सुप्रीम कोर्ट ने अजय कुमार चौधरी बनाम भारत संघ (2015) के मामले में कहा है कि निलंबन केवल औपचारिकता या बिना कारण लंबे समय तक नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके पीछे ठोस और उचित आधार होना चाहिए।

मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनएनआईटी) इलाहाबाद ने एक चौंकाने वाले और विवादास्पद कदम के तहत अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के सहायक प्रोफेसर डॉ. एम. वेंकटेश नाइक को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई ऐसे समय हुई है जब कुछ ही सप्ताह पहले उन्होंने कथित जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ अपनी हाई-प्रोफाइल कानूनी लड़ाई को तेज किया था।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, 19 सितंबर को जारी आदेश में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में "संस्थान की सुरक्षा के हित में प्रतिकूल गतिविधियों" और "संकाय कर्मियों को व्यक्तिगत एवं पेशेवर नुकसान" की एक अस्पष्ट शिकायत का हवाला दिया गया है।
संस्थागत पक्षपात के खिलाफ लगातार आवाज उठाने वाले डॉ. नाइक ने इस निलंबन को "अवैध, मनमाना और प्रतिशोधात्मक" करार दिया है। उन्होंने इसकी निंदा करते हुए तुरंत रद्द करने की मांग की है और अदालत में चुनौती देने की बात कही है।
डॉ. नाइक का निलंबन उस समय हुआ है जब उनके उठाए गए मुद्दे—जैसे पीएचडी छात्रों के आवंटन से इनकार, पदोन्नति में देरी और झूठे उत्पीड़न के आरोप—पहले ही राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST), सर्वोच्च न्यायालय और प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच चुके हैं।
बहुजन अधिकार कार्यकर्ताओं और आलोचकों का कहना है कि यह कार्रवाई असहमति जताने वाली एक आदिवासी आवाज को दबाने की कोशिश है, जो देश के प्रमुख तकनीकी संस्थानों में पहले से मौजूद जातिगत असमानताओं को और गहरा करती है।
डॉ. नाइक की परेशानियां वर्ष 2012 से शुरू होती हैं, जब उन्होंने एमएनएनआईटी के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यभार संभाला। उसी समय डॉ. नवनीत कुमार सिंह (एससी) और डॉ. नीरज कुमार चौधरी (सामान्य वर्ग) ने भी पदभार ग्रहण किया। आदिवासी पृष्ठभूमि से आने वाले डॉ. नाइक ने नवीकरणीय ऊर्जा अनुसंधान में विशेषज्ञता के साथ संस्थान ज्वॉइन किया। उनका शोध क्षेत्र इलेक्ट्रिक वाहनों और सोलर पीवी सिस्टम्स के लिए डीसी-डीसी कन्वर्टर्स रहा है। उनके गूगल स्कॉलर प्रोफाइल पर 116 से अधिक उद्धरण दर्ज हैं। लेकिन जो शैक्षणिक सफर उम्मीद से शुरू हुआ था, वह जल्द ही भेदभाव और उपेक्षा के दुष्चक्र में फंस गया।
2017 तक डॉ. नाइक और डॉ. चौधरी दोनों ने अपनी पीएचडी पूरी कर ली थी, इसलिए दोनों को समान अवसर मिलने चाहिए थे। लेकिन तत्कालीन विभागाध्यक्ष डॉ. पॉलसन सैमुअल के कार्यकाल में गंभीर असमानताएं सामने आईं। डॉ. चौधरी को 2017-2019 में छह पीएचडी छात्र मिले, डॉ. सिंह को चार, जबकि डॉ. नाइक को एक भी नहीं मिला। इसका सीधा असर उनके शोध और करियर पर पड़ा। डॉ. नाइक ने इसे "जानबूझकर किया गया भेदभाव" बताया है। उन्हें 2020 में पहला पीएचडी छात्र मिला, जिससे उनके साथियों को तीन साल की बढ़त मिल गई और पदोन्नति के अवसर प्रभावित हुए।
