उत्तर प्रदेश में कोरोना का प्रकोप फैलता जा रहा है। पूर्व में हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से 5 बड़े शहरों में जहां पर कोरोना संक्रमण ज़्यादा है वहां पर लॉकडाउन लगाने की बात कही थी लेकिन सरकार ने कोर्ट के आदेशों की खिलाफत कर लॉकडाउन लगाने से साफ इनकार कर दिया था और इस मुद्दे को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची थी। अब एक बार फिर से हाईकोर्ट ने लॉकडाउन लगाने का सुझाव दिया है।
हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से हाथ जोड़ते हुए, 2 हफ्ते का लॉकडाउन लगाने का अनुरोध किया है। हाईकोर्ट ने कहा कि लगातार संसाधनों की कमी हो रही है, ऐसे में लॉकडाउन लगाना जरूरी है। उधर, बुधवार को उप्र सरकार द्वारा पेश कार्ययोजना को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि सत्ता में बैठे लोग 'या तो मेरी चलेगी या किसी की नहीं', वाला रवैया छोड़ दें।
यूपी में कोरोना के बेकाबू हालात पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने योगी सरकार को ‘हाथ जोड़ कर’ सुझाव दिया कि यूपी के बड़े शहरों में 14 दिन का पूर्ण लॉकडाउन लगाया जाये। खास है कि उत्तर प्रदेश में पिछले 24 घंटों के भीतर 29 हजार 824 नये मामले सामने आये हैं। यूपी में कोरोना के बेकाबू हालात की वजह से मेडिकल इमरजेंसी आ गयी है। ऑक्सीजन की कमी, बेड की किल्लत और जरूरी दवाओं के अभाव में बीते कई दिनों से कई मरीजों की जान चली गयी।
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को जमकर फटकारा भी। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में स्थिति नियंत्रण से बाहर चली गयी है। डॉक्टरों की कमी है। ऑक्सीजन नहीं है, एल-1, एल-2 हॉस्पिटल नहीं हैं। कागजों पर सब कुछ अच्छा है लेकिन जमीन पर सुविधाओं की भारी किल्लत है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। कोरोना से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा ने आगे कहा कि हम आपसे (योगी सरकार से) हाथ जोड़कर अपने विवेक का इस्तेमाल करने का अनुरोध करते हैं।
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा ने कहा, 'मैं फिर से अनुरोध करता हूं, अगर हालात नियंत्रण में नहीं हैं, तो दो सप्ताह का लॉकडाउन लगाने में देर न करें। कृपया अपने नीति निर्माताओं को इसका सुझाव दें। हमें लगता है कि चीजें नियंत्रण के बाहर हो चुकी हैं। खास है कि हाई कोर्ट ने पिछले आदेश में लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, आगरा, कानपुर नगर और गोरखपुर में स्थिति सामान्य करने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने को कहा था। अदालत ने निर्देश दिया कि इन शहरों के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में दिन में 2 बार स्वास्थ्य संबंधी बुलेटिन जारी करने की प्रणाली लागू होनी चाहिए, ताकि लोग मरीजों की सेहत का हाल जान सकें और तीमारदार अस्पताल जाने से बच सकें।
उधर, बुधवार को कोरोना महामारी से निपटने के लिए राज्य सरकार द्वारा पेश कार्ययोजना को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई पर नई और लागू होने लायक योजना पेश करने के निर्देश दिए हैं। यही नहीं कोर्ट ने प्रदेश सरकार को 12 बिंदुओं पर कदम उठाने के लिए निर्देश दिए हैं, जिनसे महामारी की रोकथाम में मदद मिल सकती है। हाईकोर्ट ने ताजा सुनवाई में सरकार को कड़े शब्दों में फटकारा कि जो लोग सत्ता में हैं, वे 'मेरा कायदा मानो, वरना कोई कायदा नहीं', का रवैया छोड़ दें। यानी 'या तो मेरी चलेगी या किसी की नहीं', वाला रवैया छोड़ दें।
हाईकोर्ट ने कहा, प्रदेश सरकार बहुत देरी से विस्तृत योजना बनाकर लाई और इसके जरिये महामारी रोकने का दावा करती है। लेकिन, जन स्वास्थ्य को लेकर किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने कहा, उसे सरकार की नीयत पर शक नहीं है लेकिन योजना को एक्शन में बदलने की भी जरूरत है।
हाईकोर्ट ने अधिक प्रभावित 10 जिलों के जिला न्यायाधीशों से हाईकोर्ट ने आग्रह किया है कि वे सिविल जज या उससे ऊपर के अधिकारी को नामांकित करें। इनका काम हर जिले के अधिकारी के रूप में रजिस्ट्रार जनरल को हफ्ते के आखिर में रिपोर्ट देनी होगी, जिसमें वे बताएंगे कि हाईकोर्ट के आदेश की अनुपालन की स्थिति क्या है?
साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार ने अपने विवेक के अनुसार, संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए दो दिन का लॉकडाउन लगाया है। साथ ही कई अन्य पाबंदियां भी लागू की हैं। हालांकि, नए मामले देखते हुए यह निरर्थक ही लग रहा। ये उपाय नाकाफी प्रतीत हो रहे हैं। कहा- आजादी के सात दशक बाद जब बड़े-बड़े उद्योग लग चुके हैं, हम अपने नागरिकों को ऑक्सीजन तक मुहैया नहीं करा पा रहे। यह शर्म की बात है।
हाईकोर्ट ने कहा कि सभी प्रमुख जिलों के प्रमुख सरकारी अस्पताल दिन में दो बार स्वास्थ्य बुलेटिन जारी करें, जिसमें स्वास्थ्य पर अपडेट जानकारियां हों ताकि अस्पताल में भीड़ कम आए। अस्पताल बड़ी स्क्रीन पर मरीजों के ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल की जानकारी दे सकते हैं, इससे भी भीड़ कम होगी, संक्रमण रुकेगा। हर जिले के पोर्टल पर अस्पताल में खाली बेड की संख्या व भर्ती मरीजों की सूचना दें। अखबारों और जन सूचना माध्यमों का इस्तेमाल करें। सिर्फ निगेटिव एंटीजन रिपोर्ट पर मरीज को अस्पताल से बाहर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसे मरीजों को एक हफ्ते गैर कोविड वार्ड में शिफ्ट करें।
सरकारी अस्पतालों में उचित मात्रा में दवाएं, इंजेक्शन, खासतौर से रेमडेसिविर और ऑक्सीजन की सप्लाई निर्बाध जारी रहे। हर कीमत पर तय करना होगा कि किसी भी मरीज की जान ऑक्सीजन न मिलने की वजह से न जाए। संविदा पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भर्ती करें। जांच के सैंपल लेने, जांच करने, डाटा जमा करने में भी लोगों को काम पर लगाएं। इससे समय पर जांच रिपोर्ट दी जा सकेगी। दुर्भाग्य है, प्रमुख शहरों में भी अब तक 1% आबादी की जांच तक नहीं हो सकी है। एंबुलेंस की संख्या बढ़ाएं, जिनमें जीवन रक्षा के लिए आवश्यक उपकरण लगे होने चाहिए।
डॉक्टर, मेडिकल व पैरामेडिकल स्टाफ के प्रबंधन पर तत्काल ध्यान दें। वे दिन-रात काम कर रहे हैं, संक्रमित हो रहे हैं। कोशिश होनी चाहिए कि उन्हें हर 6 घंटे में बदला जाए ताकि आराम मिल सके। बड़े शहरों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हो चुकी हैं, इन्हें सुधारने पर काम शुरू करना होगा। इमारतें बनाने में वक्त लगता है, लेकिन मौजूदा इमारतों का अधिकतम उपयोग करें, अस्थायी वार्ड बनाएं, खुले कैंपस का भी इस्तेमाल हो सकता है। कहा सरकार सुनिश्चित करे कि कोविड अस्पतालों व वार्ड में हो रही हर मौत का आंकड़ा दर्ज किया जाए। ये जानकारी जिले में तैनात न्यायिक अधिकारी को दिन के खत्म होने पर दी जाए। सरकार का काम होगा कि डाटा जांचा हुआ हो।
कहा- पुलिस स्टेशन के प्रभारी अपने क्षेत्र के अंतिम संस्कार स्थलों पर गाइडलाइन के अनुसार काम सुनिश्चित करें। कोविड से मृत लोगों के शवों की संख्या दर्ज करेंगे, वे ही नगर निगम या परिषद को जानकारी देंगे। सरकार देखे, जिस अस्पताल में कोविड से मौत हुई है। शव को पैक करके पूरे प्रोटोकॉल से अंतिम क्रिया के लिए तय स्थल पर भेजा जाए। इसके लिए नगर निगम, परिषद, पालिका अफसरों की तैनाती हो। कोविड अस्पताल में दिन में चार बार खाना, साफ पानी व सफाई के इंतजाम हों। कोविड अस्पतालों में उचित मात्रा में चिकित्सा उपकरण मुहैया करवाएं।
हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से हाथ जोड़ते हुए, 2 हफ्ते का लॉकडाउन लगाने का अनुरोध किया है। हाईकोर्ट ने कहा कि लगातार संसाधनों की कमी हो रही है, ऐसे में लॉकडाउन लगाना जरूरी है। उधर, बुधवार को उप्र सरकार द्वारा पेश कार्ययोजना को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि सत्ता में बैठे लोग 'या तो मेरी चलेगी या किसी की नहीं', वाला रवैया छोड़ दें।
