दिल्ली दंगा केस: अदालत ने सबूतों से छेड़छाड़ करने को लेकर पुलिस अधिकारी को फटकारा

Written by sabrang india | Published on: January 15, 2025
अदालत ने कहा कि वास्तविक दोषियों का पता लगाने और उन पर मुकदमा चलाने के बजाय, वर्तमान आरोपी को पीड़ित पर हमला करने के लिए फंसाया गया है।


प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : इंडिया टू़डे

दिल्ली की एक अदालत ने एक ऐसे मामले पर गंभीर चिंता जाहिर की जिसमें 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के मामले की जांच कर रहे दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने कथित तौर पर सबूतों से छेड़छाड़ की जिससे एक आरोपी को गलत तरीके से फंसाया गया।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, आरोपी संदीप भाटी को बरी करते हुए अदालत ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को जांच अधिकारी (आईओ) के आचरण की समीक्षा करने और उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

अदालत के समक्ष मामला भाटी के खिलाफ हत्या के प्रयास के आरोप से जुड़ा था, जिसमें अभियोजन पक्ष मुख्य रूप से एक वीडियो क्लिप पर निर्भर था, जिसमें कथित तौर पर उसे हमले में भाग लेते हुए दिखाया गया था।

हालांकि, अदालत ने पाया कि आईओ ने क्लिप का एक छोटा सा हिस्सा पेश किया था, जिसमें जानबूझकर एक अहम हिस्से को छोड़ दिया गया, जहां भाटी को हमले को रोकने के लिए दखल करते हुए देखा गया था।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा कि गहन जांच करने और वास्तविक दोषियों की पहचान करने के बजाय, आईओ ने सबूतों से छेड़छाड़ करके भाटी को फंसाया।

अदालत ने कहा, "जांच अधिकारी ने लंबे वीडियो का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि उसने उस वीडियो को 5 सेकंड के लिए छोटा कर दिया ताकि आरोपी द्वारा पीड़ित पर हमला करने से दूसरों को रोकने वाले हिस्से को हटाया जा सके।"

इसमें यह भी कहा गया कि वास्तविक दोषियों का पता लगाने और उन पर मुकदमा चलाने के बजाय, वर्तमान आरोपी को पीड़ित पर हमला करने के लिए फंसाया गया है।

अदालत ने कहा, "यह स्पष्ट है कि जांच अधिकारी ने इन सभी शिकायतों की उचित जांच करने और पूरी जांच के आधार पर अपनी रिपोर्ट पेश करने के अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ लिया... इस मामले के रिकॉर्ड में इन शिकायतकर्ताओं की गवाही के अलावा कथित घटनाओं और उनके कारणों को स्थापित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है।"

अभियोजन पक्ष के अनुसार, 24 फरवरी, 2020 को पुलिस को गुरु तेग बहादुर अस्पताल में भर्ती एक घायल व्यक्ति के बारे में सूचना मिली थी। घायल व्यक्ति की बाद में पहचान शाहरुख के रूप में हुई, जिसने दावा किया कि ऑटो-रिक्शा में घर लौटते समय शिव विहार तिराहा के पास भीड़ ने उस पर हमला किया।

उसने आरोप लगाया कि भीड़ ने उसे बाहर खींच लिया और लाठी व पत्थरों से पीटा और पैर और सीने में गोली मार दी।

जांच के दौरान, समय, स्थान और घटनाओं की प्रकृति में समानता का हवाला देते हुए, तोड़फोड़ से जुड़े छह अन्य शिकायतों को मामले के साथ जोड़ दिया गया।

हालांकि, अदालत ने इन शिकायतों की ठीक से जांच करने में विफल रहने के लिए आईओ की आलोचना की और यह कहा कि केवल तीन साइट प्लान तैयार किए गए और कोई ठोस जांच नहीं की गई थी।

20 नवंबर, 2020 को शाहरुख के भाई समीर खान ने पुलिस को दो वीडियो क्लिप वाली एक सीडी मुहैया कराई और फुटेज में भाटी की पहचान की।

भाटी को 23 दिसंबर, 2020 को गिरफ्तार किया गया और अभियोजन पक्ष ने मुकदमे के दौरान 16 गवाह पेश किए। फिर भी, अदालत ने जांच में गंभीर खामियां पाईं, जिसमें आईओ द्वारा वीडियो की प्रामाणिकता को सत्यापित करने और इसके ओरिजिन का पता लगाने में विफलता भी शामिल है।

गवाही से पता चला कि 18 तस्वीरें, कथित तौर पर वीडियो के स्क्रीनशॉट, एक पब्लिक विटनेस द्वारा आईओ को सौंपी गई थीं। हालांकि, अदालत ने पाया कि ये तस्वीरें अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए वीडियो से नहीं बल्कि छूटे हुए पांच सेकंड के खंड से थीं।

अदालत ने कहा, "जांच अधिकारी ने व्हाट्सएप पर वीडियो पोस्ट करने वाले व्यक्ति की पहचान करने या उसके स्रोत का पता लगाने का प्रयास भी नहीं किया।"

मामले को लेकर जांच अधिकारी के रवैये की आलोचना करते हुए अदालत ने पाया कि अधूरे और तोड़-मरोड़ कर पेश किए गए साक्ष्यों के आधार पर भाटी को गलत तरीके से फंसाया गया।

अदालत ने भाटी को सभी आरोपों से बरी करते हुए कहा, "जांच अधिकारी द्वारा उचित जांच करने में विफल रहने, उचित जांच के बिना अप्रासंगिक शिकायतों को एक साथ जोड़ने और एक छेड़छाड़ किए गए वीडियो का इस्तेमाल करके आरोपी को गलत तरीके से फंसाने के मद्देनजर, जांच अधिकारी के आचरण के मूल्यांकन के लिए मामले को दिल्ली पुलिस आयुक्त को भेजना उचित समझा जाता है।"

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