पूरे विश्व मे कोरोना से उपजे आतंक का खात्मा होने जा रहा है। अब मीडिया से धीरे धीरे कोरोना के पैनिक मोड को कम करना शुरू कर देगा। क्योंकि फिलहाल कोरोना की एक दवाई मिल गयी है जिसमे अमेरिका को उम्मीद की किरण दिख रही है उस दवा का नाम है 'रेमडेसिविर'।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कहा है कि इबोला के खात्मे के लिए तैयार की गई दवा रेमडेसिविर (Remdesivir) कोरोना वायरस के मरीजों पर जादुई असर डाल रही है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सलाहकार डॉक्टर एंथनी फाउसी ने कह रहे हैं, 'आंकड़े बताते हैं कि रेमडेसिविर दवा का मरीजों के ठीक होने के समय में बहुत स्पष्ट, प्रभावी और सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।'
रेमडेसिविर (Remdesivir) के बारे में अब अखबार लिख रहे हैं कि 'डॉक्टर फॉउसी के इस ऐलान के बाद पूरी दुनिया में खुशी की लहर फैल गई है।
रेमडेसिविर दवा पर हमारी बहुत पहले से नजरे जमी हुई थी इसलिए बहुत पहले से हमने इस दवाई का कच्चा चिट्ठा जमा करना शुरू कर दिया था। दरअसल पहले डील जम नही पा रही थी। अब डील जमती नजर आ रही है, कुछ दिनों पहले इसी दवाई के बारे में खबर आई थी कि रेमडेसिविर के कोरोना में फेल होने की रिपोर्ट को डब्लूएचओ ने अपने वेबसाइट पर विस्तार से प्रकाशित किया था। कुछ घण्टे के बाद में इस रिपोर्ट को WHO ने स्वयं ही हटा दिया। इस पर सफाई देते हुए डब्लूएचओ ने कहा कि ड्राफ्ट रिपोर्ट गलती से अपलोड हो गई थी इसलिए रिपोर्ट को हटा लिया गया।
यानी साफ था कि पहले डील नही जमी अभी डील जम गई है।
शुरुआत से WHO नें कोरोना के लिए चार दवाओं के ट्रायल पर फ़ोकस किया था पहली है एंटीवायरल रेमेड्सिविर (remdesivir), दूसरी थी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) और एचआईवी (HIV) की दो दवाओं लोपिनाविर(Lopinavir) और रिटोनाविर (Ritonavir) का कॉबिंनेशन। बाद में जापान की टोयोमा केमिकल की दवा फेविपिराविर (Favipiravir) को भी शामिल किया गया।
अब इस दौड़ में रेमेड्सिविर (remdesivir) आगे निकल रही है इस दवाई को बनाने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है।
रेमेड्सिविर दवा की खोज 2010 के दशक के मध्य में हुई थी। शुरुआत में जानवरों पर किए गए टेस्ट से सिद्ध हुआ था कि ये दवा इबोला के इलाज में सटीक काम करेगी। लेकिन अफ्रीकी देश कॉन्गो में हुए तीसरे चरण के बड़े परीक्षण के दौरान पता चला कि ये दवा इबोला को पूरी तरह ठीक कर पाने में उतनी कारगर नहीं है।इसके बाद इस दवा की उपयोगिता बेहद कम रह गई थी। इसे भुला दिया गया लेकिन कोरोना के सार्स और मर्स से काफी मिलने के कारण माना जा रहा है कि ये दवा कोरोना के इलाज में कारगर साबित होगी। हाल ही में वॉशिंगटन में COVID-19 के एक पीड़ित की जब हालत ख़राब हो गई तो उसे यह दवा दी गई। इस दवा के बाद इस पीड़ित की हालत में ज़बरदस्त सुधार हुआ। दी न्यू इंगलैंड जरनल ऑफ़ मेडिसिन में यह केस रिपोर्ट किया गया है। इसके अलावा कैलिफोर्निया में भी डॉक्टरों ने दावा किया है कि एक मरीज़ को इस दवा से लाभ हुआ और वो पूरी तरह से ठीक हो गया।
