छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार के नए-नए तरीके निकाले गए हैं जिनके बारे में जानकर लोग हैरत में पड़ गए हैं। एक ऐसा ही फर्जी संस्था और फर्जी वेतन के मामले की जांच के आदेश हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को दिए हैं जिसमें लाखों रुपए फर्जी संस्था के कर्मचारियों के वेतन के नाम पर निकाले गए हैं।

इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिस पर सुनवाई करते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को जांच करने और खुद उपस्थित होकर हलफनामा पेश करने का आदेश दिया है। इस मामले में कई बड़े अधिकारियों के फंसने की आशंका है।
मामले का खुलासा तब हुआ जब रायपुर के राज्य स्वावलंबन केंद्र, मठपुरैना में संविदा सहायक ग्रेड 3 के पद पर काम कर रहे कुंदन सिंह ठाकुर ने खाली पद पर उसे नियमित करने के लिए आवेदन दिया। आवेदन के जवाब में सरकार ने उससे कहा कि वह तो पहले से ही राज्य नि:शक्तजन शोध संस्थान
में सहायक ग्रेड 2 के पद पर नियमित कर्मचारी के रूप में काम कर रहा है और उसे हर माह वेतन भी दिया जा रहा है।
हैरान परेशान कुंदन सिंह ने पूरे मामले की जानकारी पता की तो मालूम चला कि राज्य नि:शक्तजन शोध संस्थान नाम की कोई संस्था है ही नहीं। ये संस्थान केवल कागज़ों पर है, और उसके कर्मचारियों के नाम पर हर माह लाखों रुपए का वेतन निकाला जा रहा है।
नईदुनिया में छपी खबर के अनुसार, प्रदेश के स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात कर्मचारियों को ही इस संस्थान का कर्मचारी बताकर उनके नाम पर वेतन घोटाला किया जा रहा है। बताया जाता है कि करीब 16 ऐसे ही फर्जी कर्मचारी इस संस्थान में बताए गए हैं। इससे कई वरिष्ठ आईएएस अफसर जुड़े हैं। इसमें आइएएस विवेक ढाढ, बीएल अग्रवाल, डॉ आलोक शुक्ला और कई अन्य अफसरों के नाम शामिल हैं। संस्थान का काम दिव्यांगों के लिए कृत्रिम अंग बनाना बताया जाता है।
हाईकोर्ट ने कुंदन सिंह ठाकुर ने जो याचिका दायर की, उसमें संस्थान के कई घोटालों के सबूत दिए गए हैं। कागज़ों में मौजूद इस संस्थान में 50 लाख रुपए की एक मशीन की खरीदी भी हुई है और उसके खराब होने पर उसकी मरम्मत का खर्चा 80 लाख रुपए आया बताया गया है।
इस फर्जी संस्थान में जिन सरकारी कर्मचारियों को काम करता बताया गया है, वे वास्तव में कहां और किस विभाग में तैनात हैं, इसकी पूरी सूची याचिकाकर्ता ने पेश की है। इसके बाद हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से 4 सप्ताह के अंदर जवाब देने को कहा है।

इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिस पर सुनवाई करते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को जांच करने और खुद उपस्थित होकर हलफनामा पेश करने का आदेश दिया है। इस मामले में कई बड़े अधिकारियों के फंसने की आशंका है।
मामले का खुलासा तब हुआ जब रायपुर के राज्य स्वावलंबन केंद्र, मठपुरैना में संविदा सहायक ग्रेड 3 के पद पर काम कर रहे कुंदन सिंह ठाकुर ने खाली पद पर उसे नियमित करने के लिए आवेदन दिया। आवेदन के जवाब में सरकार ने उससे कहा कि वह तो पहले से ही राज्य नि:शक्तजन शोध संस्थान
में सहायक ग्रेड 2 के पद पर नियमित कर्मचारी के रूप में काम कर रहा है और उसे हर माह वेतन भी दिया जा रहा है।
हैरान परेशान कुंदन सिंह ने पूरे मामले की जानकारी पता की तो मालूम चला कि राज्य नि:शक्तजन शोध संस्थान नाम की कोई संस्था है ही नहीं। ये संस्थान केवल कागज़ों पर है, और उसके कर्मचारियों के नाम पर हर माह लाखों रुपए का वेतन निकाला जा रहा है।
नईदुनिया में छपी खबर के अनुसार, प्रदेश के स्वास्थ्य केंद्रों में तैनात कर्मचारियों को ही इस संस्थान का कर्मचारी बताकर उनके नाम पर वेतन घोटाला किया जा रहा है। बताया जाता है कि करीब 16 ऐसे ही फर्जी कर्मचारी इस संस्थान में बताए गए हैं। इससे कई वरिष्ठ आईएएस अफसर जुड़े हैं। इसमें आइएएस विवेक ढाढ, बीएल अग्रवाल, डॉ आलोक शुक्ला और कई अन्य अफसरों के नाम शामिल हैं। संस्थान का काम दिव्यांगों के लिए कृत्रिम अंग बनाना बताया जाता है।
हाईकोर्ट ने कुंदन सिंह ठाकुर ने जो याचिका दायर की, उसमें संस्थान के कई घोटालों के सबूत दिए गए हैं। कागज़ों में मौजूद इस संस्थान में 50 लाख रुपए की एक मशीन की खरीदी भी हुई है और उसके खराब होने पर उसकी मरम्मत का खर्चा 80 लाख रुपए आया बताया गया है।
इस फर्जी संस्थान में जिन सरकारी कर्मचारियों को काम करता बताया गया है, वे वास्तव में कहां और किस विभाग में तैनात हैं, इसकी पूरी सूची याचिकाकर्ता ने पेश की है। इसके बाद हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से 4 सप्ताह के अंदर जवाब देने को कहा है।