वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दावा किया था कि इस बार जो बजट पेश होगा, वैसा पिछले सौ साल में भी नहीं आया होगा। यह सदी का सबसे अच्छा बजट होगा, जो लोग इस उम्मीद में उनका एक घंटा 50 मिनट का बजट भाषण सुनते रहे वह बेहद निराश हुए। वास्तव में इस बजट में न मध्य वर्ग को कुछ मिला, न गरीबों को, कृषक भी इस बजट से निराश ही हुए, अगर किसी को फायदा मिलता नजर आया तो वह देश के बड़े पूंजीपति वर्ग को और इसी के कारण कल सेंसेक्स में 2300 अंक की तेजी देखी गई। पिछले 24 साल में बजट भाषण के दिन सेंसेक्स पहली बार इतना ऊपर चढ़ा है।
कोरोना का सबसे अधिक प्रभाव देश के अनॉर्गनाइज़्ड सेक्टर पर पड़ा है। उसे राहत पहुंचाने के लिए कोई भी उपाय नहीं किए गए। बजट भाषण के कुछ देर बाद पता चला कि वित्त मंत्री ने पेट्रोल पर 2.5 रुपये और डीजल पर चार रुपये प्रति लीटर कृषि सेस का प्रस्ताव रखा है। इसके लिए बेसिक एक्साइज ड्यूटी और स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी घटा दी गई। यानी जहां आप आम आदमी को फायदा दे सकते थे, वहां भी चालबाजी कर दी गई, यहां राज्यों के साथ भी धोखा हुआ है। चौदहवें वित्त आयोग ने केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी का जो फार्मूला दिया है, उसके मुताबिक राज्यों को करीब 40 फीसदी राशि देनी पड़ती है, लेकिन जब कोई सेस लगाया जाता है तो उसमें राज्यों के साथ बंटवारा नहीं करना पड़ता है। यानी पूरी रकम केंद्र अपने पास ही रखेगा।
कोरोना की वजह से ही इस बार हेल्थ बजट में 137% का इजाफा हुआ। हेल्थ बजट अब 2.23 लाख करोड़ रुपये का होगा, जिसके लिए पिछली बार 94 हजार करोड़ रुपये रखे गए थे, लेकिन शाम होते-होते जब बजट से जुड़ी पूरी डिटेल सामने आई तो पता लगा कि यह वृद्धि भी हवा हवाई है। इस साल के लिए यह पूरी रकम आवंटित नहीं हुई है, बल्कि आने वाले 6 सालों के लिए यह व्यवस्था की गई है। कोरोना वैक्सीन के जरूर 35 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है, लेकिन बाकी सब सिर्फ हेडलाइन मैनेजमेंट के लिए किया गया है।
आजकल किसान आंदोलन अपने पूरे शबाब पर चल रहा है, इसलिए यह आशा की जा रही थी कि कृषि क्षेत्र के लिए जरूर बड़ी घोषणाएं की जाएंगी, लेकिन यहां भी झोल है। सच्चाई यह है कि कृषि क्षेत्र का बजट भी घटा दिया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को 2021-22 के लिए कृषि के लिए आवंटन घटाकर 1,42,711 करोड़ से 1,31,474 करोड़ कर दिया। यही नहीं शॉर्ट टर्म कॉर्प लोन में भी किसानों के लिए 2020-21 की तुलना में 2021-22 में इंट्रेस्ट सब्सिडी को घटा दिया गया है।
चीन से लगी सीमा पर पिछले छह महीने से तनाव देखा जा रहा है। ऐसे माहौल में यह कहा जा रहा था कि इस बार सेना के आधुनिकीकरण के ऊपर विशेष ध्यान दिया जाएगा, लेकिन यहां भी वित्तमंत्री ने निराश किया। 15वें वित्त आयोग ने 2021 से 26 में सेना के आधुनिकीरण के लिए 2.38 लाख करोड़ के नॉन लैप्सेबल फंड की सिफारिश की थी, लेकिन वास्तविक रूप में रक्षा बजट में मात्र 1.5 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। आधुनिकीकरण का तो कोई नाम भी नहीं लिया गया।
बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 49 से बढ़कर 74 फीसदी कर दी गई है, जबकि मनमोहन काल में भाजपा ऐसे कदमों का कड़ा विरोध करती आई थी। इस बजट में वॉलंटरी व्हिकल स्क्रैपिंग पॉलिसी लाई गई है, ताकि पुरानी गाड़ियों को हटाया जा सके। पर्सनल व्हिकल 20 साल बाद और कमर्शियल व्हिकल 15 साल बाद स्क्रैप किए जाने की बात है। इसका सीधा असर ट्रांसपोर्ट सुविधाओं पर पड़ेगा और इसका बोझ अंत में आम आदमी पर ही आएगा।
अब रही बात टैक्स सम्बंधित घोषणाओं की तो कोरोना काल में टैक्स पेयर्स को कुछ छूट मिलने की उम्मीद थी, मगर वे खाली हाथ रह गए। इस बजट में उनके लिए कुछ भी नहीं है। मिडिल क्लास और नौकरीपेशा वालों के लिए न तो कोई अतिरिक्त टैक्स छूट दी गई और न ही टैक्स स्लैब में कोई बदलाव किया गया। कम सैलरी वाले टैक्सपेयर्स, मिडिल क्लास और छोटे-मोटे बिजनेस करने वालों को टैक्स को लेकर सबसे अधिक उम्मीदें थीं, मगर उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। सिर्फ 75 साल से अधिक उम्र के टैक्स पेयर्स को थोड़ी राहत मिली है, लेकिन उनकी संख्या नगण्य है।
