उत्तराखंड के चमोली में हुए हादसे में अभी लगभग 170 लोग लापता

Written by Sabrangindia Staff | Published on: February 8, 2021
नई दिल्ली। उत्तराखंड के जोशीमठ में रविवार सुबह करीब 10:30 बजे नंदादेवी ग्लेशियर के फटने की वजह से धौलीगंगा नदी में विकराल बाढ़ आ गई थी। इस हादसे में एक जलविद्युत परियोजना पर काम कर रहे करीब 170 श्रमिक लापता हैं। अभी तक 10 लोगों के मारे जाने की खबर है। ग्लेशियर फटने से मची तबाही से कई पॉवर प्रोजेक्ट पर भी असर पड़ा है। भारतीय सेनाओं समेत कई दल राहत कार्यों में जुटे हैं। बीती रात भी रेस्क्यू ऑपरेशन जारी रहा। वायुसेना से जुड़े सूत्रों ने बताया कि तपोवन विष्णुगाढ़ हाइड्रो पॉवर प्लांट पूरी तरह से तहस-नहस हो गया है।



एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, धौलीगंगा और ऋषिगंगा नदी पर बने डैम पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। यह क्षेत्र राजधानी देहरादून से करीब 280 किलोमीटर दूर है। तपोवन के पास मलारी घाटी की शुरुआत में बने दो पुल भी नष्ट हो चुके हैं। जोशीमठ और तपोवन के बीच मुख्य सड़क मार्ग पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। घाटी में निर्माण कार्य और स्थानीय लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। प्रशासन की ओर से बीती शाम लोगों को राहत सामग्री पहुंचाई गई।

हादसे के बाद चारों ओर मलबा ही मलबा दिखाई दे रहा है। NTPC अधिकारियों ने प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 520 मेगावॉट का तपोवन हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य जारी था। इसकी लागत 3000 करोड़ रुपये है। साइट पर काम कर रहे करीब 170 श्रमिक लापता हैं। उनकी तलाश में अभियान जारी है। NDRF, SDRF, ITBP, थलसेना, वायुसेना समेत कई बचाव दल राहत कार्यों में जुटे हैं। सुरंग में फंसे कई मजदूरों को बाहर निकाला जा चुका है।

प्रभावित क्षेत्र का जायजा लेकर लौटे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि बाढ़ के रास्ते मे आने वाले मकान बह गए। निचले हिस्सों में मानव बस्तियों को नुकसान पहुंचने की आशंका हैं। बचाव दलों ने लगभग 14 शव बरामद किए हैं। कई गांव खाली करा लिए गए हैं और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। उन्होंने मारे गए लोगों के परिवारों को 4 लाख रुपये का मुआवजा देने की भी घोषणा की, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से 2 लाख रुपये अतिरिक्त दिए जाएंगे, गंभीर रूप से घायल लोगों को 50-50 हजार रुपये दिए जाएंगे।

रविवार शाम तक यह मान लिया गया था कि निचले क्षेत्र सुरक्षित हैं और केंद्रीय जल आयेाग ने कहा कि समीप के गांवों को खतरा नहीं है लेकिन धौलीगंगा नदी का जलस्तर रविवार की रात एक बार फिर बढ़ गया। जलस्तर बढ़ जाने के चलते अधिकारियों को एक परियोजना क्षेत्र में जारी राहत एवं बचाव कार्य को कुछ समय के लिए रोकना पड़ा था।

रैनी के ग्रामीणों ने हाई कोर्ट को बताया था कि ऋषि गंगा जल विद्युत परियोजना आपदा का कारण बन सकती है
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि दो साल पहले, रैनी गाँव के निवासियों ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय को बताया था कि प्रस्तावित ऋषि गंगा जलविद्युत परियोजना एक आपदा का कारण बन सकती है। हाइडल प्रोजेक्ट उनके घरों से कुछ मीटर की दूरी पर था। इस सप्ताह के अंत में अचानक आई बाढ़ में वही बह गया। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण के मानदंडों के अनुसार, इस परियोजना का मलबा नदी में नहीं गिराया गया, जिससे क्षेत्र में पानी का जमाव हो गया। अब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि नदी से अलग हुए गांव को जोड़ने वाला एकमात्र पुल भी बह गया है। क्षेत्र के अन्य चार पुलों को भी नष्ट कर दिया।



एचटी के अनुसार, ग्रामीणों ने 2019 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी। गांव के अनुसूचित जनजाति के ग्रामीणों की ओर से कुंदन सिंह द्वारा जनहित याचिका दायर की गई थी। जनहित याचिका में आरोप लगाया गया कि वहां के इलाके में पत्थर से कुचलने और विस्फोट की गतिविधियों के कारण जंगली जानवरों को भागकर रैनी गांव में प्रवेश करना पड़ा। उन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने चमोली के जिला मजिस्ट्रेट और सदस्य सचिव राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ऋषि गंगा जलविद्युत परियोजना स्थल का निरीक्षण करने के लिए एक संयुक्त टीम गठित करने का निर्देश दिया था। वे ग्रामीणों द्वारा लगाए गए आरोपों पर रिपोर्ट करने के लिए थे और "पर्यावरण और स्थानीय लोगों पर प्रभाव के कारण विस्फोट और पत्थर तोड़ने की गतिविधि पर कोर्ट ने अगले आदेशों तक रोक लगा दी थी। 

चिपको आंदोलन के नायक के रूप में प्रतिष्ठित गौरा देवी, रैनी गाँव की निवासी हैं और उन्होंने मार्च 1973 में इस क्षेत्र में चिपको आंदोलन शुरू किया था।

ऋषिगंगा पनबिजली परियोजना (RGHEP) एक रन-ऑफ-रिवर पनबिजली परियोजना है, जो चमोली जिले में अलकनंदा नदी की एक सहायक नदी ऋषिगंगा नदी पर विकास के लिए प्रस्तावित है। परियोजना स्थल जोशीमठ से लगभग 27 किलोमीटर दूर, रैनी गाँव के करीब स्थित है। कई पर्यावरणविदों ने उत्तराखंड में बैक-टू-बैक बांधों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह गंगा नदी और स्थानीय पारिस्थितिकी को मार रहा है। नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व, संयुक्त राष्ट्र मान्यता प्राप्त विश्व धरोहर स्थल भी है।



टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, मई 2019 में जोशीमठ के एसडीएम को लिखे एक पत्र में, ग्रामीणों ने लिखा, "चूंकि नदी के बीच में स्टोन क्रेशर का काम सही चल रहा है, इसलिए हिरण, तेंदुए जैसे कई जंगली जानवर, काले भालू आदि हमारे गाँव में प्रवेश कर रहे हैं, जिससे वन्यजीवों के लिए खतरा बढ़ रहा है। नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के विश्व धरोहर स्थल होने के बावजूद, स्टोन क्रशर को 10 मीटर दूर भी स्थापित नहीं किया गया है।”

हालांकि नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व डीएफओ एनबी शर्मा ने अखबार को बताया कि, "जलविद्युत संयंत्र कोर जोन में नहीं है, लेकिन बफर जोन में है जहां कुछ गतिविधियों की अनुमति है।

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