देश और दुनिया के जाने माने 108 आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों ने ने एक बयान जारी कर केंद्र की मोदी सरकार द्वारा आर्थिक आंकड़ों में राजनीतिक हस्तक्षेप को लेकर चिंता जाहिर की है। अर्थशास्त्रियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर सांख्यिकी संगठनों की संस्थागत स्वतंत्रता को बहाल करने की अपील की है।
अर्थशास्त्रियों का यह बयान जीडीपी आंकड़ों (GDP) में संशोधन करने तथा एनएसएसओ द्वारा रोजगार के आंकड़ों को रोककर रखे जाने के मामले में पैदा हुए विवाद के मद्देनजर यह बयान आया है.
बयान में कहा गया है कि वित्तीय आंकड़े जनता की भलाई के लिए होते हैं। नीतियां बनाने और जानकारी भरे सामाजिक विमर्श के लिए इनका होना महत्वपूर्ण है. इसलिए डाटा जुटाने के वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल और अनुमान, उनका समय से जारी होना जनता की सेवा जैसा है। ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि इन आंकड़ों को इकठ्ठा करने और प्रसारित करने वाली केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) तथा राष्ट्रीय नमूना सर्वे संगठन (NSSO) जैसी संस्थाएं राजनीतिक हस्तक्षेप का शिकार न हों और इनकी विश्वसनीयता बनी रहे। यही वजह है कि वैश्विक स्तर पर ऐसी संस्थाओं को पेशेवर स्वायत्तता दी जाती है।
बयान में कहा गया है कि दशकों से भारत की सांख्यिकी मशीनरी की आर्थिक से सामाजिक मानदंडों पर उसके आंकड़ों को लेकर बेहतर साख रही है। आंकड़ों के अनुमान की गुणवत्ता को लेकर प्राय: उसकी (सांख्यिकी मशीनरी) आलोचना की जाती रही है लेकिन निर्णय को प्रभावित करने तथा अनुमान को लेकर राजनीतिक हस्तक्षेप का कभी आरोप नहीं लगा।
उन्होंने सभी पेशेवर अर्थशास्त्रियों, सांख्यिकीविद और स्वतंत्र शोधकर्ताओं से साथ आकर प्रतिकूल आंकड़ों को दबाने की प्रवृत्ति के खिलाफ आवाज उठाने को कहा. साथ ही उनसे सार्वजनिक आंकड़ों तक पहुंच और उसकी विश्वसनीयता तथा संस्थागत स्वतंत्रता बनाये रखने को लेकर सरकार पर दबाव देने को कहा है।
बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में राकेश बसंत (आईआईएम-अहमदाबाद), जेम्स बॉयस (यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स, अमेरिका), सतीश देशपांडे (दिल्ली विश्वविद्यालय), पैट्रिक फ्रांकोइस (यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा), आर रामकुमार (टीआईएसएस, मुंबई), हेमा स्वामीनाथन (आईआईएम-बी) तथा रोहित आजाद (जेएनयू) समेत देश-विदेश के विभिन्न शैक्षणिक और वित्तीय संस्थानों से जुड़े लोग शामिल हैं।
अर्थशास्त्रियों तथा समाज शास्त्रियों के अनुसार यह जरूरी है कि आंकड़े एकत्रित करने तथा उसके प्रसार से जुड़े सीएसओ तथा एनएसएसओ जैसी एजेंसियों को राजनीतिक हस्तक्षेप से परे रखा जाये और वह पूरी तरह विश्वसनीय मानी जाएं।
बयान के अनुसार हाल के दिनों में भारतीय सांख्यिकी तथा उससे जुड़े संस्थानों के राजनीतिक प्रभाव में आने की बातें सामने आयीं हैं।
बयान में इस संबंध में सीएसओ के 2016-17 के संशोधित जीडीपी वृद्धि अनुमान के आंकड़ों का हवाला दिया गया है. इसमें संशोधित वृद्धि का आंकड़ा पहले के मुकाबले 1.1 प्रतिशत अंक बढ़ाकर 8.2 प्रतिशत हो गया जो एक दशक में सर्वाधिक है. इसको लेकर संशय जताया गया है।
वक्तव्य में एनएसएसओ के समय समय पर जारी होने वाले श्रम बल सर्वेक्षण के आंकड़ों को रोकने और 2017- 18 के इन आंकड़ों को सरकार द्वारा निरस्त किये जाने संबंधी मीडिया रिपोर्ट पर भी चिंता जताई गई है।
अर्थशास्त्रियों का यह बयान जीडीपी आंकड़ों (GDP) में संशोधन करने तथा एनएसएसओ द्वारा रोजगार के आंकड़ों को रोककर रखे जाने के मामले में पैदा हुए विवाद के मद्देनजर यह बयान आया है.
