बाघ अभयारण्यों से विस्थापन के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट; सीएनएपीए ने तत्काल कार्रवाई की मांग की

Written by sabrang india | Published on: October 4, 2024
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने 19 जून को एक निर्देश जारी किया, जिसमें वन अधिकारियों से 54 बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों में 591 गांवों के 64,801 परिवारों के पुनर्वास में तेजी लाने के लिए कहा गया।  



भारत के बाघ अभयारण्यों में रहने वाले बड़ी संख्या में आदिवासी उस सरकारी आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसमें इन क्षेत्रों से उनके विस्थापन की बात कही गई है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने 19 जून को एक निर्देश जारी किया था, जिसमें वन अधिकारियों से 54 बाघ अभयारण्यों के मुख्य क्षेत्रों में 591 गांवों से 64,801 परिवारों के पुनर्वास में तेजी लाने के लिए कहा गया।

आदिवासी समुदायों का मानना है कि वन अधिकार अधिनियम के तहत उनके अधिकारों की अनदेखी की जा रही है और वे अपनी आजीविका और परंपराओं के लिए न्याय की मांग करने के लिए दिल्ली में इकट्ठा होने की तैयारी कर रहे हैं, जो जंगलों से निकटता से जुड़ी हुई हैं।

एनटीसीए ने इन गांवों के पुनर्वास की धीमी प्रगति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह बाघ संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, एनटीसीए के पत्र में कहा गया है, "हम इस मुद्दे को प्राथमिकता देने की सराहना करते हैं और सुचारू पुनर्वास के लिए समय सीमा की उम्मीद करते हैं।"

एनटीसीए के सदस्य सचिव गोबिंद सागर भारद्वाज ने कहा कि यह स्थानांतरण स्वैच्छिक है। उन्होंने कहा, "यह पत्र एक रूटीन एक्सरसाइज का हिस्सा है और बाघ अभयारण्यों से गांवों का स्थानांतरण पूरी तरह से स्वैच्छिक है। इसमें कोई भ्रम नहीं है।"

बाघ अभयारण्यों में दो क्षेत्र हैं: मुख्य क्षेत्र, जो बाघ संरक्षण के लिए संरक्षित है, और बफर क्षेत्र, जहां कुछ मानवीय गतिविधियों की अनुमति है। मुख्य क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों का कहना है कि वे पीढ़ियों से प्रकृति के साथ जुड़े रहे हैं और अपनी संस्कृति, आजीविका और परंपराओं के लिए जंगलों पर निर्भर हैं।

2006 का वन अधिकार अधिनियम (FRA) इन समुदायों को वन संसाधनों का उपयोग करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार देता है, लेकिन उन्हें लगता है कि इस अधिनियम के धीमे कार्यान्वयन के कारण उन्हें जबरन बेदखल किया जा सकता है। इस समुदाय के नेता अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली में रैली करने की तैयारी कर रहे हैं ताकि एफआरए के जल्दी कार्यान्वयन और एनटीसीए के आदेश को रद्द करने की मांग की जा सके।

संरक्षित क्षेत्रों को लेकर सामुदायिक नेटवर्क (सीएनएपीए) ने एनटीसीए के निर्देश के खिलाफ उत्तराखंड के राजाजी और असम के काजीरंगा सहित कई बाघ अभयारण्यों में विरोध प्रदर्शन किया है। 3 अक्टूबर को सीएनएपीए ने कई मांगें कीं, जिनमें 19 जून के आदेश को वापस लेना और पूरे भारत में बाघ अभयारण्यों से परिवारों को बेदखल करने से रोकना शामिल है।

छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व के लोरमी गांव के निवासी सीमांचल ने कहा कि एनटीसीए के आदेश से बैगा समुदाय के पांच गांवों के लगभग 3,000 लोग प्रभावित हो सकते हैं। उन्होंने कहा, "इस रिजर्व में 25 गांव थे। 2013-14 में छह गांव को स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन उनकी स्थिति खराब हो गई। वे अब भयावह परिस्थितियों में रह रहे हैं और दिहाड़ी मजदूरी करते हैं।"

उन्होंने कहा कि अगर वनवासी यहीं रहेंगे, तो उनके अधिकार सीमित हो जाएंगे—वे मवेशी चराने, पानी इकट्ठा करने या तेंदू के पत्ते और महुआ के फूल जैसे वन उत्पाद इकट्ठा करने में सक्षम नहीं होंगे। "अगर उन्हें स्थानांतरित किया जाता है, तो उन्हें अकुशल और शोषणकारी कार्य करने को मजबूर होना पड़ेगा।"

यूके स्थित एनजीओ सर्वाइवल इंटरनेशनल की निदेशक कैरोलीन पीयर्स ने एनटीसीए के आदेश और उसके बाद हुए विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा, "ये बेदखली राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानून दोनों के अनुसार गैरकानूनी है और ये कारगर नहीं है। जंगल, आदिवासी लोग और बाघ एक दूसरे के बिना जिंदा नहीं रह सकते।"

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