सोशल मीडिया पोस्ट से हुई हिंसा के मामले में गैंगस्टर्स एक्ट लागू करना कानून का दुरुपयोग है: सुप्रीम कोर्ट

Written by sabrang india | Published on: June 24, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने एक गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि संगठित अपराध से निपटने के लिए बनाए गए कठोर कानून का इस्तेमाल सोशल मीडिया पोस्ट से उत्पन्न सांप्रदायिक घटनाओं के मामले में करना दुरुपयोग माना जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य को दी गई शक्तियों का इस्तेमाल उत्पीड़ित करने या डराने-धमकाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।


फोटो साभार : द न्यू इंडियन एकस्प्रेस

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संगठित अपराध से निपटने के लिए बनाया गया उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एक्ट, इस्तेमाल अगर किसी सांप्रदायिक घटना में किया जाए जो केवल सोशल मीडिया की ‘उकसाने वाली’ पोस्ट से उत्पन्न हुई हो, तो इसे इस कानून का दुरुपयोग माना जाएगा।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस संदीप मेहता द्वारा लिखित यह फैसला उन याचिकाकर्ताओं की अपील पर आया है, जिन पर राज्य सरकार ने आरोप लगाया था कि उन्होंने सोशल मीडिया पर एक धर्म विशेष के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले व्यक्ति के व्यावसायिक प्रतिष्ठान पर भीड़ जुटाकर हमला किया और तोड़फोड़ की। इस घटना के सिलसिले में उन पर गैंगस्टर एक्ट लगाया गया था।

जस्टिस संदीप मेहता ने अपने निर्णय में लिखा कि जब इस मामले की तुलना उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एक्ट की मूल भावना और उद्देश्य से की जाती है- जो कि संगठित आपराधिक गिरोहों से निपटने और ऐसी आपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए बनाया गया है जो लगातार सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा बनती हैं- तो केवल एक उकसाऊ सोशल मीडिया पोस्ट से उत्पन्न सांप्रदायिक तनाव की एकमात्र घटना के आधार पर इस सख्त कानून का प्रयोग, इसके मूल उद्देश्य के अनुरूप नहीं माना जा सकता।

फैसले में कहा गया है कि इस मामले में गैंगस्टर्स एक्ट का प्रयोग कानून के वैध उद्देश्यों से हटकर, सत्ता के अनुचित इस्तेमाल जैसा प्रतीत होता है।

जस्टिस मेहता ने टिप्पणी की कि कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया निष्पक्ष, न्यायोचित, तार्किक और गैर दमनकारी प्रवृत्ति की होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि जब राज्य सरकार यूपी गैंगस्टर्स एक्ट जैसे ‘असाधारण और कठोर प्रावधानों वाले कानून’ का इस्तेमाल करती है, तब नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी और ज्यादा महत्वपूर्ण एवं संरक्षित होने योग्य बन जाती है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य को सौंपी गई शक्तियों का इस्तेमाल किसी व्यक्ति को डराने, धमकाने या उत्पीड़न के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता विशेषकर तब, जब इसके पीछे संभावित राजनीतिक उद्देश्य छिपे हों।

सबूतों की ठोस आधार आवश्यक

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यूपी गैंगस्टर्स एक्ट जैसे असाधारण और दंडात्मक प्रावधानों वाले कानूनों का इस्तेमाल केवल तभी किया जाना चाहिए, जब प्रस्तुत साक्ष्य विश्वसनीयता की निश्चित और ठोस कसौटी पर खरे उतरते हों।

अदालत ने कहा, ‘जिस सामग्री पर भरोसा किया जा रहा है, वह आरोपी और कथित आपराधिक गतिविधि के बीच तर्कसंगत संबंध स्थापित करने में सक्षम होनी चाहिए। जब कोई कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंध लगाता है, तब उसके इस्तेमाल के लिए सबूत भी उतने ही ठोस और अच्छी तरह जांचे-परखे हुए होने चाहिए, न कि केवल अस्पष्ट या बिना पुष्टि वाले दावों पर आधारित।’

एफआईआर को रद्द करते हुए और याचिकाकर्ता की अपील स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि यह मामला गैंगस्टर्स एक्ट लागू करने की ‘आवश्यक न्यूनतम कसौटी’ पर खरा नहीं उतरता। अदालत ने यह भी कहा कि यह मामला ‘ज्यादातर अनुमानात्मक सिद्धांतों पर आधारित था, न कि इस बात के ठोस प्रमाणों पर कि आरोपी संगठित आपराधिक गतिविधियों में शामिल थे।’

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