मोदी सरकार की 6 साल की आर्थिक विफलता को छुपाने के लिये अब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक्ट ऑफ गॉड का जुमला उछाल दिया है। कल राहुल गांधी ने बिल्कुल ठीक कहा, उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था इन तीन बड़े कारणों की वजह से तबाह हुई है, नोटबंदी-जीएसटी और फेल लॉकडाउन। इसके अलावा जो भी कहा जा रहा है वो झूठ है।
बात अभी जीएसटी की चल रही है, इसलिए उसी की बात करते हैं। कोरोना को तो आए अभी 6 महीने ही हुए हैं। कोरोना से काफी पहले पिछले साल अगस्त 2019 से ही सरकार को यह आभास हो गया था कि राज्यों को जीएसटी मुआवजा देने के लिए कम्पेनसेशन सेस संग्रह काफी नहीं है। कम्पेनसेशन सेस संग्रह हर महीने 7,000 से 8,000 करोड़ रुपये हो रहा था, जबकि राज्यों को हर महीने 14,000 करोड़ रुपये देने पड़ रहे थे।
जीएसटी में राज्यों के कर राजस्व का लगभग 42 प्रतिशत हिस्सा है, और राज्यों के कुल राजस्व का लगभग 60 फीसदी जीएसटी से आता है। इस लिहाज से यह अलार्मिंग सिग्नल था लेकिन किसी ने परवाह नही की। दरअसल जीएसटी के बाद राज्य टैक्स संग्रह के मामले में केंद्र पर डिपेंड है राज्यों के पास पेट्रोलियम, शराब और स्टाम्प ड्यूटी को छोड़कर कोई और कर संग्रह का अधिकार नहीं रह गया है। इन तीनों को छोड़ बाकी कर अब जीएसटी में शामिल किए जा चुके हैं। जीएसटी के लागू होने से वैट, एंटरटेनमेंट टैक्स, चुंगी, पर्चेज टैक्स आदि सभी खत्म हो गए हैं। इससे राज्य सरकार को अपने खर्च चलाने का राजस्व मिल जाया करता था।
इसकी पूर्ति के लिए केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू करते वक्त राजस्व में 14 फीसदी के इजाफे की गारंटी दी। ऑफर अच्छा था इसलिए राज्यो ने स्वीकार कर लिया, केंद्र ने इसके लिए कम्पेनसेशन सेस की व्यवस्था की लेकिन यह कम्पेनसेशन सेस हर उत्पाद पर नही लगाया जा सकता है। इसके लिए लग्जरी आइटमों व कुछ अन्य सिन उत्पादों (शराब, सिगरेट आदि) पर ही कंपनसेशन टैक्स लगाने की व्यवस्था थी।
नोटबन्दी और जीएसटी लगने के बाद से देश की आर्थिक रफ्तार सुस्त हो गयी। जीडीपी के तिमाही आँकड़े इस बात की गवाही देते हैं। कैसे 8 प्रतिशत की विकास दर 3 से नीचे आयी है सबको दिख रहा था। पिछले तीन साल से देश की आर्थिक सेहत खस्ता हुई है। अब जिस पर कम्पेनसेशन सेस लगाया था जैसे कार सिगरेट शराब आदि उन सबकी बिक्री भी कम हुई।
कारों की बिक्री के घटने के आँकड़े हर महीने हमारे सामने आए। .साफ है कि इन सबका असर कम्पेनसेशन सेस के संग्रह पर हुआ है। यही वजह थी कि राज्यों को कानून के मुताबिक कंपनसेशन राजस्व नहीं मिल पाया।
यानी यह बिल्कुल साफ दिख रहा कि आर्थिक मंदी जिसको सरकार नकारती रही वही आज सामने खड़ी इस परेशानी की सबसे बड़ी जिम्मेदार है जबकि नाम एक्ट ऑफ गॉड के नाम पर कोरोना का उछाल दिया गया।
जीएसटी लागू करते वक्त जिस फॉर्मूले पर सहमति बनी थी उसके तहत अगर राजस्व में कोई कमी होती है, यह केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह राज्यों को पूर्ण रूप से क्षतिपूर्ति राशि देने के लिए संसाधन जुटाए लेकिन अब केंद्र सरकार ने हाथ ऊंचे कर दिए कि हम नही दे सकते राज्य अपनी अपनी जाने।
