एक तरफ भारत समेत दुनिया भर में सामाजिक, राजनीतिक स्तर पर लोकतंत्र का दायरा सीमित होता जा रहा है तो दूसरी तरफ वर्षों तक अलग-अलग प्रयासों से वैश्विक सूचकांकों में जगह बना चुके भारत की स्थिति वर्तमान में लगातार नीचे गिरता जा रहा है. आज दुनिया भर के उन देशों के राजनीतिक हालात से भारत की स्थिति हु-बहु मेल खाती हैं जहाँ प्रजातंत्र को या तो ख़त्म कर दिया गया है या ख़त्म करने का कार्य जारी है.
देश की राजनीति आज हिंसा, झूठे वादों, जुमलों, पूंजीवादी नीतियों, धार्मिक-साम्प्रदायिक बयानबाजी व भ्रामक आडम्बर पर टिकी हुई है. तमाम संवैधानिक संस्थाएं लगभग समाप्तप्राय हो गयी है. लेकिन यह स्थिति केवल भारत में ही नहीं है बल्कि दुनिया के अन्य कई देशों में भी है. वर्तमान में विश्व भर के कई देशों में कट्टर दक्षिणपंथी और स्वघोषित राष्टवादी नेता सत्ता में विराजमान हैं. ऐसे देशों में राजनीतिक तानाशाही एक समान चरित्र है जो सभी जगह एक समान रूप से दिखाई देता है. हाल ही में हंगरी में स्वघोषित तानाशाह विक्टर ओर्बन चौथी बार प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए हैं. एशिया के देश फिलीपींस में भी पूर्व तानाशाह रह चुके मार्कोस के पुत्र फर्डिनांड मार्कोस जूनियर राष्ट्रपति निर्वाचित हुए. इन नेताओं की मानसिकता और कार्यपद्धति भारत में सत्तासीन नेताओं के कार्यशैली से मेल खाती है.
बात अगर वैश्विक सूचकांकों में भारत के हालात पर किए जाए तो उसका परिणाम बेहद चिंतनीय हैं. मानवीय मूल्यों के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के भारत प्रमुख रह चुके आकार पटेल इन संकेतकों की स्थति पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालते हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक में भारत एक स्थान नीचे आ चुका है. इसका कारण लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य में औसत आय और विनिवेश में कमी होना है. संयुक्त राष्ट्र विश्व खुशहाली रिपोर्ट यानी हैप्पीनेस रिपोर्ट खुशी को नहीं मापती है यह प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी, जिंदगी जीने की उम्मीद, स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार की धारणाओं को मापती है. इस मोर्चे पर भारत 19 पायदान गिर चुका है.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स, जो भूख, बच्चों में स्टंटिंग और अल्पपोषण को मापता है, इस संकेतक पर भारत 46 स्थान गिर गया है और आज पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से पीछे है.
अमेरिका में कंजर्वेटिव (यानी दक्षिणपंथी) संस्थाएं लंबे समय से स्वतंत्रता पर अपने दृष्टिकोण से दुनिया की निगरानी कर रहे हैं. ‘कैटो ह्यूमन फ्रीडम इंडेक्स’ में भारत 44 स्थान नीचे आ गया है और इसका कारण कानून के शासन, धार्मिक स्वतंत्रता और व्यापार की स्वतंत्रता में गिरावट है. विश्व आर्थिक मंच या वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (जिसे दावोस के नाम से जाना जाता है) ग्लोबल जेंडर गैप इंडैक्स यानी वैश्विक स्तर पर लिंग अनुपात का इंडेक्स जारी करता है. इसमें किसी देश में लैंगिक समानता पर प्रगति की निगरानी की जाती है. इसमें भी भारत 26 पायदान गिर गया है. विश्व बैंक अपने महिला, व्यापार और कानून सूचकांक के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक अवसरों की निगरानी करता है. भारत इसमें भी 13 पायदान गिर गया है.
