दिल्ली में विरोध के शाहीन (बाज़) बाग ने ऐसी परवाज़ की, इलाहाबाद में "रोशन बाग" हो गया। दिल्ली का 'खुरेजी" हो गया। यानी शाहीन बाग के बाद रोशन बाग, और खुरेजी में भी महिलाएं धरने पर।
तीनों जगह महिलाएं सड़क पर आ बैठी हैं, जिनकी ज़िद है सरकार हमारी सुने। ऐसी हठधर्मी मैंने आज़ादी के किस्सों में पढ़ी थी। जहां अंग्रेज़ सुनते नहीं थे। जलियांवाला बाग में मीटिंग करते। अब फिर जगह जगह बाग में क्रांति की मशाल जलाए बैठे हैं, मगर इस बार औरतों ने बागडोर संभाल रखी है। बाकी जगह लोग विरोध के रास्ते खोज रहे हैं कि जैसे ही इधर से कोई अंग्रेज़ अफसर गुजरेगा तो कैसे विरोध करेंगे।
जैसे वानखेड़े स्टेडियम में अलग अलग इंग्लिश लेटर की टीशर्ट पहनकर 25 स्टूडेंट्स पहुंच गए। साथ बैठे तो नो एनआरसी और सीएए, एनपीआर का मैसेज दे दिया। भारत और ऑस्ट्रेलिया का वन डे मैच था। स्टूडेंट्स ने तरकीब भिड़ाई। अपनी शर्ट और टीशर्ट के अंदर एक और व्हाइट टीशर्ट पहनी। जिसपर इंग्लिश के लेटर लिखे थे। ऐसा इसलिए किया ताकि कोई उनको गेट पर ना रोक ले । स्टेडियम में जब जाकर बैठे तो अपनी ऊपर की शर्ट उतार दी। और सामने नज़र आया विरोध प्रदर्शन। उनकी टीशर्ट पर लिखा था नो एनआरसी, नो सी एए और नो एनपीआर।
ऐसे जब गृह मंत्री लाजपत नगर से गुज़रे तो बेडशीट पर एक लड़की राजप्पा ने लिपिस्टक से नो एनआरसी और सीएए लिखकर विरोध का परचम बालकनी से लहरा दिया।
धारा 144 लगा दी गई तो आईआईएम बैंगलोर के स्टूडेंट्स ने विरोध का तरीका खोज लिया। एक एक करके स्टूडेंट्स बाहर आते गए और अपने जूते उतार गए। साथ में सीएए के खिलाफ खाली पोस्टर रखकर अंदर चले गए। पुलिस भी रोक नहीं पाई।
बीएचयू के 101वें दीक्षांत में हिस्ट्री ऑफ आर्ट्स के छात्र रजत सिंह ने CAA मामले में बनारस में हुई गिरफ्तारियों के विरोध में अपनी डिग्री लेने से मना कर दिया।
पुडुचेरी यूनिर्वसिटी के दीक्षांत में रबीहा अब्दुर्रहीम ने गोल्ड मेडल लेने से इनकार कर दिया। सिर्फ इसलिए ताकि वो बता सकें सिर्फ अनपढ़ लोग सी एए और एनआरसी का विरोध नहीं कर रहे हैं। बल्कि गोल्ड मेडलिस्ट भी इस प्रोटेस्ट में शामिल हैं।
जादवपुर यूनिवर्सिटी में देबस्मिता चौधरी ने काग़ज़ नहीं दिखाएंगे कहते हुए नागरिकता कानून की कॉपी स्टेज पर फाड़ दी। और नारा लगाया "इन्कलाब ज़िंदाबाद।"
अब देश भर में शाहीन बाग बनते जा रहे हैं। आप अगर अब शाहीन बाग के प्रोटेस्ट को जबरन खतम कराते हो तो बाकी और जगह बाग बन जाएंगे। विरोध की ये हवा चल पड़ी है। आप इन लोगों की आवाज़ सुनने के बजाए कुचल रहे हैं। जबकि लोकतंत्र का सही मायने में मतलब है कि किसी की आवाज़ दबाई ना जा सके। सुना जाए। इस आंदोलन का भले आज तुम्हें असर ना दिखे। मगर ये आंदोलन देखना रंग ज़रूर लाएगा। याद रखा जाएगा, इतिहास में दोहराया जाएगा कि कैसे अनदेखा किया गया। पुलिस केस हुए। लोग मारे गए। जेलों में ठूंस दिए गए। मगर हौसले बरकरार हैं। खौफ निकलता जा रहा है। और मजबूती से लोग बाहर आ रहे हैं।