2019 में असमानताएं और गहरी हुईं। उस साल डॉ. नाइक, डॉ. सिंह और डॉ. चौधरी को असिस्टेंट प्रोफेसर ग्रेड-I (एजीपी 8000) पर पदोन्नत किया गया। उसी वर्ष डॉ. प्रशांत कुमार तिवारी ने एनआईटी सिलचर से विभाग ज्वॉइन किया। पदोन्नति की लड़ाई आगे बढ़ी: 26 जुलाई 2023 को चारों एसोसिएट प्रोफेसर पद (एजीपी 9500) के लिए साक्षात्कार में शामिल हुए और सभी ने आवश्यक क्रेडिट पॉइंट पूरे किए, फिर भी किसी को पदोन्नति नहीं दी गई। 23 अगस्त 2024 को सिर्फ डॉ. नाइक को शॉर्टलिस्ट से बाहर कर दिया गया, कारण बताया गया—पीएचडी गाइड के रूप में पर्याप्त अनुभव न होना। 6 जनवरी 2025 को बाकी सहकर्मियों को पदोन्नत कर दिया गया, यहां तक कि जूनियर डॉ. तिवारी भी उनसे ऊपर चले गए। डॉ. नाइक इसे उनके खिलाफ सुनियोजित भेदभाव मानते हैं।
द मूकनायक से बातचीत में डॉ. नाइक ने कहा, "यह आदेश अवैध, मनमाना और टिकाऊ नहीं है। इसे बिना किसी फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी, प्रारंभिक जांच या तथ्यों की पुष्टि के जारी किया गया है। कानून के अनुसार, निलंबन केवल उचित कारणों और सबूतों पर आधारित होना चाहिए। मेरे मामले में ऐसी कोई सामग्री रिकॉर्ड पर मौजूद नहीं है।"
उन्होंने आगे कहा, "सीसीएस (सीसीए) नियम, 1965 के नियम 10 के तहत निलंबन तभी संभव है जब अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित हो या प्रस्तावित हो, या कोई आपराधिक मामला जांच या सुनवाई में हो। मेरे खिलाफ न तो कोई आरोपपत्र जारी हुआ है, न कोई जांच शुरू हुई है, और न ही कोई आपराधिक मामला दर्ज है। इसलिए यह निलंबन अधिकार क्षेत्र से बाहर है।"
डॉ. नाइक ने यह भी कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने अजय कुमार चौधरी बनाम भारत संघ (2015) में स्पष्ट कहा है कि निलंबन यांत्रिक या अनिश्चितकालीन नहीं हो सकता और इसे ठोस कारणों से न्यायोचित ठहराना आवश्यक है। मेरे मामले में निलंबन बिना किसी कारण बताए, मनमाने ढंग से और संवैधानिक सुरक्षा की अनदेखी करते हुए जारी किया गया है। यह कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है, जो समानता और मनमानी सरकारी कार्रवाई से सुरक्षा की गारंटी देते हैं।"
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द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, 19 सितंबर को जारी आदेश में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में "संस्थान की सुरक्षा के हित में प्रतिकूल गतिविधियों" और "संकाय कर्मियों को व्यक्तिगत एवं पेशेवर नुकसान" की एक अस्पष्ट शिकायत का हवाला दिया गया है।
संस्थागत पक्षपात के खिलाफ लगातार आवाज उठाने वाले डॉ. नाइक ने इस निलंबन को "अवैध, मनमाना और प्रतिशोधात्मक" करार दिया है। उन्होंने इसकी निंदा करते हुए तुरंत रद्द करने की मांग की है और अदालत में चुनौती देने की बात कही है।
डॉ. नाइक का निलंबन उस समय हुआ है जब उनके उठाए गए मुद्दे—जैसे पीएचडी छात्रों के आवंटन से इनकार, पदोन्नति में देरी और झूठे उत्पीड़न के आरोप—पहले ही राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST), सर्वोच्च न्यायालय और प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच चुके हैं।
बहुजन अधिकार कार्यकर्ताओं और आलोचकों का कहना है कि यह कार्रवाई असहमति जताने वाली एक आदिवासी आवाज को दबाने की कोशिश है, जो देश के प्रमुख तकनीकी संस्थानों में पहले से मौजूद जातिगत असमानताओं को और गहरा करती है।