बयान में कहा गया है कि वित्तीय आंकड़े जनता की भलाई के लिए होते हैं। नीतियां बनाने और जानकारी भरे सामाजिक विमर्श के लिए इनका होना महत्वपूर्ण है. इसलिए डाटा जुटाने के वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल और अनुमान, उनका समय से जारी होना जनता की सेवा जैसा है। ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि इन आंकड़ों को इकठ्ठा करने और प्रसारित करने वाली केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) तथा राष्ट्रीय नमूना सर्वे संगठन (NSSO) जैसी संस्थाएं राजनीतिक हस्तक्षेप का शिकार न हों और इनकी विश्वसनीयता बनी रहे। यही वजह है कि वैश्विक स्तर पर ऐसी संस्थाओं को पेशेवर स्वायत्तता दी जाती है।
बयान में कहा गया है कि दशकों से भारत की सांख्यिकी मशीनरी की आर्थिक से सामाजिक मानदंडों पर उसके आंकड़ों को लेकर बेहतर साख रही है। आंकड़ों के अनुमान की गुणवत्ता को लेकर प्राय: उसकी (सांख्यिकी मशीनरी) आलोचना की जाती रही है लेकिन निर्णय को प्रभावित करने तथा अनुमान को लेकर राजनीतिक हस्तक्षेप का कभी आरोप नहीं लगा।
उन्होंने सभी पेशेवर अर्थशास्त्रियों, सांख्यिकीविद और स्वतंत्र शोधकर्ताओं से साथ आकर प्रतिकूल आंकड़ों को दबाने की प्रवृत्ति के खिलाफ आवाज उठाने को कहा. साथ ही उनसे सार्वजनिक आंकड़ों तक पहुंच और उसकी विश्वसनीयता तथा संस्थागत स्वतंत्रता बनाये रखने को लेकर सरकार पर दबाव देने को कहा है।
बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में राकेश बसंत (आईआईएम-अहमदाबाद), जेम्स बॉयस (यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स, अमेरिका), सतीश देशपांडे (दिल्ली विश्वविद्यालय), पैट्रिक फ्रांकोइस (यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा), आर रामकुमार (टीआईएसएस, मुंबई), हेमा स्वामीनाथन (आईआईएम-बी) तथा रोहित आजाद (जेएनयू) समेत देश-विदेश के विभिन्न शैक्षणिक और वित्तीय संस्थानों से जुड़े लोग शामिल हैं।
अर्थशास्त्रियों तथा समाज शास्त्रियों के अनुसार यह जरूरी है कि आंकड़े एकत्रित करने तथा उसके प्रसार से जुड़े सीएसओ तथा एनएसएसओ जैसी एजेंसियों को राजनीतिक हस्तक्षेप से परे रखा जाये और वह पूरी तरह विश्वसनीय मानी जाएं।
बयान के अनुसार हाल के दिनों में भारतीय सांख्यिकी तथा उससे जुड़े संस्थानों के राजनीतिक प्रभाव में आने की बातें सामने आयीं हैं।
बयान में इस संबंध में सीएसओ के 2016-17 के संशोधित जीडीपी वृद्धि अनुमान के आंकड़ों का हवाला दिया गया है. इसमें संशोधित वृद्धि का आंकड़ा पहले के मुकाबले 1.1 प्रतिशत अंक बढ़ाकर 8.2 प्रतिशत हो गया जो एक दशक में सर्वाधिक है. इसको लेकर संशय जताया गया है।
वक्तव्य में एनएसएसओ के समय समय पर जारी होने वाले श्रम बल सर्वेक्षण के आंकड़ों को रोकने और 2017- 18 के इन आंकड़ों को सरकार द्वारा निरस्त किये जाने संबंधी मीडिया रिपोर्ट पर भी चिंता जताई गई है।