तीनों जगह महिलाएं सड़क पर आ बैठी हैं, जिनकी ज़िद है सरकार हमारी सुने। ऐसी हठधर्मी मैंने आज़ादी के किस्सों में पढ़ी थी। जहां अंग्रेज़ सुनते नहीं थे। जलियांवाला बाग में मीटिंग करते। अब फिर जगह जगह बाग में क्रांति की मशाल जलाए बैठे हैं, मगर इस बार औरतों ने बागडोर संभाल रखी है। बाकी जगह लोग विरोध के रास्ते खोज रहे हैं कि जैसे ही इधर से कोई अंग्रेज़ अफसर गुजरेगा तो कैसे विरोध करेंगे।
जैसे वानखेड़े स्टेडियम में अलग अलग इंग्लिश लेटर की टीशर्ट पहनकर 25 स्टूडेंट्स पहुंच गए। साथ बैठे तो नो एनआरसी और सीएए, एनपीआर का मैसेज दे दिया। भारत और ऑस्ट्रेलिया का वन डे मैच था। स्टूडेंट्स ने तरकीब भिड़ाई। अपनी शर्ट और टीशर्ट के अंदर एक और व्हाइट टीशर्ट पहनी। जिसपर इंग्लिश के लेटर लिखे थे। ऐसा इसलिए किया ताकि कोई उनको गेट पर ना रोक ले । स्टेडियम में जब जाकर बैठे तो अपनी ऊपर की शर्ट उतार दी। और सामने नज़र आया विरोध प्रदर्शन। उनकी टीशर्ट पर लिखा था नो एनआरसी, नो सी एए और नो एनपीआर।
ऐसे जब गृह मंत्री लाजपत नगर से गुज़रे तो बेडशीट पर एक लड़की राजप्पा ने लिपिस्टक से नो एनआरसी और सीएए लिखकर विरोध का परचम बालकनी से लहरा दिया।
धारा 144 लगा दी गई तो आईआईएम बैंगलोर के स्टूडेंट्स ने विरोध का तरीका खोज लिया। एक एक करके स्टूडेंट्स बाहर आते गए और अपने जूते उतार गए। साथ में सीएए के खिलाफ खाली पोस्टर रखकर अंदर चले गए। पुलिस भी रोक नहीं पाई।
बीएचयू के 101वें दीक्षांत में हिस्ट्री ऑफ आर्ट्स के छात्र रजत सिंह ने CAA मामले में बनारस में हुई गिरफ्तारियों के विरोध में अपनी डिग्री लेने से मना कर दिया।
पुडुचेरी यूनिर्वसिटी के दीक्षांत में रबीहा अब्दुर्रहीम ने गोल्ड मेडल लेने से इनकार कर दिया। सिर्फ इसलिए ताकि वो बता सकें सिर्फ अनपढ़ लोग सी एए और एनआरसी का विरोध नहीं कर रहे हैं। बल्कि गोल्ड मेडलिस्ट भी इस प्रोटेस्ट में शामिल हैं।
जादवपुर यूनिवर्सिटी में देबस्मिता चौधरी ने काग़ज़ नहीं दिखाएंगे कहते हुए नागरिकता कानून की कॉपी स्टेज पर फाड़ दी। और नारा लगाया "इन्कलाब ज़िंदाबाद।"
अब देश भर में शाहीन बाग बनते जा रहे हैं। आप अगर अब शाहीन बाग के प्रोटेस्ट को जबरन खतम कराते हो तो बाकी और जगह बाग बन जाएंगे। विरोध की ये हवा चल पड़ी है। आप इन लोगों की आवाज़ सुनने के बजाए कुचल रहे हैं। जबकि लोकतंत्र का सही मायने में मतलब है कि किसी की आवाज़ दबाई ना जा सके। सुना जाए। इस आंदोलन का भले आज तुम्हें असर ना दिखे। मगर ये आंदोलन देखना रंग ज़रूर लाएगा। याद रखा जाएगा, इतिहास में दोहराया जाएगा कि कैसे अनदेखा किया गया। पुलिस केस हुए। लोग मारे गए। जेलों में ठूंस दिए गए। मगर हौसले बरकरार हैं। खौफ निकलता जा रहा है। और मजबूती से लोग बाहर आ रहे हैं।