श्रमिक स्पेशल ट्रेन का भटक जाना, लेट चलना या तथाकथित भीड़ के कारण लंबे रास्ते से चलना साधारण नहीं है। अव्वल तो साधारण यह भी नहीं है कि इतनी बड़ी संख्या में ऐसा हो रहा है और बताया नहीं जा रहा है। यह भी कि रेलवे को सच बताने की बजाय झूठ क्यों बोलना पड़ रहा है। अगर यह सब सामान्य बात होती तो सारी सूचनाएं सार्वजनिक की जा सकती थीं कि इतनी श्रमिक स्पेशल ट्रेन इन-इन तारीखों को इन स्टेशनों के लिए चली और इन तारीखों को अपने गंतव्य पर इतनी देर से या समय से पहुंच गई। सामान्य तौर पर ये सूचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध होती हैं और हर कोई जानता है कि ये सूचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध कराने भर के लिए नहीं डाली जाती हैं बल्कि ट्रेन का परिचालन पूरी तरह कंप्यूटर पर निर्भर है इसलिए सारी सूचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध होती हैं (थीं)। सामान्य स्थितियों में हमलोग किसी भी ट्रेन को ट्रैक कर सकते थे और पता चल जाता था कि ट्रेन कब चली कहां है या कब पहुंची।
अब जब ट्रेन रास्ता भटकने लगी तो मैंने ये सूचनाएं देखने की कोशिश की पर नहीं मिली। मैं कोई कंप्यूटर विशेषज्ञ नहीं हूं और सूचनाएं मेरे लिए बहुत जरूरी भी नहीं हैं लेकिन मुझे नहीं मिली मतलब आमतौर पर उपलब्ध नहीं है। जब रेल मंत्री और सरकार की ओर से पीआईबी इन बातों का खंडन कर रहा है कि यात्री भूख से नहीं मर रहे हैं या ट्रेन भटक नहीं रही है बल्कि जान बूझकर लंबे रास्ते से भेजी जा रही है तो कारण संतोषजनक होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो तो सारी सूचनाएं दी जानी चाहिए ताकि जो कहा जा रहा है उसपर भरोसा हो सके। अधिकारियों ने जो भी कहा है उसपर कई सवाल हैं और उनके कहे पर यकीन करना मुश्किल है। उदाहरण के लिए जाट आंदोलन के कारण जब ट्रेन का परिचालन संभव नहीं हुआ तो दिल्ली मुंबई राजधानी जैसी ट्रेन रद्द कर दी गई। उसे कोलकाता या राउरकेला होकर मुंबई नहीं ले जाया गया। इसी तरह अगर श्रमिक स्पेशल का परिचालन भिन्न जायज मार्गों से असंभव है तो क्या जरूरत है चलाने की? यात्रियों को विमान से या सड़क मार्ग से भेजने के विकल्प पर क्यों नहीं सोचा गया?
जब रेलवे पीएम केयर्स में दान कर सकता है, लंबे रास्ते से घूम कर पैसे खर्च कर सकता है, यात्रियों की जान की परवाह छोड़ सकता है तो कुछ रुपए खर्च कर विमान किराए पर ले सकता था। अपनी और रेल मंत्री की छवि बनाए और बचाए रखने के लिए। मेरा मानना है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेन का परिचालन (चाहे जिस कारण से) उस सिस्टम से नहीं हो रहा है जिससे ट्रेन आम तौर पर चलती है। इसलिए रूट से लेकर कोच तक अलग हैं। और नया सिस्टम व्यवस्थित नहीं है या पुराना सिस्टम नई जरूरतों के अनुसार नियंत्रण में काम नहीं कर रहा है। ना तो ट्रेन को लंबे रास्ते से घुमाने का कोई मतलब है और ना भीड़ का बहाना यकीन करने लायक है। ऐसा होने या करने या होने देने का कोई कारण जरूर है जिसे छिपाया जा रहा है। यह सामान्य किसी भी रूप में नहीं है। हो सकता है, रेलवे का कंप्यूटर सिस्टम इसका कारण हो जो संभल नहीं रहा है या जितना संभव रहा है उससे यही हासिल हो रहा है।
मुझे लगता है कि जो सिस्टम बनाया गया होगा उसमें नई ट्रेन जोड़ी या घटाई जा सकती होगी। यह कल्पना की ही नहीं गई होगी कि कभी सभी ट्रेन को बंद करके कुछ खास ट्रेन भी चलाने की आवश्यकता पड़ेगी। इसलिए इसका प्रावधान होगा ही नहीं। यह भी तय है कि कंप्यूटर सिस्टम में इस बात की भी व्यवस्था रखी गई हो कि ज्यादा स ज्यादा क्षेत्र को कवर किया जा सके। इन कारणों से संभव है कि ट्रेन भटक जा रही हो और लंबा रास्ता ले रही हो या लंबे रास्ते से भेजना पड़ रहा हो। यह वाईटूके जैसी समस्या का सच भी हो सकता है। मुझे इस शक में दम इसलिए लगता है कि 20 साल बाद प्रधानमंत्री ने वाईटूके की चर्चा की और यह उन्हीं दिनों की बात है जब रेल अधिकारी / मंत्री इस समस्या से जूझ रहे होंगे। हो सकता है मैं गलत होऊं पर ट्रेन भटकने का कोई कारण तो होगा। अपनी बात को साबित करने के लिए आइए वैकल्पिक मार्ग के तर्क को भी समझ लें।
रेलवे की ओर से यह समझाना कि भिन्न कारणों से लंबा रास्ता लिया जा रहा पर यात्रियों को पहले नहीं बताया जा रहा है, उस रूट पर खाना पानी नहीं मिलना और पहुंचने का अनुमानित समय नहीं बताना या उससे ज्यादा समय लगना रेलवे के सभी दावों के निराधार होने की पोल खोलता है। वैकल्पिक रूट को समझने के लिए तर्कों की थोड़ी समझ के साथ थोड़ी समझ भूगोल की भी होनी चाहिए। वैसे भी रेल पटरियों पर भीड़ कैसे हुई? भारत में रेल की पटरियों पर जापान की ट्रेन तो नहीं आई है। सब कुछ नियम और व्यवस्था के तहत होता है तो भीड़ कैसे हो जा रही है? यात्री क्यों परेशान हो जब उसके हाथ में कुछ है ही नहीं?