अमेरिका के शिकागो शहर में कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार 125 लोगों को रेमेड्सिविर दवा दी गई जिसमें से 123 लोग ठीक हो गए थे। इसके बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने ऐलान किया था कि रेमडेसिविर एक ऐसी दवा है जिससे कोरोना के खात्मे की संभावना देखी जा रही है।
डब्ल्यूएचओ के सहायक महानिदेशक ब्रूस आयलवर्ड ने भी कहा था कि रेमेडिसविर ही एकमात्र ऐसी दवा है जिसे उनका संगठन 'वास्तविक प्रभावकारी ’मानता है।
लेकिन इस ड्रग को बनाने वाली कम्पनी के साथ Gilead Sciences के साथ एक समस्या है 23 मार्च को रेमेड्सिविर को अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने orphan Gilead Sciencesdrug का दर्जा दिया। ये दर्जा उन दवाओं को दिया जाता है जिनमें किसी रोग को ठीक कर सकने की संभावित क्षमता दिखाई देती है। इन्हें orphan या अनाथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका व्यावसायिक उत्पादन रुका होता है और इसके लिए सरकारी सपोर्ट की जरूरत होती है,इस दर्जे की वजह से कंपनी Gilead Sciences को कई रियायतें मिलेंगी। जैसे सात साल तक बाजार में दवा बनाने का एकाधिकार। साथ ही टैक्स में भी छूट मिलती है जिसका उपयोग दवा को विकसित करने में किया जा सके।
लेकिन गिलियड ने अमेरिकी एफडीए रेमेडिसविर के लिए orphan दवा पदनाम छोड़ने का निर्णय लिया है। संभवतः गिलियड चीन सरकार के सहयोग से चीन में इसी दवा के क्लीनिकल परीक्षण कर चुका है इस दवा को चीन में कोरोना से संक्रमित लोगो के ऊपर बड़े पैमाने पर प्रयोग में लाया गया है।
आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि इस दवा के पीछे चीनी कम्पनिया भी पड़ी हुई है जिस जगह से यह वायरस फैला है वही इंस्टिट्यूट इस दवा के लिए पेटेंट प्रस्तुत कर चुका है वो भी जब, जब दुनिया इस बीमारी के बारे में ही नही जानती थी वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अकादमी के सैन्य चिकित्सा संस्थान के साथ यह पेटेंट आवेदन 21 जनवरी 2020 को संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया था। और इसका उद्देश्य चीन के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना बताया था।
21 जनवरी 2020 को तो दुनिया इस बीमारी के बारे में अवेयर ही नही हुई थी अब कोई चीन को यदि निर्दोष समझ रहा है तो उसे ये तथ्य विशेष रूप से समझ लेना चाहिए।
रेमेडिसविर के साथ दो मसले भी हैं, पहला कि यह दवा बहुत महंगी है और दूसरा ये कि इस दवा का इस्तेमाल बिमारी के लक्षण नज़र आते ही नहीं क्या जा सकाता। यह दवा सिर्फ़ वायरस के पूरी तरह से एक्टिव होने पर ही किया जाता है। कुल मिलाकर 80-85 प्रतिशत मरीजों को यह दवा देना संभव नहीं होता है।
जो लोग सोच रहे हैं कि भारत मे तो यह सस्ती मिलेगी लेकिन उन्हें यह बता दूं कि गिलियड ने 2017 में भारत में "फाइलेरोविडे संक्रमण के इलाज के लिए यौगिक" के लिए एक पेटेंट आवेदन दायर किया था और रेमडेसिविर पर भारतीय पेटेंट हाल ही में 18 फरवरी 2020 को दिया गया है विशेषज्ञ कहते है कि कोरोनोवायरस एक ही परिवार के हैं जो कि फाइलेरोविडे हैं।
