आपराधिक कानूनों में सुधार के लिए समिति में प्रतिनिधत्व की कमी और आपराधिक कानून सुधार की त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया को लेकर जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय एवं राज्य-स्तरीय सलाहकारों, समन्वयकों और संयोजकों ने गृह मंत्रालय, भारत सरकार के नाम एक पत्र लिखा है। इस पत्र में लिखा है....
''हम, देश भर में न्याय, सौहार्द और समानता के लिए चल रहे नागरिकों के आंदोलनों और संगठनों के प्रतिनिधि, आपराधिक कानून के प्रस्तावित सुधार और इस कार्य को करने के लिए गठित समिति के संयोजन के विषय में हमारी गहरी चिंताओं को साझा करना चाहते हैं।
दूर-दराज के क्षेत्रों में हाशिये पर खड़े लोगों के साथ काम करने में, आपराधिक क़ानून और इसकी विभिन्न अभिव्यक्तियों से हमारा सामना हुआ है, और हम यह समझे हैं कि यह औपनिवेशिक साम्राज्य का एक पुराना अवशेष रह गया है। भारत के नागरिकों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करते हुए आपराधिक कानून में सुधार के इस प्रयास का हम स्वागत करते हैं।
हालांकि, मौजूदा सुधारों के लिए जिस जल्दबाज़ी और अपारदर्शी तरीके को अपनाया जा रहा है, हम उससे चिंतित हैं। हम आपसे इस प्रक्रिया को त्यागने का आग्रह करते हैं और यदि अति-आवश्यक हो, तो महामारी के संकट के पूरी तरह टल जाने के बाद, अधिक पारदर्शी, परामर्शी और प्रतिनिधि-संपन्न प्रक्रिया के साथ इस काम को अंजाम देने का आग्रह करते हैं।
हम भारतीय संविधान के तीन सबसे महत्वपूर्ण अधिनियमों - भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.PC) और साक्ष्य अधिनियम (IEA) के 'सुधार' की प्रक्रिया को लेकर अपनी कुछ चिंताओं पर प्रकाश डाल रहे हैं:
1) समिति की संरचना: हम विशेष रूप से इस बात से चिंतित हैं कि जिस समिति को प्रस्तावित आपराधिक कानून सुधार पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है उसमें विविधता का बहुत अभाव है। दिल्ली की अभिजात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के अंदर स्थित पांच पुरुषों से बनी यह समिति, जो भारत के विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों से आते हैं, हमारे अंदर इस विश्वास को प्रेरित नहीं करती कि यह भारत के तमाम शोषित वर्गों द्वारा आपराधिक क़ानून के अनुभवों और उससे जुड़ी दिक्कतों को प्रतिबिंबित कर पाएगी।
'सबका साथ सबका विकास' के घोषित इरादे के अंतर्गत यह तो आना ही चाहिए कि इस प्रकार की एक महत्वपूर्ण समिति में विविधता सुनिश्चित की जाए। विभिन्न लिंगों, जातियों, क्षेत्रों, धर्मों, जातीयताओं और अल्पसंख्यक आबादी के लोगों के आलावा, समिति में आपराधिक कानून के विभिन्न पहलुओं में व्यापक अनुभव रखने वाले लोगों - विभिन्न जिला अदालतों, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय से आये वकीलों और न्यायाधीशों- को भी शामिल किया जाना चाहिए।
2) सुधार के लिए महामारी के मध्य का समय: हमें ताज्जुब है कि इस तरह के महत्वपूर्ण कानून सुधार, जिसमें सावधान और व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता है, के लिए ऐसे समय को चुना गया है जब देश एक वैश्विक महामारी से जूझ रहा है। हम हैरान हैं कि समिति का गठन करने का नोटिस 4 मई, 2020 को जारी किया गया, जब पूरे देश में अभूतपूर्व लॉकडाउन था और सभी संसाधनों को सबसे ज़रूरी कार्यों की तरफ मोड़ दिया गया था।
तब से, हमारी अदालतें बमुश्किल कार्यारत हैं, नियमित सुनवाइयों को लगातार निलंबित किया जा रहा है, और वर्चुअल सुनवाई केवल उन मामलों में की जा रही है जो स्थापित और कथित रूप से अति-आवश्यक हैं। इस नोटिस के समय और हमारी न्यायिक प्रणाली के तीन सबसे महत्वपूर्ण कानूनों- जिनका 150 वर्ष पुराण इतिहास है- की समीक्षा करने की ऐसे समय में प्रेरणा जब हमारी न्याय व्यवस्था अपातकालीन मोड में काम कर रही है - पर हम प्रश्न उठाते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में देश के हजारों वकील भी आजीविका के गंभीर संकट के दौर से गुजर रहे हैं !
