उच्च संस्थानों की फैकल्टी में वंचित कोटे के खाली पदों की जानकारी सामने आने के बाद विभिन्न नागरिक समाज समूहों और छात्र संगठनों ने कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों की शैक्षणिक आकांक्षाओं को भी कमजोर करता है।
फोटो साभार : सोशल मीडिया एक्स
भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) इंदौर और तिरुचिरापल्ली की फैकल्टी में वंचित समुदायों के आरक्षित कोटे के पद खाली हैं। यहां ओबीसी और एससी-एसटी श्रेणियों के लिए आरक्षित पद खाली पड़े हैं, जो इन संस्थानों की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करते हैं। एक आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि आईआईएम इंदौर में एससी और एसटी श्रेणी में कोई अध्यापक नहीं है, जबकि सामान्य वर्ग के सभी पद भरे जा चुके हैं।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, ऑल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईओबीसीएसए) के अध्यक्ष किरण कुमार गौड़ द्वारा आरटीआई के तहत आईआईएम इंदौर से पूछे गए सवाल के जवाब में बताया गया कि संस्थान में 150 फैकल्टी पदों में से कई आरक्षित श्रेणी के पद खाली हैं। ओबीसी पद पर केवल 2 सहायक प्रोफेसर नियुक्त किए गए हैं, जबकि एससी और एसटी के लिए न तो अनुसूचित जाति (एससी) और न ही अनुसूचित जनजाति (एसटी) से कोई फैकल्टी सदस्य नियुक्त किया गया है। ईडब्ल्यूएस श्रेणी में केवल एक सहायक प्रोफेसर नियुक्त किया गया है।
कुल 150 फैकल्टी पदों में से 106 जनरल कैटेगरी के उम्मीदवारों द्वारा भरे गए हैं, जिससे 44 पद खाली रह गए हैं। एससी और एसटी की अनुपस्थिति और ओबीसी की कम संख्या विविधता और समावेशन पर गंभीर प्रश्न खड़ा करते हैं।
आईआईएम तिरुचिरापल्ली की स्थिति भी चिंताजनक है। वहां 83.33% ओबीसी, 86.66% एससी, और 100% एसटी फैकल्टी पद खाली हैं, जबकि सभी जनरल कैटेगरी पद भरे जा चुके हैं। यह भर्ती प्रक्रिया में एक व्यापक प्रणालीगत समस्या को दर्शाता है, जहां वंचित समुदायों को फैकल्टी पदों से बाहर रखा गया है।
उच्च संस्थानों में आरक्षित कोटे में पदों के खाली होने की इस स्थिति पर विभिन्न नागरिक समाज समूहों और छात्र संगठनों ने कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों की शैक्षणिक आकांक्षाओं को भी कमजोर करता है।
द मूकनायक से बातचीत में एआईओबीसीएसए के अध्यक्ष किरण कुमार गौड़ ने कहा, "यह संविधान के प्रावधानों का बड़ा उल्लंघन है। आईआईएम जैसे संस्थान समावेशन और समान अवसर के प्रतीक होने चाहिए, लेकिन ये आंकड़े एक भेदभाव और जातिगत असमानता की कठोर वास्तविकता को दर्शाते हैं।"
आलोचकों का कहना है कि सीटों की उपलब्धता और ओबीसी, एससी और एसटी श्रेणियों के उम्मीदवारों की योग्यता के बावजूद, इन समूहों से शिक्षकों की नियुक्ति में अनिच्छा जाति-आधारित भेदभाव के गहरे मुद्दों को दर्शाती है।
संकाय प्रतिनिधित्व में विविधता की कमी के दूरगामी निहितार्थ हैं, न केवल सामाजिक न्याय के लिए, बल्कि भारत के प्रमुख प्रबंधन संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता और विविध दृष्टिकोणों के प्रतिनिधित्व के लिए भी ये ट्रेंड उचित नहीं है।
सामाजिक-आर्थिक विभाजन को पाटने के उद्देश्य से सकारात्मक कार्रवाई नीतियों के साथ शिक्षा जगत में हाशिए पर पड़े समुदायों का निरंतर कम प्रतिनिधित्व तत्काल सुधारों की आवश्यकता पर जोर देता है।
इसी साल मार्च महीने में प्रकाशित द क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार, "2023-24 में पीएचडी एडमिशन के दौरान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर ने 34 सीटें अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ी जाति (OBC) समुदायों से आने वाले छात्रों को देने से इनकार कर दिया था।" वहीं, "आईआईटी खड़गपुर में [कुल 45 में से] 43 विभागों में एसटी समुदाय से संबंधित एक भी फैकल्टी मेंबर नहीं है।" यह डेटा इस साल 6 फरवरी को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए मिले जवाब के आधार पर आईआईटी बॉम्बे छात्र समूह अंबेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्कल (एपीपीएससी) ने शेयर किया था।
