शुक्रिया बीबीसी, नवभारत टाइम्स, एनडीटीवी, प्रभात खबर, नई दुनिया..... आप दीपा कर्मकार को अब उसके सही नाम का हक दे रहे हैं.
शुक्रिया Mahendra Yadav आपके इस अभियान के लिए. आपकी मुहिम के बाद कई जगह सुधार दिख रहा है.
करमाकर नहीं
कर्मकार!
दीपा कर्मकार.
त्रिपुरा के बंगाली परिवार में जन्मी भारत की बेटी दीपा कर्मकार.
हिंदी चैनलों और अखबारों के ब्राह्मणवाद का यह आलम है कि दीपा कर्मकार का नाम तक गलत लिख रहे हैं.
कर्मकार बोलते शर्म महसूस हो रही है. करमाकर या कर्माकर लिख रहे हैं.
क्योंकि दीपा कर्मकार त्रिपुरा की OBC हैं.
“हिंदी चैनलों और अखबारों के ब्राह्मणवाद का यह आलम है कि दीपा कर्मकार का नाम तक गलत लिख रहे हैं.
कर्मकार बोलते शर्म महसूस हो रही है. करमाकर या कर्माकर लिख रहे हैं.
क्योंकि दीपा कर्मकार त्रिपुरा की OBC हैं.”
जिस ध्यानचंद सिंह कुशवाहा ने भारत को सबसे ज्यादा तीन ओलंपिक गोल्ड मेडल दिलाए (1928, 32, 36) उन्हें भारत रत्न नहीं मिला है. पद्म विभूषण तक नहीं मिला जो रजत शर्मा को मिल चुका है.
ध्यानचंद को सम्मानित करने का मामला पद्म भूषण पर ठहर गया.... ओलंपिक में ऐसे देश की झोली खाली है, तो क्या आश्चर्य.
सोचिए, पेप्सी विक्रेता तेंडुलकर को भारत रत्न और दुनिया के महानतम हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद को पद्म भूषण! पद्म विभूषण भी नहीं!
भारत में जातिवाद खत्म हो चुका है!
मध्य प्रदेश के सागर शहर में रह रही ध्यानचंद की बेटी राजकुमारी कुशवाहा से पूछिए इस बात का कितना दर्द है उन्हें. ब्रिटेन की संसद ने ध्यानचंद का सम्मान किया, पर देश ने उन्हें भारत रत्न नहीं दिया.
ध्यानचंद लिखें या ध्यानचंद सिंह कुशवाहा या ध्यानचंद कुशवाहा चंद्रवंशीय क्षत्रीय.... क्या फर्क पड़ता है? भूल जाइए कि वह किस जाति का था.
मुद्दे की बात यह है कि वह भारतीय खेल इतिहास का महानतम खिलाड़ी था, उसने भारत को तीन ओलंपिक गोल्ड मेडल दिलाए, वह हॉकी का जादूगर था और भारत रत्न तो छोड़िए, उसे पद्म विभूषण भी नहीं दिया
गया.
देश ध्यानचंद की बेटी राजकुमारी कुशवाहा को मुंह दिखाने के काबिल नहीं है.
किस किस को दे दिया भारत रत्न. एक हमारे प्रिय दद्दा को नहीं दिया.
जो देश पाखंडी रविशंकर को, जिसे पर्यावरण कानून तोड़ने के जुर्म में सजा हुई है, उसे पद्म विभूषण देता हो और हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को उससे कमतर पद्म भूषण.... उस देश को मेडल के लिए तरसना ही होगा.