इस रेमडेसिविर पुराण का पारायण आपने किया इसका धन्यवाद, निष्कर्ष स्वरूप कह सकते हैं कि बड़ी फार्मा कम्पनिया पूरा गेम सेट कर चुकी है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कहा है कि इबोला के खात्मे के लिए तैयार की गई दवा रेमडेसिविर (Remdesivir) कोरोना वायरस के मरीजों पर जादुई असर डाल रही है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सलाहकार डॉक्टर एंथनी फाउसी ने कह रहे हैं, 'आंकड़े बताते हैं कि रेमडेसिविर दवा का मरीजों के ठीक होने के समय में बहुत स्पष्ट, प्रभावी और सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।'
रेमडेसिविर (Remdesivir) के बारे में अब अखबार लिख रहे हैं कि 'डॉक्टर फॉउसी के इस ऐलान के बाद पूरी दुनिया में खुशी की लहर फैल गई है।
रेमडेसिविर दवा पर हमारी बहुत पहले से नजरे जमी हुई थी इसलिए बहुत पहले से हमने इस दवाई का कच्चा चिट्ठा जमा करना शुरू कर दिया था। दरअसल पहले डील जम नही पा रही थी। अब डील जमती नजर आ रही है, कुछ दिनों पहले इसी दवाई के बारे में खबर आई थी कि रेमडेसिविर के कोरोना में फेल होने की रिपोर्ट को डब्लूएचओ ने अपने वेबसाइट पर विस्तार से प्रकाशित किया था। कुछ घण्टे के बाद में इस रिपोर्ट को WHO ने स्वयं ही हटा दिया। इस पर सफाई देते हुए डब्लूएचओ ने कहा कि ड्राफ्ट रिपोर्ट गलती से अपलोड हो गई थी इसलिए रिपोर्ट को हटा लिया गया।
यानी साफ था कि पहले डील नही जमी अभी डील जम गई है।
शुरुआत से WHO नें कोरोना के लिए चार दवाओं के ट्रायल पर फ़ोकस किया था पहली है एंटीवायरल रेमेड्सिविर (remdesivir), दूसरी थी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) और एचआईवी (HIV) की दो दवाओं लोपिनाविर(Lopinavir) और रिटोनाविर (Ritonavir) का कॉबिंनेशन। बाद में जापान की टोयोमा केमिकल की दवा फेविपिराविर (Favipiravir) को भी शामिल किया गया।
अब इस दौड़ में रेमेड्सिविर (remdesivir) आगे निकल रही है इस दवाई को बनाने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है।
रेमेड्सिविर दवा की खोज 2010 के दशक के मध्य में हुई थी। शुरुआत में जानवरों पर किए गए टेस्ट से सिद्ध हुआ था कि ये दवा इबोला के इलाज में सटीक काम करेगी। लेकिन अफ्रीकी देश कॉन्गो में हुए तीसरे चरण के बड़े परीक्षण के दौरान पता चला कि ये दवा इबोला को पूरी तरह ठीक कर पाने में उतनी कारगर नहीं है।इसके बाद इस दवा की उपयोगिता बेहद कम रह गई थी। इसे भुला दिया गया लेकिन कोरोना के सार्स और मर्स से काफी मिलने के कारण माना जा रहा है कि ये दवा कोरोना के इलाज में कारगर साबित होगी। हाल ही में वॉशिंगटन में COVID-19 के एक पीड़ित की जब हालत ख़राब हो गई तो उसे यह दवा दी गई। इस दवा के बाद इस पीड़ित की हालत में ज़बरदस्त सुधार हुआ। दी न्यू इंगलैंड जरनल ऑफ़ मेडिसिन में यह केस रिपोर्ट किया गया है। इसके अलावा कैलिफोर्निया में भी डॉक्टरों ने दावा किया है कि एक मरीज़ को इस दवा से लाभ हुआ और वो पूरी तरह से ठीक हो गया।
