‘दीपावली मंगल मिलन’ : दिल्ली के सरकारी कार्यक्रम में उर्दू पत्रकारों के साथ ‘भेदभाव’ का आरोप

Written by sabrang india | Published on: October 22, 2025
दिल्ली सरकार ने ‘दीपावली मंगल मिलन’ कार्यक्रम के तहत 13 अक्टूबर को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ संवाद के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन इस आयोजन में उर्दू मीडिया से जुड़े किसी भी पत्रकार को शामिल नहीं किया गया।


फोटो साभार: @gupta_rekha

दिल्ली की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पर उर्दू मीडिया से जुड़े पत्रकारों के साथ ‘भेदभावपूर्ण’ और ‘सौतेला’ रवैया अपनाने के आरोप लगे हैं।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, 13 अक्टूबर को दिल्ली सरकार के सूचना एवं प्रचार निदेशालय (डीआईपी), राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र द्वारा ‘दीपावली मंगल मिलन’ कार्यक्रम के तहत अशोक होटल में एक विशेष आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े पत्रकारों को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ संवाद और बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम में दिल्ली कैबिनेट के सभी मंत्री भी उपस्थित थे।

उर्दू मीडिया के अनुसार, दिल्ली की भाजपा सरकार ने पिछली सरकारों की परंपरा से हटते हुए इस बार ‘दीपावली मंगल मिलन’ समारोह में उर्दू मीडिया से जुड़े किसी भी पत्रकार को आमंत्रित नहीं किया। इसमें उन पत्रकारों को भी शामिल नहीं किया गया जो वर्षों से दिल्ली सरकार और भाजपा की गतिविधियों की रिपोर्टिंग करते आ रहे हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि यह पहला अवसर है जब दिल्ली सरकार ने उर्दू मीडिया से इस तरह की दूरी बनाने की कोशिश की है।

इस समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रण सूचना एवं प्रचार निदेशालय (डीआईपी) के निदेशक सुशील सिंह द्वारा व्हाट्सऐप के माध्यम से भेजा गया था।

इस निर्णय को लेकर पत्रकारों के बीच नाराजगी है। कई लोग इसे अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया मान रहे हैं और इसे उर्दू भाषा तथा उससे जुड़े समुदाय को हाशिए पर डालने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं।

आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली सरकार में पूर्व खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री इमरान हुसैन ने भाजपा पर सांप्रदायिक राजनीति करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, “उर्दू पत्रकारों के साथ किया गया सौतेला व्यवहार किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

इमरान हुसैन ने यह भी आरोप लगाया कि इससे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उर्दू भाषा के खिलाफ बयान दिए थे, और अब ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता उस राह को और आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं।

सरकार के इस कदम से नाराज कई पत्रकारों ने दिल्ली सरकार के जनसंपर्क विभाग (पीआरडी) में इस मुद्दे को गंभीरता से उठाने की बात कही है। पत्रकारों का दावा है कि भाषा के आधार पर भेदभाव का यह पहला स्पष्ट मामला है, जो गहरी चिंता का विषय है।

उर्दू दैनिक हमारा समाज के संपादक सादिक शेरवानी ने द वायर से बातचीत में कहा, “अगर हम पिछली भाजपा सरकारों की बात करें, तो उस समय उर्दू मीडिया के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया गया था। मदन लाल खुराना और सुषमा स्वराज जैसे नेता उर्दू-प्रेमी माने जाते थे। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा अब उन सभी कदमों को प्राथमिकता देती है जो उसकी तुष्टीकरण की राजनीति को मजबूत करें।”

सादिक शेरवानी ने कहा, “उर्दू सिर्फ मुसलमानों की ज़बान नहीं है, लेकिन भाजपा ऐसा संदेश देना चाहती है मानो यह केवल मुसलमानों की भाषा हो।”

