1 मई को मशहूर पत्रकार और लेखक पॉल जोसफ़ गोएबल्स की पुण्यतिथि है। गोएबल्स कहा करता था, "एक झूठ को अगर कई बार दोहराया जाए तो वह सच बन जाता है।" वह 29 अक्टूबर, 1897 को पैदा हुआ था।

डॉ जोसेफ गोएबल्स 1933 से 1945 तक नाजी जर्मनी का मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा था। गोएबल्स का जन्म 1897 में हुआ था। गोएबल्स जिसने कहा कि एक झूठ को अगर कई बार दोहराया जाए तो वह सच बन जाता है। गोएबल्स को उसकी जोशीली भाषणकला और यहूदी विरोध के चलते जाना जाता था।
1933 में अडोल्फ़ हिटलर जर्मनी की सत्ता में आया और उसने एक नस्लवादी साम्राज्य की स्थापना की, जिसमें यहूदियों को सब-ह्यूमन करार दिया गया और उन्हें इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना गया। 1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने अंतिम हल (फाइनल सोल्यूशन) को अमल में लाना शुरू किया। उसके सैनिक यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूंसने लगे। उनसे काम करवाने, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष कैंप स्थापित किए गए, जिनमें सबसे कुख्यात था ऑस्चविट्ज। यहूदियों को इन शिविरों में लाया जाता और वहां बंद कमरों में जहरीली गैस छोड़कर उन्हें मार डाला जाता। जिन्हें काम करने के काबिल नहीं समझा जाता, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता, जबकि बाकी बचे यहूदियों में से ज्यादातर भूख और बीमारी से दम तोड़ देते। युद्ध के बाद सामने आए दस्तावेजों से पता चलता है कि हिटलर का मकसद दुनिया से एक-एक यहूदी को खत्म कर देना था। इसे अपनी तरह का नाम दिया गया-होलोकॉस्ट।
साल 1945 की शुरुआत से ही हिटलर की दूसरे विश्व युद्ध पकड़ कमजोर पड़ने लगी थी। मित्र देशों की सेनाएं बर्लिन की तरफ तेजी से बढ़ रही थीं और जर्मन अपना इलाका लगातार खोते जा रहे थे। 20 अप्रैल को हिटलर के जन्मदिन था। और इस वक्त तक सोवियत टैंक जर्मनी की राजधानी बर्लिन तक पहुंच चुके थे। हिटलर इससे डरा हुआ था और उसने 30 अप्रैल को अपने बंकर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।
इसके बाद मित्र देशों की सेना की गिरफ्त में आने और मार डाले जाने के डर से हिटलर के सहयोगियों ने न केवल उसकी तरह ही आत्महत्या कर ली बल्कि अपने परिवारों को भी मार डाला। डॉ जोसेफ गोएबल्स ने भी ऐसा ही किया। उसने आत्महत्या से पहले अपनी पत्नी मैग्डा और 6 बच्चों को भी मार डाला। जोसेफ गोएबल्स के विचारों और प्रचार के तरीकों को हम आगे बताई गई उसकी नीतियों के जरिए अच्छे से समझ सकते हैं।
विरोधियों के खिलाफ दुष्प्रचार के तरीके का भी गोएबल्स ने प्रयोग किया। अपने विरोधी को राक्षस बताने जैसी तकनीकों को उसने खूब प्रचारित-प्रसारित करवाया। मिथकीय कहानियां, लोक कथाएं और धार्मिक मान्यताएं। नाज़ी विचारधारा में मिथक और लोककथाओं का बड़ा महत्व था। नाज़ी पार्टी की धार्मिक मान्यताएं स्पष्ट नहीं थीं लेकिन गोएब्बेल्स इसका महत्व अच्छे से जानता था। अक्सर ही जर्मन, प्रतीक चित्रों की मदद से प्रचार करते थे। इनका मकसद प्राचीन जर्मन सभ्यता को लोगों के दिमाग में महान बनाना था। इसीलिए स्वस्तिक जैसा निशान आज भी नाज़ियों की पहचान बना हुआ है।
नाज़ियों के पास जो प्रचार के तरीके थे उनमे से सबसे ख़ास था फुहरर यानि हिटलर खुद। एक करिश्माई व्यक्तित्व और प्रखर वक्ता के तौर पर हिटलर अपने तर्क को सबसे आसान भाषा में लोगों तक पहुंचा सकता था। कठिन से कठिन मुद्दों पर वो आम बोल-चाल की भाषा में बात करता था। वह भावनाओं की बात करता था। छोटी से छोटी दुर्घटना को बड़ा करके दिखाना, बरसों पुराने जख्मों को ताज़ा कर देना उसके बाएं हाथ का खेल था। बाकि जो कमी होती थी, उसे गोएबल्स का प्रोपेगेंडा पूरा कर देता था।

