UP नगर निकाय चुनाव: भाजपा बसपा का मुस्लिम दांव कितना कारगर?

Written by Navnish Kumar | Published on: May 3, 2023
2024 से पहले मुस्लिम वोटबैंक में सेंधमारी की थाह लेने के तौर पर देख रहे जानकार!


  
UP नगर निकाय चुनाव में भाजपा और बसपा ने टिकटों में मुस्लिम उम्मीदवारों पर बड़ा दांव खेला है। यह दांव कितना कारगर होगा वो तो समय बताएगा लेकिन कई जानकर, इसे 2024 से पहले मुस्लिम सपोर्ट बेस में सेंधमारी की थाह लेने के तौर पर देख रहे हैं। उधर, अखिलेश यादव का कहना है कि इससे साबित होता है कि BJP-BSP दोनों पार्टी अंदरखाने मिली हुई हैं और दोनों का मकसद सपा को कमजोर करना है। 

खास है कि UP में 760 नगर निकायों में 14,864 पदों के लिए प्रतिनिधियों के चुनाव 4 और 11 मई को दो चरणों में चुनाव होंगे। पहले चरण में 9 मंडलों के 37 जिलों में 4 मई को मतदान होना है जिसके लिए मंगलवार शाम चुनाव प्रचार खत्म हो गया है। प्रदेश में 17 नगर निगमों के मेयर, नगर पालिका परिषदों के 199 अध्यक्ष और 544 नगर पंचायतों के साथ-साथ 1,420 पार्षद, नगर पंचायतों के 5,327 सदस्य और नगर पालिका परिषदों के 7,177 सदस्य चुनाव में चुने जाएंगे।

भाजपा की बात करें तो BJP ने, नगर पालिका परिषदों, पंचायतों और नगर निगमों में अध्यक्ष और सदस्य पदों के लिए 391 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जो अब तक का सबसे अधिक है। इनमें से अधिकांश ने उन सीटों से नामांकन किया है जिनमें समुदाय की अच्छी खासी तादाद है। नामांकितों में कई मुस्लिम महिलाएं भी हैं। भाजपा के कुल 391 मुस्लिम उम्मीदवारों में से 351 शहरी वार्डों से पार्षदों व सदस्यों के साथ 35 नगर पंचायतों और पांच नगर पालिका परिषद अध्यक्षों के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। ये पहली बार है जब भाजपा ने इतने बड़े पैमाने पर मुसलमानों को टिकट दिया है। सवाल है कि बीजेपी का ये कदम 2024 के लिए कितना कारगर होगा?

हालांकि, पार्टी ने मेयर पद के लिए किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पार्टी के एक नेता ने कहा कि इनमें से 90 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवार पसमांदा मुस्लिम समुदाय से हैं- शिया और सुन्नी दोनों। पार्टी नेता ने कहा कि 2017 के निकाय चुनावों में मुस्लिम उम्मीदवारों को भगवा पार्टी ने पार्षदों और सदस्यों की केवल कुछ सीटों से टिकट दिया था और कई सीटें ऐसी थीं जहां पार्टी को एक भी उम्मीदवार चुनाव लड़ने के लिए नहीं मिला था। राज्य के 17 नगर निगमों में से अयोध्या इकलौता ऐसा निकाय है जहां पार्टी ने किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है।

पार्टी ने नगर निगम पार्षद पदों के लिए सबसे अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। मेरठ में 21, अलीगढ़ में 17, सहारनपुर में 13, कानपुर में 11, बरेली में पांच, मुरादाबाद में आठ, गाजियाबाद में चार, प्रयागराज और वाराणसी में तीन-तीन, लखनऊ में दो और गोरखपुर, झांसी, आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा-वृंदावन और शाहजहांपुर में एक-एक।

