स्मृति शेष: नागरिक स्वतंत्रता के पुरोधा ए.जी. नूरानी का 93 वर्ष की उम्र में निधन

Written by sabrang india | Published on: August 29, 2024

साभार: इंडियन एक्सप्रेस (एक्सप्रेस आर्काइव) 

ए. जी. नूरानी का आज मुंबई में 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनके निधन से भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एक युग का अंत हो गया। 1930 में जन्मे नूरानी ने कई दशकों के अपने करियर में खुद को भारत के अग्रणी संवैधानिक विशेषज्ञों स्थापित किया।

उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय और बॉम्बे उच्च न्यायालय में वकालत की जहां उन्होंने अपनी क़ानूनी सूझबूझ और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा के प्रति समर्पण के लिए ख्याति अर्जित की।

अपने उल्लेखनीय क़ानूनी योगदानों में उन्होंने जम्मू-कश्मीर के प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला का लंबे समय तक हिरासत में रहने के दौरान उनका पक्ष रखा और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि का उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जे. जयललिता के ख़िलाफ़ एक हाई-प्रोफाइल मामले में प्रतिनिधित्व किया।

कोर्टरूम से बाहर नूरानी का भारतीय राजनीतिक विमर्श में योगदान बहुत बड़ा था। उनके कॉलम नियमित रूप से द हिंदू, फ्रंटलाइन और इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली जैसे प्रमुख भारतीय अख़बार व मैग्जिन में छपते थे। 

नूरानी ने कई मौलिक किताबें लिखीं जो भारतीय इतिहास और राजनीति की समझ को नई दिशा दे रही है। उनकी रचनाओं में 'द कश्मीर डिस्प्यूट 1947-2012’ दक्षिण एशिया के सबसे स्थायी संघर्षों का विस्तृत वृत्तांत है और वहीं 'द डिस्ट्रक्शन ऑफ हैदराबाद' में राजनीतिक और सैन्य कार्रवाइयों का विस्तृत विवरण शामिल है। 

उनकी पुस्तक 'द आरएसएस एंड द बीजेपी: ए डिवीजन ऑफ लेबर' भारत की सत्तारूढ़ पार्टी और उसके वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बीच वैचारिक और परिचालन गतिशीलता को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण श्रोत बनी हुई है। 

नूरानी अपने पूरे जीवन में भारतीय राजनीति में बहुसंख्यकवादी बदलाव, खासकर हिंदुत्व के उदय के कट्टर आलोचक रहे। उन्होंने हिंदुत्व की वैचारिक नींव को वी.डी. सावरकर और एम.एस. गोलवलकर जैसे लोगों से जोड़ा और समकालीन राजनीतिक घटनाक्रमों पर उनके प्रभावों को उजागर किया। 

उनका विश्लेषण केवल अकादमिक नहीं था, यह भारत के बहुलवादी और लोकतांत्रिक मूल्यों का एक बचाव था, जिसके बारे में उनका मानना था कि वे ख़तरे में हैं। 

ए.जी. नूरानी को विदाई देते हुए हम सत्य, न्याय और बौद्धिक कठोरता के लिए प्रतिबद्ध एक जीवन को सलाम करते हैं। उनकी विरासत उनके व्यापक कार्यों के माध्यम से बनी हुई है जो न्याय और लोकतंत्र के लिए समर्पित भावी पीढ़ियों को प्रेरित और मार्गदर्शन करती रहेगी।

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