नागरिकों के लिए स्वास्थ्य, सुरक्षा, गतिशीलता यानी मोबिलिटी, गतिविधियों यानि एक्टिविटीज़ और अवसरों जैसे मानकों को मापने वाले स्मार्ट सिटीज इंडेक्स में दिल्ली 18 स्थान, बेंगलुरु 16 स्थान, हैदराबाद 18 स्थान और मुंबई 15 स्थान नीचे गिरा है. एक्सेस नाउ ट्रैकर दुनिया भर में इंटरनेट शटडाउन पर नजर रखता है. भारत इस मामले में वर्ल्ड लीडर है. भारत में 2014 में 6 शटडाउन, 2015 में 14, 2016 में 79, 2017 में 134, 2019 में 121 और 2020 में 109 इंटरनेट शटडाउन हुए थे. साल 2021 में यह संख्या 106 थी. 2019 में कुल 213 वैश्विक शटडाउन में से, 56 प्रतिशत शटडाउन भारत में हुए थे जोकि वेनेजुएला से 12 गुना अधिक थे जो इस मामले में दूसरे नंबर पर था). 2020 में दुनिया भर में कुल 155 इंटरनेट शटडाउन हुए थे जिसमें से अकेले भारत में 70 फीसदी भारत में ही हुए थे और इससे महामारी के दौर में भी मरीजों, छात्रों आदि पर गंभीर प्रभाव पड़ा था.
वैश्विक आरटीआई रेटिंग में भी भारत 4 स्थान नीचे गिर गया है और अब तो इस मोर्चे पर बहुत कुछ अपारदर्शी हो चुका है. लोकतंत्र को मापने वाले संकेतकों पर भी भारत कई स्थान नीचे आया है, और इस बारे में काफी कुछ प्रकाशित भी हो चुका है.
फ्रीडम हाउस के विश्व सूचकांक में, भारत 'स्वतंत्र' से 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' हो गया है. सिविकस मॉनिटर की नेशनल सिविक स्पेस रैंकिंग एसोसिएशन, शांतिपूर्ण सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को देखती है (जो कि अनुच्छेद 19 के तहत भारत में मौलिक अधिकार हैं). इसमें भारत अभियक्ति को रोकने वाले देश की श्रेणी से लुढ़ककर 'अभिव्यक्ति का दमन करने वाले' देश के रूप में दर्ज हुआ है. इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत 19 पायदान गिर गया है. भारत ने कठोर शक्ति, अर्थात सैन्य क्षमता और दुनिया को प्रभावित करने की शक्ति खो दी है, और लोवी इंस्टीट्यूट के एशिया पावर इंडेक्स पर, भारत ने लद्दाख में घटनाओं के बाद 2020 में अपनी 'प्रमुख शक्ति' का दर्जा खो दिया है. द वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट मॉनिटर यानी विश्व न्याय परियोजना देशों में कानून के शासन की निगरानी करती है. भारत यहां 13 पायदान गिर गया है. वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 10 पायदान गिर गया है. ब्लूमबर्ग की कोविड रेजिलिएशन रैंकिंग ने भारत को दुनिया में नीचे से चौथा स्थान दिया है जोकि पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी खराब स्थिति है.
विश्व वायु गुणवत्ता सूचकांक को देखें तो दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में हैं जबकि 2017 में इनकी संख्या 11 थी. येल पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक पर, जो पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा को देखता है, भारत 13 स्थान गिर गया और बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल से पीछे चला गया. इसी तरह क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स में यह 11 पायदान गिरकर पाकिस्तान और बांग्लादेश से फिर से पीछे हो गया. भारत सतत विकास सूचकांक में 10 स्थान गिर गया.
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के लोकतंत्र की विविधता पर नजर रखने वाले इंडेक्स में, भारत एक लोकतंत्र के रूप में अपनी स्थिति खो चुका है और हंगरी और तुर्की जैसे देशों में शामिल होकर एक 'चुनावी निरंकुशता' वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया और नागरिक समाज पर, भारत 'पाकिस्तान की तरह निरंकुश और बांग्लादेश और नेपाल दोनों से भी बदतर' स्थिति में है.
आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारत देश के लोगों की जिंदगी से आजादी और खुशहाली दोनों ही नदारद हो चुकी है. देश में विपक्षियों व् विरोध की आवाज उठाने वाले लोगों को दबाने के लिए सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी तैयार की गयी है. सत्ता के लिए स्वतंत्र मीडिया को कुचल कर गोदी मीडिया को स्थापित करना व् धर्म के नाम पर जनता को भड़काने का काम सिर्फ भारत में ही नहीं हो रहा है. यह हथकंडा पूरी दुनिया में अपनाए जा रहे है और तानाशाही को बढ़ावा दे रहे हैं. ‘सबका साथ सबका विकास’ के नाम पर बनी सरकार आज ‘सबकी बर्बादी सबका विनाश’ पर उतारू हो चुकी है जिसे समझने, समझाने और सँभालने की जरुरत है.