डॉ जोसेफ गोएबल्स 1933 से 1945 तक नाजी जर्मनी का मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा था। गोएबल्स का जन्म 1897 में हुआ था। गोएबल्स जिसने कहा कि एक झूठ को अगर कई बार दोहराया जाए तो वह सच बन जाता है। गोएबल्स को उसकी जोशीली भाषणकला और यहूदी विरोध के चलते जाना जाता था।
1933 में अडोल्फ़ हिटलर जर्मनी की सत्ता में आया और उसने एक नस्लवादी साम्राज्य की स्थापना की, जिसमें यहूदियों को सब-ह्यूमन करार दिया गया और उन्हें इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना गया। 1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने अंतिम हल (फाइनल सोल्यूशन) को अमल में लाना शुरू किया। उसके सैनिक यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूंसने लगे। उनसे काम करवाने, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष कैंप स्थापित किए गए, जिनमें सबसे कुख्यात था ऑस्चविट्ज। यहूदियों को इन शिविरों में लाया जाता और वहां बंद कमरों में जहरीली गैस छोड़कर उन्हें मार डाला जाता। जिन्हें काम करने के काबिल नहीं समझा जाता, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता, जबकि बाकी बचे यहूदियों में से ज्यादातर भूख और बीमारी से दम तोड़ देते। युद्ध के बाद सामने आए दस्तावेजों से पता चलता है कि हिटलर का मकसद दुनिया से एक-एक यहूदी को खत्म कर देना था। इसे अपनी तरह का नाम दिया गया-होलोकॉस्ट।
साल 1945 की शुरुआत से ही हिटलर की दूसरे विश्व युद्ध पकड़ कमजोर पड़ने लगी थी। मित्र देशों की सेनाएं बर्लिन की तरफ तेजी से बढ़ रही थीं और जर्मन अपना इलाका लगातार खोते जा रहे थे। 20 अप्रैल को हिटलर के जन्मदिन था। और इस वक्त तक सोवियत टैंक जर्मनी की राजधानी बर्लिन तक पहुंच चुके थे। हिटलर इससे डरा हुआ था और उसने 30 अप्रैल को अपने बंकर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।
इसके बाद मित्र देशों की सेना की गिरफ्त में आने और मार डाले जाने के डर से हिटलर के सहयोगियों ने न केवल उसकी तरह ही आत्महत्या कर ली बल्कि अपने परिवारों को भी मार डाला। डॉ जोसेफ गोएबल्स ने भी ऐसा ही किया। उसने आत्महत्या से पहले अपनी पत्नी मैग्डा और 6 बच्चों को भी मार डाला। जोसेफ गोएबल्स के विचारों और प्रचार के तरीकों को हम आगे बताई गई उसकी नीतियों के जरिए अच्छे से समझ सकते हैं।
विरोधियों के खिलाफ दुष्प्रचार के तरीके का भी गोएबल्स ने प्रयोग किया। अपने विरोधी को राक्षस बताने जैसी तकनीकों को उसने खूब प्रचारित-प्रसारित करवाया। मिथकीय कहानियां, लोक कथाएं और धार्मिक मान्यताएं। नाज़ी विचारधारा में मिथक और लोककथाओं का बड़ा महत्व था। नाज़ी पार्टी की धार्मिक मान्यताएं स्पष्ट नहीं थीं लेकिन गोएब्बेल्स इसका महत्व अच्छे से जानता था। अक्सर ही जर्मन, प्रतीक चित्रों की मदद से प्रचार करते थे। इनका मकसद प्राचीन जर्मन सभ्यता को लोगों के दिमाग में महान बनाना था। इसीलिए स्वस्तिक जैसा निशान आज भी नाज़ियों की पहचान बना हुआ है।
नाज़ियों के पास जो प्रचार के तरीके थे उनमे से सबसे ख़ास था फुहरर यानि हिटलर खुद। एक करिश्माई व्यक्तित्व और प्रखर वक्ता के तौर पर हिटलर अपने तर्क को सबसे आसान भाषा में लोगों तक पहुंचा सकता था। कठिन से कठिन मुद्दों पर वो आम बोल-चाल की भाषा में बात करता था। वह भावनाओं की बात करता था। छोटी से छोटी दुर्घटना को बड़ा करके दिखाना, बरसों पुराने जख्मों को ताज़ा कर देना उसके बाएं हाथ का खेल था। बाकि जो कमी होती थी, उसे गोएबल्स का प्रोपेगेंडा पूरा कर देता था।