3) कानून सुधार में अनुचित रूप से जल्दबाज़ी: हम प्रस्तावित आपराधिक कानून सुधार प्रर्किया में हो रही जल्दबाज़ी पर व्यथित हैं। हम यह समझने में विफल हैं कि समिति को तीन प्रमुख कानूनों और 150 से अधिक वर्षों के न्यायिक कार्यों को छह महीने के भीतर प्रतिवर्तित करने का काम क्यों सौंपा गया है और वह भी तब, जबकि हम कोविड का मुकाबला कर रहे हैं।
सभी गंभीर कानून सुधार जो वास्तव में परामर्शात्मक हैं, विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों और हितधारकों के साथ कानून के विभिन्न पहलुओं पर सार्थक और ठोस विचार-विमर्श के लिए पर्याप्त समय लेते हैं।
4) पारदर्शिता का अभाव: हालाँकि समिति के रिपोर्ट प्रस्तुत करने की समय-सीमा से हम बमुश्किल दो महीनों की दूरी पर हैं, मगर अभी तक समिति के सन्दर्भ की शर्तें (टर्म्स ऑफ़ रिफरेन्स) ज्ञात नहीं हैं, न ही हमें नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी द्वारा समिति सम्बंधित कोई भी प्रस्ताव, विचार पत्र या अवधारणा पत्र उपलब्ध कराया गया है। यहाँ तक कि सभी प्रश्नावलियों, जिन पर इनपुट मांगे गए हैं, उन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया है और वे केवल "विशेषज्ञों" के लिए उपलब्ध हैं। इस बारे में भी कोई स्पष्टता नहीं है कि किस प्रक्रिया के तहत तीन आपराधिक कानूनों में सुधार होने जा रहा है, और जनता को समिति द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट पर टिप्पणी करने या आलोचना करने का मौका मिलेगा या नहीं।
5) सार्वजनिक परामर्श का अभाव: समिति के काम करने का तरीका सबसे अधिक परेशान करने वाला है। जनता द्वारा भागीदारी के लिए कोई स्थान बनाया ही नहीं गया है। परामर्श प्रक्रिया को दिल्ली के अभिजात हलकों के आमंत्रित वकीलों या उन लोगों तक सीमित किया गया है जो "विशेषज्ञ" के रूप में खुद को ऑनलाइन दर्ज करेंगे। प्रश्नावली अत्यधिक लंबी, पेचीदा और शैक्षणिक प्रकृति की हैं, और अब तक केवल अंग्रेजी में उपलब्ध हैं।
इस तरफ कोई पहल नहीं की गयी है कि महिला समूहों, दलित, आदिवासी और NT-DNT समूहों, किसानों, मजदूरों और किसानों के आंदोलनों, अल्पसंख्यक धार्मिक संगठनों, ट्रेड यूनियनों, ट्रांसजेंडर व अन्य लैंगिकताओं से सम्बद्ध लोगों, विकलांग अधिकार समूहों आदि के विचारों को शामिल किया जाए या प्रश्नावली को उनके लिए प्रासंगिक बनाया जाए - जबकि यही वे लोग हैं जिन्हें आपराधिक क़ानूनों और उससे जुड़ी दिक्कतों का रोज़ सामना करना पड़ता है। यहाँ तक कि राज्य और जिला अधिवक्ता संघों को भी आपराधिक कानून को पुनर्रचित करने के इस प्रयास के बारे में सूचित नहीं किया गया है और इसीलिए उनकी भागीदारी में भी भारी कमी है।
आपराधिक कानून में सुधार की जिस प्रकार की प्रक्रिया अभी अपनाई जा रही है, वह पूरी तरह से ग़ैर-लोकतांत्रिक, अपारदर्शी और ग़ैर-समावेशी है। यह गंभीर चिंताओं को जन्म देता है कि इस कार्य के पीछे सही मक़सद नहीं है, और यह क़ानून में किसी पूर्व-निर्धारित बदलाव की मंशा से किया जा रहा है, न कि औपनिवेशिक क़ानून के उन मुद्दों को समझने और सम्बोधित करने की मंशा से - जिनका सामना भारतीय समाज कर रहा है।
उपरोक्त के मद्देनज़र, हम मांग करते हैं कि:
क) आपराधिक क़ानून में बदलाव के लिए बनी समिति को तुरंत भंग कर दिया जाए और मौजूदा प्रक्रिया को तत्काल निलंबित कर दिया जाए।
ख) महामारी की अवधि के दौरान कोई आपराधिक क़ानून में सुधार का काम नहीं किया जाए। न्याय प्रणाली का सामान्य कामकाज दोबारा से शुरू किया जाए और आपराधिक कानून सुधार प्रक्रिया को फिर से शुरू करने से पहले, पूरे देश में सार्वजनिक बैठकों की अनुमति दी जाए।
ग) आपराधिक कानून सुधार की प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी बनाया जाए - यह जनता के लिए स्पष्ट होना चाहिए कि आपराधिक कानून के किन पहलुओं का सुधार किया जा रहा है और इसके द्वारा किन चिंताओं को दूर करने की चेष्टा है।
घ) विकेन्द्रीय रूप से खुले और व्यापक विचार-विमर्श के लिए पर्याप्त समय दिया जाए।
ङ) समाज के विभिन्न वर्गों, विशेष रूप से हाशिये से आते और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व वाले समूहों का सुधार की निर्णय-प्रणाली में उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए और पूरी प्रक्रिया के दौरान उनके विचारों को दर्ज किया जाए।
हम इस संबंध में मंत्रालय के उचित निर्णय की अपेक्षा करते हैं।''
पत्र लिखने वालों में शामिल हैं....
Medha Patkar, Narmada Bachao Andolan (NBA) and National Alliance of People’s Movements (NAPM); Dr. Sunilam, Adv. Aradhna Bhargava, Kisan Sangharsh Samiti; Rajkumar Sinha, Chutka Parmaanu Virodhi Sangharsh Samiti, NAPM, Madhya Pradesh;
Aruna Roy, Nikhil Dey, Shankar Singh, Mazdoor Kisan Shakti Sangathan (MKSS), National Campaign for People’s Right to Information; Kavita Srivastava, People’s Union for Civil Liberties (PUCL); Kailash Meena NAPM Rajasthan;
Prafulla Samantara, Lok Shakti Abhiyan; Lingraj Azad, Samajwadi Jan Parishad & Niyamgiri Suraksha Samiti, Manorama, Posco Pratirodh Sangram Samiti; Lingaraj Pradhan, Satya banchor, Anant, Kalyan Anand, Arun Jena, Trilochan Punji, Lakshimipriya Mohanty and Balakrishna Sand, Manas Patnaik, NAPM Odisha;
Sandeep Pandey (Socialist Party of India); Richa Singh & Rambeti (Sangatin Kisaan Mazdoor Sangathan, Sitapur); Rajeev Yadav & Masihuddin bhai (Rihai Manch, Lucknow & Azamgadh); Arundhati Dhuru & Zainab Khatun (Mahila Yuva Adhikar Manch, Lucknow), Suresh Rathaur (MNREGA Mazdoor Union, Varanasi); Arvind Murti & Altamas Ansari (Inquilabi Kamgaar Union, Mau), Jagriti Rahi (Vision Sansthan, Varanasi); Satish Singh (Sarvodayi Vikas Samiti, Varanasi); Nakul Singh Sawney (Chal Chitra Abhiyan, Muzaffarnagar); NAPM Uttar Pradesh
P. Chennaiah, Andhra Pradesh Vyavasaya Vruthidarula Union-APVVU, Ramakrishnam Raju, United Forum for RTI and NAPM, Chakri (Samalochana), Balu Gadi, Bapji Juvvala, NAPM Andhra Pradesh;
Jeevan Kumar & Syed Bilal (Human Rights Forum), P. Shankar (Dalit Bahujan Front), Vissa Kiran Kumar & Kondal (Rythu Swarajya Vedika), Ravi Kanneganti (Rythu JAC), Ashalatha (MAKAAM), Krishna (Telangana Vidyavantula Vedika-TVV), M. Venkatayya (Telangana Vyavasaya Vruttidarula Union-TVVU), Meera Sanghamitra, Rajesh Serupally, NAPM Telangana;