देश की राजनीति आज हिंसा, झूठे वादों, जुमलों, पूंजीवादी नीतियों, धार्मिक-साम्प्रदायिक बयानबाजी व भ्रामक आडम्बर पर टिकी हुई है. तमाम संवैधानिक संस्थाएं लगभग समाप्तप्राय हो गयी है. लेकिन यह स्थिति केवल भारत में ही नहीं है बल्कि दुनिया के अन्य कई देशों में भी है. वर्तमान में विश्व भर के कई देशों में कट्टर दक्षिणपंथी और स्वघोषित राष्टवादी नेता सत्ता में विराजमान हैं. ऐसे देशों में राजनीतिक तानाशाही एक समान चरित्र है जो सभी जगह एक समान रूप से दिखाई देता है. हाल ही में हंगरी में स्वघोषित तानाशाह विक्टर ओर्बन चौथी बार प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए हैं. एशिया के देश फिलीपींस में भी पूर्व तानाशाह रह चुके मार्कोस के पुत्र फर्डिनांड मार्कोस जूनियर राष्ट्रपति निर्वाचित हुए. इन नेताओं की मानसिकता और कार्यपद्धति भारत में सत्तासीन नेताओं के कार्यशैली से मेल खाती है.
बात अगर वैश्विक सूचकांकों में भारत के हालात पर किए जाए तो उसका परिणाम बेहद चिंतनीय हैं. मानवीय मूल्यों के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के भारत प्रमुख रह चुके आकार पटेल इन संकेतकों की स्थति पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालते हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक में भारत एक स्थान नीचे आ चुका है. इसका कारण लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य में औसत आय और विनिवेश में कमी होना है. संयुक्त राष्ट्र विश्व खुशहाली रिपोर्ट यानी हैप्पीनेस रिपोर्ट खुशी को नहीं मापती है यह प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी, जिंदगी जीने की उम्मीद, स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार की धारणाओं को मापती है. इस मोर्चे पर भारत 19 पायदान गिर चुका है.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स, जो भूख, बच्चों में स्टंटिंग और अल्पपोषण को मापता है, इस संकेतक पर भारत 46 स्थान गिर गया है और आज पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से पीछे है.
अमेरिका में कंजर्वेटिव (यानी दक्षिणपंथी) संस्थाएं लंबे समय से स्वतंत्रता पर अपने दृष्टिकोण से दुनिया की निगरानी कर रहे हैं. ‘कैटो ह्यूमन फ्रीडम इंडेक्स’ में भारत 44 स्थान नीचे आ गया है और इसका कारण कानून के शासन, धार्मिक स्वतंत्रता और व्यापार की स्वतंत्रता में गिरावट है. विश्व आर्थिक मंच या वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (जिसे दावोस के नाम से जाना जाता है) ग्लोबल जेंडर गैप इंडैक्स यानी वैश्विक स्तर पर लिंग अनुपात का इंडेक्स जारी करता है. इसमें किसी देश में लैंगिक समानता पर प्रगति की निगरानी की जाती है. इसमें भी भारत 26 पायदान गिर गया है. विश्व बैंक अपने महिला, व्यापार और कानून सूचकांक के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक अवसरों की निगरानी करता है. भारत इसमें भी 13 पायदान गिर गया है.
नागरिकों के लिए स्वास्थ्य, सुरक्षा, गतिशीलता यानी मोबिलिटी, गतिविधियों यानि एक्टिविटीज़ और अवसरों जैसे मानकों को मापने वाले स्मार्ट सिटीज इंडेक्स में दिल्ली 18 स्थान, बेंगलुरु 16 स्थान, हैदराबाद 18 स्थान और मुंबई 15 स्थान नीचे गिरा है. एक्सेस नाउ ट्रैकर दुनिया भर में इंटरनेट शटडाउन पर नजर रखता है. भारत इस मामले में वर्ल्ड लीडर है. भारत में 2014 में 6 शटडाउन, 2015 में 14, 2016 में 79, 2017 में 134, 2019 में 121 और 2020 में 109 इंटरनेट शटडाउन हुए थे. साल 2021 में यह संख्या 106 थी. 2019 में कुल 213 वैश्विक शटडाउन में से, 56 प्रतिशत शटडाउन भारत में हुए थे जोकि वेनेजुएला से 12 गुना अधिक थे जो इस मामले में दूसरे नंबर पर था). 2020 में दुनिया भर में कुल 155 इंटरनेट शटडाउन हुए थे जिसमें से अकेले भारत में 70 फीसदी भारत में ही हुए थे और इससे महामारी के दौर में भी मरीजों, छात्रों आदि पर गंभीर प्रभाव पड़ा था.
