दिल दहला देने वाले उभा नरसंहार काण्ड़ के बारे में आप जानते हैं। हम आपसे कहना चाहते हैं कि इसे महज कानून व्यवस्था का मामला न बनाइये। दरअसल यह घटना प्रदेश में भूमि सम्बंधों में बड़े बदलाव की मांग करती है। विपक्ष को जमीन के सवाल को हल करने के बारे में अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। भूमि आयोग का गठन व भूमि सुधार प्रदेश के लिए बेहद जरूरी है। आप जानते ही हैं कि प्रदेश में जमीन के सवाल के हल के लिए मंगलदेव विशारद आयोग से लेकर तमाम कमेटियों की संस्तुतियां पड़ी हुई हैं। इधर के वषों में भूमि के अधिग्रहण का मुद्दा बड़े आंदोलन का विषय प्रदेश में रहा है। भूमि सुधार प्रदेश में कृषि विकास, रोजगार और सामाजिक न्याय की आधारशीला है। ‘जो जमीन को जोते बोए सो जमीन का मालिक होए‘ का नारा केवल कम्युनिस्टों का ही नहीं, सोशलिस्टों का भी रहा है और डा. अम्बेडकर ने भी भूमि के राष्ट्रीयकरण की जोरदार वकालत की थी।
लेकिन यह दुखद है कि सपा और बसपा की सरकारों ने भूमि सुधार तो लागू नहीं ही किया, मनमाने ढ़ंग से किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया और लम्बे समय से बने वनाधिकार कानून को प्रदेश में ईमानदारी से लागू होने नहीं दिया। पूरे प्रदेश में वनाधिकार कानून के तहत जमा 92433 दावों में से 73416 दावें जिनमें से अकेले सोनभद्र में 65526 में से 53506 दावे बिना किसी सुनवाई का अवसर दिए बसपा सरकार में गैरकानूनी तरीके से खारिज कर दिए गए। इस गैरकानूनी कार्यवाही के खिलाफ हाईकोर्ट द्वारा पुर्नसुनवाई के आदेश के बावजूद सपा सरकार में दावों पर विचार नहीं किया गया। अभी भी माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र जिले में प्रशासन वनाधिकार कानून के तहत पुश्तैनी बसे हुए आदिवासियों और वनाश्रितों को जमीन दिलाने और उसका पट्टा देने की जगह जमीनों से बेदखल कर रहा हैं और जिन जमीनों पर उनका कब्जा था उन्हें इस बार के सीजन में खेतीबाड़ी से भी रोका जा रहा है जबकि उनका दावा अभी निरस्त नहीं हुआ है और कानूनी तौर पर वे उन जमीनों के मालिक है।
इसलिए हम चाहेंगे कि प्रदेश में चल रहे विधानसभा सत्र में सपा, बसपा, कांग्रेस के लोग योगी सरकार को बाध्य करें कि वह वनाधिकार कानून को अक्षरशः लागू करे और जिन जमीनों पर आदिवासी व वनाश्रित बसे हुए है उन्हें पट्टा दें, गांव सभा की अतिरिक्त जमीन की घोषणा हो उन्हें खेतिहर मजदूरों और गरीब किसानों को बांटा जाए, जो जमीनें औद्योगिक विकास के लिए ली गई और भूमाफिया ने कब्जा कर रखा है उसे किसानों को वापस किया जाए, सभी फर्जी ट्रस्टों व मठों की जांच हो तथा उनके कब्जे में पड़ी जमीनों को सरकार अधिगृहित करें और गरीबों में बांटकर सहकारी खेती के लिए उन्हें सहयोग दे, उन्हें प्रोत्साहित करें। उभा गांव में तत्काल प्रभाव से फर्जी ट्रस्ट और उसके खरीद फरोख्त की न्यायिक जांच करायी जाए, इस जमीन को सरकार अधिगृहित करें और जो लोग उस पर बसे हुए हैं उन्हें उन जमीनों को पट्टा दें, मृतक परिवार के लोगों को वाजिब मुआवजा दें, पीडितों पर लगे गुण्ड़ा एक्ट के मुकदमें वापस लें।
अगर विपक्ष उभा काण्ड़ से सही सीख लेना चाहता है तो उसे यह मानना होगा कि प्रदेश में अभी भी जमीन का सवाल हल करना बाकी है और भूमि आयोग के गठन के लिए उसे सरकार पर दबाब डालना चाहिए ताकि भविष्य में उभा काण्ड़ जैसा काण्ड़ न हो, आदिवासियों, दलितों और गरीबों को नरसंहार से बचाया जा सके।
सधन्यवाद!