Sister Celia, Domestic Workers Union; Maj Gen (Retd) S.G.Vombatkere, NAPM, Nawaz, Dwiji, Nalini, NAPM Karnataka
Gabriele Dietrich, Penn Urimay Iyakkam, Madurai; Geetha Ramakrishnan, Unorganised Sector Workers Federation; Suthanthiran, Suthanthiran, Lenin & Arul Doss, NAPM Tamilnadu;
Vilayodi Venugopal, CR Neelakandan, Prof. Kusumam Joseph, Sharath Cheloor, Vijayaraghavan Cheliya, Majeendran, Magline, NAPM, Kerala;
Dayamani Barla, Aadivasi-Moolnivasi Astivtva Raksha Samiti; Basant Hetamsaria, Aloka Kujur, Dr. Leo A. Singh, Afzal Anish, Sushma Biruli, Durga Nayak, Jipal Murmu, Priti Ranjan Dash, Ashok Verma, NAPM Jharkhand;
Anand Mazgaonkar, Swati Desai, Krishnakant, Parth, Paryavaran Suraksha Samiti; Nita Mahadev, Mudita, Lok Samiti; Dev Desai, Mujahid Nafees, Ramesh Tadvi, Aziz Minat and Bharat Jambucha, NAPM Gujarat;
Vimal Bhai, Matu Jan sangathan; Jabar Singh, Uma, NAPM, Uttarakhand;
Manshi Asher and Himshi Singh, Himdhara, NAPM Himachal Pradesh
Eric Pinto, Abhijeet, Tania Devaiah and Francesca, NAPM Goa
Gautam Bandopadhyay, Nadi Ghati Morcha; Kaladas Dahariya, RELAA-CMM, Alok Shukla, Shalini Gera, NAPM Chhattisgarh;
Samar Bagchi, Amitava Mitra, Binayak Sen, Sujato Bhadro, Pradip Chatterjee, Pasarul Alam, Amitava Mitra, Tapas Das, Tahomina Mandal, Pabitra Mandal, Kazi Md. Sherif, Biswajit Basak, Ayesha Khatun, Rupak Mukherjee, Milan Das, Asit Roy, Mita Bhatta, Yasin, Matiur Rahman, Baiwajit Basa, NAPM West Bengal;
Suniti SR, Sanjay M G, Suhas Kolhekar, Prasad Bagwe, Mukta Srivastava, Yuvraj Gatkal, Geetanjali Chavan, Bilal Khan, Jameela, Ghar Bachao Ghar Banao Andolan; Chetan Salve, Narmada Bachao Andolan, Pervin Jehangir, NAPM Maharashtra;
Faisal Khan, Khudai Khidmatgar, J S Walia, NAPM Haryana;
Guruwant Singh, Narbinder Singh, NAPM Punjab;
Kamayani Swami, Ashish Ranjan, Jan Jagran Shakti Sangathan; Mahendra Yadav, Kosi Navnirman Manch; Sister Dorothy, Aashray Abhiyan, NAPM Bihar;
Rajendra Ravi, NAPM; Bhupender Singh Rawat, Jan Sangharsh Vahini; Anjali Bharadwaj and Amrita Johri, Satark Nagrik Sangathan; Sanjeev Kumar, Dalit Adivasi Shakti Adhikar Manch; Anita Kapoor, Delhi Shahri Mahila Kaamgaar Union; Sunita Rani, National Domestic Workers Union; Nanhu Prasad, National Cyclist Union; Madhuresh Kumar, Priya Pillai, Aryaman Jain, Divyansh Khurana, Evita Das; Anil TV, Delhi Solidarity Group, MJ Vijayan (PIPFPD)
''हम, देश भर में न्याय, सौहार्द और समानता के लिए चल रहे नागरिकों के आंदोलनों और संगठनों के प्रतिनिधि, आपराधिक कानून के प्रस्तावित सुधार और इस कार्य को करने के लिए गठित समिति के संयोजन के विषय में हमारी गहरी चिंताओं को साझा करना चाहते हैं।
