1982 : जब गुंडागर्दी के खिलाफ उठ खड़ा हुआ था रामजस कॉलेज

Written by राहुल राय | Published on: February 27, 2017
लगता है दिल्ली में फरवरी विद्यार्थियों के रोष और विरोध का महीना होता है। पिछले साल फरवरी में जेएनयू में एबीवीपी, कॉरपोरेट मीडिया, दिल्ली पुलिस और बीजेपी की इकट्ठा ताकत दिखी थी। लेकिन इसके खिलाफ जेएनयू स्टूंडेट्स और शिक्षकों के काले झंडे भी दिखे थे। जेएनयू के प्रतिरोध की इस आवाज से सत्ता प्रतिष्ठान सकते में था।
 
फरवरी, 2017 को एक बार फिर एबीवीपी की ओर से रामजस कॉलेज में छात्र-छात्राओं को पीटने और सेमिनार को तहस-नहस करने की घटना हुई। लेकिन इसका भी पुरजोर तरीके से विरोध हुआ। एक बार फिर यूनिवर्सिटी में प्रतिरोध की नई और जीवंत शक्ल दिखी।
 
फरवरी, 1982 में भी दिल्ली यूनिवर्सिटी में ऐसा ही नजारा पैदा हुआ था। उस वक्त दिलीप सिमियन पर कातिलाना हमले के खिलाफ यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राएं सड़कों पर उतर आए थे। दिलीप सिमियन रामजस कॉलेज के लेक्चरार थे और उन पर कॉलेज के प्रिसिंपल के खासमखास लोगों की एक टोली ने हमला किया था। इस घटना की पृष्ठभूमि में कॉलेज प्रशासन पर लगा भ्रष्टाचार का आरोप था।
 
 भ्रष्टाचार के लिए प्रिंसिपल के खिलाफ आवाज उठाने पर छात्र-छात्राओं के खिलाफ भारी बल प्रयोग किया गया था। सिमियन का अपराध सिर्फ इतना था कि वह उन भूख हड़तालियों में शामिल हो गए थे, जो बगैर किसी जांच के मुख्य माली सीताराम की बकाया सैलरी रिलीज करने की मांग कर रहे थे। 16 फरवरी को सिमियन को कुदेसिया पार्क के पास छह युवकों ने घेर लिया। कार में सवार इन लोगों ने घर से ही सिमियन का पीछा किया था। उन्हें लोहे की रॉड से बुरी तरह पीटा गया। उनका बायां पैर दो जगहों से टूट गया। ऊपरी जबड़ा हमेशा के लिए क्षतिग्रस्त हो गया। पांच दांत टूट गए। उनके सिर पर हेलमेट था। वरना उनकी खोपड़ी फूट जाती।
 

 

 

 

 

 
इस घटना ने छात्रों को जबरदस्त तरीके से आंदोलित कर दिया फिर ‘कमेटी अंगेस्ट गुंडाइज्म’ के बैनर तले जबरदस्त आंदोलन चला। प्रिंसिपल को छुट्टी पर जाना पड़ा। और आखिकार गुंडों के साथ कॉलेज परिसर में घुसने के आरोप में उन्हें निलंबित कर दिया गया। करतार सिंह दिल्ली यूनिवर्सिटी के पहले प्रिंसिपल थे, जो शांति भंग करने और हिंसा फैलाने के आरोप में निलंबित किए गए थे।

 उन दिनों कॉलेज, रामजस में कामकाज की लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने के लिए चल रहे छात्रों और शिक्षकों के आंदोलन का प्रतीक बन गया। कैंपस,  छात्रों और एनएसयूआई -एबीवीपी समर्थित गुंडों के बीच लड़ाई का मैदान बन गया। पहली बार इन गुंडा तत्वों ने प्रतिरोध की आग महसूस की। छात्र की एकता न तो उनसे डरी और उनकी हिंसा के आगे झुकी। एक नहीं कई बार ये गुंडे कॉलेज से भगाए गए। छात्र अब उनके आतंक से दबने वाले नहीं थे।
 
ये वे साल थे जिन्होंने रामजस कॉलेज को प्रगतिशील विचारों, विमर्श और कार्यक्रमों की विरासत सौंपी थी। यही चीज एबीवीपी जैसे संगठनों को परेशान करती है। यह संगठन किसी भी तरह के आलोचनात्मक विमर्श को बरदाश्त नहीं कर पाता है और फिर हमले के करने के अपने पुराने तरीके पर लौट आता है। प्रतिरोध की इसी संस्कृति को याद करते हुए हाल की रामजस कॉलेज की घटना पर एक पुराने छात्र की टिप्पणी काबिलगैर है - हमें उस दौर में भी खत्म नहीं किया जा सका था। और अब भी हम खत्म नहीं हुए हैं।
 
(  राहुल राय एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म मेकर हैं। उन्होंने 1982 से 1985 तक रामजस कॉलेज में इतिहास की पढ़ाई की थी। उन्होंने मारुति के मानेसर प्लांट में 148 कर्मचारियों के खिलाफ हत्या के आरोप में लादे गए मुकदमे और संबंधित घटनाक्रम से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री फैक्टरी बनाई है। उनसे इस ई-मेल पर संपर्क किया जा सकता है- rahulroy63 @ gmail.com)
 
 
 

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