झारखंड में राज्य की सामान्य स्नातक स्तरीय संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा के दौरान पाबंदी को लेकर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि परीक्षा से पहले उसकी अनुमति के बिना ऐसा न किया जाए।
फोटो साभार : द प्रिंट
झारखंड हाईकोर्ट ने रविवार, 22 सितंबर को राज्य सरकार से इंटरनेट सेवाओं को तत्काल बहाल करने का निर्देश दिया। न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की पीठ ने आदेश दिया कि सरकार किसी भी परीक्षा के लिए इंटरनेट सेवाएं बिना अदालत की पूर्व अनुमति के निलंबित करे।
इस मामले में अदालत ने गृह सचिव वंदना दादेल को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा। उन्होंने कोर्ट के सामने इंटरनेट सेवाओं के निलंबन की अधिसूचना और मानक संचालन प्रक्रिया पेश की, जिसके तहत झारखंड सामान्य स्नातक स्तरीय संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा (जेजीजीएलसीसीई) के आयोजन के लिए इंटरनेट सेवाओं को बंद किया गया था।
दादेल द्वारा पेश की गई फाइल को अदालत ने सुरक्षित रखने के लिए रजिस्ट्रार जनरल को सौंप दिया। इस फाइल की एक प्रति गृह सचिव को देने का आदेश भी दिया गया। झारखंड राज्य बार काउंसिल के अध्यक्ष राजेंद्र कृष्ण ने अदालत को बताया कि सरकार ने अपनी अधिसूचना में संशोधन करते हुए 22 सितंबर को सुबह चार बजे से दोपहर 3.30 बजे तक सभी इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी हैं।
राजेंद्र कृष्ण ने बताया कि यह जानकारी कुछ दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा अपने ग्राहकों को संदेशों के माध्यम से दी गई। इससे पहले, सरकार ने 21 सितंबर को अदालत को सूचित किया था कि जेजीजीएलसीसीई (JGGLCCE) के संचालन के लिए उपभोक्ताओं का केवल मोबाइल डेटा अल्प अवधि के लिए निलंबित किया गया था।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, राजेंद्र कृष्ण ने अदालत को बताया कि सरकार ने अपनी अधिसूचना को रद्द करते हुए संपूर्ण इंटरनेट सेवाओं को बाधित कर दिया, जिसमें पूरे राज्य के लिए निश्चित दूरसंचार लाइनों, एफटीटीएच और लीज़ लाइनों पर आधारित ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी शामिल थी।
राजेंद्र कृष्ण के मुताबिक, सरकार ने निलंबन की अवधि भी 22 सितंबर को सुबह 4 बजे से दोपहर 3.30 बजे तक कर दी है, जबकि पहले यह 21 सितंबर को सुबह 8 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक थी।
अदालत ने बीएसएनएल रांची, भारती एयरटेल और जिओ जैसे अन्य इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के अधिकारियों की उपस्थिति का भी अनुरोध किया था।
बीएसएनएल के महाप्रबंधक संजीव वर्मा अदालत के समक्ष पेश हुए। उन्होंने अदालत को बताया कि बीएसएनएल को गृह, जेल और आपदा प्रबंधन विभाग की प्रधान सचिव वंदना दादेल से एक संदेश मिला था, जिसके तहत उन्हें 22 सितंबर को सुबह 8 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक मोबाइल इंटरनेट और मोबाइल डेटा सेवाओं सहित फिक्स्ड लाइन, एफटीटीएच और लीज़ सहित पूरी इंटरनेट सेवा को बंद करने का निर्देश दिया गया था।
वहीं, सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता सचिन कुमार ने कोर्ट को बताया कि 21 सितंबर की रात में सरकार को कुछ खुफिया जानकारी मिली थी, जिसके मद्देनजर संभावित खतरे से निपटने के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं।
पीठ ने कहा कि अदालत ने 21 सितंबर को सरकार के खिलाफ कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया था क्योंकि उसे बताया गया था कि केवल आंशिक इंटरनेट बंद था। उधर, रविवार को दूरसंचार प्राधिकरण ने स्पष्ट किया कि सरकार ने पूर्ण इंटरनेट बंद करने का आदेश दिया था।
