"वनाधिकार कानून-2006 न सिर्फ वन आश्रित समुदायों के अधिकारों को (मान्यता) दिलाने का काम कर रहा है बल्कि गांव सभा के सर्वोपरि होने से ये कानून वन निवासियों का उत्पीड़न रोकने के लिए भी प्रमुख हथियार बना है। हाल में इस कानून की ताकत की बानगी उस समय देखने को मिली जब बहराइच जिले के वनाश्रित समुदाय के लोगों की जमीनों पर वन विभाग द्वारा कब्जा करने और विरोध करने पर मुकदमे लिखवाकर उत्पीड़न करने का मामला प्रकाश में आया था। वन अधिकार कानून के सटीक इस्तेमाल ने लोगों को वन विभाग के उत्पीड़न से निजात दिलाने का काम किया है।"
मामला काफी रोचक है। जनपद बहराइच के मोतीपुर तहसील अंतर्गत वन बस्ती ग्राम रामपुर रेतिया का है। इस गांव के वन निवासियों की कृषि भूमि बगल के गांव गुलरिया तालुका में भी है जो कि लखीमपुर खीरी में पड़ता है। वन विभाग ने इस जमीन को कुछ वर्षों पहले भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 20 के तहत सुरक्षित वन के रूप में चुपचाप दर्ज करा लिया। यही नहीं, कोरोना काल में उत्तर खीरी वन प्रभाग के धौरहरा रेंज के अधिकारियों ने 120 एकड़ जमीन छीनकर जबरन वृक्षारोपण कर दिया। शेष बची जमीन पर इस बार वृक्षारोपण करने की तैयारी के चलते, विभाग द्वारा वन निवासियों के खेतों में गड्ढे खोदने का प्रयास किया जिस पर गांव वालों ने एतराज जताया तो वन विभाग ने धौरहरा कोतवाली, जनपद खीरी में आठ ग्रामीणों के विरुद्ध बड़ी-बड़ी धाराओं में मुकदमे दर्ज करा दिए। केस की विवेचना कफारा चौकी प्रभारी अजय प्रताप सिंह कर रहे थे। मुकदमा दर्ज होने पर चौकी प्रभारी ने सभी लोगों को बातचीत के लिए बुलाया। अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के वरिष्ठ पदाधिकारी और प्रमुख वनाधिकार कार्यकर्ता जंग हिंदुस्तानी के नेतृत्व में ग्रामीण 23 जून 2024 को पुलिस चौकी गए। जंग ने बताया कि जब वह लोग चौकी प्रभारी से बात कर रहे थे तभी धौरहरा कोतवाली पुलिस की गाड़ी आई और सभी मुकदमे में नामजद लोगों को थाने चलने के लिए कहा। जंग ने बताया कि उन्होंने इस बात का विरोध किया लेकिन पुलिस ने हमारी बात नहीं मानी। पुलिस, सभी को धौरहरा कोतवाली ले गई तो पीछे पीछे वह भी कोतवाली पहुंच गए।
*वनाधिकार कानून की दलीलों के आगे कुछ यूं निरुत्तर हुआ वन विभाग*
वनाधिकार कार्यकर्ता जंग हिंदुस्तानी ने बताया कि धौरहरा में दो घंटे बाद वहां पर कोतवाली प्रभारी दिनेश सिंह के साथ बातचीत शुरू हुई। उन्होंने वन विभाग को भी बुला लिया। इसके बाद में हमने पूरी स्थिति को दस्तावेज सहित अवगत कराया और वन विभाग के सामने प्रश्न रखे। मसलन, उन्होंने पूछा कि जब आपको स्वयं एच टू केस काटने के लिए सरकार ने प्राधिकृत किया हुआ है तो आपने पुलिस थाने में मुकदमा क्यों पंजीकृत कराया? दूसरा, जब वनाधिकार कानून की प्रक्रिया चल रही है तो ग्रामीणों के कब्जे की जमीन पर पेड़ लगाने का काम आपने क्यों किया? तीसरा, अगर आपने वंन अधिकार कानून का उल्लंघन किया है तो क्यों ना आपके विरुद्ध इसी समय मुकदमा दर्ज करा दिया जाए? चौथा, आपने अन्य लोगों के साथ साथ वनाधिकार समिति के सदस्य जिनके विरुद्ध आपने मुकदमा पंजीकृत कराया है, वह वन अधिकार कानून के मुताबिक लोक सेवक हैं और किसी भी लोक सेवक पर मुकदमा दर्ज करने से पहले crpc की धारा 197 के तहत पूरी जांच की जाती है और उसके बाद मुकदमा दर्ज किया जाता है। आपने बिना किसी सक्षम प्राधिकारी को सूचना दिए मुकदमा कैसे दर्ज करवाया? तथा पांचवा यह कि जिस जमीन को आप अपना बता रहे हैं उसे धारा 20 के तहत आप लोगों ने गुपचुप तरीके से अपने नाम दर्ज करा लिया है। धारा 4 से लेकर धारा 20 तक की सारी प्रक्रिया पूरी किए बिना गजट नोटिफिकेशन कराया है? ये सही है या गलत?