दूर-दराज के क्षेत्रों में हाशिये पर खड़े लोगों के साथ काम करने में, आपराधिक क़ानून और इसकी विभिन्न अभिव्यक्तियों से हमारा सामना हुआ है, और हम यह समझे हैं कि यह औपनिवेशिक साम्राज्य का एक पुराना अवशेष रह गया है। भारत के नागरिकों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करते हुए आपराधिक कानून में सुधार के इस प्रयास का हम स्वागत करते हैं।
हालांकि, मौजूदा सुधारों के लिए जिस जल्दबाज़ी और अपारदर्शी तरीके को अपनाया जा रहा है, हम उससे चिंतित हैं। हम आपसे इस प्रक्रिया को त्यागने का आग्रह करते हैं और यदि अति-आवश्यक हो, तो महामारी के संकट के पूरी तरह टल जाने के बाद, अधिक पारदर्शी, परामर्शी और प्रतिनिधि-संपन्न प्रक्रिया के साथ इस काम को अंजाम देने का आग्रह करते हैं।
हम भारतीय संविधान के तीन सबसे महत्वपूर्ण अधिनियमों - भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.PC) और साक्ष्य अधिनियम (IEA) के 'सुधार' की प्रक्रिया को लेकर अपनी कुछ चिंताओं पर प्रकाश डाल रहे हैं:
1) समिति की संरचना: हम विशेष रूप से इस बात से चिंतित हैं कि जिस समिति को प्रस्तावित आपराधिक कानून सुधार पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है उसमें विविधता का बहुत अभाव है। दिल्ली की अभिजात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के अंदर स्थित पांच पुरुषों से बनी यह समिति, जो भारत के विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों से आते हैं, हमारे अंदर इस विश्वास को प्रेरित नहीं करती कि यह भारत के तमाम शोषित वर्गों द्वारा आपराधिक क़ानून के अनुभवों और उससे जुड़ी दिक्कतों को प्रतिबिंबित कर पाएगी।
'सबका साथ सबका विकास' के घोषित इरादे के अंतर्गत यह तो आना ही चाहिए कि इस प्रकार की एक महत्वपूर्ण समिति में विविधता सुनिश्चित की जाए। विभिन्न लिंगों, जातियों, क्षेत्रों, धर्मों, जातीयताओं और अल्पसंख्यक आबादी के लोगों के आलावा, समिति में आपराधिक कानून के विभिन्न पहलुओं में व्यापक अनुभव रखने वाले लोगों - विभिन्न जिला अदालतों, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय से आये वकीलों और न्यायाधीशों- को भी शामिल किया जाना चाहिए।
2) सुधार के लिए महामारी के मध्य का समय: हमें ताज्जुब है कि इस तरह के महत्वपूर्ण कानून सुधार, जिसमें सावधान और व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता है, के लिए ऐसे समय को चुना गया है जब देश एक वैश्विक महामारी से जूझ रहा है। हम हैरान हैं कि समिति का गठन करने का नोटिस 4 मई, 2020 को जारी किया गया, जब पूरे देश में अभूतपूर्व लॉकडाउन था और सभी संसाधनों को सबसे ज़रूरी कार्यों की तरफ मोड़ दिया गया था।
तब से, हमारी अदालतें बमुश्किल कार्यारत हैं, नियमित सुनवाइयों को लगातार निलंबित किया जा रहा है, और वर्चुअल सुनवाई केवल उन मामलों में की जा रही है जो स्थापित और कथित रूप से अति-आवश्यक हैं। इस नोटिस के समय और हमारी न्यायिक प्रणाली के तीन सबसे महत्वपूर्ण कानूनों- जिनका 150 वर्ष पुराण इतिहास है- की समीक्षा करने की ऐसे समय में प्रेरणा जब हमारी न्याय व्यवस्था अपातकालीन मोड में काम कर रही है - पर हम प्रश्न उठाते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में देश के हजारों वकील भी आजीविका के गंभीर संकट के दौर से गुजर रहे हैं !
