषण सर्वोच्च न्यायालय से उसके फैसले पर पुनर्विचार की मांग जरुर करेंगे, क्योंकि उनके तथ्यों और तर्कों को यह फैसला संतोषजनक ढंग से काट नहीं पाया है लेकिन वे इसकी मांग करें या न करें और अदालत उसे माने या न माने, एक बात पक्की है कि अदालत ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हाथ में अग्निबाण थमा दिया है। किसी ने भी रफाल विमान की क्षमता पर सवाल नहीं उठाया है।
इन याचिकाओं का सबसे बड़ा सवाल यह था कि 500 करोड़ का जहाज 1600 करोड़ में क्यों खरीदा गया ? इसी सवाल के आधार पर राहुल ने कई बार कहा कि चौकीदार चोर है। यह अत्यंत गंभीर और अत्यंत जहरीला आरोप है। इस सवाल को सर्वोच्च न्यायालय गोल कर गया। उसने दो-टूक शब्दों में कह दिया कि रफाल की कीमतों के झंझट में पड़ना इस अदालत का काम नहीं है। रफाल-सौदे के बारे में दो और भी सवाल थे। एक तो यह कि खरीद की प्रक्रियाओं का उल्लंघन हुआ है।
इसके बारे में अरुण शौरी का कहना है कि अदालत गहरे में उतरी ही नहीं और उसने सरकारी सफाई को जस का तस मान लिया है। दूसरा सवाल यह था कि इस सौदे में अनिल अंबानी को बिचौलिया बनाकर अरबों रु. पर हाथ साफ करने की जो सरकारी साजिश थी, उसके बारे में भी अदालत का रवैया टालू था।
याचिकाकर्त्ताओं का मानना है कि अदालत ने सरकार की हां में हां मिलाकर अपनी प्रतिष्ठा पतली कर ली है लेकिन मेरा मानना है कि अदालत ने रफाल की कीमतों के बारे में मौन धारण करके एक भयंकर दहाड़ को जन्म दे दिया है। यह भाजपा को बहुत मंहगी पड़ेगी। यदि भाजपा के नेतृत्व के पास गांठ की अकल होती तो रफाल की कीमतों के सवाल का बहुत ही संतोषजनक जवाब दिया जा सकता था। उसे जितना छिपाया जा रहा है, वह उतना ही सिर पर चढ़कर बोलेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह आर्टिकल उनके फेसबुक पेज से साभार लिया गया है।)
याचिका लगानेवाले डॉ. अरुण शौरी, यशवंत सिंहा और प्रशांत भूषण सर्वोच्च न्यायालय से उसके फैसले पर पुनर्विचार की मांग जरुर करेंगे, क्योंकि उनके तथ्यों और तर्कों को यह फैसला संतोषजनक ढंग से काट नहीं पाया है लेकिन वे इसकी मांग करें या न करें और अदालत उसे माने या न माने, एक बात पक्की है कि अदालत ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हाथ में अग्निबाण थमा दिया है। किसी ने भी रफाल विमान की क्षमता पर सवाल नहीं उठाया है।
इन याचिकाओं का सबसे बड़ा सवाल यह था कि 500 करोड़ का जहाज 1600 करोड़ में क्यों खरीदा गया ? इसी सवाल के आधार पर राहुल ने कई बार कहा कि चौकीदार चोर है। यह अत्यंत गंभीर और अत्यंत जहरीला आरोप है। इस सवाल को सर्वोच्च न्यायालय गोल कर गया। उसने दो-टूक शब्दों में कह दिया कि रफाल की कीमतों के झंझट में पड़ना इस अदालत का काम नहीं है। रफाल-सौदे के बारे में दो और भी सवाल थे। एक तो यह कि खरीद की प्रक्रियाओं का उल्लंघन हुआ है।
इसके बारे में अरुण शौरी का कहना है कि अदालत गहरे में उतरी ही नहीं और उसने सरकारी सफाई को जस का तस मान लिया है। दूसरा सवाल यह था कि इस सौदे में अनिल अंबानी को बिचौलिया बनाकर अरबों रु. पर हाथ साफ करने की जो सरकारी साजिश थी, उसके बारे में भी अदालत का रवैया टालू था।
याचिकाकर्त्ताओं का मानना है कि अदालत ने सरकार की हां में हां मिलाकर अपनी प्रतिष्ठा पतली कर ली है लेकिन मेरा मानना है कि अदालत ने रफाल की कीमतों के बारे में मौन धारण करके एक भयंकर दहाड़ को जन्म दे दिया है। यह भाजपा को बहुत मंहगी पड़ेगी। यदि भाजपा के नेतृत्व के पास गांठ की अकल होती तो रफाल की कीमतों के सवाल का बहुत ही संतोषजनक जवाब दिया जा सकता था। उसे जितना छिपाया जा रहा है, वह उतना ही सिर पर चढ़कर बोलेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह आर्टिकल उनके फेसबुक पेज से साभार लिया गया है।)