यानी यह बिल्कुल साफ है कि आर्थिक मंदी जिसे सरकार हर बार नकारती रही वही इस बर्बादी की जिम्मेदार है और जैसा कि राहुल गांधी ने कहा कि नोटबंदी ओर जीएसटी की दोषपूर्ण व्यवस्था ही इस आर्थिक मंदी के पीछे है, फेल लॉकडाउन ने इस संकट को ओर भी ज्यादा गहरा कर दिया।
बात अभी जीएसटी की चल रही है, इसलिए उसी की बात करते हैं। कोरोना को तो आए अभी 6 महीने ही हुए हैं। कोरोना से काफी पहले पिछले साल अगस्त 2019 से ही सरकार को यह आभास हो गया था कि राज्यों को जीएसटी मुआवजा देने के लिए कम्पेनसेशन सेस संग्रह काफी नहीं है। कम्पेनसेशन सेस संग्रह हर महीने 7,000 से 8,000 करोड़ रुपये हो रहा था, जबकि राज्यों को हर महीने 14,000 करोड़ रुपये देने पड़ रहे थे।
जीएसटी में राज्यों के कर राजस्व का लगभग 42 प्रतिशत हिस्सा है, और राज्यों के कुल राजस्व का लगभग 60 फीसदी जीएसटी से आता है। इस लिहाज से यह अलार्मिंग सिग्नल था लेकिन किसी ने परवाह नही की। दरअसल जीएसटी के बाद राज्य टैक्स संग्रह के मामले में केंद्र पर डिपेंड है राज्यों के पास पेट्रोलियम, शराब और स्टाम्प ड्यूटी को छोड़कर कोई और कर संग्रह का अधिकार नहीं रह गया है। इन तीनों को छोड़ बाकी कर अब जीएसटी में शामिल किए जा चुके हैं। जीएसटी के लागू होने से वैट, एंटरटेनमेंट टैक्स, चुंगी, पर्चेज टैक्स आदि सभी खत्म हो गए हैं। इससे राज्य सरकार को अपने खर्च चलाने का राजस्व मिल जाया करता था।
इसकी पूर्ति के लिए केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू करते वक्त राजस्व में 14 फीसदी के इजाफे की गारंटी दी। ऑफर अच्छा था इसलिए राज्यो ने स्वीकार कर लिया, केंद्र ने इसके लिए कम्पेनसेशन सेस की व्यवस्था की लेकिन यह कम्पेनसेशन सेस हर उत्पाद पर नही लगाया जा सकता है। इसके लिए लग्जरी आइटमों व कुछ अन्य सिन उत्पादों (शराब, सिगरेट आदि) पर ही कंपनसेशन टैक्स लगाने की व्यवस्था थी।
नोटबन्दी और जीएसटी लगने के बाद से देश की आर्थिक रफ्तार सुस्त हो गयी। जीडीपी के तिमाही आँकड़े इस बात की गवाही देते हैं। कैसे 8 प्रतिशत की विकास दर 3 से नीचे आयी है सबको दिख रहा था। पिछले तीन साल से देश की आर्थिक सेहत खस्ता हुई है। अब जिस पर कम्पेनसेशन सेस लगाया था जैसे कार सिगरेट शराब आदि उन सबकी बिक्री भी कम हुई।
कारों की बिक्री के घटने के आँकड़े हर महीने हमारे सामने आए। .साफ है कि इन सबका असर कम्पेनसेशन सेस के संग्रह पर हुआ है। यही वजह थी कि राज्यों को कानून के मुताबिक कंपनसेशन राजस्व नहीं मिल पाया।
यानी यह बिल्कुल साफ दिख रहा कि आर्थिक मंदी जिसको सरकार नकारती रही वही आज सामने खड़ी इस परेशानी की सबसे बड़ी जिम्मेदार है जबकि नाम एक्ट ऑफ गॉड के नाम पर कोरोना का उछाल दिया गया।
जीएसटी लागू करते वक्त जिस फॉर्मूले पर सहमति बनी थी उसके तहत अगर राजस्व में कोई कमी होती है, यह केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह राज्यों को पूर्ण रूप से क्षतिपूर्ति राशि देने के लिए संसाधन जुटाए लेकिन अब केंद्र सरकार ने हाथ ऊंचे कर दिए कि हम नही दे सकते राज्य अपनी अपनी जाने।
यानी यह बिल्कुल साफ है कि आर्थिक मंदी जिसे सरकार हर बार नकारती रही वही इस बर्बादी की जिम्मेदार है और जैसा कि राहुल गांधी ने कहा कि नोटबंदी ओर जीएसटी की दोषपूर्ण व्यवस्था ही इस आर्थिक मंदी के पीछे है, फेल लॉकडाउन ने इस संकट को ओर भी ज्यादा गहरा कर दिया।