3) कानून सुधार में अनुचित रूप से जल्दबाज़ी: हम प्रस्तावित आपराधिक कानून सुधार प्रर्किया में हो रही जल्दबाज़ी पर व्यथित हैं। हम यह समझने में विफल हैं कि समिति को तीन प्रमुख कानूनों और 150 से अधिक वर्षों के न्यायिक कार्यों को छह महीने के भीतर प्रतिवर्तित करने का काम क्यों सौंपा गया है और वह भी तब, जबकि हम कोविड का मुकाबला कर रहे हैं।
सभी गंभीर कानून सुधार जो वास्तव में परामर्शात्मक हैं, विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों और हितधारकों के साथ कानून के विभिन्न पहलुओं पर सार्थक और ठोस विचार-विमर्श के लिए पर्याप्त समय लेते हैं।
4) पारदर्शिता का अभाव: हालाँकि समिति के रिपोर्ट प्रस्तुत करने की समय-सीमा से हम बमुश्किल दो महीनों की दूरी पर हैं, मगर अभी तक समिति के सन्दर्भ की शर्तें (टर्म्स ऑफ़ रिफरेन्स) ज्ञात नहीं हैं, न ही हमें नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी द्वारा समिति सम्बंधित कोई भी प्रस्ताव, विचार पत्र या अवधारणा पत्र उपलब्ध कराया गया है। यहाँ तक कि सभी प्रश्नावलियों, जिन पर इनपुट मांगे गए हैं, उन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया है और वे केवल "विशेषज्ञों" के लिए उपलब्ध हैं। इस बारे में भी कोई स्पष्टता नहीं है कि किस प्रक्रिया के तहत तीन आपराधिक कानूनों में सुधार होने जा रहा है, और जनता को समिति द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट पर टिप्पणी करने या आलोचना करने का मौका मिलेगा या नहीं।
5) सार्वजनिक परामर्श का अभाव: समिति के काम करने का तरीका सबसे अधिक परेशान करने वाला है। जनता द्वारा भागीदारी के लिए कोई स्थान बनाया ही नहीं गया है। परामर्श प्रक्रिया को दिल्ली के अभिजात हलकों के आमंत्रित वकीलों या उन लोगों तक सीमित किया गया है जो "विशेषज्ञ" के रूप में खुद को ऑनलाइन दर्ज करेंगे। प्रश्नावली अत्यधिक लंबी, पेचीदा और शैक्षणिक प्रकृति की हैं, और अब तक केवल अंग्रेजी में उपलब्ध हैं।
इस तरफ कोई पहल नहीं की गयी है कि महिला समूहों, दलित, आदिवासी और NT-DNT समूहों, किसानों, मजदूरों और किसानों के आंदोलनों, अल्पसंख्यक धार्मिक संगठनों, ट्रेड यूनियनों, ट्रांसजेंडर व अन्य लैंगिकताओं से सम्बद्ध लोगों, विकलांग अधिकार समूहों आदि के विचारों को शामिल किया जाए या प्रश्नावली को उनके लिए प्रासंगिक बनाया जाए - जबकि यही वे लोग हैं जिन्हें आपराधिक क़ानूनों और उससे जुड़ी दिक्कतों का रोज़ सामना करना पड़ता है। यहाँ तक कि राज्य और जिला अधिवक्ता संघों को भी आपराधिक कानून को पुनर्रचित करने के इस प्रयास के बारे में सूचित नहीं किया गया है और इसीलिए उनकी भागीदारी में भी भारी कमी है।
आपराधिक कानून में सुधार की जिस प्रकार की प्रक्रिया अभी अपनाई जा रही है, वह पूरी तरह से ग़ैर-लोकतांत्रिक, अपारदर्शी और ग़ैर-समावेशी है। यह गंभीर चिंताओं को जन्म देता है कि इस कार्य के पीछे सही मक़सद नहीं है, और यह क़ानून में किसी पूर्व-निर्धारित बदलाव की मंशा से किया जा रहा है, न कि औपनिवेशिक क़ानून के उन मुद्दों को समझने और सम्बोधित करने की मंशा से - जिनका सामना भारतीय समाज कर रहा है।