टांडा और रामपुर की नगर पालिका परिषदों के अध्यक्ष पद के लिए पार्टी ने दो महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। साथ ही जिले की स्वार सीट से पार्टी की सहयोगी अपना दल (एस) ने एक महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। इसी तरह, पार्टी ने बदायूं जिले के ककराला, आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर और बिजनौर जिले के अफजलगढ़ की नगर पालिका परिषदों से मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सूबे की राजधानी लखनऊ से भाजपा ने दो मुस्लिम उम्मीदवारों को निगम पार्षद का टिकट दिया है। पार्टी ने, कल्बे आबिद से कौसर मेंहदी शम्सी आजाद और  हुसैनाबाद से लुबना अली खान को टिकट दिया है। इसी तरह बरेली में 80 में से 9 सीटों पर भाजपा ने मुस्लिम चेहरों को पार्षद पद का प्रत्याशी बनाया है। ये मुस्लिम आबादी वाली सीटें हैं। पिछली बार भाजपा ने ऐसी सात सीटों पर टिकट ही नहीं दिया था, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक थी।

भाजपा ने अलीगढ़ में सबसे ज्यादा 18 मुस्लिम चेहरों को उम्मीदवार बनाया है। ये इलाके मुस्लिम आबादी वाले हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछली बार इनमें से ज्यादातर सीटों पर भाजपा ने कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया था। कानपुर में भी पार्षद पद के लिए पार्टी ने मुस्लिम कार्ड खेला है। भाजपा ने 11 मुस्लिम चेहरों को उम्मीदवार बनाया है जिनमें 6 महिलाएं शामिल है। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र यानी वाराणसी में भी भाजपा ने तीन क्षेत्रों से मुस्लिम चेहरों को मौका दिया है। जमालुद्दीन्पुरा से अहमद अंसारी, बधू कच्ची बाग से रेशमा बीबी और मदनपुरा से हुमा बानो को मैदान में उतारा गया है। वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र गोरखपुर से भी भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवार पर भरोसा जताया है। हकीबुलन्निशा को बाबा गंभीरनाथ नगर से प्रत्याशी बनाया गया है।

नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए ज्यादातर मुस्लिम उम्मीदवार मेरठ, बागपत, अमरोहा, मुरादाबाद, बदायूं, रामपुर और बरेली जिलों से हैं। इन सभी जिलों में मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने कहा, 'अतीत में टिकट के लिए समुदाय की ओर से ऐसी कोई मांग नहीं की जाती थी। इस बदलाव से पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में बीजेपी में मुसलमानों का भरोसा बढ़ा है।' अली ने कहा कि भाजपा में मुसलमानों का भरोसा इसलिए बढ़ा है क्योंकि केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार और यूपी में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार ने उन्हें बिना किसी भेदभाव के कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया। पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा, “मुस्लिम उम्मीदवारों को केवल समुदाय के वर्चस्व वाली सीटों पर टिकट दिया गया है। मतदान के दिन हमें जो प्रतिक्रिया मिलेगी, वह पार्टी द्वारा समुदाय तक पहुंचने के लिए किए गए प्रयासों की प्रभावशीलता का परीक्षण करेगी।

पार्टी ने सभी जातियों और समुदायों के सदस्यों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया और उन्हें यूपी विधान परिषद में प्रतिनिधित्व दिया। पिछले महीने ही पार्टी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के तत्कालीन कुलपति तारिक मंसूर को राज्य विधान परिषद के लिए नामित किया था। पार्टी के पास अब विधान परिषद में चार मुस्लिम सदस्य हैं, जो पार्टी से विधानसभा के ऊपरी सदन में समुदाय का अब तक का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व है।

विरोधी दलों पर भाजपा के कदम का क्या असर? 

जानकर कहते हैं, 'भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार उतारने से सपा और कांग्रेस के मुस्लिम वोट में बिखराव की आशंका है। अगर भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतते हैं तो आने वाले दिनों में पार्टी विधानसभा और लोकसभा में भी इस तरह के उम्मीदवारों की संख्या बढ़ा सकती है।' हालांकि भाजपा के ख़िलाफ़ अल्पसंख्यकों में बढ़ते ग़ुस्से के मद्देनज़र, भले पार्टी ने करीब 390 मुसलमान उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। अब भले मुस्लिम भाजपा से नाराज हों लेकिन याद रखना होगा स्थानीय निकाय चुनाव, पार्टियों से ज़्यादा व्यक्तित्वों के बारे में होते हैं। इसलिए भाजपा कुछ सीट जीत भी जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

