नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस महामारी के दौरान नौकरियों के नुकसान ने पांच साल की प्रगति को नष्ट कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की ओर से बुधवार को जारी एक रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक संकट के कारण 2022 तक बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 20 करोड़ 50 लाख हो जाएगी और गरीबों की संख्या में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ विषमता भी बढ़ेगी। आईएलओ का कहना है कि रोजगार के अवसरों में होने वाली बढ़ोतरी साल 2023 तक इस नुकसान की भरपाई नहीं कर पाएगी।
कोरोना महामारी के कारण उपजे अड़चन का अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे दो अरब श्रमिकों पर विनाशकारी असर हुआ है। साल 2019 के मुकाबले, अतिरिक्त 10 करोड़ 80 लाख श्रमिक अब ‘गरीब' या ‘बेहद गरीब' की श्रेणी में हैं। संगठन का अनुमान है कि अगले साल तक वैश्विक बेरोजगारी बढ़कर 20 करोड़ 50 लाख हो जाएगी। 2019 में यह संख्या 18 करोड़ 70 लाख थी।
आईएलओ की 164 पन्नों की "विश्व रोजगार और सामाजिक परिदृश्य: रूझान 2021" नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी से श्रम बाजार में पैदा संकट अभी खत्म नहीं हुआ है और श्रम बाजार में उपजे संकट के खत्म होने के आसार फिलहाल नहीं हैं। नुकसान की भरपाई के लिए रोजगार वृद्धि कम से कम 2023 तक नाकाफी होगी।
नौकरियों के बड़े पैमाने पर नुकसान का महिलाओं, युवाओं और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वालों के साथ वैश्विक असमानता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के लिए 2020 में रोजगार के अवसरों में पांच फीसदी की गिरावट आई, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा करीब चार फीसदी रहा। रिपोर्ट में दावा किया गया कि, "कामकाजी गरीबी उन्मूलन की दिशा में पांच साल की प्रगति बेकार चली गई।"
संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी ने अनुमान लगाया कि अगर दुनिया में महामारी नहीं आती तो करीब तीन करोड़ नई नौकरी पैदा हो सकती थी, लेकिन महामारी के कारण कई छोटे व्यवसाय दिवालिया हो गए हैं या गंभीर कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक रोजगार और काम के घंटे कम होने से बेरोजगारी का संकट और गहरा हो जाएगा।
यूएन एजेंसी के महानिदेशक गाए रायडर ने महामारी के रोजगार पर असर के बारे में बताया कि इसकी भरपाई करना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा, "मौजूदा गति से, जब इसमें सुधार होना शुरू होता है, तो सबसे बड़ा जोखिम यह है कि हमारी काम की दुनिया और अधिक असमान हो सकती है, क्योंकि हमारे पास मजबूत आय और उच्च आय वाले देश हैं। वहां अत्यधिक कुशल कर्मचारियों के लिए काफी संभावनाएं दिखती हैं लेकिन इसके उलट दूसरे किनारे पर जो लोग हैं उनके लिए यह स्थिति नहीं दिखती।
कोरोना महामारी के कारण उपजे अड़चन का अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे दो अरब श्रमिकों पर विनाशकारी असर हुआ है। साल 2019 के मुकाबले, अतिरिक्त 10 करोड़ 80 लाख श्रमिक अब ‘गरीब' या ‘बेहद गरीब' की श्रेणी में हैं। संगठन का अनुमान है कि अगले साल तक वैश्विक बेरोजगारी बढ़कर 20 करोड़ 50 लाख हो जाएगी। 2019 में यह संख्या 18 करोड़ 70 लाख थी।
आईएलओ की 164 पन्नों की "विश्व रोजगार और सामाजिक परिदृश्य: रूझान 2021" नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी से श्रम बाजार में पैदा संकट अभी खत्म नहीं हुआ है और श्रम बाजार में उपजे संकट के खत्म होने के आसार फिलहाल नहीं हैं। नुकसान की भरपाई के लिए रोजगार वृद्धि कम से कम 2023 तक नाकाफी होगी।
नौकरियों के बड़े पैमाने पर नुकसान का महिलाओं, युवाओं और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वालों के साथ वैश्विक असमानता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के लिए 2020 में रोजगार के अवसरों में पांच फीसदी की गिरावट आई, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा करीब चार फीसदी रहा। रिपोर्ट में दावा किया गया कि, "कामकाजी गरीबी उन्मूलन की दिशा में पांच साल की प्रगति बेकार चली गई।"
संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी ने अनुमान लगाया कि अगर दुनिया में महामारी नहीं आती तो करीब तीन करोड़ नई नौकरी पैदा हो सकती थी, लेकिन महामारी के कारण कई छोटे व्यवसाय दिवालिया हो गए हैं या गंभीर कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक रोजगार और काम के घंटे कम होने से बेरोजगारी का संकट और गहरा हो जाएगा।
यूएन एजेंसी के महानिदेशक गाए रायडर ने महामारी के रोजगार पर असर के बारे में बताया कि इसकी भरपाई करना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा, "मौजूदा गति से, जब इसमें सुधार होना शुरू होता है, तो सबसे बड़ा जोखिम यह है कि हमारी काम की दुनिया और अधिक असमान हो सकती है, क्योंकि हमारे पास मजबूत आय और उच्च आय वाले देश हैं। वहां अत्यधिक कुशल कर्मचारियों के लिए काफी संभावनाएं दिखती हैं लेकिन इसके उलट दूसरे किनारे पर जो लोग हैं उनके लिए यह स्थिति नहीं दिखती।