राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के बेटे का विदेशों में काले धन का कारख़ाना- कैरवां की रिपोर्ट

Written by Ravish Kumar | Published on: January 16, 2019
डी-कंपनी का अभी तक दाऊद का गैंग ही होता था। भारत में एक और डी कंपनी आ गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और उनके बेटे विवेक और शौर्य के कारनामों को उजागर करने वाली कैरवां पत्रिका की रिपोर्ट में यही शीर्षक दिया गया है। साल दो साल पहले हिन्दी के चैनल दाऊद को भारत लाने के कई प्रोपेगैंडा प्रोग्राम करते थे। उसमें डोभाल को नायक की तरह पेश किया जाता था। किसने सोचा होगा कि 2019 की जनवरी में जज लोया की मौत पर 27 रिपोर्ट छापने वाली कैरवां पत्रिका डोवाल को डी-कंपनी का तमगा दे देगी।

कौशल श्रॉफ नाम के एक खोजी पत्रकार ने अमरीका, इंग्लैंड, सिंगापुर और केमैन आइलैंड से दस्तावेज़ जुटा कर डोभाल के बेटों की काले को सफेद करने और भारत के पैसे को बाहर भेजने के कारोबाद का खुलासा कर दिया है। इस गोरखधंधे को हेज फंड और ऑफशोर कंपनियां कहते हैं। नोटबंदी के ठीक 13 दिन बाद 21 नवंबर 2016 को टैक्स चौरी के गिरोहों के अड्डे केमैन आइलैंड में विवेक डोभाल अपनी कंपनी का पंजीकरण कराते हैं। कैरवां के एडिटर विनोद होज़े ने ट्वीट किया है कि नोटबंदी के बाद विदेशी निवेश के तौर पर सबसे अधिक पैसा भारत में केमैन आइलैंड से आया था। 2017 में केमैन आइलैंड से आने वाले निवेश में 2,226 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के बेटे विवेक डोवाल भारत के नागरिक नहीं हैं। वे इंग्लैंड के नागरिक हैं। सिंगापुर में रहते हैं। GNY ASIA Fund का निदेशक है। केमैन आइलैंड, टैक्स चोरों के गिरोह का अड्डा माना जाता है। कौशल श्रॉफ ने लिखा है कि विवेक डोवाल यहीं पर 'हेज फंड' का धंधा करते हैं। बीजेपी नेता और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के बेटे शौर्य और विवेद का बिजनेस एक दूसरे से जुड़ा हुआ है।

2011 में अजित डोभाल ने एक रिपोर्ट लिखी थी कि टैक्स चोरी के अड्डों पर कार्रवाई करनी चाहिए। और उनके ही बेटे की कंपनी का नाम हेज फंड और ऐसी जगहों पर कंपनी बनाकर कारोबार करने के मामले में सामने आता है। विवेक डोभाल की कंपनी के इसके निदेशक हैं डॉन डब्ल्यू इबैंक्स और मोहम्मद अलताफ मुस्लियाम। ईबैंक्स का नाम पैराडाइज़ पैपर्स में आ चुका है। ऐसी कई फर्ज़ी कंपनियों के लाखों दस्तावेज़ जब लीक हुए थे तो इंडियन एक्सप्रेस ने भारत में पैराडाइस पेपर्स के नाम से छापा था। उसके पहले इसी तरह फर्ज़ी कंपनियां बनाकर निवेश के नाम पर पैसे को इधर से उधर करने का गोरखधंधा पनामा पेपर्स के नाम से छपा था। पैराडाइस पेपर्स और पनामा पेपर्स दोनों में ही वाल्कर्स कोरपोरेट लिमिटेड का नाम है जो विवेक डोवाल की कंपनी की संरक्षक कंपनी है।

कैरवां ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि विवेक डोभाल की कंपनी में काम करने वाले कई अधिकारी शौर्य डोवाल की कंपनी में भी काम करते हैं। इसका मतलब यह हुआ है कि कोई बहुत बड़ा फाइनेंशियल नेटवर्क चल रहा है। इनकी कंपनी का नाता सऊदी अरब के शाही ख़ानदान की कंपनी से भी है। भारत की ग़रीब जनता को हिन्दू मुस्लिम परोस कर सऊदी मुसलमानों की मदद से धंधा हो रहा है। वाह मोदी जी वाह।

हिन्दी के अख़बार ऐसी रिपोर्ट सात जनम में नहीं कर सकते। उनके यहां संपादक चुनावी और जातीय समीकरण का विश्लेषण लिखने के लिए होते हैं। पत्रकारिता के हर छात्र को कैरवां की इस रिपोर्ट का विशेष अध्ययन करना चाहिए। देखना चाहिए कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और उनके बेटों का काला धन बनाने का कारखाना पकड़ने के लिए किन किन दस्तावेज़ों को जुटाया गया है। ऐसी ख़बरें किस सावधानी से लिखी जाती हैं। यह सब सीखने की बात है। हम जैसों के लिए भी। मैंने भी इस लेवल की एक भी रिपोर्ट नहीं की है।

पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए कैरवां को सब्सक्राइब करें। वेबसाइट पर ख़बरों का अनुवाद हिन्दी में होने लगा है। अपने रद्दी अखबारों को बंद कर ऐसी पत्रकारिता को सपोर्ट करें। अगली बार कोई हिन्दी का संपादक किसी चैनल के मीडिया कान्क्लेव में बड़बड़ा रहा होगा तो बस इतना पूछिएगा कि हिन्दी के पत्रकार ऐसी ख़बरें क्यों नहीं करते हैं? क्या संपादकों की औकात नहीं है ? हिन्दी के अख़बारों में ऐसी ख़बरें नहीं छपेंगी इसलिए आप कैरवां की इस रिपोर्ट को ख़ूब शेयर करें। लोगों तक पहुँचा दें। हम हिन्दी वाले कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह आर्टिकल रवीश कुमार की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है।)
 

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