बीबीएयू के आठ दलित छात्रों को न्याय दिलाने हेतु, 8 अक्टूबर को लखनऊ में ‘‘राष्ट्रीय छात्र संसद"

Written by Sabrangindia Staff | Published on: October 3, 2016

लखनऊ में हो रही देश की पहली ‘‘आरक्षण समर्थक राष्ट्रीय छात्र संसद"।



बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के दलित छात्रों को गलत तरीके से निष्कासित किये जाने के विरोध में आगामी 8 अक्टूबर, 2016 को लखनऊ में ‘‘आरक्षण समर्थक राष्ट्रीय छात्र संसद‘‘ बुलायी गयी है। यह छात्र संसद देश में पहली आरक्षण समर्थक छात्र संसद होगी। जिसमें बीबीएयू प्रशासन की हठधर्मिता के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का ऐलान होगा।

आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति, उ.प्र. लखनऊ (ABSS) और अम्बेडकर यूनिवर्सिटी दलित स्टूडेंट्स यूनियन, बीबीएयू लखनऊ (AUDSU) ने अपने एक बयान में कहा है राष्ट्रीय छात्र संसद में बीबीएयू, हैदराबाद, जेएनयू, बीएचयू, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय, वर्धा विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज मुम्बई सहित देश के अन्य विश्वविद्यालय के आरक्षण समर्थक छात्र भाग लेंगे।

जिस प्रकार से बीबीएयू के कुलपति महोदय द्वारा हठधर्मिता के परिचय देते हुए बीबीएयू में रोहित वेमुला जैसी घटना घटित कराने पर आमादा हैं उससे दलित छात्रों में घोर निराशा व्याप्त होना स्वाभाविक है।

बयान में यह भी कहा गया है की बीबीएयू प्रशासन दलित छात्रों के निष्कासन के मामले पर खुद कठघरे में खड़ा हो गया है। जहां विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गठित 8 सदस्यीय जांच समिति ने कुलपति को अपनी रिर्पोट सौंपी और उसमें यह खुलासा किया कि सीधे तौर पर कोई भी छात्र दोषी नहीं प्रतीत हो रहा है, इसकी बाह्य एजेन्सी से जांच कराया जाना उचित होगा। ऐसे में इस रिर्पोट के आधार पर निष्कासित छात्रों को स्वतः न्याय मिल जाना चाहिए था, परन्तु कुलपति महोदय ने इस रिर्पोट को दबाकर प्रो कमल जैसवाल के दबाव में जिस प्राक्टोरियल बोर्ड ने बिना जांच किये 8 दलित छात्रों का निष्कासन किया था, उसी से पुनः जांच कराकर अब 3 छात्रों का निष्कासन वापस किया गया। सवाल यह उठता है कि 7 सितम्बर को यदि प्राक्टोरियल बोर्ड ने 8 छात्रों को दोषी पाया तो लगभग 24 दिन बाद यदि 3 छात्र दोषमुक्त हो गये तो इससे स्वतः सिद्ध हो रहा है कि प्राक्टोरियल बोर्ड स्वतः संदेह के घेरे में है।

बयान में कुछ प्रश्न भी उठाये गए हैं: सबसे बड़ा मानवीय सवाल यह उठता है कि लगभग 25 दिन से छात्र हास्टल से बाहर हैं, वह क्या खा रहे हैं, क्या पहन रहे हैं, उनकी स्थिति क्या है? किसी ने यह सब जानने की कोशिश क्यों नहीं की और इस पर कुलपति महोदय मौन क्यों हैं? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन दिनों 8 दलित छात्र जो शिक्षा के अधिकार से वंचित रहे, क्या यह मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है?
 

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