महाराष्ट्र, पंजाब समेत कई राज्यों में ख़तरनाक स्तर पर पंहुची कोरोना संक्रमण की दर
कोरोना महामारी के संक्रमण का दूसरा दौर शुरू हो चुका है. देश के कुछ राज्यों में कोरोना महामारी की दूसरी लहर की गंभीरता को देखते हुए राज्यों में कई सख्त पाबंदियां फिर से लौट आई हैं. कोरोना की वजह से नई चुनौतियां खड़ी हो गयी है, सरकार द्वारा तमाम तरह की चौकसी भी बरती जा रही है. आम जनता के लिए कई तरह की हिदायतें भी केंद्र सरकार के द्वारा जारी की गई हैं लेकिन समय-समय पर देश के अलग-अलग हिस्सों में आम जनता के द्वारा कोरोना बचाव को लेकर व्यापक कोताही बरती जा रही है. हालाँकि सरकार द्वारा संक्रमण के ख़तरे को देखते हुए कहीं रात्रि कर्फ्यू तो कहीं चरणबद्ध रूप से तो कहीं पूर्ण रूप से बंदी करने जैसी नौबत आ गयी है. मगर बिडम्बना यह है कि इन सब के बावजूद भी कई राज्यों और प्रदेशों को इन नियमों पर अमल करना मुनासिब नहीं लग रहा है. यहाँ आस्था, परंपरा, चुनावी सभाओं के आयोजनों में इस महामारी से बचावों के प्रयास को धता बताया जा रहा है.
इस देश में अजीबोग़रीब स्थिति उत्पन्न हो चुकी है. यहाँ धार्मिक आयोजन होला- मोहल्ला के लिए, जमातियों के लिए, विद्याथियों के लिए कोरोना महामारी है लेकिन मंदिर, मेला, कुम्भ, चुनावी सभाओं व रैलियों के लिए कोरोना का असर नज़र नहीं आता है. एक तरफ़ महाराष्ट्र के नांदेड़ के गुरुद्वारा साहिब में सिखों की तरफ़ से होला-मोहल्ला का जुलुस निकाला जाता है हालाँकि इस बार कोरोना महामारी की वजह से पहले की तरह जुलुस को निकालने की इजाज़त प्रशासन की तरफ़ से नहीं मिली थी और इस कार्यक्रम को गुरुद्वारे परिसर के भीतर ही किया जाना तय हुआ था. जब ऐसे आयोजनों में भारी तदादा में लोगों की उपस्थिति हो गयी तो हर बार के तरह सामान्य तरीके से जुलुस को किया गया और इस खीचतान में यह माहौल अराजकता में तब्दील हो गया. नतीजतन जनता और पुलिस के बीच हाथापाई हो गयी और कुछ लोग घायल भी हो गए. ऐसे हालत में एक धार्मिक उत्सव अराजकता और हिंसा का शिकार हो जाता है. जिसे मीडिया में मसाला लगाकर परोसा भी गया. सवाल यह है हरिद्वार के कुम्भ में उमड़ी भीड़, होली के मौके पर मंडोर क्षेत्र में रावजी के गेर में उमड़ा लोगों का हुजूम, जहाँ कोरोना गाइडलाइन धरी रह गयी, यहाँ हजारों लोगों के जमा होने से सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ाई गयीं, मथुरा के बांके बिहारी मंदिर में कोरोना गाइडलाइन को दरकिनार कर मनाई गयी होली और 5 राज्यों में चल रही चुनावी सभा और रैलियों तक क्या महामारी का प्रकोप नहीं पहुँच रहा है?
माना यह जा रहा है कि कोरोना के दूसरे लहर की रफ़्तार पहले से ज्यादा तेज और ख़तरनाक है. मंगलवार को स्वास्थ्य विभाग की तरफ़ से ज़ारी आंकड़ों के मुताबिक़ 78.56 फ़ीसदी कोरोना के मामले सिर्फ़ 6 राज्यों में आए हैं. इनमें महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु व् गुजरात शामिल हैं. इसके अलावे दिल्ली, छतीसगढ़, राजस्थान और हरियाणा में भी कोरोना के मामले में तेजी से वृद्धि दर्ज की जा रही है. 60 फ़ीसदी से ज्यादा मामले केवल महारष्ट्र से आ रहे हैं. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ़ से जारी किए गए आकड़ों के मुताबिक़ कोरोना के सक्रिय मामलों में लगातार 20 वें दिन दिन भी बढ़ोत्तरी हुई है. पिछले 24 घंटे के दौरान 56211 मामले सामने आए हैं. कुल मिलाकर संक्रमितों का आंकड़ा देश में 1करोड़ 20लाख 95हज़ार को पार कर गया है. इनमें से 1करोड़ 13लाख 93हज़ार से ज्यादा मरीज पूरी तरह से ठीक भी हो चुके हैं जबकि 162114 लोगों की जान भी जा चुकी है.