फोटो साभार : सोशल मीडिया एक्स
भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) इंदौर और तिरुचिरापल्ली की फैकल्टी में वंचित समुदायों के आरक्षित कोटे के पद खाली हैं। यहां ओबीसी और एससी-एसटी श्रेणियों के लिए आरक्षित पद खाली पड़े हैं, जो इन संस्थानों की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करते हैं। एक आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि आईआईएम इंदौर में एससी और एसटी श्रेणी में कोई अध्यापक नहीं है, जबकि सामान्य वर्ग के सभी पद भरे जा चुके हैं।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, ऑल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईओबीसीएसए) के अध्यक्ष किरण कुमार गौड़ द्वारा आरटीआई के तहत आईआईएम इंदौर से पूछे गए सवाल के जवाब में बताया गया कि संस्थान में 150 फैकल्टी पदों में से कई आरक्षित श्रेणी के पद खाली हैं। ओबीसी पद पर केवल 2 सहायक प्रोफेसर नियुक्त किए गए हैं, जबकि एससी और एसटी के लिए न तो अनुसूचित जाति (एससी) और न ही अनुसूचित जनजाति (एसटी) से कोई फैकल्टी सदस्य नियुक्त किया गया है। ईडब्ल्यूएस श्रेणी में केवल एक सहायक प्रोफेसर नियुक्त किया गया है।
कुल 150 फैकल्टी पदों में से 106 जनरल कैटेगरी के उम्मीदवारों द्वारा भरे गए हैं, जिससे 44 पद खाली रह गए हैं। एससी और एसटी की अनुपस्थिति और ओबीसी की कम संख्या विविधता और समावेशन पर गंभीर प्रश्न खड़ा करते हैं।
आईआईएम तिरुचिरापल्ली की स्थिति भी चिंताजनक है। वहां 83.33% ओबीसी, 86.66% एससी, और 100% एसटी फैकल्टी पद खाली हैं, जबकि सभी जनरल कैटेगरी पद भरे जा चुके हैं। यह भर्ती प्रक्रिया में एक व्यापक प्रणालीगत समस्या को दर्शाता है, जहां वंचित समुदायों को फैकल्टी पदों से बाहर रखा गया है।
उच्च संस्थानों में आरक्षित कोटे में पदों के खाली होने की इस स्थिति पर विभिन्न नागरिक समाज समूहों और छात्र संगठनों ने कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों की शैक्षणिक आकांक्षाओं को भी कमजोर करता है।
द मूकनायक से बातचीत में एआईओबीसीएसए के अध्यक्ष किरण कुमार गौड़ ने कहा, "यह संविधान के प्रावधानों का बड़ा उल्लंघन है। आईआईएम जैसे संस्थान समावेशन और समान अवसर के प्रतीक होने चाहिए, लेकिन ये आंकड़े एक भेदभाव और जातिगत असमानता की कठोर वास्तविकता को दर्शाते हैं।"
आलोचकों का कहना है कि सीटों की उपलब्धता और ओबीसी, एससी और एसटी श्रेणियों के उम्मीदवारों की योग्यता के बावजूद, इन समूहों से शिक्षकों की नियुक्ति में अनिच्छा जाति-आधारित भेदभाव के गहरे मुद्दों को दर्शाती है।
संकाय प्रतिनिधित्व में विविधता की कमी के दूरगामी निहितार्थ हैं, न केवल सामाजिक न्याय के लिए, बल्कि भारत के प्रमुख प्रबंधन संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता और विविध दृष्टिकोणों के प्रतिनिधित्व के लिए भी ये ट्रेंड उचित नहीं है।
सामाजिक-आर्थिक विभाजन को पाटने के उद्देश्य से सकारात्मक कार्रवाई नीतियों के साथ शिक्षा जगत में हाशिए पर पड़े समुदायों का निरंतर कम प्रतिनिधित्व तत्काल सुधारों की आवश्यकता पर जोर देता है।
इसी साल मार्च महीने में प्रकाशित द क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार, "2023-24 में पीएचडी एडमिशन के दौरान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर ने 34 सीटें अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ी जाति (OBC) समुदायों से आने वाले छात्रों को देने से इनकार कर दिया था।" वहीं, "आईआईटी खड़गपुर में [कुल 45 में से] 43 विभागों में एसटी समुदाय से संबंधित एक भी फैकल्टी मेंबर नहीं है।" यह डेटा इस साल 6 फरवरी को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए मिले जवाब के आधार पर आईआईटी बॉम्बे छात्र समूह अंबेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्कल (एपीपीएससी) ने शेयर किया था।