डॉ. मनमोहन सिंह की नसीहत- बोलने से पहले सोचें, चीन ने मोदी के बयान का उठाया फायदा

Written by sabrang india | Published on: June 22, 2020
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 15 जून को गलवान वैली में चीनी सैनिकों से भारतीय सेना की हुई झड़प पर बयान दिया है। उस झड़प में शहीद हुए 20 जवानों की शहादत को याद करते हुए उन्हें श्रद्धाजंलि दी हैं और साथ ही केंद्र सरकार को नसीहत भी दी है।



15-16 जून, 2020 को गलवान वैली, लदाख मे भारत के 20 साहसी जवानों ने सर्वोच्च कुर्बानी दी। इन बहादुर सैनिकों साहस के साथ अपना कर्तव्य निभाते हुए देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। देश के इन सपूतों ने अंतिम सांस तक देश की रक्षा की। इस त्याग के लिए हम इन साहसी सैनिकों और उनके परिवारों के कृतज्ञ हैं। उनका बलिदान व्यर्थ नही जाना चाहिए।

मनमोहन सिंह ने आगे कहा, 'आज हम इतिहास के एक नाजुक मोड़ पर खड़े हैं। हमारी सरकार के निर्णय और सरकार द्वारा उठाए गए कदम तय करेंगे कि भविष्य की पीढ़ियां हमारा आंकलन कैसे करें। जो देश का नेतृत्व कर रहे हैं, उनके कंधों पर कर्तव्य का गहन दायित्व है। हमारे प्रजातंत्र में यह दायित्व देश के प्रधानमंत्री का है। प्रधानमंत्री को अपने शब्दों और ऐलानों से देश की सुरक्षा सामरिक और भूभागीय हितों पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति सदैव बेहद सावधान होना चाहिए।'

'चीन ने अप्रैल, 2020 से लेकर आज तक भारतीय सीमा में गलवान वैली और पांगोंग त्सो लेक में अनेकों बार जबरन घुसपैठ की है। हम न तो उनकी धमकियों व दबाव के सामने झुकेंगे और न ही अपनी भूभागीय अखंडता से कोई समझौता स्वीकार करेंगे। प्रधानमंत्री को अपने बयान से उनके षडयंत्रकारी रुख को बल नहीं देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार के सभी अंग इस खतरे का सामना करने और स्थिति को और ज्यादा गंभीर होने से रोकने के लिए परस्पर सहमति से काम करें, यही समय है जब पूरे राष्ट्र को एकजुट होना है  और संगठित होकर इस दुस्साहस का जवाब देना है।'

मनमोहन सिंह ने कहा, 'हम सरकार को आगाह करेंगे कि भ्रामक प्रचार कभी भी कूटनीति का मजबूत नेतृत्व का विकल्प नहीं हो सकता, पिछलग्गू सहयोगियों द्वारा प्रचारित झूठ के आडंबर से सच्चाई को नहीं दबाया जा सकता।'

केंद्र सरकार को आगाह करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा, 'हम प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार से आग्रह करते हैं कि वो वक्त की चुनौतियों का सामना करें, और कर्नल बी. संतोष बाबू और हमारे सैनिकों की कुर्बानी की कसौटी पर खरा उतरें, जिन्होंने 'राष्ट्रीय सुरक्षा' और 'भूभागीय अखंडता' के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इससे कुछ भी कम जनादेश से ऐतिहासिक विश्वासघात होगा।

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