धनबाद के पूर्व सांसद और मार्क्सवादी चिंतक कॉमरेड एके राय नहीं रहे

Written by sabrang india | Published on: July 22, 2019
झारखंड के बड़े नेता मार्क्सवादी चिंतक और धनबाद के पूर्व सांसद एके राय नहीं रहे। रविवार सुबह 11.15 बजे सेंट्रल अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 13 दिन से सेंट्रल अस्पताल में भर्ती थे। उन्होंने बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन के साथ काम किया। झारखंड अगल राज्य आंदोलन में सक्रिय रहे। झामुमो के संस्थापकों में भी राय दा शामिल थे। शिबू सोरेन से अलग होने के बाद उन्होंने मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई।

एके राय का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के राजशाही जिला अंतर्गत सपुरा गांव में 15 जून 1935 में हुआ था। वह केमिकल इंजीनियर बनकर धनबाद आए थे। बाद में कोयला मजदूरों की पीड़ा और शोषण से व्यथित होकर आंदोलनकारी बन गए। देखते-देखते केमिकल इंजीनियर ने लाल झंडा थाम लिया और आंदोलन करने लगे। 

इंजीनियर का पेशा छोड़ सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय हो गए। वह तीन बार धनबाद के सांसद और तीन बार सिंदरी विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। जेपी आंदोलन में भी हिस्सा लिया। मार्क्सवाद और मजदूर आंदोलन पर इनके लेख विदेशों में भी प्रकाशित हुए। एके राय की प्रमुख पुस्तकों में हिंदी में योजना और क्रांति, झारखंड और लालखंड, अंग्रेजी में बिरसा से लेनिन और नई दलित क्रांति के अलावा पत्र पत्रिकाओं में सामयिक आलेख भी प्रकाशित होते रहे। उनका लेखन झारखंड आंदोलन और राजनीति पर फोकस रहा।

सन् 2017 में जनवादी लेखक संघ का धनबाद में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था। उस सम्मेलन में महाराष्ट्र से हृदयेश मयंक जी के  नेतृत्व में लगभग दस-बारह हिन्दी- उर्दू के लेखक शामिल हुए थे। सम्मेलन का उद्घाटन  वायर के संपादक ने किया था। प्रमुख वक्तव्य मराठी के मूर्धन्य विचारक राव साहब कसबे ने दिया था। सुयोग से चिंतन दिशा का उसी सप्ताह नया अंक आया था। वहां चिंतन दिशा की लगभग सौ प्रति सम्मेलन में बांटी गईं। 

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