इन सवालों ने वन विभाग को निरुत्तर का दिया। जंग ने कहा कि उनके सवालों का वन अफसरों ने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि यह कानून सिर्फ थारू आदिवासी लोगों के लिए है तो मैंने तुरंत वन अधिकार कानून की किताब निकालकर दिखाई कि यह अन्य परंपरागत वन निवासियों के लिए भी है और सभी तरह से जंगल की जमीन पर लागू होता है। इतने पर वन विभाग के लोग उठकर चलने लगे तो कोतवाल ने वन विभाग से कहा कि आप लोग ग्रामीणों को परेशान करना बंद करो अन्यथा मुकदमेबाजी बढ़ती जाएगी और आप लोग भी परेशान हो जाएंगे।
*वनाधिकार कानून ने दिलाई जेल जाने से निजात: जंग*
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के वरिष्ठ पदाधिकारी और प्रमुख वनाधिकार कार्यकर्ता जंग हिंदुस्तानी ने बताया कि अधिकारी उनके द्वारा रखी गई बात और प्रस्तुत साक्ष्य देखकर संतुष्ट हुए और पुलिस की ओर से ग्रामीणों को पूरा सहयोग का आश्वासन दिया। इसके बाद उन्होंने सभी गिरफ्तार किए लोगों को सम्मान सहित तुरंत रिहा करने का आदेश किया। रिहा होने के बाद देर रात सभी वापस घर आ गए। कहा कि यह वनाधिकार कानून की ताकत ही है कि सभी निर्दोष ग्रामीणों को जेल जाने से निजात मिलने का काम हुआ।
*स्थानीय संगठन ने उठाया सटीक और प्रभावी कदम: चौधरी*
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी ने कहा कि स्थानीय संगठन ने बहुत सटीक और प्रभावी कदम उठाया और वन विभाग को शिकस्त दिया। संगठित लोगों के सामने वन विभाग कभी टिक नहीं पाएगा। इस संघर्ष के लिए सभी संग्राही साथियों को मुबारकबाद।
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मामला काफी रोचक है। जनपद बहराइच के मोतीपुर तहसील अंतर्गत वन बस्ती ग्राम रामपुर रेतिया का है। इस गांव के वन निवासियों की कृषि भूमि बगल के गांव गुलरिया तालुका में भी है जो कि लखीमपुर खीरी में पड़ता है। वन विभाग ने इस जमीन को कुछ वर्षों पहले भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 20 के तहत सुरक्षित वन के रूप में चुपचाप दर्ज करा लिया। यही नहीं, कोरोना काल में उत्तर खीरी वन प्रभाग के धौरहरा रेंज के अधिकारियों ने 120 एकड़ जमीन छीनकर जबरन वृक्षारोपण कर दिया। शेष बची जमीन पर इस बार वृक्षारोपण करने की तैयारी के चलते, विभाग द्वारा वन निवासियों के खेतों में गड्ढे खोदने का प्रयास किया जिस पर गांव वालों ने एतराज जताया तो वन विभाग ने धौरहरा कोतवाली, जनपद खीरी में आठ ग्रामीणों के विरुद्ध बड़ी-बड़ी धाराओं में मुकदमे दर्ज करा दिए। केस की विवेचना कफारा चौकी प्रभारी अजय प्रताप सिंह कर रहे थे। मुकदमा दर्ज होने पर चौकी प्रभारी ने सभी लोगों को बातचीत के लिए बुलाया। अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के वरिष्ठ पदाधिकारी और प्रमुख वनाधिकार कार्यकर्ता जंग हिंदुस्तानी के नेतृत्व में ग्रामीण 23 जून 2024 को पुलिस चौकी गए। जंग ने बताया कि जब वह लोग चौकी प्रभारी से बात कर रहे थे तभी धौरहरा कोतवाली पुलिस की गाड़ी आई और सभी मुकदमे में नामजद लोगों को थाने चलने के लिए कहा। जंग ने बताया कि उन्होंने इस बात का विरोध किया लेकिन पुलिस ने हमारी बात नहीं मानी। पुलिस, सभी को धौरहरा कोतवाली ले गई तो पीछे पीछे वह भी कोतवाली पहुंच गए।
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