डॉ. नाइक की परेशानियां वर्ष 2012 से शुरू होती हैं, जब उन्होंने एमएनएनआईटी के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यभार संभाला। उसी समय डॉ. नवनीत कुमार सिंह (एससी) और डॉ. नीरज कुमार चौधरी (सामान्य वर्ग) ने भी पदभार ग्रहण किया। आदिवासी पृष्ठभूमि से आने वाले डॉ. नाइक ने नवीकरणीय ऊर्जा अनुसंधान में विशेषज्ञता के साथ संस्थान ज्वॉइन किया। उनका शोध क्षेत्र इलेक्ट्रिक वाहनों और सोलर पीवी सिस्टम्स के लिए डीसी-डीसी कन्वर्टर्स रहा है। उनके गूगल स्कॉलर प्रोफाइल पर 116 से अधिक उद्धरण दर्ज हैं। लेकिन जो शैक्षणिक सफर उम्मीद से शुरू हुआ था, वह जल्द ही भेदभाव और उपेक्षा के दुष्चक्र में फंस गया।
2017 तक डॉ. नाइक और डॉ. चौधरी दोनों ने अपनी पीएचडी पूरी कर ली थी, इसलिए दोनों को समान अवसर मिलने चाहिए थे। लेकिन तत्कालीन विभागाध्यक्ष डॉ. पॉलसन सैमुअल के कार्यकाल में गंभीर असमानताएं सामने आईं। डॉ. चौधरी को 2017-2019 में छह पीएचडी छात्र मिले, डॉ. सिंह को चार, जबकि डॉ. नाइक को एक भी नहीं मिला। इसका सीधा असर उनके शोध और करियर पर पड़ा। डॉ. नाइक ने इसे "जानबूझकर किया गया भेदभाव" बताया है। उन्हें 2020 में पहला पीएचडी छात्र मिला, जिससे उनके साथियों को तीन साल की बढ़त मिल गई और पदोन्नति के अवसर प्रभावित हुए।
2019 में असमानताएं और गहरी हुईं। उस साल डॉ. नाइक, डॉ. सिंह और डॉ. चौधरी को असिस्टेंट प्रोफेसर ग्रेड-I (एजीपी 8000) पर पदोन्नत किया गया। उसी वर्ष डॉ. प्रशांत कुमार तिवारी ने एनआईटी सिलचर से विभाग ज्वॉइन किया। पदोन्नति की लड़ाई आगे बढ़ी: 26 जुलाई 2023 को चारों एसोसिएट प्रोफेसर पद (एजीपी 9500) के लिए साक्षात्कार में शामिल हुए और सभी ने आवश्यक क्रेडिट पॉइंट पूरे किए, फिर भी किसी को पदोन्नति नहीं दी गई। 23 अगस्त 2024 को सिर्फ डॉ. नाइक को शॉर्टलिस्ट से बाहर कर दिया गया, कारण बताया गया—पीएचडी गाइड के रूप में पर्याप्त अनुभव न होना। 6 जनवरी 2025 को बाकी सहकर्मियों को पदोन्नत कर दिया गया, यहां तक कि जूनियर डॉ. तिवारी भी उनसे ऊपर चले गए। डॉ. नाइक इसे उनके खिलाफ सुनियोजित भेदभाव मानते हैं।
द मूकनायक से बातचीत में डॉ. नाइक ने कहा, "यह आदेश अवैध, मनमाना और टिकाऊ नहीं है। इसे बिना किसी फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी, प्रारंभिक जांच या तथ्यों की पुष्टि के जारी किया गया है। कानून के अनुसार, निलंबन केवल उचित कारणों और सबूतों पर आधारित होना चाहिए। मेरे मामले में ऐसी कोई सामग्री रिकॉर्ड पर मौजूद नहीं है।"
उन्होंने आगे कहा, "सीसीएस (सीसीए) नियम, 1965 के नियम 10 के तहत निलंबन तभी संभव है जब अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित हो या प्रस्तावित हो, या कोई आपराधिक मामला जांच या सुनवाई में हो। मेरे खिलाफ न तो कोई आरोपपत्र जारी हुआ है, न कोई जांच शुरू हुई है, और न ही कोई आपराधिक मामला दर्ज है। इसलिए यह निलंबन अधिकार क्षेत्र से बाहर है।"
डॉ. नाइक ने यह भी कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने अजय कुमार चौधरी बनाम भारत संघ (2015) में स्पष्ट कहा है कि निलंबन यांत्रिक या अनिश्चितकालीन नहीं हो सकता और इसे ठोस कारणों से न्यायोचित ठहराना आवश्यक है। मेरे मामले में निलंबन बिना किसी कारण बताए, मनमाने ढंग से और संवैधानिक सुरक्षा की अनदेखी करते हुए जारी किया गया है। यह कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है, जो समानता और मनमानी सरकारी कार्रवाई से सुरक्षा की गारंटी देते हैं।"
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