उपरोक्त के मद्देनज़र, हम मांग करते हैं कि:
क) आपराधिक क़ानून में बदलाव के लिए बनी समिति को तुरंत भंग कर दिया जाए और मौजूदा प्रक्रिया को तत्काल निलंबित कर दिया जाए।
ख) महामारी की अवधि के दौरान कोई आपराधिक क़ानून में सुधार का काम नहीं किया जाए। न्याय प्रणाली का सामान्य कामकाज दोबारा से शुरू किया जाए और आपराधिक कानून सुधार प्रक्रिया को फिर से शुरू करने से पहले, पूरे देश में सार्वजनिक बैठकों की अनुमति दी जाए।
ग) आपराधिक कानून सुधार की प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी बनाया जाए - यह जनता के लिए स्पष्ट होना चाहिए कि आपराधिक कानून के किन पहलुओं का सुधार किया जा रहा है और इसके द्वारा किन चिंताओं को दूर करने की चेष्टा है।
घ) विकेन्द्रीय रूप से खुले और व्यापक विचार-विमर्श के लिए पर्याप्त समय दिया जाए।
ङ) समाज के विभिन्न वर्गों, विशेष रूप से हाशिये से आते और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व वाले समूहों का सुधार की निर्णय-प्रणाली में उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए और पूरी प्रक्रिया के दौरान उनके विचारों को दर्ज किया जाए।
हम इस संबंध में मंत्रालय के उचित निर्णय की अपेक्षा करते हैं।''
पत्र लिखने वालों में शामिल हैं....
Medha Patkar, Narmada Bachao Andolan (NBA) and National Alliance of People’s Movements (NAPM); Dr. Sunilam, Adv. Aradhna Bhargava, Kisan Sangharsh Samiti; Rajkumar Sinha, Chutka Parmaanu Virodhi Sangharsh Samiti, NAPM, Madhya Pradesh;
Aruna Roy, Nikhil Dey, Shankar Singh, Mazdoor Kisan Shakti Sangathan (MKSS), National Campaign for People’s Right to Information; Kavita Srivastava, People’s Union for Civil Liberties (PUCL); Kailash Meena NAPM Rajasthan;
Prafulla Samantara, Lok Shakti Abhiyan; Lingraj Azad, Samajwadi Jan Parishad & Niyamgiri Suraksha Samiti, Manorama, Posco Pratirodh Sangram Samiti; Lingaraj Pradhan, Satya banchor, Anant, Kalyan Anand, Arun Jena, Trilochan Punji, Lakshimipriya Mohanty and Balakrishna Sand, Manas Patnaik, NAPM Odisha;
Sandeep Pandey (Socialist Party of India); Richa Singh & Rambeti (Sangatin Kisaan Mazdoor Sangathan, Sitapur); Rajeev Yadav & Masihuddin bhai (Rihai Manch, Lucknow & Azamgadh); Arundhati Dhuru & Zainab Khatun (Mahila Yuva Adhikar Manch, Lucknow), Suresh Rathaur (MNREGA Mazdoor Union, Varanasi); Arvind Murti & Altamas Ansari (Inquilabi Kamgaar Union, Mau), Jagriti Rahi (Vision Sansthan, Varanasi); Satish Singh (Sarvodayi Vikas Samiti, Varanasi); Nakul Singh Sawney (Chal Chitra Abhiyan, Muzaffarnagar); NAPM Uttar Pradesh
P. Chennaiah, Andhra Pradesh Vyavasaya Vruthidarula Union-APVVU, Ramakrishnam Raju, United Forum for RTI and NAPM, Chakri (Samalochana), Balu Gadi, Bapji Juvvala, NAPM Andhra Pradesh;