दूसरा, मुस्लिम प्रत्याशियों पर नजर डालें तो भाजपा ने ज्यादातर मुस्लिम महिलाओं को टिकट दिया है। इसके अलावा मुस्लिम समाज के ओबीसी और अति पिछड़े वर्ग यानी पसमांदा लोगों को टिकट दिया है। इसके जरिए भाजपा उन मुस्लिम वोटर्स के बीच पकड़ बनाने की कोशिश में है, जिन्हें राजनीतिक तौर पर पार्टियां अनदेखा करती रहीं हैं।'

उधर, बसपा ने भी नगर निकाय चुनाव में 11 मुस्लिम नेताओं को मेयर का कैंडिडेट बनाया है। बहुजन समाज पार्टी ने 2 चरणों में होने वाले नगर निकाय चुनावों में महापौर के पदों के लिए 64 फीसद से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर न केवल राज्य की करीब 20 फीसद मुस्लिम आबादी को साधने की कोशिश की है, बल्कि समाजवादी पार्टी (सपा) के परंपरागत वोट बैंक में बिखराव की संभावना भी बढ़ा दी है।

राजनीतिक जानकार इसे 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए मुसलमानों के बीच पैठ बनाने की बसपा की एक रणनीति मान रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि इससे सपा के परम्परागत मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव हो सकता है। वहीं, सपा और कांग्रेस ने इसे वोट काटने की रणनीति करार दिया है। खास है कि 2017 में महापौर की 16 सीट में से 14 पर भाजपा और दो पर बसपा जीती थी तथा सपा एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।

बसपा ने लखनऊ, मथुरा, सहारनपुर, फिरोजाबाद, प्रयागराज, मुरादाबाद, मेरठ, शाहजहांपुर, गाजियाबाद, अलीगढ़ और बरेली नगर निगमों में मेयर पद के लिए मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए हैं। वहीं, सपा और कांग्रेस ने सिर्फ चार-चार मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाया है। भाजपा ने मेयर की किसी भी सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है। बसपा ने लखनऊ से शाहीन बानो, मथुरा से राजा मोहतासिम अहमद, फिरोजाबाद से रुखसाना बेगम, सहारनपुर से खदिजा मसूद, प्रयागराज से सईद अहमद, मुरादाबाद से मोहम्मद यामीन, मेरठ से हसमत अली, शाहजहांपुर से शगुफ्ता अंजुम, गाजियाबाद से निशारा खान, अलीगढ़ से सलमान शाहिद और बरेली से युसूफ खान को उम्मीदवार बनाया है. 2017 के निकाय चुनावों में बीएसपी आगरा और अलीगढ़ में अपने मेयर जिताने में कामयाब रही थी। इस बार बीएसपी ने इमरान मसूद जैसे मुस्लिम नेताओं को साथ लाकर मुस्लिम वोटर्स को अपनी ओर खींचने की रणनीति बनाई है।

क्या यह आंखों में धूल झोंकने जैसा है?

हालांकि, उत्तर प्रदेश में पसमांदा नेतृत्व भाजपा की मुस्लिम पहुंच को "आंखों में धूल झोंकने" के रूप में देखता है। मोमिन अंसार सभा के अकरम अंसारी बताते है कि भाजपा ने कई मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है लेकिन उनकी शिकायतों को समझने के लिए कभी भी समुदाय से जमीन पर जुड़ने का कोई प्रयास नहीं किया है। 

अंसारी का कहना है कि, दक्षिणपंथी इकोसिस्टम और नेताओं के नफ़रत भरे भाषणों और धमकियों ने मुस्लिम समुदाय को भाजपा के करीब आने से रोक दिया है। इसके अलावा, मुस्लिमों को टिकट देने के पीछे भाजपा की असल मंशा को लेकर राजनीतिक हलकों में भी बहस चल रही है। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि पार्टी का उद्देश्य विभिन्न मुसलमानों के बीच उनकी सामाजिक स्थिति के आधार पर विभाजन पैदा करना है।

BJP-BSP दोनों मिली हुई: अखिलेश

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि बहुजन समाज पार्टी अन्दर ही अन्दर भाजपा से मिली हुई है और दोनों का मकसद सपा को कमजोर करना है। सहारनपुर में मेयर प्रत्याशी नूर हसन मलिक के समर्थन में रोड-शो के बाद आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में अखिलेश यादव ने कहा कि सपा बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और डॉक्टर लोहिया के विचारों और सिद्धांतों पर चलते हुए सभी लोगों को साथ लेकर चल रही है।