उन्होंने यह भी कहा कि अगर इसे ‘चूक’ कहा जा रहा है, तो यह सवाल उठता है कि उर्दू मीडिया से जुड़े किसी भी पत्रकार को निमंत्रण क्यों नहीं मिला। उन्होंने कहा, “अगर यह वास्तव में एक भूल होती, तो कम से कम किसी एक उर्दू मीडिया संस्थान का प्रतिनिधि तो जरूर मौजूद होता। पूरी तरह से उर्दू पत्रकारों की गैरमौजूदगी इसे जानबूझकर किया गया कदम साबित करती है।”

वहीं हमारा समाज से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार संजय गोयल ने सवाल उठाया कि उर्दू भाषा से जुड़े पत्रकारों की अनदेखी आखिर क्यों की गई, जबकि उर्दू दिल्ली की दूसरी आधिकारिक भाषा है।

गोयल ने कहा, “1993 से 1998 तक दिल्ली में भाजपा की पहली सरकार—जिसमें मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और कुछ समय के लिए सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री रहीं—के कार्यकाल में हमने देखा कि न केवल सरकारी स्तर पर, बल्कि पार्टी स्तर पर भी उर्दू भाषा या उर्दू मीडिया के साथ कभी भेदभाव नहीं किया गया।”

अखबार के अनुसार, वरिष्ठ पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता से मुलाकात कर इस पूरे प्रकरण पर अपनी आपत्ति दर्ज कराएगा।

हिंदुस्तान एक्सप्रेस से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार फरहान यह्या ने द वायर से बातचीत में कहा, “मैं 2007 से एक्रीडिटेड पत्रकार हूं। इससे पहले जब शीला दीक्षित या अरविंद केजरीवाल की सरकारें रहीं, तो दीपावली और अन्य मौकों पर कभी भी भाषा के आधार पर पत्रकारों के साथ भेदभाव नहीं हुआ। यह पहली बार है जब उर्दू मीडिया से जुड़े किसी भी पत्रकार को आमंत्रित नहीं किया गया।”

फरहान ने यह भी कहा, “उर्दू पत्रकारों को इस बात का दुःख नहीं है कि उन्हें कार्यक्रम में क्यों नहीं बुलाया गया, बल्कि उन्हें इस बात से ठेस पहुंची है कि मौजूदा सरकार ने भाषा के नाम पर पत्रकारों के बीच विभाजन की कोशिश की है।”

उनका दावा है कि बहुत जल्द उर्दू मीडिया से जुड़े पत्रकार एक प्रतिनिधिमंडल के रूप में दिल्ली के उपराज्यपाल से मुलाकात करेंगे।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक मासूम मुरादाबादी ने कहा, “सरकार का जो रवैया उर्दू के प्रति है, वही रवैया उर्दू पत्रकारों और अखबारों के साथ भी अपनाया जा रहा है। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा, “मौजूदा व्यवस्था में उर्दू के लिए कोई जगह नहीं बची है। आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान उर्दू अखबारों को विज्ञापन भी मिलता था, लेकिन अब वह भी लगभग बंद हो गया है। यह पूर्वाग्रह और संकीर्णता का परिणाम है, और इनके एजेंडे में यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है।”

हिंदुस्तान एक्सप्रेस के न्यूज़ एडिटर शाहिद-उल-इस्लाम इसे एजेंडे की राजनीति बताते हैं। उनका कहना है, “अगर भाजपा सरकार पत्रकारों को धर्म के आधार पर बांटना चाहती है, तो मुझे इसमें कोई हैरानी नहीं है।”

13 अक्टूबर को आयोजित मिलन समारोह के दौरान मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता हर टेबल पर जाकर पत्रकारों से बातचीत करती नजर आईं। इस दौरान पत्रकारों ने मुख्यमंत्री के सामने अपनी चिंताएं रखीं। वरिष्ठ पत्रकारों ने दिल्ली में सूचना एवं प्रचार निदेशालय (डीआईपी) की ‘मान्यता समिति’ के नवीनीकरण न होने का मुद्दा भी उठाया।

फिर भी, उर्दू मीडिया के साथ दिल्ली सरकार के कथित भेदभाव के बाद यह सवाल उठता है कि क्या सरकार इन सवालों पर विराम लगाने की कोशिश करेगी।

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