क्या बनारस में 1992 अयोध्या कांड दोहराने की तैयारी में है भाजपा?

Written by अजय सिंह | Published on: December 4, 2018
उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख शहर बनारस (या वाराणसी) में काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद के आसपास के इलाक़े के मकानों, मंदिरों व मठों को तोड़ने, ढहाने और ध्वस्त करने का काम ज़ोर-शोर से अप्रैल 2018 से चल रहा है। एक सौ से ज़्यादा ऐसी इमारतों को गिराने/तोड़ने की योजना है, और नवंबर 2018 के दूसरे हफ़्ते तक 55 इमारतें गिरायी जा चुकी हैं।

यह काम राज्य की भारतीय जनता पार्टी सरकार और इसके मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के आदेश पर हो रहा है। इसका मक़सद है, काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के आसपास के इलाक़े को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लेना। इसे ‘सुंदरीकरण और आधुनिकीकरण’ का नाम दिया गया है। सरकारी तौर पर कहा गया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद तक पहुंचने के मौजूदा तंग रास्ते को चौड़ा करने, लोगों की आवाजाही को आसान व सुविधाजनक बनाने, इलाक़े को सुंदर बनाने और गंगा के घाट से मंदिर तक जाने के रास्ते को सुगम बनाने के इरादे से यह काम किया जा रहा है।

लेकिन जब मामला ज्ञानवापी मस्जिद का हो, जो हिंदुत्व फ़ासीवादी ताक़तों का अगला निशाना है, तब यह चीज़ ज़्यादा गंभीर और चिंताजनक हो जाती है। घोषित इरादे के पीछे असली मंसूबे क्या हैं, यह पता चलने लगता है। ज्ञानवापी मस्जिद को घेर लेने के लिए उसके आसपास अच्छी-ख़ासी खुली जगह, चौड़ा गलियारा और खाली मैदान ज़रूरी है। इसीलिए आसपास की इमारतें व ढांचे गिराये-ढहाये जा रहे हैं। आदित्यनाथ सरकार की मौजूदा कार्रवाई को देखते हुए ज्ञानवापी मस्जिद की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता पैदा हो गयी है।

लोगों को याद होगा, 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराये जाने के ठीक पहले इसी तरह का काम किया गया था। अक्तूबर 1991 से दिसंबर 1992 के बीच बाबरी मस्जिद के आसपास की कई इमारतों को सरकार ने अधिगृहीत कर लिया था और उन्हें ढहा दिया था, ताकि बाबरी मस्जिद तक आरएसएस-भाजपा के कारसेवकों की पहुंच को आसान बनाया जा सके। इन ढहायी गयी इमारतों में कुछ मंदिर भी शामिल थे, जैसे सुमित्रा भवन और साक्षी गोपाल मंदिर। तब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे।

अब आदित्यनाथ के नेतृत्व में राज्य में फिर भाजपा की सरकार है। यह सरकार ज्ञानवापी मस्जिद के इर्दगिर्द की इमारतों व मंदिरों का अधिग्रहण कर उन्हें उसी तरह तोड़-ध्वस्त कर रही है, जैसे पिछली भाजपा सरकार ने बाबरी मस्जिद का ध्वंस करने के पहले अयोध्या में किया था। ताज्जुब की बात यह है कि बनारस में कई महीने से इतने बड़े पैमाने पर इमारतों, मंदिरों व मठों को तोड़ने-ढहाने का काम चल रहा है, लेकिन बनारस से बाहर के अख़बारों में इसकी ख़बर या चर्चा लगभग नहीं है। अंगरेज़ी पाक्षिक पत्रिका ‘फ़्रंटलाइन’ ने अपने 7 दिसंबर 2018 अंक की कवर स्टोरी बनारस को बनाया है, और वहां अयोध्या-1992 को दोहराने की जो तैयारी चल रही है, उसके बारे में विस्तार से बताया है। यह काम लखनऊ-दिल्ली के अख़बारों को करना चाहिए था।

(अजय सिंह वरिष्ठ कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। और आजकल लखनऊ में रहते हैं।)

साभार- जनचौक

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