इस आंकड़े के अनुसार वर्तमान में मरीजों के संक्रमण से उबरने की दर 94.19 फ़ीसदी पर आ गयी है जबकि मृत्युदर 1.34 फ़ीसदी बनी हुई है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, प्रतिदिन कोरोना महामारी के सक्रिय केस में वृद्धि हो रही है. सर्वाधिक सक्रिय केस महाराष्ट्र राज्य में और फिर पंजाब व् कर्नाटक में दर्ज किया गया है. हालाँकि कोरोना महामारी की दूसरी लहर उस दौर में भारत में आई है जब टीकाकरण अभियान को तीव्र गति से चलाया जा रहा है. कुछ राज्यों में पाबंदियां बढ़ाई गयी हैं, ऐसे हालात में यह संभव है कि कोरोना के दुसरे लहर का असर भारत में अन्य देशों की अपेक्षा कम पड़े.
यह सही है कि धर्म और आस्था एक संवेदनशील विषय है और इनकी गतिविधियों और उत्सवधर्मिता के अपने नियम और कायदे होते हैं लेकिन एक धार्मिक गतिविधि पर सवाल करना और दूसरे धार्मिक गतिविधियों व् कार्यकलाप को कोरोना महामारी गाइडलाइन के बाहर रखना कहाँ से उचित है? जिस महामारी की वजह से लोगों की सेहत और जीवन के सामने जोखिम पैदा हो रही है ऐसे समय में आस्था के नाम पर मनमर्जी करना कोरोना को लेकर दिखाए जा रहे लापरवाही और कानून व्यवस्था को ताक़ पर रखने जैसा जरुर है. क़ानूनी नियम और उसके लागू करने के कायदे हर प्रदेश और परिस्थिति में एक जैसा होना चाहिए. भारत देश में कोरोना महामारी के संक्रमण पर मोदी सरकार और सत्ता में बैठे बीजेपी के मंत्रियों की दलील तर्क से परे है. अब घर्म, धार्मिक उत्सव, चुनावी रैलियों, सभाओं, मेला, त्योहारों व् न्याय अन्याय का फ़ैसला हिंदुत्व और हिन्दू के चश्मे से किया जा रहा है जो भविष्य में लोकतंत्र के मूल्यों पर गहरा आघात कर सकता है.
कोरोना महामारी के संक्रमण का दूसरा दौर शुरू हो चुका है. देश के कुछ राज्यों में कोरोना महामारी की दूसरी लहर की गंभीरता को देखते हुए राज्यों में कई सख्त पाबंदियां फिर से लौट आई हैं. कोरोना की वजह से नई चुनौतियां खड़ी हो गयी है, सरकार द्वारा तमाम तरह की चौकसी भी बरती जा रही है. आम जनता के लिए कई तरह की हिदायतें भी केंद्र सरकार के द्वारा जारी की गई हैं लेकिन समय-समय पर देश के अलग-अलग हिस्सों में आम जनता के द्वारा कोरोना बचाव को लेकर व्यापक कोताही बरती जा रही है. हालाँकि सरकार द्वारा संक्रमण के ख़तरे को देखते हुए कहीं रात्रि कर्फ्यू तो कहीं चरणबद्ध रूप से तो कहीं पूर्ण रूप से बंदी करने जैसी नौबत आ गयी है. मगर बिडम्बना यह है कि इन सब के बावजूद भी कई राज्यों और प्रदेशों को इन नियमों पर अमल करना मुनासिब नहीं लग रहा है. यहाँ आस्था, परंपरा, चुनावी सभाओं के आयोजनों में इस महामारी से बचावों के प्रयास को धता बताया जा रहा है.