वैश्विक आरटीआई रेटिंग में भी भारत 4 स्थान नीचे गिर गया है और अब तो इस मोर्चे पर बहुत कुछ अपारदर्शी हो चुका है. लोकतंत्र को मापने वाले संकेतकों पर भी भारत कई स्थान नीचे आया है, और इस बारे में काफी कुछ प्रकाशित भी हो चुका है.
फ्रीडम हाउस के विश्व सूचकांक में, भारत 'स्वतंत्र' से 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' हो गया है. सिविकस मॉनिटर की नेशनल सिविक स्पेस रैंकिंग एसोसिएशन, शांतिपूर्ण सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को देखती है (जो कि अनुच्छेद 19 के तहत भारत में मौलिक अधिकार हैं). इसमें भारत अभियक्ति को रोकने वाले देश की श्रेणी से लुढ़ककर 'अभिव्यक्ति का दमन करने वाले' देश के रूप में दर्ज हुआ है. इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत 19 पायदान गिर गया है. भारत ने कठोर शक्ति, अर्थात सैन्य क्षमता और दुनिया को प्रभावित करने की शक्ति खो दी है, और लोवी इंस्टीट्यूट के एशिया पावर इंडेक्स पर, भारत ने लद्दाख में घटनाओं के बाद 2020 में अपनी 'प्रमुख शक्ति' का दर्जा खो दिया है. द वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट मॉनिटर यानी विश्व न्याय परियोजना देशों में कानून के शासन की निगरानी करती है. भारत यहां 13 पायदान गिर गया है. वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 10 पायदान गिर गया है. ब्लूमबर्ग की कोविड रेजिलिएशन रैंकिंग ने भारत को दुनिया में नीचे से चौथा स्थान दिया है जोकि पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी खराब स्थिति है.
विश्व वायु गुणवत्ता सूचकांक को देखें तो दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में हैं जबकि 2017 में इनकी संख्या 11 थी. येल पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक पर, जो पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा को देखता है, भारत 13 स्थान गिर गया और बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल से पीछे चला गया. इसी तरह क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स में यह 11 पायदान गिरकर पाकिस्तान और बांग्लादेश से फिर से पीछे हो गया. भारत सतत विकास सूचकांक में 10 स्थान गिर गया.
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के लोकतंत्र की विविधता पर नजर रखने वाले इंडेक्स में, भारत एक लोकतंत्र के रूप में अपनी स्थिति खो चुका है और हंगरी और तुर्की जैसे देशों में शामिल होकर एक 'चुनावी निरंकुशता' वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया और नागरिक समाज पर, भारत 'पाकिस्तान की तरह निरंकुश और बांग्लादेश और नेपाल दोनों से भी बदतर' स्थिति में है.
आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारत देश के लोगों की जिंदगी से आजादी और खुशहाली दोनों ही नदारद हो चुकी है. देश में विपक्षियों व् विरोध की आवाज उठाने वाले लोगों को दबाने के लिए सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी तैयार की गयी है. सत्ता के लिए स्वतंत्र मीडिया को कुचल कर गोदी मीडिया को स्थापित करना व् धर्म के नाम पर जनता को भड़काने का काम सिर्फ भारत में ही नहीं हो रहा है. यह हथकंडा पूरी दुनिया में अपनाए जा रहे है और तानाशाही को बढ़ावा दे रहे हैं. ‘सबका साथ सबका विकास’ के नाम पर बनी सरकार आज ‘सबकी बर्बादी सबका विनाश’ पर उतारू हो चुकी है जिसे समझने, समझाने और सँभालने की जरुरत है.