इस पर कोर्ट ने कहा, “राज्य की यह कार्रवाई इस अदालत द्वारा 21 सितंबर को पारित न्यायिक आदेश का उल्लंघन है, खासकर तब, जब रिट याचिका अब भी लंबित है। यह अदालत के साथ धोखाधड़ी है और एक कपटपूर्ण कृत्य है।”
ज्ञात हो कि हाई कोर्ट ने गत शनिवार 21 सितंबर को राज्य सरकार से एक याचिका पर जवाब मांगा था जिसमें सरकार से पूछा गया था कि किन प्रावधानों और नीतियों के तहत राज्य में कई घंटों के लिए इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गई थीं।
इस मामले को लेकर राज्य में सियासत तेज हो गई है। बीजेपी ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार को घेरते हुए आरोप लगाया है कि सरकार परीक्षाओं के आयोजन में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए इंटरनेट बंदी कर रही है। विडंबना यह है कि बीजेपी, जो झारखंड में इंटरनेट प्रतिबंध का विरोध कर रही है, खुद अपने शासित प्रदेशों मणिपुर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कई बार इंटरनेट पर रोक लगा चुकी है। इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक इंटरनेट पर पाबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार को फटकार लगा चुका है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि इंटरनेट का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने का कोई भी आदेश न्यायिक जांच के दायरे में होगा।
ज्ञात हो कि दुनिया भर में भारत इंटरनेट पर पाबंदी लगाने के मामले में शीर्ष पर है। एक्सेस नाउ के शोध में पाया गया है कि 2016 के बाद से शटडाउन ट्रैकर ऑप्टिमाइज़ेशन प्रोजेक्ट (स्टॉप डेटाबेस) में दर्ज किए गए सभी शटडाउन में से लगभग 58 प्रतिशत भारत में हुए हैं। भारत एकमात्र जी20 देश है, जिसने दो से अधिक बार इंटरनेट पर पाबंदी लगाई है।
बीते साल जी20 देशों की साइबर सुरक्षा विषय पर एक बैठक में कहा गया था कि इंटरनेट पर पाबंदी जनता के बीच विश्वास बनाए रखने की दिशा में सबसे बड़े खतरों में से एक है और भारत को इंटरनेट बंद करने पर रोक लगानी चाहिए।
फोटो साभार : द प्रिंट
झारखंड हाईकोर्ट ने रविवार, 22 सितंबर को राज्य सरकार से इंटरनेट सेवाओं को तत्काल बहाल करने का निर्देश दिया। न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की पीठ ने आदेश दिया कि सरकार किसी भी परीक्षा के लिए इंटरनेट सेवाएं बिना अदालत की पूर्व अनुमति के निलंबित करे।
इस मामले में अदालत ने गृह सचिव वंदना दादेल को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा। उन्होंने कोर्ट के सामने इंटरनेट सेवाओं के निलंबन की अधिसूचना और मानक संचालन प्रक्रिया पेश की, जिसके तहत झारखंड सामान्य स्नातक स्तरीय संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा (जेजीजीएलसीसीई) के आयोजन के लिए इंटरनेट सेवाओं को बंद किया गया था।
दादेल द्वारा पेश की गई फाइल को अदालत ने सुरक्षित रखने के लिए रजिस्ट्रार जनरल को सौंप दिया। इस फाइल की एक प्रति गृह सचिव को देने का आदेश भी दिया गया। झारखंड राज्य बार काउंसिल के अध्यक्ष राजेंद्र कृष्ण ने अदालत को बताया कि सरकार ने अपनी अधिसूचना में संशोधन करते हुए 22 सितंबर को सुबह चार बजे से दोपहर 3.30 बजे तक सभी इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी हैं।
राजेंद्र कृष्ण ने बताया कि यह जानकारी कुछ दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा अपने ग्राहकों को संदेशों के माध्यम से दी गई। इससे पहले, सरकार ने 21 सितंबर को अदालत को सूचित किया था कि जेजीजीएलसीसीई (JGGLCCE) के संचालन के लिए उपभोक्ताओं का केवल मोबाइल डेटा अल्प अवधि के लिए निलंबित किया गया था।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, राजेंद्र कृष्ण ने अदालत को बताया कि सरकार ने अपनी अधिसूचना को रद्द करते हुए संपूर्ण इंटरनेट सेवाओं को बाधित कर दिया, जिसमें पूरे राज्य के लिए निश्चित दूरसंचार लाइनों, एफटीटीएच और लीज़ लाइनों पर आधारित ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी शामिल थी।
