असम सरकार ने वन भूमि से ‘अतिक्रमणकारियों’ को हटाने के लिए दो माह में चौथा अभियान शुरू किया

Written by Navnish Kumar | Published on: February 15, 2023
"असम सरकार ने वन भूमि से ‘अतिक्रमणकारियों’ को हटाने के नाम पर बेदखली अभियान शुरू किया है। अभियान में प्रशासन और वन विभाग के साथ असम पुलिस और सीआरपीएफ के 1,700 से ज्यादा जवान (कर्मचारी) लगे हैं।"




एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, असम सरकार ने मंगलवार को सोनितपुर जिले में लगभग 1,900 हेक्टेयर वन और सरकारी भूमि को साफ करना शुरू कर दिया है, जिसमें लगभग 12,000 लोग प्रभावित हुए हैं जो दशकों से 'अवैध' रूप से वहां रह रहे थे। दो महीने के अंदर इस तरह के चौथे अभियान में, सोनितपुर जिला प्रशासन ने, मध्य असम में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी किनारे स्थित बुराचापोरी वन्यजीव अभ्यारण्य (BWS) और आस-पास के राजस्व गांवों में, भारी सुरक्षा इंतजामातों के साथ "अतिक्रमण" हटाने का काम शुरू किया है।

प्रभावित परिवारों में कुछ लोगों ने बताया कि यहां रहने वाले लोग मुख्य रूप से बंगाली भाषी मुस्लिम है और अधिकांश, पिछले कुछ हफ्तों में नोटिस प्राप्त करने के बाद अपने घरों को छोड़ चुके हैं। जबकि कुछ लोग अपना परिसर खाली करने की तैयारी में थे जब बेदखली अभियान शुरू हुआ। इन कथित "अतिक्रमणकर्ताओं" ने जोर देते हुए कहा कि उन्हें कभी किसी ने नहीं बताया कि वे जिस क्षेत्र में रह रहे हैं वह जंगल या सरकारी भूमि के अंतर्गत आता है। साथ ही उन्होंने दावा किया कि उन्हें यहां रहते विभिन्न राज्य और केंद्रीय योजनाओं का लाभ तक भी मिलता रहा है।

कांग्रेस ने बेदखली अभियान को लेकर भाजपा नीत सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि बहुत से प्रभावित परिवार वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अनुसार भूमि पर अधिकार के हकदार हैं। सोनितपुर के उपायुक्त देब कुमार मिश्रा ने पीटीआई को बताया कि हजारों लोगों ने “अवैध रूप से” दशकों से जंगल और आस-पास के इलाकों पर कब्जा कर रखा है। और ताजा अभियान के तहत प्रशासन ने गुरुवार तक 1,892 हेक्टेयर को खाली कराने का फैसला किया है।

उन्होंने कहा, "इसमें 1,401 हेक्टेयर बुराचापोरी वन्यजीव अभ्यारण्य (BWS) के अंतर्गत आता है और शेष 491 हेक्टेयर सरकारी भूमि है। जंगल में 1,758 परिवार रह रहे थे, जिनमें 6,965 लोग शामिल थे।" जबकि नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार, 4,645 लोगों वाले 755 परिवार सरकारी भूमि पर रह रहे थे। साथ ही अधिकारी ने बताया कि अभी तक यह अभियान पूर्णतया शांतिपूर्ण रहा है और कोई विरोध नहीं हुआ है।

उपायुक्त मिश्रा ने कहा, "हमने पाया है कि इस क्षेत्र का कभी सर्वेक्षण नहीं किया गया था और लोग भ्रम में थे कि उनके गांव, नागांव या सोनितपुर जिले के अंतर्गत आते हैं। जबकि "सरकारी स्कूल, आंगनवाड़ी केंद्र, मस्जिद और अन्य संरचनाएं उन लोगों द्वारा बनाई गई थीं जो सोचते थे कि यह नागांव जिला है।" उन्होंने कहा कि इन स्कूल और अन्य सरकारी संस्थानों को आने वाले दिनों में गैर-अतिक्रमित भूमि में स्थित पास के ऐसे केंद्रों से जोड़ दिया जाएगा ताकि शिक्षा और कल्याणकारी उपाय प्रभावित न हों।

इस अभियान में प्रशासन और वन विभाग के साथ असम पुलिस और सीआरपीएफ के 1,700 से अधिक कर्मी लगे हैं। उपायुक्त ने कहा कि अवैध ढांचों को गिराने और जमीन साफ ​​करने के लिए करीब 100 बुलडोजर, खुदाई मशीनों और ट्रैक्टरों का इस्तेमाल किया गया है।