-संजय कुमार सिंह
अब जब ट्रेन रास्ता भटकने लगी तो मैंने ये सूचनाएं देखने की कोशिश की पर नहीं मिली। मैं कोई कंप्यूटर विशेषज्ञ नहीं हूं और सूचनाएं मेरे लिए बहुत जरूरी भी नहीं हैं लेकिन मुझे नहीं मिली मतलब आमतौर पर उपलब्ध नहीं है। जब रेल मंत्री और सरकार की ओर से पीआईबी इन बातों का खंडन कर रहा है कि यात्री भूख से नहीं मर रहे हैं या ट्रेन भटक नहीं रही है बल्कि जान बूझकर लंबे रास्ते से भेजी जा रही है तो कारण संतोषजनक होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो तो सारी सूचनाएं दी जानी चाहिए ताकि जो कहा जा रहा है उसपर भरोसा हो सके। अधिकारियों ने जो भी कहा है उसपर कई सवाल हैं और उनके कहे पर यकीन करना मुश्किल है। उदाहरण के लिए जाट आंदोलन के कारण जब ट्रेन का परिचालन संभव नहीं हुआ तो दिल्ली मुंबई राजधानी जैसी ट्रेन रद्द कर दी गई। उसे कोलकाता या राउरकेला होकर मुंबई नहीं ले जाया गया। इसी तरह अगर श्रमिक स्पेशल का परिचालन भिन्न जायज मार्गों से असंभव है तो क्या जरूरत है चलाने की? यात्रियों को विमान से या सड़क मार्ग से भेजने के विकल्प पर क्यों नहीं सोचा गया?
जब रेलवे पीएम केयर्स में दान कर सकता है, लंबे रास्ते से घूम कर पैसे खर्च कर सकता है, यात्रियों की जान की परवाह छोड़ सकता है तो कुछ रुपए खर्च कर विमान किराए पर ले सकता था। अपनी और रेल मंत्री की छवि बनाए और बचाए रखने के लिए। मेरा मानना है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेन का परिचालन (चाहे जिस कारण से) उस सिस्टम से नहीं हो रहा है जिससे ट्रेन आम तौर पर चलती है। इसलिए रूट से लेकर कोच तक अलग हैं। और नया सिस्टम व्यवस्थित नहीं है या पुराना सिस्टम नई जरूरतों के अनुसार नियंत्रण में काम नहीं कर रहा है। ना तो ट्रेन को लंबे रास्ते से घुमाने का कोई मतलब है और ना भीड़ का बहाना यकीन करने लायक है। ऐसा होने या करने या होने देने का कोई कारण जरूर है जिसे छिपाया जा रहा है। यह सामान्य किसी भी रूप में नहीं है। हो सकता है, रेलवे का कंप्यूटर सिस्टम इसका कारण हो जो संभल नहीं रहा है या जितना संभव रहा है उससे यही हासिल हो रहा है।
मुझे लगता है कि जो सिस्टम बनाया गया होगा उसमें नई ट्रेन जोड़ी या घटाई जा सकती होगी। यह कल्पना की ही नहीं गई होगी कि कभी सभी ट्रेन को बंद करके कुछ खास ट्रेन भी चलाने की आवश्यकता पड़ेगी। इसलिए इसका प्रावधान होगा ही नहीं। यह भी तय है कि कंप्यूटर सिस्टम में इस बात की भी व्यवस्था रखी गई हो कि ज्यादा स ज्यादा क्षेत्र को कवर किया जा सके। इन कारणों से संभव है कि ट्रेन भटक जा रही हो और लंबा रास्ता ले रही हो या लंबे रास्ते से भेजना पड़ रहा हो। यह वाईटूके जैसी समस्या का सच भी हो सकता है। मुझे इस शक में दम इसलिए लगता है कि 20 साल बाद प्रधानमंत्री ने वाईटूके की चर्चा की और यह उन्हीं दिनों की बात है जब रेल अधिकारी / मंत्री इस समस्या से जूझ रहे होंगे। हो सकता है मैं गलत होऊं पर ट्रेन भटकने का कोई कारण तो होगा। अपनी बात को साबित करने के लिए आइए वैकल्पिक मार्ग के तर्क को भी समझ लें।
रेलवे की ओर से यह समझाना कि भिन्न कारणों से लंबा रास्ता लिया जा रहा पर यात्रियों को पहले नहीं बताया जा रहा है, उस रूट पर खाना पानी नहीं मिलना और पहुंचने का अनुमानित समय नहीं बताना या उससे ज्यादा समय लगना रेलवे के सभी दावों के निराधार होने की पोल खोलता है। वैकल्पिक रूट को समझने के लिए तर्कों की थोड़ी समझ के साथ थोड़ी समझ भूगोल की भी होनी चाहिए। वैसे भी रेल पटरियों पर भीड़ कैसे हुई? भारत में रेल की पटरियों पर जापान की ट्रेन तो नहीं आई है। सब कुछ नियम और व्यवस्था के तहत होता है तो भीड़ कैसे हो जा रही है? यात्री क्यों परेशान हो जब उसके हाथ में कुछ है ही नहीं?
-संजय कुमार सिंह