यूपी में कोरोना के बेकाबू हालात पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने योगी सरकार को ‘हाथ जोड़ कर’ सुझाव दिया कि यूपी के बड़े शहरों में 14 दिन का पूर्ण लॉकडाउन लगाया जाये। खास है कि उत्तर प्रदेश में पिछले 24 घंटों के भीतर 29 हजार 824 नये मामले सामने आये हैं। यूपी में कोरोना के बेकाबू हालात की वजह से मेडिकल इमरजेंसी आ गयी है। ऑक्सीजन की कमी, बेड की किल्लत और जरूरी दवाओं के अभाव में बीते कई दिनों से कई मरीजों की जान चली गयी।
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को जमकर फटकारा भी। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में स्थिति नियंत्रण से बाहर चली गयी है। डॉक्टरों की कमी है। ऑक्सीजन नहीं है, एल-1, एल-2 हॉस्पिटल नहीं हैं। कागजों पर सब कुछ अच्छा है लेकिन जमीन पर सुविधाओं की भारी किल्लत है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। कोरोना से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा ने आगे कहा कि हम आपसे (योगी सरकार से) हाथ जोड़कर अपने विवेक का इस्तेमाल करने का अनुरोध करते हैं।
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा ने कहा, 'मैं फिर से अनुरोध करता हूं, अगर हालात नियंत्रण में नहीं हैं, तो दो सप्ताह का लॉकडाउन लगाने में देर न करें। कृपया अपने नीति निर्माताओं को इसका सुझाव दें। हमें लगता है कि चीजें नियंत्रण के बाहर हो चुकी हैं। खास है कि हाई कोर्ट ने पिछले आदेश में लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, आगरा, कानपुर नगर और गोरखपुर में स्थिति सामान्य करने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने को कहा था। अदालत ने निर्देश दिया कि इन शहरों के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में दिन में 2 बार स्वास्थ्य संबंधी बुलेटिन जारी करने की प्रणाली लागू होनी चाहिए, ताकि लोग मरीजों की सेहत का हाल जान सकें और तीमारदार अस्पताल जाने से बच सकें।
उधर, बुधवार को कोरोना महामारी से निपटने के लिए राज्य सरकार द्वारा पेश कार्ययोजना को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई पर नई और लागू होने लायक योजना पेश करने के निर्देश दिए हैं। यही नहीं कोर्ट ने प्रदेश सरकार को 12 बिंदुओं पर कदम उठाने के लिए निर्देश दिए हैं, जिनसे महामारी की रोकथाम में मदद मिल सकती है। हाईकोर्ट ने ताजा सुनवाई में सरकार को कड़े शब्दों में फटकारा कि जो लोग सत्ता में हैं, वे 'मेरा कायदा मानो, वरना कोई कायदा नहीं', का रवैया छोड़ दें। यानी 'या तो मेरी चलेगी या किसी की नहीं', वाला रवैया छोड़ दें।
हाईकोर्ट ने कहा, प्रदेश सरकार बहुत देरी से विस्तृत योजना बनाकर लाई और इसके जरिये महामारी रोकने का दावा करती है। लेकिन, जन स्वास्थ्य को लेकर किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने कहा, उसे सरकार की नीयत पर शक नहीं है लेकिन योजना को एक्शन में बदलने की भी जरूरत है।
हाईकोर्ट ने अधिक प्रभावित 10 जिलों के जिला न्यायाधीशों से हाईकोर्ट ने आग्रह किया है कि वे सिविल जज या उससे ऊपर के अधिकारी को नामांकित करें। इनका काम हर जिले के अधिकारी के रूप में रजिस्ट्रार जनरल को हफ्ते के आखिर में रिपोर्ट देनी होगी, जिसमें वे बताएंगे कि हाईकोर्ट के आदेश की अनुपालन की स्थिति क्या है?
साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार ने अपने विवेक के अनुसार, संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए दो दिन का लॉकडाउन लगाया है। साथ ही कई अन्य पाबंदियां भी लागू की हैं। हालांकि, नए मामले देखते हुए यह निरर्थक ही लग रहा। ये उपाय नाकाफी प्रतीत हो रहे हैं। कहा- आजादी के सात दशक बाद जब बड़े-बड़े उद्योग लग चुके हैं, हम अपने नागरिकों को ऑक्सीजन तक मुहैया नहीं करा पा रहे। यह शर्म की बात है।
हाईकोर्ट ने कहा कि सभी प्रमुख जिलों के प्रमुख सरकारी अस्पताल दिन में दो बार स्वास्थ्य बुलेटिन जारी करें, जिसमें स्वास्थ्य पर अपडेट जानकारियां हों ताकि अस्पताल में भीड़ कम आए। अस्पताल बड़ी स्क्रीन पर मरीजों के ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल की जानकारी दे सकते हैं, इससे भी भीड़ कम होगी, संक्रमण रुकेगा। हर जिले के पोर्टल पर अस्पताल में खाली बेड की संख्या व भर्ती मरीजों की सूचना दें। अखबारों और जन सूचना माध्यमों का इस्तेमाल करें। सिर्फ निगेटिव एंटीजन रिपोर्ट पर मरीज को अस्पताल से बाहर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसे मरीजों को एक हफ्ते गैर कोविड वार्ड में शिफ्ट करें।
सरकारी अस्पतालों में उचित मात्रा में दवाएं, इंजेक्शन, खासतौर से रेमडेसिविर और ऑक्सीजन की सप्लाई निर्बाध जारी रहे। हर कीमत पर तय करना होगा कि किसी भी मरीज की जान ऑक्सीजन न मिलने की वजह से न जाए। संविदा पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भर्ती करें। जांच के सैंपल लेने, जांच करने, डाटा जमा करने में भी लोगों को काम पर लगाएं। इससे समय पर जांच रिपोर्ट दी जा सकेगी। दुर्भाग्य है, प्रमुख शहरों में भी अब तक 1% आबादी की जांच तक नहीं हो सकी है। एंबुलेंस की संख्या बढ़ाएं, जिनमें जीवन रक्षा के लिए आवश्यक उपकरण लगे होने चाहिए।
डॉक्टर, मेडिकल व पैरामेडिकल स्टाफ के प्रबंधन पर तत्काल ध्यान दें। वे दिन-रात काम कर रहे हैं, संक्रमित हो रहे हैं। कोशिश होनी चाहिए कि उन्हें हर 6 घंटे में बदला जाए ताकि आराम मिल सके। बड़े शहरों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हो चुकी हैं, इन्हें सुधारने पर काम शुरू करना होगा। इमारतें बनाने में वक्त लगता है, लेकिन मौजूदा इमारतों का अधिकतम उपयोग करें, अस्थायी वार्ड बनाएं, खुले कैंपस का भी इस्तेमाल हो सकता है। कहा सरकार सुनिश्चित करे कि कोविड अस्पतालों व वार्ड में हो रही हर मौत का आंकड़ा दर्ज किया जाए। ये जानकारी जिले में तैनात न्यायिक अधिकारी को दिन के खत्म होने पर दी जाए। सरकार का काम होगा कि डाटा जांचा हुआ हो।
कहा- पुलिस स्टेशन के प्रभारी अपने क्षेत्र के अंतिम संस्कार स्थलों पर गाइडलाइन के अनुसार काम सुनिश्चित करें। कोविड से मृत लोगों के शवों की संख्या दर्ज करेंगे, वे ही नगर निगम या परिषद को जानकारी देंगे। सरकार देखे, जिस अस्पताल में कोविड से मौत हुई है। शव को पैक करके पूरे प्रोटोकॉल से अंतिम क्रिया के लिए तय स्थल पर भेजा जाए। इसके लिए नगर निगम, परिषद, पालिका अफसरों की तैनाती हो। कोविड अस्पताल में दिन में चार बार खाना, साफ पानी व सफाई के इंतजाम हों। कोविड अस्पतालों में उचित मात्रा में चिकित्सा उपकरण मुहैया करवाएं।