राजेंद्र कृष्ण के मुताबिक, सरकार ने निलंबन की अवधि भी 22 सितंबर को सुबह 4 बजे से दोपहर 3.30 बजे तक कर दी है, जबकि पहले यह 21 सितंबर को सुबह 8 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक थी।
अदालत ने बीएसएनएल रांची, भारती एयरटेल और जिओ जैसे अन्य इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के अधिकारियों की उपस्थिति का भी अनुरोध किया था।
बीएसएनएल के महाप्रबंधक संजीव वर्मा अदालत के समक्ष पेश हुए। उन्होंने अदालत को बताया कि बीएसएनएल को गृह, जेल और आपदा प्रबंधन विभाग की प्रधान सचिव वंदना दादेल से एक संदेश मिला था, जिसके तहत उन्हें 22 सितंबर को सुबह 8 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक मोबाइल इंटरनेट और मोबाइल डेटा सेवाओं सहित फिक्स्ड लाइन, एफटीटीएच और लीज़ सहित पूरी इंटरनेट सेवा को बंद करने का निर्देश दिया गया था।
वहीं, सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता सचिन कुमार ने कोर्ट को बताया कि 21 सितंबर की रात में सरकार को कुछ खुफिया जानकारी मिली थी, जिसके मद्देनजर संभावित खतरे से निपटने के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं।
पीठ ने कहा कि अदालत ने 21 सितंबर को सरकार के खिलाफ कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया था क्योंकि उसे बताया गया था कि केवल आंशिक इंटरनेट बंद था। उधर, रविवार को दूरसंचार प्राधिकरण ने स्पष्ट किया कि सरकार ने पूर्ण इंटरनेट बंद करने का आदेश दिया था।
इस पर कोर्ट ने कहा, “राज्य की यह कार्रवाई इस अदालत द्वारा 21 सितंबर को पारित न्यायिक आदेश का उल्लंघन है, खासकर तब, जब रिट याचिका अब भी लंबित है। यह अदालत के साथ धोखाधड़ी है और एक कपटपूर्ण कृत्य है।”
ज्ञात हो कि हाई कोर्ट ने गत शनिवार 21 सितंबर को राज्य सरकार से एक याचिका पर जवाब मांगा था जिसमें सरकार से पूछा गया था कि किन प्रावधानों और नीतियों के तहत राज्य में कई घंटों के लिए इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गई थीं।
इस मामले को लेकर राज्य में सियासत तेज हो गई है। बीजेपी ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार को घेरते हुए आरोप लगाया है कि सरकार परीक्षाओं के आयोजन में अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए इंटरनेट बंदी कर रही है। विडंबना यह है कि बीजेपी, जो झारखंड में इंटरनेट प्रतिबंध का विरोध कर रही है, खुद अपने शासित प्रदेशों मणिपुर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कई बार इंटरनेट पर रोक लगा चुकी है। इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक इंटरनेट पर पाबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार को फटकार लगा चुका है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि इंटरनेट का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने का कोई भी आदेश न्यायिक जांच के दायरे में होगा।
ज्ञात हो कि दुनिया भर में भारत इंटरनेट पर पाबंदी लगाने के मामले में शीर्ष पर है। एक्सेस नाउ के शोध में पाया गया है कि 2016 के बाद से शटडाउन ट्रैकर ऑप्टिमाइज़ेशन प्रोजेक्ट (स्टॉप डेटाबेस) में दर्ज किए गए सभी शटडाउन में से लगभग 58 प्रतिशत भारत में हुए हैं। भारत एकमात्र जी20 देश है, जिसने दो से अधिक बार इंटरनेट पर पाबंदी लगाई है।
बीते साल जी20 देशों की साइबर सुरक्षा विषय पर एक बैठक में कहा गया था कि इंटरनेट पर पाबंदी जनता के बीच विश्वास बनाए रखने की दिशा में सबसे बड़े खतरों में से एक है और भारत को इंटरनेट बंद करने पर रोक लगानी चाहिए।