कश्मीर मुद्दे पर बाबा साहेब आंबेडकर ने संसद में रखे थे ये विचार

Written by sabrang india | Published on: August 7, 2019
केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया है। अब जम्मू, कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है। सरकार द्वारा यहां से अनुच्छेद 370 हटाने के लिए जिस तरह से कश्मीर की आवाम की अनदेखी कर सैन्यकरण के जरिए काम लिया गया है उसका काफी विरोध भी हो रहा है। कश्मीर में इंटरनेट, फोन, समाचार आदि पर रोक लगाई गई है। भारी मात्रा में सैनिकों को तैनात किया गया है और स्थानीय पार्टियों के गैर अलगाववादी नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया है उसकी काफी आलोचना हो रही है। 

इस सारी प्रक्रिया के दौरान डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के बारे में काफी चर्चाएं हैं। उनके बारे में कहा जा रहा है कि वे कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खिलाफ थे। इस पर वरिष्ठ पत्रकार भंवर मेघवंशी ने बाबा साहब द्वारा 10 अक्टूबर 1951 को कश्मीर के मामले पर संसद में दिये भाषण के एक अंश को अपनी फेसबुक वॉल पर शेयर किया है जो इस प्रकार है-

"पाकिस्तान के साथ हमारा झगड़ा हमारी विदेश नीति का हिस्सा है ,जिसको लेकर मैं गहरा असंतोष महसूस करता हूं। पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्तों में खटास दो कारणों से है — एक है -कश्मीर और दूसरा है- पूर्वी बंगाल में हमारे लोगों के हालात।

मुझे लगता है कि हमें कश्मीर के बजाय पूर्वी बंगाल पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए ,जहां जैसा कि हमें अखबारों से पता चल रहा है, हमारे लोग असहनीय स्थिति में जी रहे हैं। उस पर ध्यान देने के बजाय हम अपना पूरा ज़ोर कश्मीर मुद्दे पर लगा रहे हैं।

उसमें भी मुझे लगता है कि हम एक अवास्तविक पहलू पर लड़ रहे हैं। हम अपना अधिकतम समय इस बात की चर्चा पर लगा रहे हैं कि कौन सही है और कौन ग़लत? मेरे विचार से असली मुद्दा यह नहीं है कि सही कौन है बल्कि यह कि सही क्या है?

और इसे यदि मूल सवाल के तौर पर लें तो मेरा विचार हमेशा से यही रहा है कि कश्मीर का विभाजन ही सही समाधान है। हिंदू और बौद्ध हिस्से भारत को दे दिए जाएं और मुस्लिम हिस्सा पाकिस्तान को ,जैसा कि हमने भारत के मामले में किया।

कश्मीर के मुस्लिम भाग से हमारा कोई लेनादेना नहीं है। यह कश्मीर के मुसलमानों और पाकिस्तान का मामला है। वे जैसा चाहें, वैसा तय करें। या यदि आप चाहें तो इसे तीन भागों में बांट दें; युद्धविराम क्षेत्र, घाटी और जम्मू-लद्दाख का इलाका और जनमतसंग्रह केवल घाटी में कराएं।

अभी जिस जनमत संग्रह का प्रस्ताव है, उसको लेकर मेरी यही आशंका है कि यह चूंकि पूरे इलाके में होने की बात है, तो इससे कश्मीर के हिंदू और बौद्ध अपनी इच्छा के विरुद्ध पाकिस्तान में रहने को बाध्य हो जाएंगे और हमें वैसी ही समस्याओं का सामना करना पड़ेगा ,जैसा कि हम आज पूर्वी बंगाल में देख पा रहे हैं।’

( डॉ आंबेडकर : राइटिंग्स एंड स्पीचेज , खंड- 14 ,भाग -2 पेज- 1322)

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