आत्मनिर्भर भारत और बाज़ार निर्भर भारतीय अर्थव्यवस्था

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: January 12, 2021
आपदा को अवसर में बदलकर भारत को आत्मनिर्भर बनाने की होड़ में सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को कॉरपोरेट घरानों के हाथों में गिरवी रखने का काम कर रही है. महात्मा गाँधी ने कहा था कि “मनुष्य को जीवन में दूसरों पर भरोसा न कर आत्मनिर्भर और आत्म विश्वासी होना चाहिए”. महात्मा  गाँधी के देश और हमारे- आपके भारत में इन दिनों सरकार आत्म निर्भरता की मुहिम चला रही है. यह अलग बात है मुहिम चलाने वाली सरकार खुद और भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बाज़ार पर निर्भर बनाने पर तुली हुई है. 



सरकार देश की तमाम सरकारी व् सार्वजानिक संस्थाओं को कॉरपोरेट घरानों के हवाले करने की नीतियों को बनाने और उसे लागू करवाने के लिए ही प्रतिबद्ध है. हाल ही में केंद्र सरकार ने कॉरपोरेट घरानों को और अधिक व्यवसायिक लाभ पहुचाने के लिए बैंक खोलने की भी अनुमति देने का मन बना चुकी है. इस पर अर्थशास्त्री रधुराम राजन और विरल आचार्य ने आलोचनात्मक टिप्पणी भी की है. 

जहाँ तक आत्मनिर्भरता की बात है तो आत्म सहायता ही किसी भी मनुष्य का मूल उद्देश्य व् जीवन जीने का मूलमंत्र होनी चाहिए. मनुष्य समाज में रहता है और पारंपरिक रूप से समाज में सहायता और सहयोग का चलन रहा है. समाज में वस्तु विनिमय की प्रथा बहुत पुरानी है लेकिन यह गलत प्रमाणित तब हो जाता है जब विनिमय के नाम पर सिर्फ एक पक्ष के द्वारा लिया जाता हो बदले में कुछ दिया न जाता हो. ऐसे में यह लूट की शुरुआत कर शोषण के चरम तक पहुंच जाता है. आज कॉरपोरेट घरानों द्वारा सरकार की आड़ में जनता के साथ यही रवैया अपनाया जा रहा है. 

सरकार द्वारा कॉरपोरेट घरानों को अन्य बहुत सारी सुविधाएँ देने के बाद अब ख़ुद के बैंक को खोलने की अनुमति देना बिलकुल जन विरोधी क़दमों में से एक है. अनेक अर्थशास्त्रियों का मानना है कि, “सरकार के उस कनेक्शन को समझ पाना हमेशा मुश्किल होता है जब वे औद्योगिक घरानों का हिस्सा बन जाते हैं.” रघुराम राजन ने भी एक पोस्ट के जरिए सरकार की इस सिफारिश को ख़राब विचार बताया है. उन्होंने कहा कि “कॉरपोरेट घरानों को बैंक खोलने की अनुमति देने से कुछ ख़ास क़ारोबारी घरानों के हाथों में ज्यादा आर्थिक व् राजनीतिक ताकत आ जाएगी.”

भारत की जनता को लाल किले की प्राचीर से आत्मनिर्भर भारत का सपना दिखाने वाली मोदी सरकार ने दुनिया के सामने भारत को अवसरों का देश बताकर निवेश करने का न्योता दिया है. निर्माण से लेकर सेवा तक लगभग सभी क्षेत्रों में निवेश करने का आह्वाहन सरकार द्वारा किया गया है. भारत एक बड़ा बाजार है लेकिन विदेशी निवेश को देश के हर क्षेत्र में न्योता देकर सरकार ने देश की संप्रभुता को ताक़ पर रख दिया है. 

सवाल है कि क्या भारतीय सरकार इतनी सक्षम नहीं है कि अपने देश के प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों का उपयोग कर हर क्षेत्र में सरकारी निवेश कर सके? या फिर सरकार जान बुझ कर पूंजीपतियों के हाथों देश को गिरवी रखने की तैयारी में हैं. देशी या विदेशी कॉरपोरेट घराने मुनाफ़े के लिए निवेश करेंगे जिससे जनता को कम और पूंजीपति ज्यादा फायदे में रहेंगे.

भारत को आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था बनाने के नाम पर सरकार द्वारा कई नीतिगत सुधार किए गए हैं जो बेशक जन विरोधी हैं लेकिन पूंजीपतियों और निवेशकों का रास्ता आसान करते हैं. भारत के प्रधानमंत्री ने यूएस-इंडिया बिजनस काउंसिल की ओर से आयोजित 'इंडिया आइडियाज समिट' में संबोधन के दौरान अमेरिकी कंपनियों को भारत में टेक्नॉलजी, कृषि, ऊर्जा, इन्फ्रास्ट्रक्चर, सिविल एविएशन, रक्षा एवं अंतरिक्ष, वित्त एवं बीमा जैसे क्षेत्रों में निवेश का न्योता दिया था और कहा कि आज पूरा विश्व भारत की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत अपने यहां खुलेपन, अवसरों और विकल्पों के शानदार समन्वय को महत्व दे रहा है. उन्होंने इसे विस्तार से बताते हुए कहा कि भारत अपने लोगों और शासन में खुलेपन को बढ़ावा देता है. 