Jeevan Kumar & Syed Bilal (Human Rights Forum), P. Shankar (Dalit Bahujan Front), Vissa Kiran Kumar & Kondal (Rythu Swarajya Vedika), Ravi Kanneganti (Rythu JAC), Ashalatha (MAKAAM), Krishna (Telangana Vidyavantula Vedika-TVV), M. Venkatayya (Telangana Vyavasaya Vruttidarula Union-TVVU), Meera Sanghamitra, Rajesh Serupally, NAPM Telangana;
Sister Celia, Domestic Workers Union; Maj Gen (Retd) S.G.Vombatkere, NAPM, Nawaz, Dwiji, Nalini, NAPM Karnataka
Gabriele Dietrich, Penn Urimay Iyakkam, Madurai; Geetha Ramakrishnan, Unorganised Sector Workers Federation; Suthanthiran, Suthanthiran, Lenin & Arul Doss, NAPM Tamilnadu;
Vilayodi Venugopal, CR Neelakandan, Prof. Kusumam Joseph, Sharath Cheloor, Vijayaraghavan Cheliya, Majeendran, Magline, NAPM, Kerala;
Dayamani Barla, Aadivasi-Moolnivasi Astivtva Raksha Samiti; Basant Hetamsaria, Aloka Kujur, Dr. Leo A. Singh, Afzal Anish, Sushma Biruli, Durga Nayak, Jipal Murmu, Priti Ranjan Dash, Ashok Verma, NAPM Jharkhand;
Anand Mazgaonkar, Swati Desai, Krishnakant, Parth, Paryavaran Suraksha Samiti; Nita Mahadev, Mudita, Lok Samiti; Dev Desai, Mujahid Nafees, Ramesh Tadvi, Aziz Minat and Bharat Jambucha, NAPM Gujarat;
Vimal Bhai, Matu Jan sangathan; Jabar Singh, Uma, NAPM, Uttarakhand;
Manshi Asher and Himshi Singh, Himdhara, NAPM Himachal Pradesh
Eric Pinto, Abhijeet, Tania Devaiah and Francesca, NAPM Goa
Gautam Bandopadhyay, Nadi Ghati Morcha; Kaladas Dahariya, RELAA-CMM, Alok Shukla, Shalini Gera, NAPM Chhattisgarh;
Samar Bagchi, Amitava Mitra, Binayak Sen, Sujato Bhadro, Pradip Chatterjee, Pasarul Alam, Amitava Mitra, Tapas Das, Tahomina Mandal, Pabitra Mandal, Kazi Md. Sherif, Biswajit Basak, Ayesha Khatun, Rupak Mukherjee, Milan Das, Asit Roy, Mita Bhatta, Yasin, Matiur Rahman, Baiwajit Basa, NAPM West Bengal;
Suniti SR, Sanjay M G, Suhas Kolhekar, Prasad Bagwe, Mukta Srivastava, Yuvraj Gatkal, Geetanjali Chavan, Bilal Khan, Jameela, Ghar Bachao Ghar Banao Andolan; Chetan Salve, Narmada Bachao Andolan, Pervin Jehangir, NAPM Maharashtra;
Faisal Khan, Khudai Khidmatgar, J S Walia, NAPM Haryana;
Guruwant Singh, Narbinder Singh, NAPM Punjab;
Kamayani Swami, Ashish Ranjan, Jan Jagran Shakti Sangathan; Mahendra Yadav, Kosi Navnirman Manch; Sister Dorothy, Aashray Abhiyan, NAPM Bihar;
Rajendra Ravi, NAPM; Bhupender Singh Rawat, Jan Sangharsh Vahini; Anjali Bharadwaj and Amrita Johri, Satark Nagrik Sangathan; Sanjeev Kumar, Dalit Adivasi Shakti Adhikar Manch; Anita Kapoor, Delhi Shahri Mahila Kaamgaar Union; Sunita Rani, National Domestic Workers Union; Nanhu Prasad, National Cyclist Union; Madhuresh Kumar, Priya Pillai, Aryaman Jain, Divyansh Khurana, Evita Das; Anil TV, Delhi Solidarity Group, MJ Vijayan (PIPFPD)