अमेरिका के शिकागो शहर में कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार 125 लोगों को रेमेड्सिविर दवा दी गई जिसमें से 123 लोग ठीक हो गए थे। इसके बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने ऐलान किया था कि रेमडेसिविर एक ऐसी दवा है जिससे कोरोना के खात्मे की संभावना देखी जा रही है।
डब्ल्यूएचओ के सहायक महानिदेशक ब्रूस आयलवर्ड ने भी कहा था कि रेमेडिसविर ही एकमात्र ऐसी दवा है जिसे उनका संगठन 'वास्तविक प्रभावकारी ’मानता है।
लेकिन इस ड्रग को बनाने वाली कम्पनी के साथ Gilead Sciences के साथ एक समस्या है 23 मार्च को रेमेड्सिविर को अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने orphan Gilead Sciencesdrug का दर्जा दिया। ये दर्जा उन दवाओं को दिया जाता है जिनमें किसी रोग को ठीक कर सकने की संभावित क्षमता दिखाई देती है। इन्हें orphan या अनाथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका व्यावसायिक उत्पादन रुका होता है और इसके लिए सरकारी सपोर्ट की जरूरत होती है,इस दर्जे की वजह से कंपनी Gilead Sciences को कई रियायतें मिलेंगी। जैसे सात साल तक बाजार में दवा बनाने का एकाधिकार। साथ ही टैक्स में भी छूट मिलती है जिसका उपयोग दवा को विकसित करने में किया जा सके।
लेकिन गिलियड ने अमेरिकी एफडीए रेमेडिसविर के लिए orphan दवा पदनाम छोड़ने का निर्णय लिया है। संभवतः गिलियड चीन सरकार के सहयोग से चीन में इसी दवा के क्लीनिकल परीक्षण कर चुका है इस दवा को चीन में कोरोना से संक्रमित लोगो के ऊपर बड़े पैमाने पर प्रयोग में लाया गया है।
आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि इस दवा के पीछे चीनी कम्पनिया भी पड़ी हुई है जिस जगह से यह वायरस फैला है वही इंस्टिट्यूट इस दवा के लिए पेटेंट प्रस्तुत कर चुका है वो भी जब, जब दुनिया इस बीमारी के बारे में ही नही जानती थी वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अकादमी के सैन्य चिकित्सा संस्थान के साथ यह पेटेंट आवेदन 21 जनवरी 2020 को संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया था। और इसका उद्देश्य चीन के राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना बताया था।
21 जनवरी 2020 को तो दुनिया इस बीमारी के बारे में अवेयर ही नही हुई थी अब कोई चीन को यदि निर्दोष समझ रहा है तो उसे ये तथ्य विशेष रूप से समझ लेना चाहिए।
रेमेडिसविर के साथ दो मसले भी हैं, पहला कि यह दवा बहुत महंगी है और दूसरा ये कि इस दवा का इस्तेमाल बिमारी के लक्षण नज़र आते ही नहीं क्या जा सकाता। यह दवा सिर्फ़ वायरस के पूरी तरह से एक्टिव होने पर ही किया जाता है। कुल मिलाकर 80-85 प्रतिशत मरीजों को यह दवा देना संभव नहीं होता है।
जो लोग सोच रहे हैं कि भारत मे तो यह सस्ती मिलेगी लेकिन उन्हें यह बता दूं कि गिलियड ने 2017 में भारत में "फाइलेरोविडे संक्रमण के इलाज के लिए यौगिक" के लिए एक पेटेंट आवेदन दायर किया था और रेमडेसिविर पर भारतीय पेटेंट हाल ही में 18 फरवरी 2020 को दिया गया है विशेषज्ञ कहते है कि कोरोनोवायरस एक ही परिवार के हैं जो कि फाइलेरोविडे हैं।
इस रेमडेसिविर पुराण का पारायण आपने किया इसका धन्यवाद, निष्कर्ष स्वरूप कह सकते हैं कि बड़ी फार्मा कम्पनिया पूरा गेम सेट कर चुकी है।