आदिवासी आंदोलनकारी भगवती भील, प्रमिला व नाबालिगों की गिरफ़्तारी निंदनीय: PUCL

Written by sabrang india | Published on: September 19, 2023
पीयूसीएल राजस्थान मांग करता है कि बांसवाड़ा पुलिस प्रशासन इन्हें तुरंत रिहा करे


 
आदिवासी आरक्षण मंच की भगवती आदिवासी भील, प्रमिला, 3 नाबालिग आदिवासी किशोरों समेत 56 आदिवासीयों को दिनांक 8 सितंबर 2023 से बांसवाड़ा में गिरफ्तार किया गया है, जिसकी PUCL ने कड़े शब्दों में निंदा की है। इन गिरफ्तारियों को लेकर PUCL ने कहा कि हमारी सख्त नाराजगी है कि बांसवाड़ा पुलिस व प्रशासन ने थाना कलिंजरा में दुर्भावनापूर्ण FIR (नंबर : 183/ 2023, dated 09/09/2023 व FIR 184/ 2023, 10/09/2023) दर्ज की है। अखबारों के मुताबिक, स्थानीय पुलिस 200 से अधिक आदिवासियों को अपराध से जोड़ना चाह रही है।

PUCL द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है, आदिवासी आरक्षण मंच लोकतांत्रिक तरीकों से अपने संवैधनिक हक को लेकर आवाज़ उठा रहा था और उस पर यह दमनकारी कार्यवाही पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज राजस्थान के लिए अस्वीकार्य  है और उनकी रिहाई की तुरंत मांग करता है।
 
इसमें आगे कहा गया है, क्या धरना, पड़ाव के ज़रिए आरक्षण मांगना कोई गुनाह है। सभी समुदाय अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर  रहे हैं । तो फिर आदिवासियों द्वारा सम्मेलन करना अपराध की श्रेणी  में कैसे डाल दिया गया। हमे विशेष आपत्ति इस बात पर भी है की आदिवासी समाज में उभर रहे महिला नेतृत्व की आवाज़ दबाने की कोशिश की जा रही है। जनसंख्या के अनुपात में आदिवासी क्षेत्र में आरक्षण की मांग लगभग डेढ़ दशक पुरानी है। इस संदर्भ में इस दौरान आयी सभी सरकारों ने इस मांग के संदर्भ मे कोई सुनवाई नहीं की है और अगर कोई आश्वासान कभी दिया भी गया है तो उसकी पूर्ति नहीं की गई।
 
ऐसे में जब आदिवासी युवा इस मांग को लेकर अपनी आवाज बुलंद करते हैं तब सरकार महापड़ाव के लिए मांगी गई अनुमति को प्रशासन नकार देता है और अचानक धारा 144 लगा दी जाती है। जैसा कि सूत्रों से पता चलता है, यह प्रदर्शन भोयर घाटी, कलिंजरा, बांसवाड़ा में प्रस्तावित था जहां सार्वजनिक आवाजाही को यह प्रदर्शन किसी भी रूप से बाधित नहीं करने वाला था। ऐसे में अगले दिन होने वाले महापड़ाव में शामिल लोगों को उपद्रवी कहना पुलिस व सरकार की पूर्वग्रह ग्रसित मानसिकता का परिचय देता है।

हमें इस बात पर भी रोष है कि, सोशल मीडिया पर इन गिरफ्तारियों के संबंध में प्रस्तुत विडियो को देख कर पता चलता है कि इस दौरान कोई पुलिस महिला कर्मी नहीं थी | ऐसे मे 2 आदिवासी महिलाओं की गिरफ़्तारी उनके संवेधनिक अधिकारों का उल्लंघन है। इसी तरह से दूसरा सवाल उठता है कि नाबालिग किशोरों को अन्य पुरुषों के साथ बांसवाड़ा की जेल मे कैसे रखा जा सकता है।
 
इन परिस्थितियों मे पीयूसीएल राजस्थान मांग करता है कि :-

1.  सभी गिरफ्तार आदिवासियों को तुरंत रिहा किया जाए।

2.  गिरफ़्तारी के दौरान पुलिस द्वारा हुए संवैधनिक अधिकारों के उल्लंघन के संदर्भ में जांच बिठाई जाये।

3.  अपने अधिकारों की मांग के लिए धरना, प्रदर्शन, पड़ाव करना नागरिकों के संवैधनिक अधिकार हैं जिसके संदर्भ में प्रशासन में संवेदनशीलता लाने की जरूरत है अगर प्रशासन इन प्रदर्शनों की मांगी गई अनुमति को नकारता है तो उन्हे वाजिब कारण देने चाहिये वरना जनतंत्र की आवाज़ जिंदा नहीं रहेगी।

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