मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और शिवराज सिंह चौहान राज्य को बीमारू राज्य के ठप्पे से छुटकारा दिलाने का कितना भी वादा करें, हकीकत ये है कि मध्यप्रदेश इस समय गहरे आर्थिक संकट में फंस चुका है।
‘राम की चिड़ियां राम के खेत, खाओ रे चिड़ियां भर-भर पेट’ बोलने वाले शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को तो राहत नहीं दी लेकिन फालतू के कामों में इस कदर धन लुटाया कि प्रदेश का खज़ाना खाली हो चुका है।
(courtesy: free press journal)
सरकार के पास अब केवल कर्मचारियों के वेतन देने लायक ही धन बचा है। ऐसी स्थिति पिछले कुछ महीनों में तीसरी बार पैदा हुई है। अब ऐसा तय माना जा रहा है कि राज्य सरकार को ओवर ड्राफ्ट ही लेना पड़ेगा।
अब तक फिजूलखर्ची करते रहे वित्त विभाग ने आर्थिक संकट से उबरने के लिए बड़े विभागों के खर्चों में कटौती करना शुरू कर दिया है।
नईदुनिया की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त विभाग के प्रमुख सचिव अनुराग जैन और अन्य अधिकारी गृह, स्कूल शिक्षा, लोक निर्माण, स्वास्थ्य, जल संसाधन, उद्योग विभाग के साथ बैठक कर आने वाले खर्चों का हिसाब लगा रहे हैं। पूरी स्थिति अक्टूबर तक साफ हो जाएगी और किसी तरह का सुधार न हुआ तो सरकार को ओवर ड्राफ्ट लेना पड़ सकता है। वैसे तय माना जा रहा है कि सरकार के पास अब कोई और विकल्प बचा नहीं है।
रिपोर्ट में भाजपा के इस कार्यकाल की इस स्थिति की तुलना दिग्विजय सिंह सरकार के अंतिम दिनों से की जा सकती है। तब भी ऐसे ही हालात पैदा हुए थे, और फिर विधानसभा चुनावों में दिग्विजय सिंह और कांग्रेस की करारी हार हुई थी।
सरकार ने बिना सोचे-समझे ऐसी कई योजनाएं शुरू कर दीं जिनका लाभ न तो जनता को हुआ, और न ही सरकार को। इन योजनाओं पर हुआ भारी-भरकम खर्चा सरकार को झेलना पड़ा जिस वजह से उसका खजाना खाली हो गया।
भाजपा ने अपने प्रचार के इरादे से नर्मदा सेवा यात्रा और एकात्म यात्राओं पर भी काफी खर्चा कर दिया और इसका पूरा बोझ राज्य सरकार के खजाने पर डाल दिया।
इससे यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि शिवराज सिंह की सरकार भी दिग्विजय सिंह की सरकार की तरह ही सत्ता से बाहर हो सकती है। इस समय सरकार की आय से ज्यादा खर्चा हो रहा है और चुनावों के पहले, लोकप्रियता बढ़ाने के तात्कालिक उपायों के लिए भी सरकार के पास धन नहीं बचा है। यही कारण है कि शिवराज सिंह अब अगले कार्यकाल के लिए वादे कर रहे हैं।
‘राम की चिड़ियां राम के खेत, खाओ रे चिड़ियां भर-भर पेट’ बोलने वाले शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को तो राहत नहीं दी लेकिन फालतू के कामों में इस कदर धन लुटाया कि प्रदेश का खज़ाना खाली हो चुका है।
(courtesy: free press journal)
सरकार के पास अब केवल कर्मचारियों के वेतन देने लायक ही धन बचा है। ऐसी स्थिति पिछले कुछ महीनों में तीसरी बार पैदा हुई है। अब ऐसा तय माना जा रहा है कि राज्य सरकार को ओवर ड्राफ्ट ही लेना पड़ेगा।
अब तक फिजूलखर्ची करते रहे वित्त विभाग ने आर्थिक संकट से उबरने के लिए बड़े विभागों के खर्चों में कटौती करना शुरू कर दिया है।
नईदुनिया की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त विभाग के प्रमुख सचिव अनुराग जैन और अन्य अधिकारी गृह, स्कूल शिक्षा, लोक निर्माण, स्वास्थ्य, जल संसाधन, उद्योग विभाग के साथ बैठक कर आने वाले खर्चों का हिसाब लगा रहे हैं। पूरी स्थिति अक्टूबर तक साफ हो जाएगी और किसी तरह का सुधार न हुआ तो सरकार को ओवर ड्राफ्ट लेना पड़ सकता है। वैसे तय माना जा रहा है कि सरकार के पास अब कोई और विकल्प बचा नहीं है।
रिपोर्ट में भाजपा के इस कार्यकाल की इस स्थिति की तुलना दिग्विजय सिंह सरकार के अंतिम दिनों से की जा सकती है। तब भी ऐसे ही हालात पैदा हुए थे, और फिर विधानसभा चुनावों में दिग्विजय सिंह और कांग्रेस की करारी हार हुई थी।
सरकार ने बिना सोचे-समझे ऐसी कई योजनाएं शुरू कर दीं जिनका लाभ न तो जनता को हुआ, और न ही सरकार को। इन योजनाओं पर हुआ भारी-भरकम खर्चा सरकार को झेलना पड़ा जिस वजह से उसका खजाना खाली हो गया।
भाजपा ने अपने प्रचार के इरादे से नर्मदा सेवा यात्रा और एकात्म यात्राओं पर भी काफी खर्चा कर दिया और इसका पूरा बोझ राज्य सरकार के खजाने पर डाल दिया।
इससे यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि शिवराज सिंह की सरकार भी दिग्विजय सिंह की सरकार की तरह ही सत्ता से बाहर हो सकती है। इस समय सरकार की आय से ज्यादा खर्चा हो रहा है और चुनावों के पहले, लोकप्रियता बढ़ाने के तात्कालिक उपायों के लिए भी सरकार के पास धन नहीं बचा है। यही कारण है कि शिवराज सिंह अब अगले कार्यकाल के लिए वादे कर रहे हैं।