इस देश में अजीबोग़रीब स्थिति उत्पन्न हो चुकी है. यहाँ धार्मिक आयोजन होला- मोहल्ला के लिए, जमातियों के लिए, विद्याथियों के लिए कोरोना महामारी है लेकिन मंदिर, मेला, कुम्भ, चुनावी सभाओं व रैलियों के लिए कोरोना का असर नज़र नहीं आता है. एक तरफ़ महाराष्ट्र के नांदेड़ के गुरुद्वारा साहिब में सिखों की तरफ़ से होला-मोहल्ला का जुलुस निकाला जाता है हालाँकि इस बार कोरोना महामारी की वजह से पहले की तरह जुलुस को निकालने की इजाज़त प्रशासन की तरफ़ से नहीं मिली थी और इस कार्यक्रम को गुरुद्वारे परिसर के भीतर ही किया जाना तय हुआ था. जब ऐसे आयोजनों में भारी तदादा में लोगों की उपस्थिति हो गयी तो हर बार के तरह सामान्य तरीके से जुलुस को किया गया और इस खीचतान में यह माहौल अराजकता में तब्दील हो गया. नतीजतन जनता और पुलिस के बीच हाथापाई हो गयी और कुछ लोग घायल भी हो गए. ऐसे हालत में एक धार्मिक उत्सव अराजकता और हिंसा का शिकार हो जाता है. जिसे मीडिया में मसाला लगाकर परोसा भी गया. सवाल यह है हरिद्वार के कुम्भ में उमड़ी भीड़, होली के मौके पर मंडोर क्षेत्र में रावजी के गेर में उमड़ा लोगों का हुजूम, जहाँ कोरोना गाइडलाइन धरी रह गयी, यहाँ हजारों लोगों के जमा होने से सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ाई गयीं, मथुरा के बांके बिहारी मंदिर में कोरोना गाइडलाइन को दरकिनार कर मनाई गयी होली और 5 राज्यों में चल रही चुनावी सभा और रैलियों तक क्या महामारी का प्रकोप नहीं पहुँच रहा है?
माना यह जा रहा है कि कोरोना के दूसरे लहर की रफ़्तार पहले से ज्यादा तेज और ख़तरनाक है. मंगलवार को स्वास्थ्य विभाग की तरफ़ से ज़ारी आंकड़ों के मुताबिक़ 78.56 फ़ीसदी कोरोना के मामले सिर्फ़ 6 राज्यों में आए हैं. इनमें महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु व् गुजरात शामिल हैं. इसके अलावे दिल्ली, छतीसगढ़, राजस्थान और हरियाणा में भी कोरोना के मामले में तेजी से वृद्धि दर्ज की जा रही है. 60 फ़ीसदी से ज्यादा मामले केवल महारष्ट्र से आ रहे हैं. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ़ से जारी किए गए आकड़ों के मुताबिक़ कोरोना के सक्रिय मामलों में लगातार 20 वें दिन दिन भी बढ़ोत्तरी हुई है. पिछले 24 घंटे के दौरान 56211 मामले सामने आए हैं. कुल मिलाकर संक्रमितों का आंकड़ा देश में 1करोड़ 20लाख 95हज़ार को पार कर गया है. इनमें से 1करोड़ 13लाख 93हज़ार से ज्यादा मरीज पूरी तरह से ठीक भी हो चुके हैं जबकि 162114 लोगों की जान भी जा चुकी है.
इस आंकड़े के अनुसार वर्तमान में मरीजों के संक्रमण से उबरने की दर 94.19 फ़ीसदी पर आ गयी है जबकि मृत्युदर 1.34 फ़ीसदी बनी हुई है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, प्रतिदिन कोरोना महामारी के सक्रिय केस में वृद्धि हो रही है. सर्वाधिक सक्रिय केस महाराष्ट्र राज्य में और फिर पंजाब व् कर्नाटक में दर्ज किया गया है. हालाँकि कोरोना महामारी की दूसरी लहर उस दौर में भारत में आई है जब टीकाकरण अभियान को तीव्र गति से चलाया जा रहा है. कुछ राज्यों में पाबंदियां बढ़ाई गयी हैं, ऐसे हालात में यह संभव है कि कोरोना के दुसरे लहर का असर भारत में अन्य देशों की अपेक्षा कम पड़े.
यह सही है कि धर्म और आस्था एक संवेदनशील विषय है और इनकी गतिविधियों और उत्सवधर्मिता के अपने नियम और कायदे होते हैं लेकिन एक धार्मिक गतिविधि पर सवाल करना और दूसरे धार्मिक गतिविधियों व् कार्यकलाप को कोरोना महामारी गाइडलाइन के बाहर रखना कहाँ से उचित है? जिस महामारी की वजह से लोगों की सेहत और जीवन के सामने जोखिम पैदा हो रही है ऐसे समय में आस्था के नाम पर मनमर्जी करना कोरोना को लेकर दिखाए जा रहे लापरवाही और कानून व्यवस्था को ताक़ पर रखने जैसा जरुर है. क़ानूनी नियम और उसके लागू करने के कायदे हर प्रदेश और परिस्थिति में एक जैसा होना चाहिए. भारत देश में कोरोना महामारी के संक्रमण पर मोदी सरकार और सत्ता में बैठे बीजेपी के मंत्रियों की दलील तर्क से परे है. अब घर्म, धार्मिक उत्सव, चुनावी रैलियों, सभाओं, मेला, त्योहारों व् न्याय अन्याय का फ़ैसला हिंदुत्व और हिन्दू के चश्मे से किया जा रहा है जो भविष्य में लोकतंत्र के मूल्यों पर गहरा आघात कर सकता है.