वरिष्ठ कांग्रेस विधायक रकीबुल हुसैन ने पीटीआई-भाषा को बताया कि सरकार बिजली की बढ़ी दरों, महंगाई और बेरोजगारी जैसे वास्तविक आर्थिक मुद्दों से लोगों को भटकाने के लिए बेदखली अभियान चला रही है।

"इसके अलावा, इनमें से अधिकतर लोगों को भूमि पर अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वन अधिकार अधिनियम के अनुसार, 10 साल से जंगल में रह रहे आदिवासी लोगों को भूमि पर अधिकार मिलता है। गैर-आदिवासी लोगों के मामले में, तीन पीढ़ियों के एक जंगल में, रहने पर उन्हें अधिकार मिलते हैं।" 

उधर, सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा आरोप लगाया गया कि हुसैन, जो कांग्रेस शासन के दौरान वन मंत्री थे, ने दावा किया था कि उनके कार्यकाल के दौरान एक भी व्यक्ति को बुराचापोरी क्षेत्र में बसने की अनुमति नहीं दी गई थी।

बेदखली का शिकार पीड़ितों ने दावा किया कि वे लगभग तीन दशकों से, उस क्षेत्र में, बिना यह जाने रह रहे थे कि यह जंगल या सरकारी भूमि है। अमीनुल हक ने कहा "मैं 90 के दशक के मध्य में यहां इस जगह आया था जब हमारा गांव बाढ़ में बह गया था। मेरा बेटा यहां पैदा हुआ था, उसने यहीं शिक्षा प्राप्त की और अब इस जगह पर खेती करके जीवन यापन कर रहा है। अब इस बेदखली के बाद, हम फिर से बेघर हो गए हैं।" 

उन्होंने दावा किया कि उनके गावों में सरकार द्वारा बिजली और सड़क मुहैया कराई गई है। इस्फाकुर अली ने कहा कि उनका करीब 10 बीघा सब्जियों का खेत (1.34 हे. जमीन) ट्रैक्टरों द्वारा बर्बाद कर दिया गया है। टूटे हुए घर से अपना बचा हुआ सामान इकट्ठा करते हुए फिरोजा बेगम ने दावा किया, "प्रशासन ने कहा था कि वे 20 फरवरी से बेदखली शुरू करेंगे। हमने उसी (कार्यक्रम) के अनुसार सभी व्यवस्थाएं कीं। लेकिन अचानक बिना किसी सूचना के वे आज आ गए और हमारे घरों को तोड़ना शुरू कर दिया।" जो क्रूरता है।

एक अधिकारी ने बताया कि बेदखली की कवायद खत्म होने के बाद, वन विभाग इस जमीन पर वनीकरण अभियान शुरू करेगा और हजारों पौधे लगाएगा। 44.06 वर्ग किमी में फैला, बुराचापोरी वन्यजीव अभ्यारण्य (BWS), गुवाहाटी से लगभग 180 किमी पूर्व में स्थित है। यह संरक्षित वन क्षेत्र, लाओखोवा-बुराचापोरी पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न हिस्सा है और काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व का अधिसूचित बफर जोन है।

यह एक सींग वाले गैंडे, बाघ, तेंदुआ, जंगली भैंसा, हॉग हिरण, जंगली सुअर और हाथियों का घर है। दूसरी ओर, बुराचापोरी की पक्षी सूची में अत्यधिक लुप्तप्राय बंगाल फ्लोरिकन, ब्लैक-नेक्ड स्टॉर्क, मैलार्ड, ओपन बिल स्टॉर्क, टील और व्हिस्लिंग डक आदि भी शामिल हैं।

1974 से यह एक आरक्षित वन क्षेत्र रहा है और 1995 में इसे वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया गया था। पिछले दो महीने के भीतर असम के बुराचापोरी में यह चौथा प्रमुख बेदखली अभियान है। इससे पहले दिसंबर में नागांव और बारपेटा में और जनवरी माह में लखीमपुर जिले में अभियान चलाया गया था।

उधर, अखिल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ (एएएमएसयू) ने इस बेदखली अभियान को अमानवीय और एकतरफा करार दिया और इसके खिलाफ जिले में संक्षिप्त विरोध प्रदर्शन किया।

अनुवादन: नवनीश कुमार

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