(अखिलेन्द्र प्रताप सिंह)
स्वराज अभियान।
लेकिन यह दुखद है कि सपा और बसपा की सरकारों ने भूमि सुधार तो लागू नहीं ही किया, मनमाने ढ़ंग से किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया और लम्बे समय से बने वनाधिकार कानून को प्रदेश में ईमानदारी से लागू होने नहीं दिया। पूरे प्रदेश में वनाधिकार कानून के तहत जमा 92433 दावों में से 73416 दावें जिनमें से अकेले सोनभद्र में 65526 में से 53506 दावे बिना किसी सुनवाई का अवसर दिए बसपा सरकार में गैरकानूनी तरीके से खारिज कर दिए गए। इस गैरकानूनी कार्यवाही के खिलाफ हाईकोर्ट द्वारा पुर्नसुनवाई के आदेश के बावजूद सपा सरकार में दावों पर विचार नहीं किया गया। अभी भी माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र जिले में प्रशासन वनाधिकार कानून के तहत पुश्तैनी बसे हुए आदिवासियों और वनाश्रितों को जमीन दिलाने और उसका पट्टा देने की जगह जमीनों से बेदखल कर रहा हैं और जिन जमीनों पर उनका कब्जा था उन्हें इस बार के सीजन में खेतीबाड़ी से भी रोका जा रहा है जबकि उनका दावा अभी निरस्त नहीं हुआ है और कानूनी तौर पर वे उन जमीनों के मालिक है।
इसलिए हम चाहेंगे कि प्रदेश में चल रहे विधानसभा सत्र में सपा, बसपा, कांग्रेस के लोग योगी सरकार को बाध्य करें कि वह वनाधिकार कानून को अक्षरशः लागू करे और जिन जमीनों पर आदिवासी व वनाश्रित बसे हुए है उन्हें पट्टा दें, गांव सभा की अतिरिक्त जमीन की घोषणा हो उन्हें खेतिहर मजदूरों और गरीब किसानों को बांटा जाए, जो जमीनें औद्योगिक विकास के लिए ली गई और भूमाफिया ने कब्जा कर रखा है उसे किसानों को वापस किया जाए, सभी फर्जी ट्रस्टों व मठों की जांच हो तथा उनके कब्जे में पड़ी जमीनों को सरकार अधिगृहित करें और गरीबों में बांटकर सहकारी खेती के लिए उन्हें सहयोग दे, उन्हें प्रोत्साहित करें। उभा गांव में तत्काल प्रभाव से फर्जी ट्रस्ट और उसके खरीद फरोख्त की न्यायिक जांच करायी जाए, इस जमीन को सरकार अधिगृहित करें और जो लोग उस पर बसे हुए हैं उन्हें उन जमीनों को पट्टा दें, मृतक परिवार के लोगों को वाजिब मुआवजा दें, पीडितों पर लगे गुण्ड़ा एक्ट के मुकदमें वापस लें।
अगर विपक्ष उभा काण्ड़ से सही सीख लेना चाहता है तो उसे यह मानना होगा कि प्रदेश में अभी भी जमीन का सवाल हल करना बाकी है और भूमि आयोग के गठन के लिए उसे सरकार पर दबाब डालना चाहिए ताकि भविष्य में उभा काण्ड़ जैसा काण्ड़ न हो, आदिवासियों, दलितों और गरीबों को नरसंहार से बचाया जा सके।
सधन्यवाद!
(अखिलेन्द्र प्रताप सिंह)
स्वराज अभियान।