पीएम ने आत्मनिर्भर भारत अभियान का जिक्र करते हुए कहा कि इससे भारत ही नहीं दुनिया की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा जबकि सच्चाई यह है कि निवेश मांग और आपूर्ति के बाज़ारवादी सिद्धांत पर टिकी होती है जिसका केंद्र बाजार होता है. भूमंडलीकरण के इस दौर में बाजार का महत्व बढ़ गया है.

कोई भी देश उस देश में रहने वाली जनता और उसकी जीवनशैली से तय होता है. विनिर्माण से लेकर रक्षा क्षेत्र में देशी विदेशी निवेश को आमंत्रित करना भारत के कुशल व् प्रशिक्षित युवाओं को कुशल मजदूर में तब्दील कर मनचाही कीमत पर निजी कंपनियों के हवाले करने जैसा है. ऐसे में युवाओं के रोजगार व् भविष्य की कोई गारंटी नहीं रह जाती है. देश की संस्थाओं में ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा दे कर युवाओं व् देश की जनता को पूंजीपतियों और निवेशकों के ऊपर निर्भर होकर जिन्दगी जीने की मज़बूरी आज का सच बन कर रह गया है. उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत दुनिया की समृद्धि में योगदान देगा सवाल यह उठता है कि कर्ज में डूबे हुए भारत जो सर्वाधिक भुखमरी वाले देशों में से एक है वह इस आत्मनिर्भरता को आत्मसात कर पाएगा?

आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना हवाहवाई बन कर रह गयी है. सरकार का मकसद युवाओं के रोजगार के सवाल को हल करना कतई नहीं रहा है. अच्छी बात यह है कि खोखली उम्मीदों से भरी घोषणाओं की हक़ीकत और सरकारी प्रोपेगेंडा के मकसद को आज जनता समझ चुकी है. मेक इन इंडिया, स्टार्टअप, कौशल विकास आदि महत्वाकांक्षी योजनाओं का परिणाम भी अब सामने आ चूका है. ऐसी परियोजनाओं की हक़ीकत को जानने के लिए सिर्फ एक उदाहरण ही काफ़ी है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दावा किया गया था कि कोरोना काल के दौरान डेढ़ करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया करवाया गया जिसमें मनरेगा द्वारा दिए गए रोजगार को भी शामिल किया गया है. दरअसल अन्य रोजगार जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मुहैया कराया गया है उसके बारे में तो कोई सरकारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है सिर्फ मुख्यमंत्री के बयान हैं लेकिन मनरेगा के सरकारी आंकड़े उपलब्ध हैं. इस सच को जानने की कोशिश करें तो प्रदेश में बेरोजगारी को ख़त्म करने के सरकारी दावे धराशयी नज़र आते हैं. 

वित्तीय वर्ष 2020-21 के 9 महीने यानी अप्रैल से दिसंबर तक 85 लाख से अधिक परिवारों जिसमें करीब एक करोड़ 40 लाख मजदूर शामिल हैं को रोजगार मुहैया कराया गया है, इसी आंकड़े का सरकार प्रचार में इस्तेमाल कर रही है. लेकिन जब आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करते हैं तो इसकी असलियत सामने आ जाती है. प्रति माह प्रति परिवार औसतन 5 दिन का ही मनरेगा योजना में काम मुहैया कराया गया है, जबकि इस तरह माहौल बनाया जा रहा है जैसे मनरेगा में 85 लाख परिवारों की रोजीरोटी का इंतजाम कर दिया गया है और उन्हें प्रतिदिन काम मिल रहा है. अन्य योजनाओं का जिनका कोई सरकारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है उनका इससे भी बुरा हाल है।

देश उच्चतर बेरोजगारी की स्थिति झेल रहा है, निजीकरण की मार झेल रहे युवाओं की लगातार नौकरियां ख़त्म हो रही हैं जिससे आत्महत्या की घटनाएँ बढती जा रही हैं, जनता को इलाज की सुविधा नहीं है, भारत महिलाओं के लिए दुनिया भर में सबसे असुरक्षित देशों में से एक है. ऐसे देश में महज निवेश से अर्थव्यवस्था के ठीक होने की बात करना देश भर की जनता को गुमराह करने जैसा है. अब किसान कानूनों को पारित कर कृषि क्षेत्र में कॉरपोरेट के दख़ल को बढ़ाना और सरकारी हठधर्मिता पर कायम रह कर किसानों को जान देने तक के लिए मजबूर करना एक निंदनीय कार्य है. केवल 2020 में हजारों किसानों ने सिर्फ महाराष्ट्र राज्य में आत्महत्या कर ली हैं और अब दिल्ली बोर्डर पर आंदोलनरत किसानों में 60 से ज्यादा किसानों की हत्या का जिम्मेदार भारत की सरकार है. कृषि क्षेत्र में कॉरपोरेट के दख़ल को सुनिश्चित करवाना आज सरकार के प्राथमिक एजेंडे में से एक है लेकिन कॉरपोरेट के लिए कृषि क्षेत्र भी एक बाज़ार से अधिक कुछ भी नहीं है और बाज़ार से मुनाफ़ा कमाना कॉरपोरेट का एकमात्र उद्देश्य है. 

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