कुल मिलाकर बजट निराशाजनक है। यह बजट ऐसी कोई उम्मीद नहीं जगाता जो अर्थव्यवस्था की V शेप रिकवरी को थोड़ा भी सहारा दे।
(गिरीश मालवीय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। यह लेख उनके फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है।)
कोरोना का सबसे अधिक प्रभाव देश के अनॉर्गनाइज़्ड सेक्टर पर पड़ा है। उसे राहत पहुंचाने के लिए कोई भी उपाय नहीं किए गए। बजट भाषण के कुछ देर बाद पता चला कि वित्त मंत्री ने पेट्रोल पर 2.5 रुपये और डीजल पर चार रुपये प्रति लीटर कृषि सेस का प्रस्ताव रखा है। इसके लिए बेसिक एक्साइज ड्यूटी और स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी घटा दी गई। यानी जहां आप आम आदमी को फायदा दे सकते थे, वहां भी चालबाजी कर दी गई, यहां राज्यों के साथ भी धोखा हुआ है। चौदहवें वित्त आयोग ने केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी का जो फार्मूला दिया है, उसके मुताबिक राज्यों को करीब 40 फीसदी राशि देनी पड़ती है, लेकिन जब कोई सेस लगाया जाता है तो उसमें राज्यों के साथ बंटवारा नहीं करना पड़ता है। यानी पूरी रकम केंद्र अपने पास ही रखेगा।
कोरोना की वजह से ही इस बार हेल्थ बजट में 137% का इजाफा हुआ। हेल्थ बजट अब 2.23 लाख करोड़ रुपये का होगा, जिसके लिए पिछली बार 94 हजार करोड़ रुपये रखे गए थे, लेकिन शाम होते-होते जब बजट से जुड़ी पूरी डिटेल सामने आई तो पता लगा कि यह वृद्धि भी हवा हवाई है। इस साल के लिए यह पूरी रकम आवंटित नहीं हुई है, बल्कि आने वाले 6 सालों के लिए यह व्यवस्था की गई है। कोरोना वैक्सीन के जरूर 35 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है, लेकिन बाकी सब सिर्फ हेडलाइन मैनेजमेंट के लिए किया गया है।
आजकल किसान आंदोलन अपने पूरे शबाब पर चल रहा है, इसलिए यह आशा की जा रही थी कि कृषि क्षेत्र के लिए जरूर बड़ी घोषणाएं की जाएंगी, लेकिन यहां भी झोल है। सच्चाई यह है कि कृषि क्षेत्र का बजट भी घटा दिया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को 2021-22 के लिए कृषि के लिए आवंटन घटाकर 1,42,711 करोड़ से 1,31,474 करोड़ कर दिया। यही नहीं शॉर्ट टर्म कॉर्प लोन में भी किसानों के लिए 2020-21 की तुलना में 2021-22 में इंट्रेस्ट सब्सिडी को घटा दिया गया है।
चीन से लगी सीमा पर पिछले छह महीने से तनाव देखा जा रहा है। ऐसे माहौल में यह कहा जा रहा था कि इस बार सेना के आधुनिकीकरण के ऊपर विशेष ध्यान दिया जाएगा, लेकिन यहां भी वित्तमंत्री ने निराश किया। 15वें वित्त आयोग ने 2021 से 26 में सेना के आधुनिकीरण के लिए 2.38 लाख करोड़ के नॉन लैप्सेबल फंड की सिफारिश की थी, लेकिन वास्तविक रूप में रक्षा बजट में मात्र 1.5 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। आधुनिकीकरण का तो कोई नाम भी नहीं लिया गया।
बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 49 से बढ़कर 74 फीसदी कर दी गई है, जबकि मनमोहन काल में भाजपा ऐसे कदमों का कड़ा विरोध करती आई थी। इस बजट में वॉलंटरी व्हिकल स्क्रैपिंग पॉलिसी लाई गई है, ताकि पुरानी गाड़ियों को हटाया जा सके। पर्सनल व्हिकल 20 साल बाद और कमर्शियल व्हिकल 15 साल बाद स्क्रैप किए जाने की बात है। इसका सीधा असर ट्रांसपोर्ट सुविधाओं पर पड़ेगा और इसका बोझ अंत में आम आदमी पर ही आएगा।
अब रही बात टैक्स सम्बंधित घोषणाओं की तो कोरोना काल में टैक्स पेयर्स को कुछ छूट मिलने की उम्मीद थी, मगर वे खाली हाथ रह गए। इस बजट में उनके लिए कुछ भी नहीं है। मिडिल क्लास और नौकरीपेशा वालों के लिए न तो कोई अतिरिक्त टैक्स छूट दी गई और न ही टैक्स स्लैब में कोई बदलाव किया गया। कम सैलरी वाले टैक्सपेयर्स, मिडिल क्लास और छोटे-मोटे बिजनेस करने वालों को टैक्स को लेकर सबसे अधिक उम्मीदें थीं, मगर उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। सिर्फ 75 साल से अधिक उम्र के टैक्स पेयर्स को थोड़ी राहत मिली है, लेकिन उनकी संख्या नगण्य है।
कुल मिलाकर बजट निराशाजनक है। यह बजट ऐसी कोई उम्मीद नहीं जगाता जो अर्थव्यवस्था की V शेप रिकवरी को थोड़ा भी सहारा दे।
(गिरीश मालवीय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। यह लेख उनके फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है।)