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा के लोग नफरत फैलाने और हिन्दू-मुस्लिम तथा समाज को लड़ाने की राजनीति कर रहे हैं। इनके पास जनता को बताने के लिए खुद का कोई काम नहीं है। भाजपा सरकार ने नगरों में अपने कार्यकाल के दौरान हुए विकास कार्यों को रोक दिया। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने शहरों में जन सुविधाएं तक नहीं दे सकी। स्मार्ट सिटी के नाम पर धोखा दिया है। शहरों की स्मार्ट सिटी में कोई जन सुविधा नहीं है। स्मार्ट सिटी के नाम पर जमकर भ्रष्टाचार और लूट हुई है। शहरों में कूड़ा, गंदगी है नालियां और नाले भरे पड़े हैं। स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल है। मेडिकल कॉलेजों में सुविधाएं नहीं है। सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में बजट नहीं दे रही है।

बोले कि यह चुनाव शहरी क्षेत्रों में साफ सफाई और जनता की सुविधाओं के लिए है। लेकिन मुख्यमंत्री जी तमंचे की बात करते हैं। मुख्यमंत्री से सफाई, ट्रैफिक, जनसमस्याओं, बेरोजगारी, महंगाई पर सवाल करो तो जवाब तमंचा मिलता है। उनसे से क्या उम्मीद की जा सकती है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था ध्वस्त है। प्रदेश में हर दिन महिलाओं बेटियों के साथ घटनाएं हो रही है। व्यापारियों का उत्पीड़न हो रहा। अन्याय, अत्याचार चरम पर है। मुख्यमंत्री दूसरों को माफिया बताते है, अगर वे स्वयं के मुकदमे वापस न लेते तो उनकी चार्टशीट बहुत लंबी होती। उन पर तमाम तरह के गंभीर मुकदमे दर्ज थे।

पारदर्शी निकाय चुनाव कराने में कोई भी लापरवाही अक्षम्य: आयोग

राज्‍य निर्वाचन आयुक्‍त मनोज कुमार ने यहां जारी बयान में कहा कि प्रथम चरण के चुनाव के लिए, गुरुवार को 9 मंडलों के 37 जिलों में मतदान कराया जाएगा। कहा कि निष्पक्ष, स्वतंत्र एवं पारदर्शी चुनाव कराने में किसी भी स्तर पर लापरवाही क्षम्य नहीं होगी। उन्होंने कहा कि सभी क्षेत्रों में चुनाव प्रेक्षक तैनात किये गये हैं और प्रेक्षकों को मतदान के पल-पल की जानकारी आयोग को भेजनी होगी।

निर्वाचन आयोग के मुताबिक प्रदेश में दो चरणों में चार मई और 11 मई को नगर निकाय चुनाव के लिए मतदान होगा और 13 मई को मतगणना होगी। नगर निगमों के महापौर और पार्षद पद के लिए मतदान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से होगा, जबकि बाकी पदों के लिए मतदान मतपत्र से होगा। कुमार ने बताया कि पहले चरण में चार मई को सहारनपुर, मुरादाबाद, आगरा, झांसी, प्रयागराज, लखनऊ, देवीपाटन, गोरखपुर और वाराणसी मंडल के 37 जिलों के 2.40 करोड़ से अधिक मतदाता अपने मत का प्रयोग कर सकेंगे।

आयोग के अनुसार नगर निगमों के 10 पार्षदों समेत कुल 85 प्रतिनिधि पहले ही निर्विरोध चुने जा चुके हैं। चुनाव के लिए सुरक्षा व्यवस्था के बारे में विस्तार से बताते हुए विशेष पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने मंगलवार को कहा था कि स्थानीय निकाय चुनाव के पहले चरण के लिए 19,880 निरीक्षक- उपनिरीक्षक, 101477 मुख्य आरक्षी-आरक्षी, 47985 होमगार्ड, पीएसी की 86 कंपनियां, सीएपीएफ की 35 कंपनियां और 7,500 प्रशिक्षण ले रहे उप निरीक्षक तैनात किए जाएंगे।

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